सीएम अरविंद केजरीवाल को दिल्ली की एक निचली अदालत ने जमानत पर रिहा किया, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने इसपर रोक लगा दी है. निचली अदालत ने ईडी को केजरीवाल के खिलाफ पक्षपातपूर्ण बताया था. अब ईडी ने इस फैसले को ही गलत बताया है.
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आबकारी नीति मामले में दिल्ली की एक निचली अदालत ने गुरुवार, 20 जून को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत पर रिहा कर दिया था. मुख्यमंत्री 21 जून को शाम चार बजे के करीब रिहा होने वाले थे, लेकिन इस बीच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली हाई कोर्ट में इस आदेश के खिलाफ अपील कर दी.
हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन की एकल बेंच ने सुनवाई शुरू करते हुए आदेश दिया कि जब तक वह अपील पर फैसला ना ले ले, तब तक ट्रायल अदालत के फैसले पर अमल नहीं किया जाएगा, यानी केजरीवाल रिहा नहीं हो पाएंगे.
ट्रायल जज ने ईडी को कहा 'पक्षपातपूर्ण'
निचली अदालत में वेकेशन जज न्याय बिंदु ने इस मामले में दो दिनों तक सुनवाई की थी. उन्होंने 20 जून को दिए अपने फैसले में कहा कि ईडी, केजरीवाल का जुर्म से मिले धन से संबंध साबित नहीं कर पाई. साथ ही, यह भी साबित नहीं कर पाई एक मामले में अन्य आरोपी विजय नायर केजरीवाल की ओर से काम कर रहा था.
जज ने ईडी की इस दलील पर भी आपत्ति जताई कि जांच अभी चल ही रही है. जज ने कहा, "जांच एक कला है, यह दलील स्वीकार करने योग्य नहीं है क्योंकि अगर ऐसा है, तो किसी को भी किसी अपराध में फंसाकर उसके खिलाफ कलात्मक रूप से सबूत जुटाकर जेल की सलाखों के पीछे रखा जा सकता है."
जज ने आगे कहा कि इस परिदृश्य की वजह से अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि ईडी का रवैया पक्षपातपूर्ण है. जज ने यह सवाल भी उठाया कि जब अभी तक अदालत ने आरोपी को बुलावा नहीं भेजा है, तो ईडी ने उसे इस बिनाह पर हिरासत में क्यों रखा हुआ है कि जांच अभी भी चल रही है.
जज ने इस बात पर भी ध्यान दिलाया कि ईडी इस बात पर भी मौन है कि बतौर आरोपी केजरीवाल का नाम ना ही सीबीआई की पहली एफआईआर में है और ना ईडी की पहली रिपोर्ट में. इसके बाद जज ने एक लाख रुपए के मुचलके पर केजरीवाल को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया.
ईडी: ट्रायल जज का आदेश 'विकृत'
हाईकोर्ट में निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए ईडी ने कहा कि आदेश 'पूरी तरह से विकृत' है. एजेंसी की तरफ से सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि निचली अदालत ने ईडी द्वारा दायर किए गए कागजात बिना देखे उन्हें अप्रासंगिक बता दिया, इस वजह से यह एक विकृत आदेश है.
आम आदमी पार्टी की रोचक यात्रा
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भारत का सबसे युवा राजनीतिक दल है. 2012 में स्थापना से लेकर 2024 में केजरीवाल की गिरफ्तारी तक, 'आप' की यात्रा अन्य दलों से काफी अलग रही है.
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स्थापना
'आप' की स्थापना 26 नवंबर, 2012 को दिल्ली में हुई थी. पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को ही उसका मुख्य संस्थापक और संचालक माना जाता है. पार्टी की स्थापना 'लोकपाल आंदोलन' के नाम से जाने जाने वाले भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन के बाद हुई थी, जिसे केजरीवाल और उनके उस समय के कई साथियों ने शुरू किया था.
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कौन हैं केजरीवाल
केजरीवाल सिर्फ करीब 12 सालों से राजनीति में हैं. अपने करियर की शुरुआत में वो पेशे से इंजीनियर थे. उन्होंने आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. बाद में उनका यूपीएससी में चयन हो गया और वो भारतीय राजस्व सेवा में अफसर बन गए.
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एक्टिविज्म में प्रवेश
केजरीवाल ने आयकर विभाग में नौकरी करते हुए 1999 में 'परिवर्तन' नाम का संगठन शुरू किया, जिसका ध्येय था गवर्नेंस के कई क्षेत्रों में सुधार लाने की कोशिश करना. कई साल इसी बैनर के तले एक्टिविज्म करने के बाद, उन्होंने 2006 में आयकर विभाग से इस्तीफा दे दिया. उस समय वो दिल्ली में जॉइंट कमिश्नर थे.
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आरटीआई कार्यकर्ता
इस दौरान केजरीवाल अपने कई साथियों के साथ सूचना के अधिकार की मांग करने वाले आंदोलन में जुट गए थे. 2006 में ही उन्हें सूचना के अधिकार के क्षेत्र में ही उनके काम के लिए रमोन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया.
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लोकपाल आंदोलन
2011 में यूपीए सरकार के खिलाफ घोटालों के आरोपों के बीच केजरीवाल ने कई और लोगों के साथ मिल कर भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने के लिए एक निष्पक्ष और मजबूत संस्था लोकपाल के गठन की मांग के लिए एक आंदोलन शुरू किया. आंदोलन का चेहरा महाराष्ट्र के समाजसेवी अन्ना हजारे को बनाया गया, लेकिन आंदोलन का संचालन केजरीवाल, किरण बेदी, प्रशांत भूषण, मनीष सिसोदिया, संतोष हेगड़े समेत कई लोगों ने किया.
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आंदोलन से पार्टी
जब आंदोलन लोकपाल के गठन के लिए केंद्र सरकार को मजबूर करने में असफल रहा, तब केजरीवाल और कुछ साथियों ने राजनीति में कदम रखने का फैसला किया. उनके कई साथी इस मोड़ ओर उनसे अलग हो गए, लेकिन केजरीवाल और उनके समर्थकों ने नवंबर, 2012 में 'आम आदमी पार्टी' (आप) की स्थापना की.
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चुनावी सफलता
'आप' ने 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपनी पहली चुनावी परीक्षा में ही अच्छा प्रदर्शन किया और दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. 'आप' ने कांग्रेस से हाथ मिला लिया और सरकार बना ली. यह सरकार सिर्फ 49 दिनों तक चली. इसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. लेकिन 2015 में फिर से चुनाव हुए और 'आप' ने दिल्ली की 70 सीटों में 67 जीत कर भारी बहुमत से सरकार बनाई.
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विस्तार
दिल्ली में 2020 में 'आप' ने फिर से जीत दर्ज की और केजरीवाल तीसरी बार मुख्यमंत्री बने. इस बीच पार्टी ने दूसरे राज्यों में भी विस्तार करना शुरू कर दिया था. 2014 में पार्टी ने लोकसभा चुनाव भी लड़े और पंजाब से चार सीटों पर जीत दर्ज की. 2022 में पार्टी ने पंजाब में भी सरकार बना ली.
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राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा
2022 में ही 'आप' ने गुजरात विधानसभा में तीसरा स्थान हासिल कर लिया. अप्रैल, 2023 में चुनाव आयोग ने उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे दिया. उसे गोवा में भी राज्य स्तर की पार्टी का दर्जा प्राप्त है.
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आबकारी 'घोटाला'
2021 में दिल्ली में 'आप' की सरकार ने एक नई आबकारी नीति लागू की. जुलाई 2022 में मुख्य सचिव नरेश कुमार ने नीति में अनियमितताओं का दावा किया. उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने पूरे मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी. सीबीआई ने धीरे धीरे इस मामले में कई लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी शामिल थे. मार्च, 2024 में प्रवर्तन निदेशालय ने इस मामले में केजरीवाल को भी हिरासत में ले लिया.
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राजू ने यह भी कहा कि आदेश में तारीख और तथ्य भी गलत लिखे हुए हैं, जो यही दिखाता है कि कागजात ठीक से नहीं पढ़े गए. उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट पहले ही केजरीवाल की गिरफ्तारी को सही ठहरा चुका है.
हाई कोर्ट ने कहा है कि वह जमानत पर फैसला आज ही देगा. केजरीवाल को इस मामले में इससे पहले भी एक बार सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल चुकी है, जिसकी वजह से उन्होंने मई में लोकसभा चुनावों के बीच अपनी पार्टी और इंडिया गठबंधन के लिए कैंपेन भी किया था.