पहले कई फिल्टर लगाए, फिर कमर पतली और भौंह लंबी की या डोले शोले चमकाए...और फिर उसे सोशल मीडिया पर डाल दिया. नॉर्वे ने ऐसी सॉफ्टवेयर ब्यूटी पर लगाम कस दी है.
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खुद को किसी भी तरह सुंदर दिखाने के चक्कर में इंफ्लूएंसर, खूबसूरती के नकली मानक बना रहे हैं. यही मानते हुए नॉर्वे ने ऐसी एडिटेड खूबसूरती पर लगाम लगाने का फैसला किया है. देश में सोशल मीडिया के इंफ्लूएंसरों और विज्ञापन एजेंसियों के लिए एक कानून लागू कर दिया है.
इस कानून के तहत इंफ्लूएसरों और विज्ञापन कंपनियों को अब बताना होगा कि उन्होंने अपनी फोटो को कितनी बार मोडिफाई किया है. मसलन अगर तस्वीर में शरीर के आकार, बनावट, त्वचा के रंग की एडिटिंग की गई तो तस्वीर के साथ ही जानकारी देनी होगी. तस्वीर पर सरकार द्वारा तैयार किया गया एक लेबल लगाना होगा. कमर, होठों के आकार और मसल्स को भी इसमें शामिल किया गया है. ये नियम उन सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए लागू होगा जहां पैसा लेकर प्रमोशन किया जाता है. फेसबुक, इंस्टाग्राम, टिक टॉक, ट्विटर और स्नैपचैट इसके दायरे में हैं.
सोशल मीडिया पर सुंदर दिखने की होड़ में सैकड़ों ऐप्स या सॉफ्टवेयर बाजार में आ चुके हैं. नॉर्वे के बाल और परिवार मामलों के मंत्रालय के मुताबिक सुंदर दिखने की यह होड़ खूबसूरती के नकली मानक सेट कर रही है. नॉर्वे की संसद में इस कानून के समर्थन में 72 वोट पड़े और विरोध में 15.
कई शोध साबित कर चुके हैं कि इंटरनेट पर खूबसूरत दिखने की आंधी में कई लोग हीनभावना का शिकार होते हैं. लोग खुद को खूबसूरती के इन नकली मानकों पर तौलने लगते हैं. किशोरों और युवाओं पर इनका सबसे गहरा असर पड़ता है. कई युवा खुद को बदसूरत या बेडौल मानने लगते हैं.
ऐसी आर्टिफिशियल सुंदरता पर लगाम लगाने की कोशिश नई नहीं है. दुनिया भर में तस्वीरों के लिए मशहूर फोटो एजेंसी गेटी इमेजेज कुछ साल पहले अपने डाटा बेस से मॉडलों की एडिट की गई तस्वीरें बैन कर चुकी है. 2017 में फ्रांस ने भी फैशन मैगजीनों के कवर पर छपने वाली एडिटेड तस्वीरों के लिए डिक्लेरेशन अनिवार्य कर दिया.
ऐसा है दिमाग पर सोशल मीडिया का असर
क्या आपने भी कई बार सोचा है कि हर वक्त मोबाइल या कंप्यूटर पर फेसबुक, ट्विटर वगैरह नहीं देखा करेंगे, लेकिन ऐसा कर नहीं सके हैं? सोशल मीडिया एक क्रांति है लेकिन ये भी तो जानें कि वो आपके दिमाग के साथ क्या कर रहा है. देखिए.
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खुद पर काबू नहीं?
विश्व की लगभग आधी से ज्यादा आबादी तक इंटरनेट पहुंच चुका है और इनमें से कम से कम दो-तिहाई लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. 5 से 10 फीसदी इंटरनेट यूजर्स ने माना है कि वे चाहकर भी सोशल मीडिया पर बिताया जाने वाला अपना समय कम नहीं कर पाते. इनके दिमाग के स्कैन से मस्तिष्क के उस हिस्से में गड़बड़ दिखती है, जहां ड्रग्स लेने वालों के दिमाग में दिखती है.
तस्वीर: Imago/All Canada Photos
लत लग गई?
हमारी भावनाओं, एकाग्रता और निर्णय को नियंत्रित करने वाले दिमाग के हिस्से पर काफी बुरा असर पड़ता है. सोशल मीडिया इस्तेमाल करते समय लोगों को एक छद्म खुशी का भी एहसास होता है क्योंकि उस समय दिमाग को बिना ज्यादा मेहनत किए "इनाम" जैसे सिग्नल मिल रहे होते हैं. यही कारण है कि दिमाग बार बार और ज्यादा ऐसे सिग्नल चाहता है जिसके चलते आप बार बार सोशल मीडिया पर पहुंचते हैं. यही लत है.
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मल्टी टास्किंग जैसा?
क्या आपको भी ऐसा लगता है कि दफ्तर में काम के साथ साथ जब आप किसी दोस्त से चैटिंग कर लेते हैं या कोई वीडियो देख कर खुश हो लेते हैं, तो आप कोई जबर्दस्त काम करते हैं. शायद आप इसे मल्टीटास्किंग समझते हों लेकिन असल में ऐसा करते रहने से दिमाग "ध्यान भटकाने वाली" चीजों को अलग से पहचानने की क्षमता खोने लगता है और लगातार मिल रही सूचना को दिमाग की स्मृति में ठीक से बैठा नहीं पाता.
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क्या फोन वाइब्रेट हुआ?
मोबाइल फोन बैग में या जेब में रखा हो और आपको बार बार लग रहा हो कि शायद फोन बजा या वाइब्रेट हुआ. अगर आपके साथ भी अक्सर ऐसा होता है तो जान लें कि इसे "फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम" कहते हैं और यह वाकई एक समस्या है. जब दिमाग में एक तरह खुजली होती है तो वह उसे शरीर को महसूस होने वाली वाइब्रेशन समझता है. ऐसा लगता है कि तकनीक हमारे तंत्रिका तंत्र से खेलने लगी है.
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मैं ही हूं सृष्टि का केंद्र?
सोशल मीडिया पर अपनी सबसे शानदार, घूमने की या मशहूर लोगों के साथ ली गई तस्वीरें लगाना. जो मन में आया उसे शेयर कर देना और एक दिन में कई कई बार स्टेटस अपडेट करना इस बात का सबूत है कि आपको अपने जीवन को सार्थक समझने के लिए सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया की दरकार है. इसका मतलब है कि आपके दिमाग में खुशी वाले हॉर्मोन डोपामीन का स्राव दूसरों पर निर्भर है वरना आपको अवसाद हो जाए.
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सारे जहान की खुशी?
दिमाग के वे हिस्से जो प्रेरित होने, प्यार महसूस करने या चरम सुख पाने पर उद्दीपित होते हैं, उनके लिए अकेला सोशल मीडिया ही काफी है. अगर आपको लगे कि आपके पोस्ट को देखने और पढ़ने वाले कई लोग हैं तो यह अनुभूति और बढ़ जाती है. इसका पता दिमाग फेसबुक पोस्ट को मिलने वाली "लाइक्स" और ट्विटर पर "फॉलोअर्स" की बड़ी संख्या से लगाता है.
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डेटिंग में ज्यादा सफल?
इसका एक हैरान करने वाला फायदा भी है. डेटिंग पर की गई कुछ स्टडीज दिखाती है कि पहले सोशल मी़डिया पर मिलने वाले युगल जोड़ों का रोमांस ज्यादा सफल रहता है. वे एक दूसरे को कहीं अधिक खास समझते हैं और ज्यादा पसंद करते हैं. इसका कारण शायद ये हो कि सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में अपने पार्टनर के बारे में कल्पना की असीम संभावनाएं होती हैं.