दिल्ली के स्कूलों में मंगलवार से देशभक्ति पाठ्यक्रम की शुरुआत की गई. दिल्ली के सभी सरकारी स्कूलों में बच्चों को देश से प्यार करना सिखाया जाएगा. उन्हें राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारियां बताई जाएंगी.
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दिल्ली के सरकारी स्कूलों में नर्सरी से लेकर 12वीं तक देशभक्ति की क्लास 45 मिनट तक लगेगी. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाली आम आदमी पार्टी सरकार छात्रों में देशभक्ति की भावना जगाने और उन्हें अपने राष्ट्र के लिए गर्व महसूस करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से मंगलवार से अपना देशभक्ति पाठ्यक्रम लॉन्च किया.
केजरीवाल ने देशभक्ति पाठ्यक्रम का शुभारंभ करते हुए कहा कि ऐसा माहौल बनाने की जरूरत है जहां लोग 24 घंटे देशभक्ति की भावनाओं का अनुभव करें, न कि केवल देशभक्ति की फिल्में देखने या राष्ट्रगान गाने पर. उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम छात्रों में ऐसी भावना पैदा करने का काम करेगा. केजरीवाल ने कहा, "देशभक्ति पाठ्यक्रम भारत की प्रगति यात्रा में मील का पत्थर साबित होगा, जो बच्चों में कम उम्र से ही देशभक्ति की भावना जगाएगा, जिससे वे सच्चे देशभक्त बनेंगे जो नौकरियों में अपने देश के प्रति सच्चे रहेंगे."
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पैसा नहीं, देश पहले
केजरीवाल ने दिल्ली के सरकारी स्कूल के सैकड़ों शिक्षकों और छात्रों की मौजूदगी में छत्रसाल स्टेडियम में कहा, "इस पाठ्यक्रम के साथ, हम ना केवल डॉक्टर, इंजीनियर, वकील और अन्य पेशेवर तैयार करेंगे, बल्कि हम एक देशभक्त डॉक्टर, एक देशभक्त इंजीनियर और एक देशभक्त वकील तैयार करेंगे, जो अपने देश को सबसे पहले रखेंगे. वे अब मनी फैक्टर से प्रेरित नहीं होंगे. इसके बजाय, वे वही करेंगे जो उनके देश और देशवासियों के लिए सबसे अच्छा है."
क्या है देशभक्ति पाठ्यक्रम
दिल्ली सरकार का कहना है कि देशभक्ति पाठ्यक्रम के लिए कोई परीक्षा नहीं होगी और पाठ्यक्रम में ऐसा कुछ नहीं होगा जिसे छात्रों से रटने को कहा जाएगा. स्कूली छात्रों को पाठ्यक्रम के जरिए राष्ट्र के प्रति उनकी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों के बारे में बताया जाएगा. पाठ्यक्रम के जरिए बच्चों से चर्चा की जाएगी कि वे कैसे इसमें योगदान दे सकते हैं.
इसके अलावा 45 मिनट की कक्षा के पांच मिनट 'देशभक्ति ध्यान' के लिए समर्पित होंगे, जिसके दौरान छात्र दैनिक आधार पर किसी भी पांच स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में विचार करेंगे.
देखें: उच्च शिक्षा में आगे बढ़ रही हैं लड़कियां
उच्च शिक्षा में आगे बढ़ रही हैं लड़कियां
ताजा सरकारी आंकड़े दिखा रहे हैं कि उच्च शिक्षा के जिन क्षेत्रों में लड़कियों लड़कों से पीछे थीं, अब वो उनमें आगे आ रही हैं. जानिए किन क्षेत्रों को पहले ही अपना चुकी हैं लड़कियां और किन क्षेत्रों को अब धीरे धीरे अपना रही हैं.
तस्वीर: IANS
कुल नामांकन बढ़ा
2019-20 में उच्च शिक्षा में कुल 3.85 करोड़ छात्रों ने दाखिला लिया. 2018-19 के मुकाबले इस संख्या में 11.36 लाख (3.04 प्रतिशत) की बढ़ोतरी हुई. 2014-15 में यह संख्या 3.42 करोड़ थी.
तस्वीर: DW/P. Samanta
लड़कियां आ रहीं आगे
2015-16 से 2019-20 के बीच उच्च शिक्षा हासिल करने वाली लड़कियों की संख्या (सकल नामांकन दर) 18.2 प्रतिशत बढ़ी है. यह सामान्य नामांकन दर में आई 11.4 प्रतिशत की वृद्धि से ज्यादा है. इस उछाल की वजह से देश में उच्च शिक्षा में लड़कियों की नामांकन दर अब 27.3 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जबकि लड़कों की नामांकन दर 26.9 प्रतिशत पर ही है.
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कॉमर्स अपना रही लड़कियां
कॉमर्स एक नया क्षेत्र बन कर उभरा है जिसमें लड़कियों का नामांकन बढ़ रहा है. 2019-20 में पूरे देश में कुल मिला कर 41.6 लाख छात्रों ने बी.कॉम के कोर्स में दाखिला लिया. इनमें 21.3 लाख लड़के थे तो 20.3 लाख लड़कियां. पांच साल पहले तक बी.कॉम में हर 100 लड़कों पर 90 लडकियां हुआ करती थीं, लेकिन अब यह अनुपात बराबर हो गया है.
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गिरा तीसरा बैरियर
बी.कॉम ऐसा तीसरा कोर्स बन गया है जिसमें पिछले पांच सालों में लड़कियों ने लड़कों की बराबरी कर ली है. 2017-18 में डॉक्टरी की पढ़ाई यानी एमबीबीएस और विज्ञान के स्नातक कोर्स यानी बी.एससी में यही हुआ था. बल्कि तब से डॉक्टरी और विज्ञान के स्नातक कार्यक्रमों में लड़कियों ने लड़कों को पीछे छोड़ दिया है.
तस्वीर: DW/S. Waheed
डॉक्टरी और विज्ञान की पढ़ाई
2017-18 में विज्ञान की पढ़ाई में हर 100 लड़कों पर 100 लड़कियां थीं और डॉक्टरी की पढ़ाई में हर 100 लड़कों पर 101 लड़कियां थीं. अब हर 100 लड़कों पर विज्ञान में 113 लड़कियां हैं और डॉक्टरी में 110.
तस्वीर: picture alliance/dpa/P. Adhikary
कुछ क्षेत्रों में पीछे
इंजीनियरिंग और कानून की पढ़ाई में लड़कियां अभी भी पीछे हैं. बी. टेक के कार्यक्रमों में हर 100 लड़कों पर सिर्फ 42 लड़कियां हैं, और कानून की पढ़ाई में हर 100 लड़कों पर सिर्फ 53 लड़कियां.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
इंजीनियरिंग की गिरती लोकप्रियता
लेकिन आंकड़े दिखा रहे हैं कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई की लोकप्रियता ही गिर रही है. एक तरफ जहां सभी मुख्य उच्च शिक्षा के कार्यक्रमों में नामांकन बढ़ा है, इंजीनियरिंग एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसमें छात्रों की संख्या गिरी है. स्नातक स्तर पर इंजीनियरिंग की पढ़ाई में 2018-19 में 38.5 लाख छात्रों के मुकाबले 2019-20 में 37.2 लाख छात्रों ने दाखिला लिया. स्नातकोत्तर स्तर पर भी नामांकन में गिरावट आई है.
तस्वीर: IANS
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शिक्षा से देशभक्त बनेंगे बच्चे
छात्रों को पाठ्यक्रम में स्वतंत्रता और राष्ट्र के गौरव की कहानियां सुनाई जाएंगी. शिक्षण पद्धति गतिविधियों पर आधारित होगी जैसे कि ''देशभक्ति डायरी'', ''देशभक्ति ध्यान'', ''झंडा दिवस'' और समूह चर्चा में भाग लेना आदि.
केजरीवाल ने कहा, "पिछले 74 साल में हमने अपने स्कूलों में फिजिक्स, केमेस्ट्री, मैथ्स तो पढ़ाए लेकिन बच्चों को देशभक्ति नहीं सिखाई, मुझे खुशी है कि आज दिल्ली सरकार ने ये शुरुआत की है. देशभक्ति पाठ्यक्रम के माध्यम से अब दिल्ली के सभी सरकारी स्कूलों में बच्चों को अपने देश से प्यार करना सिखाया जाएगा."
केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार पाठ्यक्रम विकसित करने में एक "छोटी शुरुआत" कर रही है और यह जल्द ही "पूरे देश में फैल जाएगी."
नए पाठ्यक्रम के बारे में दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया का कहना है, "हम इस पाठ्यक्रम को एक वर्ष में 100 स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियों के साथ शुरू कर रहे हैं. जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होगा, वह लगभग 700- 800 ऐसे लोग, जिन्होंने अपने देश और अपने साथी देशवासियों के लिए उल्लेखनीय काम किया उनके बारे में जान पाएंगे."
मुख्यमंत्री केजरीवाल ने 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस समारोह में देशभक्ति पाठ्यक्रम योजना की घोषणा की थी. पाठ्यक्रम दिल्ली सरकार के स्कूल के शिक्षकों, गैर सरकारी संगठनों की भागीदारों और विशेषज्ञों के सुझावों के साथ तैयार किया गया है.
असली जिंदगी का नायकः सड़क को बनाया स्कूल
दीप नारायण नायक पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव जोबा अट्टापाड़ा गांव में स्कूल टीचर हैं. वह नाम से ही नहीं, जज्बे से भी नायक हैं.
लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हो गए तो दीप नायारण नायक को अपने छात्रों के पीछे छूट जाने की चिंता हुई. उन्होंने बच्चों तक पहुंचने का तरीका निकाला. उन्होंने गलियों की दीवारों को रंगकर बोर्ड बना दिया और वहीं क्लास लेने लगे.
तस्वीर: Rupak De Chowdhuri/REUTERS
पढ़ाई भी, सिखाई भी
पिछले कई महीनों से नायक इसी तरह अपने छात्रों को पढ़ा रहे हैं ताकि उनके बच्चे लॉकडाउन के कारण शिक्षा से महरूम न रह जाएं. वह लोक गीतों से लेकर हाथ धोने की जरूरत तक बच्चों को हर तरह का ज्ञान देते हैं.
तस्वीर: Rupak De Chowdhuri/REUTERS
कोई बच्चा छूटे नहीं
नायक बताते हैं कि उनकी क्लास में ज्यादातर बच्चे ऐसे हैं जिनके परिवार से पहली बार कोई स्कूल आया. तो वह उन्हें पीछे नहीं छूटने देना चाहते.
तस्वीर: Rupak De Chowdhuri/REUTERS
माता पिता भी खुश
बच्चों के माता पिता भी उनकी इस कोशिश से खुश हैं. एक बच्चे के पिता ने बताया कि पहले तो बच्चे यूं ही गलियों में भटकते रहते थे, नायक की इस कोशिश ने उन्हें फिर से पढ़ाई में लगा दिया है.
तस्वीर: Rupak De Chowdhuri/REUTERS
गांव नहीं पहुंची ऑनलाइन पढ़ाई
हाल ही में आए एक सर्वे के मुताबिक भारत के गांवों में सिर्फ 8 प्रतिशत बच्चे ही लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई कर पाए और 37 फीसदी तो बिल्कुल नहीं पढ़ पाए.