इलेक्ट्रिक गाड़ियों के क्षेत्र में सब पर भारी पड़ रहा चीन
२२ मार्च २०२४शाओमी कंपनी की इलेक्ट्रिक कारें जल्द ही चीन की सड़कों पर दौड़ती नजर आएंगी. कंपनी 28 मार्च से चीन में अपने ग्राहकों तक कार पहुंचाना शुरू कर देगी. चीन की इस दिग्गज इलेक्ट्रॉनिक निर्माता कंपनी ने तीन साल पहले बैटरी से चलने वाली स्पोर्टस कार का विचार पेश किया था.
अब अमेरिका और जर्मनी के कार निर्माताओं को एक और चीनी कंपनी से मुकाबला करना होगा. शाओमी ने इस कार को एसयू7 नाम दिया है. इसमें एसयू का मतलब है ‘स्पीड अल्ट्रा'. यह कार केवल 2.78 सेकंड के भीतर शून्य से 100 की स्पीड तक पहुंच जाएगी. इसकी टॉप स्पीड 265 किलोमीटर प्रति घंटा है.
कंपनी के मुताबिक पूरी बैटरी चार्ज होने पर इस कार की अधिकतम रेंज 800 किलोमीटर होगी. इस कार के शुरुआती मॉडल की कीमत करीब 30 लाख रुपये (36,000 डॉलर) है. यह कार टेस्ला के मॉडल-तीन को टक्कर देगी. पोर्शे की टायकन से इसकी कीमत करीब तीन गुना कम है.
शाओमी के सीईओ लेई जुन की निगाहें अब अमेरिका और जर्मनी के प्रतिद्वंद्वियों पर हैं. वह कहते हैं, "हम समझौता करना या सामान्य कारें नहीं बनाना चाहते. हम ऐसी ड्रीम कार बनाना चाहते हैं जो टेस्ला और पोर्शे की बराबरी करे.”
स्मार्टफोन से कार बनाने तक का सफर
चीन लंबे समय से दुनिया का सबसे बड़ा इलेक्ट्रिक कार निर्माता रहा है. चीनी कंपनियों के नवाचारों के बिना ई-मोबिलिटी की कल्पना भी नहीं की जा सकती. इनमें कई इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां भी शामिल हैं, जिनका शुरुआत में कार उद्योग पर फोकस नहीं था.
शाओमी मुख्य रूप से घरों में काम आने वाले स्मार्ट उपकरण बनाती है. जैसे, दरवाजों में लगाए जाने वाले सेंसर और चावल पकाने वाले कुकर. ये कुकर चावल के पक जाने पर व्यक्ति के मोबाइल फोन पर मेसेज तक भेज देते हैं.
यूरोप में शाओमी को इसके स्मार्टफोन्स के लिए जाना जाता है. वहां दूरसंचार कंपनी ह्वावे भी अपने फोनों के लिए ही जानी जाती है. ह्वावे 2021 से लेकर अब तक चीन में आईटो ब्रांड के तहत कई इलेक्ट्रिक एसयूवी कारें लॉन्च कर चुकी है.
केवल चीन की इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां ही कार निर्माण के क्षेत्र में नहीं उतरना चाहतीं. अमेरिकी कंपनी एप्पल को भी 14 साल पहले कार बनाने का विचार आया था. हालांकि, पिछले महीने ही कंपनी ने ऐलान किया कि ‘एप्पल कार' प्रोजेक्ट को बंद कर दिया गया है. कहा जाता है कि एप्पल ने इस प्रोजेक्ट में 10 अरब डॉलर लगाए थे.
चीन का ऑटोमोबाइल बाजार में प्रभुत्व
चीन दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे तेजी से बढ़ने वाला कार बाजार है. पिछले साल दुनिया की लगभग 33 फीसदी कारें जर्मनी की बड़ी कार कंपनियों ने बेची थीं. लेकिन अब घरेलू इलेक्ट्रिक कार कंपनियां जर्मनी की इस मजबूत स्थिति को चुनौती दे रही हैं.
कंसल्टिंग फर्म ‘केपीएमजी' के पार्टनर बर्न्ड डिपेनसाइफन कहते हैं कि चीन लिथियम-आयन बैटरियों की ग्लोबल सप्लाई चेन में सबसे आगे है.
डिपेनसाइफन कहते हैं, "फिलहाल तो यहां एशियाई आपूर्तिकर्ताओं का दबदबा है. बैटरी और कच्चे माल के उत्पादन के क्षेत्र में जर्मन आपूर्तिकर्ता समझदारी से अवसरों की तलाश नहीं कर रहे हैं.”
चीनी कार निर्माताओं के लक्ष्य फरवरी में जिनेवा में हुए इंटरनेशनल मोटर शो में और स्पष्ट हो गए. उस मोटर शो में जर्मनी की कोई कंपनी मौजूद नहीं थी, लेकिन चीन की कई कंपनियां थीं.
वहां प्रदर्शित किए गए वाहनों के जरिए कनेक्टेड गाड़ियों की एक नई पीढ़ी दिखाई गई जिनमें ऑडियो और वीडियो स्ट्रीमिंग सेवाओं के साथ मनोरंजन की पूरी सुविधा थी. ऐसा नेविगेशन सिस्टम था, जिसमें अगली ट्रैफिक लाइट के हरे होने पर उलटी गिनती शुरू हो जाती थी.
गाड़ियों की नई पीढ़ी बना रहा चीन
चीन का ऑटोमोबाइल उद्योग कारों को सिर्फ परिवहन के साधन के तौर पर नहीं देखता. उनके लिए कारें एक इंजन और गियरबॉक्स से कहीं ज्यादा हैं और इलेक्ट्रिक कारों का मतलब केवल सॉकेट वाला चेसिस नहीं है.
चीन आगे की सोच रहा है. वह खुद से चलने वाली कारों, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, पर्यावरण के अनुकूल परिवहन की व्यवस्था और औद्योगिक उत्पादन में तकनीकी नेतृत्व पर जोर दे रहा है.
इसी वजह से शाओमी और ह्वावे जैसी इलेक्ट्रॉनिक और दूरसंचार क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां खुद को इस प्रतिस्पर्धी बाजार में स्थापित कर रही हैं.
शाओमी के सीईओ लेई कहते हैं, "वर्तमान में कारें डेटा सेंटर बन गई हैं. भविष्य में ऑटोमोटिव उद्योग उन्नत और आपस में जुड़े हुए ‘स्मार्ट स्पेस' बनाएगा.”
चीन की ईवी निर्माता ‘निओ' अपनी कारों को ‘पहियों पर चलने वाला कमरा' कहती है. म्यूनिख में आईएए 2023 मोटर शो में चीन के पूर्व अनुसंधान मंत्री वान गैंग ने उत्साह के साथ कहा था कि चार्जिंग और डिसचार्जिंग के दौरान पावर ग्रिड में इलेक्ट्रिक कारों का इस्तेमाल ऊर्जा भंडारण के लिए किया जा सकता है.
भविष्य में डेटा पर रहेगा जोर
उत्पादन और भविष्य के वाहन के लिए ‘स्मार्ट' अगला बड़ा कदम है. इसमें स्मार्ट गाड़ियां, स्मार्ट उत्पादन और स्मार्ट बुनियादी ढांचा शामिल है. यह कहना है जनवरी 2024 तक चीन में ऑउडी के अध्यक्ष रहे युर्गेन आन्सेर का.
वह कहते हैं कि उत्पादन को जल्दी ही डेटा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से नियंत्रित किया जाएगा. वे आगे कहते हैं, "जर्मनी समेत हमारे समाज के लिए यह बहुत जरूरी है कि डेटा को संभालने और इस्तेमाल करने के तरीकों के बारे में हम और अधिक खुलकर सोचना होगा.”
दूसरे देशों की तुलना में चीन के ड्राइवर उनके निजी डेटा को इकट्ठा किए जाने के प्रति संवेदनशील नहीं हैं. डेटा का इस्तेमाल कर डिजिटल उद्योग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के एप्लीकेशन के लिए एल्गोरिद्म विकसित करने में सक्षम हो जाता है जिससे भविष्य के लिए उपकरण विकसित किए जा सकें.
आन्सेर कहते हैं, "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारी प्रगति और समृद्धि में योगदान देगी. बस हमें तेज, खुला और लचीला बनना पड़ेगा.” हालांकि वह जोर देते हैं कि इकट्ठा किए गए डेटा का लेन-देन भी नियमों के तहत होना चाहिए.
2018 में ऑटोमेटेड और कनेक्टेड ड्राइविंग के लिए, जर्मन सरकार और चीन ने एक संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे.
इसके मुताबिक, दोनों देश ऑटोमेटेड और कनेक्टेड ड्राइविंग और संबंधित बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में डेटा तक पहुंच, भंडारण, डेटा ट्रांसमिशन और साइबर सुरक्षा के लिए बिना भेदभाव वाले बहुपक्षीय मानक और आवश्यकताएं बनाना और विकसित करना चाहते हैं.
लेकिन, दूसरे देशों के साथ डेटा साझा करने की हकीकत कहीं अधिक जटिल है. यूरोपीय संघ आयोग के मुताबिक, कई ईयू कंपनियां शिकायत कर रही हैं कि उन्हें चीन की अपनी सहायक कंपनियों के औद्योगिक डेटा का इस्तेमाल करने में दिक्कत हो रही है.
विदेशी निवेशकों को चीन में अपने डेटा सेंटर संचालित करने होते हैं. जो आमतौर पर पेरेंट कंपनी के डेटाबेस या क्लाउड सर्विस से अलग होते हैं.
यूरोपीय संघ की रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन के डेटा और साइबर सुरक्षा नियम यूरोपीय उद्योग के लिए परेशानी खड़ी करते हैं. डेटा को चीन से बाहर ले जाने के लिए वहां की साइबर सुपरवाइजरी अथॉरिटी सीएसी से मंजूरी लेनी होती है. जो महत्वपूर्ण डेटा के सभी निर्यातों की जांच करना चाहती है.
जर्मन सरकार को भी इन दिक्कतों के बारे में पता है. संघीय डिजिटल मंत्री फोल्कर विसिंग ने पिछले साल जर्मन-चीनी अंतर सरकारी चर्चा में मुफ्त डेटा ट्रांसफर की आवश्यकता पर जोर दिया था.
यूरोपीय संघ और चीन फिलहाल सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (आईसीटी) के लिए समान उद्योग मानकों पर बातचीत कर रहे हैं, जिससे सीमा रहित डेटा विनियमन हो सके. वे अभी भी बीच का रास्ता तलाश रहे हैं.