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लॉकडाउन से निकलने की उम्मीदों पर डेल्टा वेरिएंट का साया

स्वाति बक्शी
२५ जून २०२१

ब्रिटेन में कोरोनावायरस के डेल्टा वेरिएंट के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.

UK Euro 2020 | England Fahnen in London
तस्वीर: Tolga Akmen/Getty Images/AFP

ब्रिटेन में कोरोना वायरस के इंडियन वेरिएंट डेल्टा के प्रसार ने ना सिर्फ लॉकडाउन से बाहर निकलने के इरादों पर पानी फेर दिया बल्कि अब डर ये है कि हालात कहीं फिर से बिगड़ ना जाएं. गुरुवार तक दर्ज किए गए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 18 से 24 जून के बीच 85,177 पॉजिटिव केस दर्ज किए गए जो उससे पिछले हफ्ते के मुकाबले करीब 45 फीसदी ज्यादा हैं.

ताजा शोध रिपोर्टों में साफ तौर पर कहा गया है कि ब्रिटेन में इस वक्त कोरोना से संक्रमित होने वाले लोगों में 90 फीसदी से ज्यादा लोग डेल्टा वेरिएंट की चपेट में हैं. अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या भी बढ़ रही है हालांकि ये अभी 80 बरस से ऊपर की उम्र में ज्यादा देखा जा रहा है.

मोटे तौर पर डेल्टा वेरिएंट से बढ़ रहे केस हर ग्यारहवें दिन पर दोगुने हो रहे हैं. सभी उम्र के लोगों में संक्रमण बढ़ा है लेकिन 29 साल से नीचे के आयु-वर्ग में सबसे ज्यादा मामले हैं. इसमें भी स्कूल जाने वाले बच्चों का वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होने वालों में है. बढ़ते संक्रमण के चलते ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने 21 जून से हटने वाले लॉकडाउन को चार हफ्ते आगे बढ़ा दिया है हालांकि उनका कहना है कि वैक्सीन के दो डोज ले चुके लोगों के लिए हवाई यात्रा खोले जाने की प्रबल संभावनाएं हैं.

डेल्टा वेरिएंट जिसे B.1.617.2  भी कहा गया है, कोरोना वायरस का वह स्ट्रेन है जो सबसे पहले भारत में पाया गया. वायरस के इसी स्ट्रेन के चलते भारत में अप्रैल-मई के महीनों में महामारी की भयंकर लहर देखने को मिली.

डेल्टा और बच्चों में खतरा

पैर पसारते डेल्टा से जुड़े आंकड़े देखकर फिलहाल ये कहना जल्दबाजी होगी कि ये ब्रिटेन में तीसरी लहर की आहट है लेकिन आधिकारिक संस्था पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड के आंकड़े इस वक्त संक्रमण के कुछ खास पहलुओं पर रोशनी डालते हैं. उदाहरण के तौर पर ये तथ्य कि फिलहाल संक्रमण का सबसे ज्यादा असर पांच से 12 और 18 से 24 साल के लोगों में है. इसका मतलब ये है कि इस उम्र के लोग संक्रमण फैलाने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं.

इसकी वजह पूछने पर ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय में वरिष्ठ प्राध्यापक और जॉन रैडक्लिफ हॉस्पिटल में नवजात शिशु विभाग में कंसल्टेंट डॉक्टर अमित गुप्ता कहते हैं, "इसकी वजह ना तो ये है कि बच्चे जैविक रूप से वायरस फैलाने में ज्यादा सक्रिय हैं, ना ही इसके लिए स्कूलों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. इसका मुख्य कारण ये है कि 50 और 80 बरस से ज्यादा की उम्र वाले लोगों में वैक्सीन का बढ़िया कवरेज है जबकि बच्चों और युवाओं को वैक्सीन दिए जाने का काम अभी भी बाकी है. संक्रमण के ये बढ़ते केस इसी जरूरत की ओर इशारा कर रहे हैं.”

लंदन के इंपीरियल कॉलेज की एक ताजा शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि 50 साल से नीचे की उम्र के लोगों में वायरस का खतरा, 60 साल से ऊपर के लोगों के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा बना हुआ है. ये तथ्य भी वैक्सीन की जरूरत की ओर ही इशारा करता है. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि सामाजिक-आर्थिक तौर पर पिछड़े इलाकों में रहने वालों में दोगुनी गति से संक्रमित होने की संभावना है.

वैक्सीन कितनी कारगर

इस शोध रिपोर्ट के मुख्य लेखकों में शामिल शोधकर्ता स्टीवन राइली ने आगाह किया है कि भले ही कम उम्र के लोगों में संक्रमण दिख रहा हो, जिनके बीमार पड़ने की आशंका कम है लेकिन इसका अर्थ ये है कि अगर संक्रमण का स्तर बढ़ता रहेगा तो बूढ़े लोगों को इसकी चपेट में आने से रोकना मुश्किल होगा. इसकी वजह ये है कि वैक्सीन कोविड से बचाने में सौ फीसदी कारगर नहीं हैं और ना ही सभी को दो खुराकें मिली हैं.

कोरोनावायरस वैक्सीन को लेकर लोगों में पूरी तरह भरोसा जगा हो, ऐसा भी नहीं है. ब्रिटेन के एक रेडियो स्टेशन में काम करने वाले भारतीय मूल के पॉल हैरिस 35 बरस के हैं. वैक्सीन के लिए बुलावा आने के बावजूद उन्होंने अब तक जगह बुक नहीं की. उन्होंने बताया, "मुझे विश्वास नहीं हो पा रहा है कि मेरे शरीर पर वैक्सीन का क्या असर होगा.”

एक तरफ लोगों में इस तरह के डर हैं, दूसरी तरफ लगातार आते वेरिएंट इस सवाल को बार-बार हवा देते हैं कि क्या वैक्सीन लेना वाकई कारगर है. क्या डेल्टा जैसे तेजी से फैलने वाले वेरिएंट को रोकने में वैक्सीन काम आएगी?

बाकी दुनिया की तरह ब्रिटेन में वैज्ञानिक तबका लगातार लोगों से अपील कर रहा है कि वैक्सीन की दो खुराक जरूर लें. ये वायरस से रोकथाम में मदद करने में सक्षम है. डॉक्टर अमित गुप्ता भी कहते हैं, "वैक्सीन आमतौर पर कारगर है, आपको गंभीर रूप से बीमार पड़ने और मौत से बचाने में. इस बात में कोई शक नहीं है कि वेरिएंट कोई भी हो, वैक्सीन के दो डोज लेने वालों को वायरस से अच्छी सुरक्षा मिलती है. वायरस फैलने से रोकने में वैक्सीन का उतना योगदान भले ही ना हो लेकिन जिंदगी बचने की संभावना बढ़ती है.”

वैक्सीन की क्षमता से जुड़े मसले पर ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय का एक शोध बताता है कि हाल ही में ब्रिटेन में किए गए परीक्षणों में ये बात सामने आई कि एक वैक्सीन के पहले डोज के बाद दसवें हफ्ते में इम्यूनिटी कम होती दिखाई दी. यही वजह है कि 50 बरस से ऊपर के लोगों में वैक्सीन की दूसरी डोज का अंतर 12 हफ्ते से घटाकर 8 हफ्ते कर दिया गया है.

डेल्टा वायरस ने ब्रिटेन में कोविड महामारी के एक नए चरण के डर को जगा दिया है. हालांकि उम्मीद यही है कि वैक्सीन प्रबंधन को और मजबूत करके युवाओं को इसकी चपेट से बचाने की कोशिश रंग लाएगी. जुलाई में लॉकडाउन से बाहर आने की आस में बैठे ब्रिटेन के सामने फिलहाल चुनौती है संक्रमण के वर्तमान स्तर को बेकाबू होने से रोकनी की.

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