पिछले साल दिल्ली सरकार की ओर से रोजगार बाजार पोर्टल शुरू किया गया था. दिल्ली में विनाशकारी कोविड लहर के बाद अनलॉक प्रक्रिया के दौरान रोजगार बाजार दिल्ली के बेरोजगारों के लिए लाइफलाइन बना हुआ है.
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रोजगार बाजार में जून में रोजाना लगभग एक हजार नए नौकरी खोजने वालों को पंजीकृत किया गया और 300 नई नौकरियां पोस्ट की गईं. दिल्ली सरकार ने पिछले साल नौकरी खोजने वालों और नियोक्ताओं को जोड़ने के लिए रोजगार बाजार पोर्टल लॉन्च किया था.
इस पोर्टल पर रोजगार ढूंढ रहे व्यक्ति अपना पंजीकरण कर सकते हैं. वहीं रोजगार प्रदान करने वाले उद्यमी भी रोजगार की जानकारी इस पोर्टल पर डालते हैं.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली में कुल 34,212 नौकरी खोजने वालों को पंजीकृत किया गया है. इसके अलावा 1 से 30 जून 2021 के बीच 9,522 नई भर्तियां पोस्ट की गईं. नौकरी चाहने वालों और रोजगार देने वालों के बीच में हर दिन 2500 बार व्हॉट्सऐप, फोन कॉल और सीधे आवेदन के माध्यम से संपर्क हुआ है.
जून के महीने में नौकरी चाहने वालों और नियोक्ताओं के बीच कुल मिलाकर 75,000 बार संपर्क हुआ है.
लॉकडाउन के कारण गई नौकरी
इसके अलावा लॉकडाउन के दौरान रोजगार बाजार पोर्टल ने व्यवसायों को डिलीवरी और उपभोक्ता सहायता के लिए कर्मचारी रखने में मदद की. जबकि अनलॉकिंग प्रक्रिया के दौरान नौकरियों में फिर से बढ़ोतरी आई है. रोजगार बाजार सभी वर्गों के लिए वन-स्टॉप पोर्टल साबित हुआ है.
सिसोदिया के मुताबिक वर्तमान में सबसे अधिक नौकरियां ग्राहक सहायता, डिलीवरी एक्जीक्यूटिव और सेल्स में हैं. रोजगार बाजार पर फुल टाइम जॉब के साथ-साथ पार्ट टाइम और वर्क फ्रॉम होम नौकरी के विकल्प भी उपलब्ध हैं. फ्रेशर्स के लिए लगभग 45 फीसदी पोस्ट उपलब्ध हैं.
वहीं पुरूष-महिला के हिसाब से देखें तो कुल 41 फीसदी नौकरी उपलब्ध हैं. जिसमें से पुरुषों के लिए 36 फीसदी और महिलाओं के लिए 23 फीसदी नौकरी उपलब्ध हैं.
दिल्ली सरकार का कहना है कि वह कोरोना महामारी के आर्थिक प्रभाव को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित है. इसलिए पिछले साल बेरोजगार युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए रोजगार बाजार पोर्टल लॉन्च किया गया.
देखें: भारत सरकार में किसे मिलता है कितना वेतन
भारत सरकार में किसे मिलता है कितना वेतन
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की खबरें पढ़ ध्यान ही नहीं रहता कि ये सब वेतन पाने वाले सरकारी मुलाजिम होते हैं. जानिए कितना वेतन पाते हैं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, दूसरे मंत्री, राज्यपाल, सांसद, जज और वरिष्ठ नौकरशाह.
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राष्ट्रपति
राष्ट्रपति को वेतन 'राष्ट्रपति उपलब्धि और पेंशन अधिनियम, 1951' नाम के कानून के तहत मिलता है. 2018 में राष्ट्रपति का प्रति माह वेतन 1,50,000 रुपए से बढ़ा कर 5,00,000 रुपए कर दिया गया था. इसके अलावा उन्हें सरकारी खर्च पर 340 कमरों के राष्ट्रपति भवन में आवास, गाड़ियों, रेल और हवाई यात्रा की सुविधा, सुरक्षा, टेलीफोन, चिकित्सा और बीमा जैसी सुविधाएं मिलती हैं.
तस्वीर: UNI
आजीवन सुविधाएं
राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्ती के बाद पद के तत्कालीन वेतन के 50 प्रतिशत के बराबर पेंशन और कई सुविधाएं आजीवन मिलती रहती हैं. इनमें शामिल हैं सरकारी खर्च पर आवास, एक गाड़ी, दो टेलीफोन, एक मोबाइल फोन, स्वास्थ्य सेवाएं, एक लाख रुपए प्रति वर्ष तक कार्यालय खर्च, एक निजी सचिव, एक अतिरिक्त निजी सचिव, एक निजी सहायक, दो चपरासी और भारत में कहीं भी एक व्यक्ति के साथ सबसे ऊंची श्रेणी में रेल या हवाई या यात्रा.
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उप-राष्ट्रपति
उप-राष्ट्रपति का वेतन 'संसद अधिकारी वेतन और भत्ता अधिनियम, 1953' के तहत निर्धारित होता है. 2018 में ही उप-राष्ट्रपति का प्रति माह वेतन भी 1,25,000 रुपए से बढ़ा कर 4,00,000 रुपए कर दिया गया था. इसके अलावा सरकारी खर्च पर आवास, यातायात और मेडिकल इलाज जैसी सुविधाएं मिलती हैं.
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प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री के वेतन के लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं है. प्रधानमंत्री को एक सांसद का मूल वेतन, प्रति माह 1,00,000 रुपए, ही मिलता है. इसके अलावा प्रधानमंत्री को संसद के सत्र के दौरान प्रतिदिन 2,000 रुपए भत्ता, 3,000 रुपए प्रतिदिन आतिथ्य भत्ता, सरकारी खर्च पर आवास, यातायात और स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती हैं. बस ये सब संसद से मिलने की जगह भारत सरकार के कंसॉलिडेटेड फंड से मिलता है.
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अन्य मंत्री
केंद्रीय मंत्रिमंडल के अन्य मंत्रियों को भी मूल वेतन प्रति माह 1,00,000 रुपए ही मिलता है. कैबिनेट मंत्रियों को आतिथ्य भत्ता प्रधानमंत्री से कम यानी 2,000 रुपए प्रतिदिन मिलता है, राज्य मंत्रियों को 1,000 रुपए प्रतिदिन और डिप्टी मंत्री को 600 रुपए प्रतिदिन मिलता है.
तस्वीर: PIB Govt. of India
राज्यपाल
2018 में ही राज्यपालों का मूल वेतन भी 1,10,000 रुपए से बढ़ा कर 3,50,000 रुपए कर दिया गया था.
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW
न्यायपालिका
सुप्रीम कोर्ट के जजों का वेतन 'सुप्रीम कोर्ट जज (वेतन और शर्त अधिनियम), 1958' और सभी हाई कोर्ट के जजों का वेतन 'हाई कोर्ट जज (वेतन और शर्त अधिनियम), 1954' के तहत तय होता है. जनवरी 2016 में इन कानूनों में संशोधन के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश को 2,80,000 रुपए, सुप्रीम कोर्ट के बाकी जजों को 2,50,000, हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को 2,50,000 और बाकी जजों को 2,25,000 रुपए मूल मासिक वेतन मिलता है.
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कैबिनेट सचिव
कैबिनेट सचिव देश के शीर्ष नौकरशाह का पद होता है. इस पद पर वेतनमान के हिसाब से 2,25,000 से ले कर 2,50,000 रुपए प्रति माह तक मूल वेतन मिलता है.
तस्वीर: picture-alliance/C. Wojtkowski
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बेरोजगारी की चिंता बढ़ी
जून के महीने में राज्यों में कोरोना को लेकर लगाए गए प्रतिबंधों के हटने से 80 लाख लोगों को दोबारा रोजगार मिला है. अप्रैल और मई के महीने में राज्यों द्वारा लगाए कड़े प्रतिबंधों की वजह से 2.3 करोड़ लोग बेरोजार हो गए थे.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, जून के अंत तक भारत में वेतनभोगी और गैर-वेतनभोगी नौकरियों में कार्यरत लोगों की संख्या मई में दर्ज 37.5.4 करोड़ से बढ़कर 38.32 करोड़ हो गई.
भारत में बेरोजगारी की दर अब भी एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है. दूसरी लहर के चलते मई में बेरोजगारी की दर 11.9 फीसदी थी, जबकि अप्रैल में यह 7.97 फीसदी थी. जून में बेरोजगारी की दर गिरकर 9.17 फीसदी हो गई है.
रिपोर्ट: आमिर अंसारी (आईएनएस इनपुट के साथ)
भारत के स्कूलों में नहीं हैं मूल सुविधाएं
भारत सरकार की एक ताजा रिपोर्ट में सामने आया है कि देश के स्कूलों में बड़े पैमाने पर बिजली, शौचालय, किताबें, कंप्यूटर आदि जैसी मूल सुविधाएं नहीं हैं. अच्छी खबर है कि इसके बावजूद स्कूलों में नामांकन बढ़ रहा है.
शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (यूडीआईएसई +) की ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2019-20 में प्राथमिक से लेकर उच्चतर माध्यमिक स्तर पर नामांकन कराने वाले बच्चों की संख्या में पिछले साल के मुकाबले 1.6 प्रतिशत (42.3 लाख) की बढ़ोतरी हुई. विशेष रूप से लड़कियों का नामांकन भी काफी बढ़ा है.
तस्वीर: DW/Prabhakar
सुविधाएं गायब
लेकिन नामांकन की यह सकारात्मक तस्वीर सुविधाओं के अभाव को ढक नहीं पाई. यहां तक कि करीब 17 प्रतिशत स्कूलों में बिजली तक नहीं है.
तस्वीर: Manish Swarup/AP Photo/picture-alliance
किताबें
रिपोर्ट के मुताबिक 84.1 प्रतिशत स्कूलों में लाइब्रेरी या किताबें पढ़ने के लिए एक कमरा है, लेकिन किताबें सिर्फ 69.4 प्रतिशत स्कूलों में हैं.
तस्वीर: Reuters/P. Waydande
कंप्यूटर
शहरों की तस्वीर देख कर शायद आपको लगे कि सोशल मीडिया के इस जमाने में स्कूलों में कंप्यूटर तो होंगे ही. लेकिन असलियत ये है कि आज भी 61 प्रतिशत से ज्यादा स्कूलों में कंप्यूटर नहीं हैं.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
इंटरनेट
इंटरनेट की उपलब्धता की तस्वीर और ज्यादा खराब है. देश के करीब 78 प्रतिशत स्कूलों में इंटरनेट नहीं है. जहां कंप्यूटर नहीं हैं वहां तो इंटरनेट होने का सवाल पैदा ही नहीं होता, लेकिन कई ऐसे भी स्कूल हैं जहां कंप्यूटर होने के बावजूद इंटरनेट नहीं है.
तस्वीर: dapd
विकलांगों के लिए सुविधाएं
स्कूलों में विकलांग छात्रों के लिए भी सुविधाओं का भारी अभाव है. करीब 30 प्रतिशत स्कूलों में व्हीलचेयर चढ़ाने के लिए रैंप नहीं है और लगभग 79 प्रतिशत स्कूलों में विकलांगों के लिए अलग से शौचालय तक नहीं है.