भले ही बीजेपी दिल्ली में सत्ता में आ गई हो, लेकिन आम आदमी पार्टी और कांग्रेस भी उसकी जीत में अहम भूमिका निभाते हैं.
हाल ही में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी इस साल सत्ता से बाहर हो गई और भारतीय जनता पार्टी इस बार दिल्ली की कमान पाने में कामयाब रहीतस्वीर: Salman Ali/Hindustan Times/Sipa USA/picture alliance
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"दिल्ली में जाति से ज्यादा वर्ग के आधार पर मतदान होता है”, यह बात आरती जेरथ ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कही. जेरथ एक मशहूर राजनीतिक विश्लेषक हैं और सालों से दिल्ली की राजनीति को करीब से देखती आ रही हैं.
हाल ही में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. दिल्ली में पिछले करीब 12 साल से आम आदमी पार्टी की सरकार थी. दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी को 27 साल के बाद दिल्ली में जीत हासिल हुई है.लोकतंत्र में जनता अपना गुस्सा और प्रेम चुनाव के दौरान दिखा देती है. पिछले कुछ सालों में दिल्ली में जो घटनाएं हुईं, इस बार के मतदान में उसका साफ असर दिखाई पड़ा.
ऐसी दिल्ली बनाई जाए जहां सड़कों पर चला जा सके
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‘शीश महल' और घोटालों की राजनीति
भारत में पहले भी कई राज्यों में घोटालों की वजह से बड़ी-बड़ी सरकारें गिरी हैं. इस बार शराब घोटाले की चर्चा आम आदमी पार्टी के लिए घातक साबित हुई. पहले तो पार्टी के बड़े नेता मनीष सिसोदिया के2023 में जेल जाने से, और फिर पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल के 2024 में जेल जाने से आम आदमी पार्टी की ईमानदारी की छवि का बड़ा धक्का लगा.
आरती जेरथ कहती हैं, "बीजेपी, आम आदमी पार्टी की छवि में जबरदस्त चोट पहुंचाने में कामयाब रही. केजरीवाल के घर से लेकर शराब घोटाले तक देखें तो लोगों को लगा कि उनके ‘आम नेता' अब खुद आम आदमी नहीं रहे."
क्या है दिल्ली का आबकारी 'घोटाला'
आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार जब नई आबकारी नीति लेकर आई थी, तब किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि इसकी वजह से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ही जेल हो जाएगी. एक नजर इस नीति पर और इसमें कथित अनियमितताओं के आरोपों पर.
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2021 में आई नीति
दिल्ली की नई आबकारी नीति 'आप' सरकार ने 2021 में लागू की थी. इसके तहत दिल्ली सरकार को शराब की बिक्री के व्यापार से पूरी तरह बाहर निकालने की योजना बनाई गई थी. आम आदमी पार्टी के मुताबिक इस नीति का मकसद सरकार का राजस्व बढ़ाने के अलावा शराब की काला बाजारी खत्म करना, विक्रेताओं के लिए लाइसेंस के नियमों को लचीला बनाना और उपभोक्ताओं के अनुभवों को बेहतर बनाना था.
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घर पर डिलीवरी
नई नीति के तहत शराब की दुकानें सुबह तीन बजे तक खुली रखने और शराब की घर पर डिलीवरी करवाने जैसे नियम भी प्रस्तावित थे. साथ ही शराब विक्रेताओं को दामों में छूट देने की इजाजत भी दी गई थी.
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बढ़ी सरकार की कमाई
कुछ महीनों तक उपभोक्ताओं को शराब के दामों में भारी छूट भी मिली. नतीजतन शराब दुकानों के बाहर लंबी कतारें देखी गईं. एक रिपोर्ट के अनुसार इससे दिल्ली सरकार के रेवन्यू में 27 फीसदी की वृद्धि हुई और राज्य ने लगभग 8,900 करोड़ रुपए कमाए.
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जांच के आदेश
लेकिन नीति लागू होने से पहले ही दिल्ली के शराब बाजार में जो उथल पुथल शुरू हुई वो कई महीनों तक चलती रही. लगभग आधी दुकानें बंद हो गईं. अप्रैल 2022 में जब दिल्ली में नए मुख्य सचिव नरेश कुमार की नियुक्ति हुई तो उन्होंने नई नीति में जांच के आदेश दिए.
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अनियमितताओं के आरोप
जुलाई 2022 में मुख्य सचिव ने उप राज्यपाल वीके सक्सेना को एक रिपोर्ट पेश की जिसमें उन्होंने नीति में अनियमितताओं का दावा किया. इस रिपोर्ट में आरोप लगाए गए कि बतौर आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया ने शराब विक्रेताओं को लाइसेंस देने के बदले कमीशन और रिश्वत ली.
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कमीशन और रिश्वत
नरेश कुमार ने रिपोर्ट में यह भी कहा कि लाइसेंस फीस और शराब की कीमतों में नियमों को ताक पर रखकर छूट दी गई, जिससे सरकार को करीब 144 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ. यह भी दावा किया गया कि कमीशन और रिश्वत से मिली रकम का इस्तेमाल आम आदमी पार्टी ने फरवरी 2022 में हुए पंजाब विधानसभा चुनावों में किया.
तस्वीर: Charu Kartikeya/DW
सीबीआई ने शुरू की जांच
मुख्य सचिव ने दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को भी अपनी रिपोर्ट सौंपी और इस मामले में जांच करने के लिए कहा. इसी रिपोर्ट के आधार पर उप राज्यपाल ने पूरे मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी. सीबीआई ने अगस्त 2022 में सिसोदिया समेत 15 लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया.
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उप-मुख्यमंत्री गिरफ्तार
आरोपियों में तत्कालीन एक्साइज कमिश्नर समेत तीन अफसर, दो कंपनियां और नौ कारोबारी शामिल थे. मनीष सिसोदिया के घर छापे मारे गए और कई बार पूछताछ के बाद 26 फरवरी 2023 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
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केजरीवाल की भूमिका
पहले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का सीधे तौर पर इस मामले में नाम नहीं था लेकिन बाद में तेलंगाना के निजामाबाद से विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी के. कविता को गिरफ्तार किया गया. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कविता के अकाउंटेंट बुचीबाबू से भी इस मामले में पूछताछ की गई और उन्होंने ही केजरीवाल का नाम लिया.
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मुख्यमंत्री गिरफ्तार
सीबीआई की एफआईआर के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस मामले में अगस्त, 2022 में धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) का मामला दर्ज किया और 21 मार्च, 2024 को इसी मामले में केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया. तब से मुख्यमंत्री तिहाड़ जेल में हैं. 26 जून को उन्हें राउज एवेन्यू कोर्ट के परिसर से सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया.
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आरती बताती हैं कि दस साल पहले लोगों ने दो बड़ी पार्टियों से थक हारकर आम आदमी पार्टी को वोट दिया था. उन्होंने कहा, "उनके शिक्षा और स्वास्थ्य के वादों से जनता खुश थी लेकिन हाल के दिनों में दिल्ली की प्रदूषण, वहां की सड़कें और नागरिक सुविधाएं ध्वस्त होते देख जनता ने इस बार किसी और को मौका देने का फैसला किया.”
आरती जेरथ ने जनता के इस रोष को ‘प्रोटेस्ट वोट' भी कहा है, यानी वो वोट जो एक पार्टी को दूसरी पार्टी के विरोध में दिया गया हो.
पार्टी के बड़े नेता मनीष सिसोदिया का 2023 में जेल जाने, और फिर पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल के 2024 में जेल जाने से आम आदमी पार्टी की ईमानदारी की छवि का बड़ा धक्का लगा.तस्वीर: Sonu Mehta/Hindustan Times/Sipa USA/picture alliance
दिल्ली के ओखला विहार में जज की परीक्षा की तैयारी कर रहे मोहम्मद अनस खान का कहना है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में 10 साल से थी लेकिन शहर की हालत बद से बदतर ही हुई है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "आप कब तक शिक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर वोट लेंगे. दस सालों में आप एक भी विश्वविद्यालय नहीं खोल पाए. कुछ सरकारी स्कूलों को ठीक कर देने से जनता हमेशा आपको वोट तो नहीं देगी.”
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मिडिल क्लास का बदलता रुझान
एक समय पर आम आदमी पार्टी आम जनता के बीच अपनी जगह बनाने में सफल रही थी क्योंकि जनता उसमें खुद को देख पाती थी. यानी, एक ऐसी पार्टी जो शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक सेवाओं पर ध्यान देना चाहती है और इस बुनियादी ढांचे के साथ लोगों को मौके देना चाहती है. यही किसी भी मिडिल क्लास इंसान की कामना होती है. जेरथ बताती हैं कि खास बात यह है कि यह वर्ग जाति में ज्यादा बंटा हुआ नहीं है. उन्होंने कहा, "इस वर्ग में अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) का वर्ग आता है और दिल्ली में कुछ छोटी पॉकेटों को छोड़कर यह वर्ग भी जाति से ज्यादा आकांक्षाओं के अनुसार वोट करता है.”
दिल्ली में बीजेपी ने 22 अन्य पिछड़ी जातियों के उम्मीदवार खड़े किए थे जिनमें से 16 उम्मीदवार जीते हैं. बीजेपी वे सभी 7 सीटें जीतने में सफल रही जिनमें 10 फीसदी ओबीसी आबादी है.
दिल्ली में बीजेपी ने 22 अन्य पिछड़ी जातियों के उम्मीदवार खड़े किए थे जिनमें से 16 उम्मीदवार जीते हैंतस्वीर: IANS
लोकनीति सीएसडीएस सर्वे के अनुसार बीजेपी को राजधानी में सवर्ण जातियों का साथ तो मिला ही, साथ ही गुज्जर और यादव समुदायों के अलावा उन्हें बाकी पिछड़ी जातियों का भरपूर समर्थन मिला है.
आप ने मुस्लिम वोट भी खोए
दिल्ली में मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र कुल सीटों के लगभग 30 फीसदी हैं जो किसी भी पार्टी की जीत-हार में अहम भूमिका निभाते हैं. 2013 में आम आदमी पार्टी भारतीय राजनीति में एक विरोधाभास के रूप में सामने आई थी जिसे हर वर्ग और जाति का समर्थन मिला था. एक समय पर कांग्रेस को भी यह विशेषाधिकार प्राप्त था. अब आम आदमी पार्टी भी उसी दोराहे पर आकर खड़ी है. भले ही आप ने मुस्लिम बहुल इलाकों की सीटें फिर से जीत ली हों लेकिन उनका मुस्लिम वोट घटा है.
दिल्ली दंगे: तब और अब
दिल्ली दंगों के एक साल बाद दंगा ग्रस्त इलाकों में लगता है कि पीड़ित परिवार आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन क्या इस तरह की हिंसा का दर्द भुलाना आसान है? तब और अब के बीच के फर्क की पड़ताल करती डीडब्ल्यू की कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
दहशत का एक साल
दिल्ली दंगों के एक साल बाद, क्या हालात हैं दंगा ग्रस्त इलाकों में.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
चेहरे पर कहानी
एक दंगा पीड़ित महिला जिनसे 2020 में पीड़ितों के लिए बनाए गए एक शिविर में डीडब्ल्यू ने मुलाकात की थी. अपनों को खो देने का दर्द उनकी आंखों में छलक आया था.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
एक साल बाद
यह महिला भी उसी शिविर में थी और कुछ महीने बाद अपने घर वापस लौटी. अब वो और उनका परिवार अपने घर की मरम्मत करा उसकी दीवारों पर नए रंग चढ़ा रहा है, लेकिन उनकी आंखों में अब भी दर्द है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
आगजनी
दंगों में हत्याओं के अलावा भारी आगजनी भी हुई थी. शिव विहार तिराहे पर स्थित इस गैराज और उसमें खड़ी गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया गया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
एक साल बाद गैराज किसी और को किराए पर दिया जा चुका है. स्थानीय लोगों का दावा है बीते बरस नुकसान झेलने वालों में से किसी को भी अभी तक हर्जाना नहीं मिला है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
दहशत
गैराज पर हमला इतना अचानक हुआ था कि उसकी देख-रेख करने वाले को बर्तनों में पका हुआ खाना छोड़ कर भागना पड़ा था. दंगाइयों ने पूरे घर को जला दिया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
कमरे की मरम्मत कर उसे दोबारा रंग दिया गया है. देख-रेख के लिए नया व्यक्ति आ चुका है. फर्नीचर नया है, जगह वही है.
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बर्बादी
दंगों में इस घर को पूरी तरह से जला दिया गया था. तस्वीरें लेने के समय भी जगह जगह से धुआं निकल रहा था.
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एक साल बाद
साल भर बाद भी यह घर उसी हाल में है. यहां कोई आया नहीं है. मलबा वैसे का वैसा पड़ा हुआ है. दीवारों पर कालिख भी नजर आती है.
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सब लुट गया
दंगाइयों ने यहां से सारा सामान लूट लिया था और लकड़ी के ठेले को आग लगा दी थी. जाने से पहले दंगाइयों ने वहां के घरों को भी आग के हवाले कर दिया था.
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एक साल बाद
जिंदगी अब धीरे धीरे पटरी पर लौट रही है. नया ठेला आ चुका है और उसे दरवाजे के बगल में खड़ा कर दिया गया है. अंदर एक कारीगर काम कर रहा है.
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सड़क पर ईंटों की चादर
दंगों के दौरान जाफराबाद की यह सड़क किसी जंग के मैदान जैसी दिख रही थी. दो दिशाओं से लोगों ने एक दूसरे पर जो ईंटों के टुकड़े और पत्थर फेंके थे वो सब यहां आ गिरे थे.
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एक साल बाद
आज यह कंक्रीट की सड़क बन चुकी है. जन-जीवन सामान्य हो चुका है. आगे तिराहे पर भव्य मंदिर बन रहा है.
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दुकान के बाद दुकान लूटी गई
मुस्तफाबाद में एक के बाद एक कर सभी दुकानें लूट ली गई थीं. हर जगह सिर्फ खाली कमरे और टूटे हुए शटर थे.
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एक साल बाद
आज उस इलाके में दुकानें फिर से खुल गई हैं. लोग आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मुश्किल से गुजर-बसर हो रही है.
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बंजारे भी नहीं बच पाए
इस दीवार के सहारे झुग्गी बना कर और वहां चाय बेचकर यह बंजारन अपना जीविका चला रही थी. दंगाइयों ने इसकी चाय की छोटी सी दुकान को भी नहीं छोड़ा था.
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एक साल बाद
उसी लाल दीवार के सहारे बंजारों ने नए घर बना तो लिए हैं, लेकिन वो आज भी इस डर में जीते हैं कि रात के अंधेरे में कहीं कोई फिर से आग ना लगा दे.
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टायर बाजार
गोकुलपुरी का टायर बाजार दंगों में सबसे बुरी तरह से प्रभावित जगहों में था. लाखों रुपयों का सामान जला दिया गया था.
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एक साल बाद
टायर बाजार फिर से खुल चुका है. वहां फिर से चहलकदमी लौट आई है लेकिन दुकानदार अभी तक दंगों में हुए नुक्सान से उभर नहीं पाए हैं.
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जंग का मैदान
जाफराबाद, मुस्तफाबाद, शिव विहार समेत सभी इलाकों की शक्ल किसी जंग के मैदान से कम नहीं लगती थी. जहां तक नजर जाती थी, सड़क पर सिर्फ ईंट, पत्थर और मलबा था.
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एक साल बाद
साल भर बाद यह सड़क किसी भी आम सड़क की तरह लगती है, जैसे यहां कुछ हुआ ही ना हो. लेकिन लोगों के दिलों के अंदर दंगों का दर्द और मायूसी आज भी जिंदा है. (श्यामंतक घोष)
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
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चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 में जिन निर्वाचन क्षेत्रों में 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी थी, वहां आम आदमी पार्टी के औसत मुस्लिम वोट 2015 में 57,118 से बढ़कर 2020 में 67,282 हो गए. इसका मतलब लगभग 18 फीसदी की बढ़त. लेकिन यही वोट 2025 में घटकर 58,120 हो गए, यानी 2020 से लगभग 13.6 प्रतिशत की गिरावट.
जिन इलाकों में मुस्लिम आबादी 30 फीसदी से ऊपर थी वहां भी आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 2020 से 2025 में लगभग 15 फीसदी गिरा है.
2020 के दिल्ली दंगे और सीएए विरोध प्रदर्शन रहे मुस्लिम समुदाय के बीच आम आदमी पार्टी के घटते वोट शेयर की वजहतस्वीर: Javed Dar/Photoshot/picture-alliance
इस वोट शेयर में गिरावट की वजह पूछने पर आरती बताती हैं कि मुस्लिम समुदाय आम आदमी पार्टी से कई कारणों से नाखुश था. "सीएए-विरोधी प्रदर्शन में मुस्लिम समुदाय को आप का समर्थन नहीं मिला. और फिर 2020 के दिल्ली दंगों में भी आम आदमी पार्टी ने कोई बड़ा कदम नहीं उठाया, और ज्यादातर इस मुद्दे से दूरी बनाए रखी.” एक समय पर केजरीवाल पर उम्मीदें टिकाने वाले मुस्लिम समुदाय ने खुद को इस समय अकेला पाया और शायद यही वजह रही कि आप का मुस्लिम वोट शेयर इस चुनाव में घटा.
मुस्लिम बहुल इलाकों में आने वाले निर्वाचन क्षेत्र कस्तूरबा नगर, मुस्तफाबाद और वजीरपुर में मुस्लिम वोट कांग्रेस और आप में बंटा जिसका फायदा बीजेपी को पहुंचा. मुस्तफाबाद में बीजेपी का वोट शेयर पहले जितना ही रहा (42 फीसदी) लेकिन आम आदमी पार्टी को 2025 में मुस्लिम वोट में 33 फीसदी की गिरावट दिखी. इस बार ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम ने वहां 16.6 फीसदी वोट लिए वहीं कांग्रेस ने 6 फीसदी वोट अपने नाम किए.
आरती का कहना है कि ये सब सीएए विरोधी प्रदर्शन के बाद मुस्लिम जनता का केजरीवाल की चुप्पी पर गुस्सा दिखाता है.
आप के दलित वोट में भी लगी सेंध
आम आदमी पार्टी ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित ज्यादातर सीटें अपने नाम कीं. लेकिन इन 12 सीटों पर भी उनके वोट इस बार बीजेपी और कांग्रेस की झोली में भी गिरे हैं. उत्तर पूर्वी दिल्ली के निर्वाचन क्षेत्र सीमापुरी में जहां 2020 में आम आदमी पार्टी का वोट शेयर लगभग 66 फीसदी रहा था, वही 2025 में गिरकर 48.4 फीसदी हो गया. फिर भी पार्टी ने जीत हासिल कर ही ली.
करोल बाग और पटेल नगर में भी ऐसी ही हालत रही. लेकिन आप को सबसे बड़ा धक्का लगा बवाना, मादीपुर, मंगोलपुरी और त्रिलोकपुरी सीटों पर. इन सभी सीटों पर बीजेपी जीती है.
दलितों के खिलाफ अपराध के 94 प्रतिशत मामले रह जाते हैं लंबित
एनसीआरबी के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं. उस से भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि उन्हें न्याय भी नहीं मिलता. अधिकतर मामले अदालतों में लंबित ही रह जाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky
बढ़ रहे हैं अपराध
देश में 2019 में अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ 45,935 अपराध हुए, जो 2018 में हुए अपराधों के मुकाबले 7.3 प्रतिशत ज्यादा हैं. इस संख्या का मतलब है दलितों के खिलाफ हर 12 मिनट में एक अपराध होता है. अनुसूचित जनजातियों के लोगों के खिलाफ अपराध में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
तस्वीर: Francis Mascarenhas/Reuters
सबसे ज्यादा अपराध उत्तर प्रदेश में
राज्यवार देखें, तो 11,829 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश में हालात सबसे गंभीर हैं. एक चौथाई मामले अकेले उत्तर प्रदेश में ही दर्ज हुए. इसके बाद हैं राजस्थान (6,794) और बिहार (6,544). 71 प्रतिशत मामले इन्हीं पांच राज्यों में थे. राज्य की कुल आबादी में अनुसूचित जाती के लोगों की आबादी के अनुपात के लिहाज से, अपराध की दर राजस्थान में सबसे ऊंची पाई गई. उसके बाद नंबर है मध्य प्रदेश और फिर बिहार का.
अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में सबसे बड़ा हिस्सा (28.89 प्रतिशत) शारीरिक पीड़ा या अंग-दुर्बलता के रूप में क्षति पहुंचाने के मामलों का है. अनुसूचित जनजातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में भी सबसे बड़ा हिस्सा (20.3 प्रतिशत) क्षति पहुंचाने के मामलों का ही है.
तस्वीर: Anushree Fadnavis/Reuters
दलित महिलाओं का बलात्कार
अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में 7.59 प्रतिशत मामले बलात्कार के थे. सबसे ज्यादा (554) मामले राजस्थान से थे और उसके बाद उत्तर प्रदेश से. अनुसूचित जनजातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में 13.4 प्रतिशत मामले बलात्कार के थे. सबसे ज्यादा मामले (358) मध्य प्रदेश से थे और उसके बाद छत्तीसगढ़ से. 10.7 प्रतिशत मामले एसटी महिलाओं की मर्यादा के उल्लंघन के इरादे से किए गए हमलों के थे.
पुलिस की कार्रवाई के लिहाज से कुल 28.7 प्रतिशत और सुनवाई के लिहाज से 93.8 प्रतिशत मामले लंबित रह गए. ये आम मामलों के लंबित रहने की दर से ज्यादा है.
तस्वीर: Sam Panthaky/AFP/Getty Images
सुनवाई भी नहीं
2019 में अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ हुए 204,191 मामलों में सुनवाई होनी थी, लेकिन इनमें से सिर्फ छह प्रतिशत मामलों में सुनवाई पूरी हुई. इनमें से सिर्फ 32 प्रतिशत मामलों में दोषी का अपराध साबित हुआ और 59 प्रतिशत मामलों में आरोपी बरी हो गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky
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आरती जेरथ बताती हैं कि बीजेपी को लोग मध्यम वर्ग की पार्टी के रूप में देखने लगे हैं. एक ऐसी पार्टी जो गरीबों और हाशिए पर रह रहे लोगों के हित में काम नहीं करती लेकिन मिडिल क्लास की कामनाओं को देखते हुए नीतियां बनाती है. हालांकि विपक्ष का कहना है कि बीजेपी केवल पूंजीवादी लोगों के हितों को देखती है और उनके लिए काम करती है.
भारत में लोगों के मतदान के पीछे की सोच को समझने के लिए हर समुदाय को गहराई से समझना जरूरी है और साथ ही उन्हें जाति, धर्म और वर्ग के साथ मिलाकर देखना होगा. इस बार राजधानी में भारतीय जनता पार्टी की जीत आम आदमी पार्टी के लिए कई सबक लेकर आई है.