दिल्ली में डेंगू के मामलों ने पांच साल का रिकॉर्ड तोड़ा
१६ नवम्बर २०२१
दिल्ली में डेंगू के इस बार रिकॉर्ड तोड़ मामले दर्ज किए गए हैं. सोमवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष डेंगू के 5,277 मामले सामने आए हैं.
विज्ञापन
दिल्ली में बीते एक सप्ताह में डेंगू के 2,569 मरीजों की पुष्टि हुई है. डेंगू के आंकड़ों की बात की जाए तो इस बार सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं. साल 2020 में कुल 1,072 मामले दर्ज किए गए थे, वहीं 2019 में 2,036, 2018 में 2,798, 2017 में 4,726 और 2016 में 4,431 मामलों की पुष्टि हुई थी. दक्षिण दिल्ली नगर निगम की सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में सामने आया है कि नवंबर महीने की 13 तारीख तक ही डेंगू के 3,740 मामले सामने आए. इस वर्ष डेंगू से अब तक 9 मौतें दर्ज की गई हैं.
अगर पिछले कुछ वर्षों की बात की जाए तो 2016 और 2017 में डेंगू के कारण 10-10 मौतें हुई थीं. वहीं 2018, 2019 और 2020 में 4, 2 और 1 मौत हुई और इस वर्ष अब तक 9 मृत्यु दर्ज हुई हैं. इसके अलावा इस वर्ष अब तक मलेरिया के 166 केस और चिकनगुनिया के 89 मामले सामने आए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिणी निगम में अब तक कुल 1612 मामले सामने आए हैं, वहीं उत्तरी निगम क्षेत्र में 1573 और पूर्वी निगम क्षेत्र में 518 मरीजों के मामले दर्ज किए गए हैं.
हालांकि नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) क्षेत्र में 59, दिल्ली कैंट में 80 मरीज तो वहीं 1420 मरीजों के पते की पुष्टि नहीं हो सकी है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक डेंगू के बढ़े मामलों के लिए तीन प्राथमिक कारक हैं. पहला यह कि हर चार साल में डेंगू के मामलों में तेजी आती है और वह भयंकर रूप ले लेता है, दूसरा यह कि इस बार शहर में मानसून देर तक रहा जिस कारण जगह-जगह पानी रह गया और डेंगू के मच्छर तेजी से पैदा हुए. तीसरा यह कि सरकार ने बीमारी को अधिसूचित किया है और हर अस्पताल, क्लिनिक और लैब को इस बारे में सरकार को रिपोर्ट देनी है.
मलेरिया: मौत के लिए एक ही डंक काफी
एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
तस्वीर: AP
मच्छर से मलेरिया
अफ्रीका का सबसे खतरनाक जीव सिर्फ 6 मिलीमीटर लंबा है. इसे मादा एनोफेलीज मच्छर के नाम से जाना जाता है. यह संक्रामक रोग मलेरिया के लिए जिम्मेदार है. एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
मलेरिया पीड़ित को अगर मच्छर काट ले तो वह मलेरिया के विषाणु को औरों तक फैला देता है. शोधकर्ताओं ने इस मच्छर में विषाणु को प्रोटीन से चिह्नित किया है जो हरे रंग में चमकता है. लार ग्रंथि में जाने से पहले मच्छर की आंत में पैरासाइट प्रजनन करता है.
मलेरिया पैरासाइट का जैविक नाम प्लाज्मोडियम है. बीमारी की शोध के लिए वैज्ञानिकों ने एनोफेलीज मच्छरों को संक्रमित किया और उसके बाद पैरासाइट को लार ग्रंथि से अलग किया. इसमें पैरासाइट का संक्रामक रूप जमा है. इस तस्वीर में दाहिनी तरफ मच्छर है और बीच में है हटाई गई लार ग्रंथि.
तस्वीर: Cenix BioScience GmbH
विषाणु चक्र
मलेरिया पैरासाइट घुमावदार होते हैं, वो एक दायरे में घुमते हैं. यहां शोधकर्ताओं ने उन्हें तरल पदार्थ के साथ शीशे के टुकड़े पर रखा. पैरासाइट को यहां पीले रंग से चिह्नित किया गया है. और जिस पथ पर घूमते हैं उसे नीले रंग से पहचाना जा सकता है. वो तेजी से चलते हैं. एक पूरा चक्कर लगाने के लिए सिर्फ 30 सेकेंड लेते हैं. बाधा पहुंचने पर वे अपने घुमावदार पथ से हट जाते हैं. सीधी रेखा पर भी चल सकते हैं.
इंसान के शरीर में दाखिल होने के बाद विषाणु मनुष्य के लीवर में कुछ दिनों के लिए ठहर जाता है. इस दौरान मरीज को पता नहीं चलता. प्लाज्मोडियम मरीज की लाल रक्त कणिकाओं को तेजी से प्रभावित करता है, और लीवर में इस परजीवी की संख्या तेजी से बढ़ती चली जाती है. लीवर में यह मेरोजोइटस का रूप लेता है, जिसके बाद रक्त कोशिकाओं पर हमला शुरू हो जाता है और इंसान बीमार महसूस करने लगता है.
तस्वीर: AP
शरीर में बढ़ता पैरासाइट
रक्त कोशिका में दाखिल होने के बाद पैरासाइट एक से तीन दिन के भीतर बढ़ने लगता है. इसके बाद वे लाल रक्त कणिका या लीवर कोशिका में प्रवेश कर जाता है. यहां परजीवी का विखंडन होता है. परजीवियों की संख्या बढ़ने पर कोशिका फट जाती है. नतीजतन इंसान को ठंड के साथ बुखार आने लगता है. माइक्रोस्कोप में इसे आसानी के साथ देखा जा सकता है. बैंगनी रंग का यह रोगाणु अलग नजर आ रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Klett GmbH
मच्छरदानी में मौत
शोधकर्ताओं ने एक ऐसी मच्छरदानी बनाई है जिसमें जाल में कीटनाशक लगे हुए हैं. मच्छरदानी के संपर्क में आते ही मच्छर मर जाते हैं.
तस्वीर: Edlena Barros
दवा का छिड़काव
जब मलेरिया का प्रकोप हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो उसके लिए दूसरे उपाए किए जाते हैं. मुंबई की इस तस्वीर में मच्छरों को मारने के लिए दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है. डीडीटी कीटनाशक का इस्तेमाल प्रभावशाली होता है. हालांकि यह स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
रैपिड टेस्ट
खून की एक बूंद से किया गया रैपिड टेस्ट मिनटों में बता सकता है कि मरीज को मलेरिया है या नहीं. यहां डॉक्टर विदआउट बॉर्डर की एक कार्यकर्ता, अफ्रीकी देश माली में लड़के पर रैपिड टेस्ट कर रही हैं. इस लड़के में मलेरिया की पुष्टि हुई. उपचार के दो दिन बाद वह स्वस्थ हो गया. हालांकि रैपिड टेस्ट हमेशा भरोसेमंद नहीं होते.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
दवा बेअसर
दवाइयों की मदद से रक्त में मौजूद विषाणु को खत्म या फिर बढ़ने से रोका जा सकता है. हालांकि दवाओं का असर पैरासाइट पर कम होता जा रहा है. लंबे समय से इस्तेमाल की जा रही मलेरिया की दवा क्लोरोक्वीन अब कुछ इलाकों में प्रभावशाली नहीं है. नई दवाओं की खोज मलेरिया की प्रतिरोधक क्षमता की समस्या से निपटने का एक रास्ता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कब आएगा टीका
मलेरिया के लिए अब तक कोई टीका नहीं है. शोधकर्ता टीका बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. रिपोर्टों के मुताबिक इस मामले में सफलता जल्द मिल सकती है.
तस्वीर: AP
11 तस्वीरें1 | 11
डेंगू के मच्छर साफ और स्थिर पानी में पैदा होते हैं, जबकि मलेरिया के मच्छर गंदे पानी में भी पनपते हैं. डेंगू व चिकनगुनिया के मच्छर ज्यादा दूर तक नहीं जाते हैं. हालांकि जमा पानी के 50 मीटर के दायरे में रहने वाले लोगों के लिए परेशानी हो सकती है.
डेंगू से संक्रमित होने पर प्लेटलेट्स की संख्या कम होने लगती है. डेंगू बुखार आने पर सिर, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होने लगता है, वहीं आंखों के पिछले हिस्से में दर्द, कमजोरी, भूख न लगना, गले में दर्द भी होता है. डेंगू जानलेवा नहीं होता है लेकिन गंभीर मामलों में मरीज को अस्पताल में दाखिल होने की जरूत पड़ती है. डेंगू के मच्छर को पलने से रोकना ही सबसे उपयुक्त कदम है. जैसे कि कूड़ा-कचरा हटाना, पानी को जमा होने से रोकना आदि. कुछ साल पहले हुए एक शोध में कहा गया था कि भारत में हर साल करीब साठ लाख लोग डेंगू से प्रभावित होते हैं लेकिन इन्हें दर्ज नहीं किया जाता है.
क्या मच्छर भी अच्छे हो सकते हैं
मच्छरों को घातक कीट माना जाता है. लेकिन वे पौधों के विकास में मदद करते हैं. वे जमे पानी को शुद्ध करके, इंसान और पर्यावरण को बेहतर बनाने में मदद करते हैं.
तस्वीर: David Spears/Ardea/imago images
सभी मच्छरों को मार डालो!
सभी मच्छरों को मारना संभव नहीं है. मच्छरों की हजारों प्रजातियां होती हैं. कुछ सौ प्रजातियां हैं जिनके काटने से कमजोरी होती है और कुछ बहुत घातक होती हैं. वे मनुष्यों और जानवरों में रोग पैदा करते हैं. मादा मच्छर मलेरिया, जीका, डेंगू, पीला बुखार, चिकन पॉक्स और वेस्ट नाइल वायरस जैसी बीमारियां फैलाती हैं. इन मच्छरों का इस्तेमाल पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने के लिए किया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K.-D. Gabbert
कीट लेकिन परागणकारी
मादा मच्छर अंडे के लिए प्रोटीन प्राप्त करने के लिए मानव शरीर का खून चूसती हैं. इस कारण वे न केवल इंसानों को बल्कि घोड़ों, मवेशियों और पक्षियों को भी काटती हैं. मच्छर पौधों की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वे जलीय पौधों को उगाने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे पानी में अधिक समय बिताते हैं.
तस्वीर: Bruce Coleman/Photoshot/picture alliance
छोटे जानवरों और कीड़ों के लिए भोजन
मच्छर इंसानों को काटते हैं और हम उनसे बचने के लिए रासायनिक स्प्रे का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन प्रकृति भी इंसानों के लिए मददगार है. ये मच्छर पक्षी, चमगादड़, मछली, मेंढक, ड्रैगनफ्लाई और मकड़ियों द्वारा भी खाए जाते हैं. पर्यावरणविदों के मुताबिक पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र मच्छरों पर निर्भर करता है, जिसके बिना कई जानवर और कीड़े विलुप्त हो सकते हैं.
तस्वीर: Hinrich Bäsemann/picture alliance
दर्द रहित इंजेक्शन
जब कोई मच्छर किसी इंसान के शरीर को काटता है, तो वह सिरींज की तरह काम करते हुए अपनी लार इंजेक्ट करता है. इस डंक से व्यक्ति को बहुत कम दर्द होता है. मच्छर की लार में एनोफिलाइन नामक पदार्थ होता है, जो इंसान के रक्त को थक्का बनने से रोकने में मदद करता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Center for Disease Control/J. Gathany
अच्छा, बुरा और लार्वा
मच्छर खड़े पानी में लार्वा या अंडे देते हैं. इंसान अपनी लापरवाही के कारण मुफ्त में मच्छरों को पनपने का ठिकाना देता है. लेकिन यह जरूरी है कि लार्वा जैविक कचरे यानी परजीवी आदि को खाकर भी पानी को साफ करें. जाहिर है यह पानी अब पीने योग्य नहीं है.