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लगातार खराब हो रही है दिल्ली की हवा

आमिर अंसारी
२४ अक्टूबर २०२३

सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी और मौसम पूर्वानुमान एवं अनुसंधान (एसएएफएआर) के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली की वायु गुणवत्ता लगातार दूसरे दिन "बहुत खराब" रही.

दिल्ली
दिल्लीतस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images

दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति बदतर होती जा रही है, पिछले एक सप्ताह में हवा की गुणवत्ता 'खराब' से गिरकर 'बहुत खराब' श्रेणी में आ गई है. राष्ट्रीय राजधानी में बढ़ते प्रदूषण के असर को कम करने के लिए दिल्ली सरकार ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) का दूसरा चरण लागू कर दिया है.

वायु गुणवत्ता पूर्व चेतावनी प्रणाली के मुताबिक राजधानी दिल्ली में अगले छह दिन खराब हवा से राहत मिलने के आसार नहीं है. तापमान में गिरावट और ठंड की शुरुआत में दिल्ली की हवा में प्रदूषण का स्तर लगातार सामान्य से ज्यादा बना हुआ है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक सोमवार को दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 306 पर पहुंच गया. सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी और मौसम पूर्वानुमान एवं अनुसंधान (एसएएफएआर) के मुताबिक मंगलवार को शहर की वायु गुणवत्ता और खराब होकर "बहुत खराब" श्रेणी में आने की संभावना है, जिसमें पार्टिकुलेट मैटर यानी पीएम 2.5, 313 तक पहुंच जाएगा और पीएम 10 की सांद्रता 191 यानी "मध्यम" श्रेणी में पहुंच जाएगी.

वायु प्रदूषण को काबू में करने के लिए तरह-तरह के उपाय अपनाए जा रहे हैंतस्वीर: Aamir Ansari/DW

कितना खतरनाक है पार्टिकुलेट मैटर

हवा में पीएम 10 का स्तर 100 और पीएम 2.5 का स्तर 60 से नीचे रहने पर उसे हानिकारक नहीं माना जाता है. दिल्ली की हवा में अभी मानकों से दोगुना प्रदूषण मौजूद है. दिल्ली और आसपास के क्षेत्र में हवा की गुणवत्ता खराब होने के कारण छोटे बच्चों और बुजुर्गों को सांस लेने में तकलीफ का सामना करना पड़ता है.

दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के एक अध्ययन के मुताबिक प्रदूषण बढ़ने के कारण सांस उखड़ने के मामले बढ़ रहे हैं. एम्स ने वायु प्रदूषण का मरीजों पर पड़ने वाले असर को लेकर अपने एक अध्ययन में कहा कि प्रदूषण के कारण लोगों में सांस और खांसी की परेशानी बढ़ रही है.

यूरोप के 98 प्रतिशत लोग बुरी हवा में सांस ले रहे हैं

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बढ़ रहे सांस उखड़ने के मामले

एम्स दिल्ली ने एक साल तक सांस लेने में दिक्कतों के साथ इमरजेंसी में आए 2,669 मरीजों पर अध्ययन किया, जिसमें पता चला कि हवा में नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर वातावरण में औसतन मानक से एक अंक बढ़ने पर इमरजेंसी में  सांस लेने की दिक्कत वाले मरीज 53 फीसदी बढ़ गए.

वहीं पार्टिकुलेट मैटर 2.5 का स्तर वातावरण में औसतन मानक से एक अंक बढ़ने पर इमरजेंसी में ऐसे वाले मरीजों की संख्या लगभग 20 फीसदी तक  बढ़ गई. इस अध्ययन के दौरान इमरजेंसी 69 में हजार से अधिक मरीज पहुंचे. इस शोध में दिल्ली के रहने वाले 2,669 मरीज शामिल हुए, जिन्हें दो सप्ताह से कम से समय से सांस की परेशानी थी और जो दिल्ली में कम से कम चार सप्ताह से रह रहे थे.

जिस समय इन मरीजों पर अध्ययन किया गया उस वक्त प्रदूषण का आंकड़ा दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से लिया गया.

आर्थिक नुकसान 

हवा की गुणवत्ता को 0 से 500 के स्केल पर नापा जाता है. 0 से 50 के बीच एयर क्वॉलिटी को अच्छा माना जाता है, जबकि 300 से ऊपर यह बेहद खतरनाक होती है. दिल्ली में हर साल एक्यूआई 300 से ऊपर दर्ज किया जाता है जिस कारण वहां रहने वाले लोगों में तरह तरह की बीमारियां पनप रही हैं.

सामाजिक संस्था क्लीन एयर फंड ने एक अध्ययन के बाद पिछले साल कहा था कि भारत को वायु प्रदूषण के चलते सालाना 95 अरब डॉलर यानी 72 खरब रुपये का नुकसान होता है, जो उसकी जीडीपी का कुल 3 प्रतिशत है.

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