स्टॉकहोम स्थित एक थिंक टैंक के मुताबिक दुनिया के लगभग आधे देशों में लोकतंत्र में कमजोरियां हैं.
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एक अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक के मुताबिक दैनिक खर्च, जलवायु परिवर्तन और यूक्रेन पर रूस के हमले के बारे में चिंताएं लोकतंत्रों के लिए एक बड़ी चुनौती हैं.
थिंक टैंक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस (आईडीईए) ने गुरुवार को जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि सर्वेक्षण में शामिल 173 देशों में से 85 को "पिछले पांच वर्षों में लोकतांत्रिक प्रदर्शन के कम से कम एक प्रमुख संकेतक में गिरावट का सामना करना पड़ा है."
थिंक टैंक ने कहा कि चुनावों में धांधली से लेकर अभिव्यक्ति की आजादी और एकत्र होने के अधिकार में कटौती जैसे कारणों से लोकतंत्र को झटका लगा है. प्रतिनिधित्व और कानून के शासन जैसे अन्य तत्वों को झटका भी लोकतंत्र के प्रदर्शन में गिरावट के अन्य कारण थे.
रिपोर्ट में "अमेरिका में सामाजिक समूहों के लिए समानता में गिरावट, ऑस्ट्रिया में प्रेस की स्वतंत्रता और ब्रिटेन में न्याय तक पहुंच में गिरावट" के बारे में भी चिंता जाहिर की गई है.
आईडीईए के महासचिव केविन कैसास जमोरा ने कहा, "संक्षेप में, लोकतंत्र अभी भी संकट में है, सबसे बेहतर स्थिति में है और कई स्थानों पर गिरावट आ रही है."
नागरिकता छोड़ कहां बस रहे हैं भारतीय
भारत सरकार के मुताबिक जून 2023 तक कम से कम 87,026 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है. भारतीय नागरिकता छोड़ लोग अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपना नया ठिकाना बना रहे हैं.
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भारत छोड़ विदेशों में बसते भारतीय
भारतीय विदेश मंत्रालय ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया है कि जून 2023 तक 87,026 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी.
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अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जाते भारतीय
नागरिकता छोड़ने वाले भारतीय 135 देशों में जा बसे, जिनमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और पाकिस्तान जैसे देश शामिल हैं.
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17 लाख से अधिक भारतीय छोड़ चुके नागरिकता
2011 के बाद से 17 लाख से अधिक लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ दी है. भारत दोहरी नागरिकता की इजाजत नहीं देता, इसलिए जो दूसरे देश की नागरिकता लेते हैं उन्हें भारतीय नागरिकता छोड़नी पड़ती है.
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2022 में सबसे ज्यादा भारतीयों ने छोड़ी नागरिकता
विदेश मंत्री ने संसद को बताया कि 2022 में 2,25,620 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी जबकि 2021 में उनकी संख्या 1,63,370 और 2020 में 85,256 थी.
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अमेरिका अब भी लोकप्रिय देश
विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक संख्या के आधार पर भारतीयों ने अमेरिकी सपने का पीछा करना जारी रखा है और उनमें से 78 हजार से ज्यादा भारतीयों ने वहां की नागरिकता ली.
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ऑस्ट्रेलिया भी पसंद
अमेरिका के बाद दूसरी पसंद पर ऑस्ट्रेलिया है. विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2021 में 23,533 भारतीयों ने ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता ली, इसके बाद कनाडा (21,597), और यूके (14,637) है.
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यूरोपीय देश भी पसंदीदा ठिकाना
हाल के सालों में इटली, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड्स, स्वीडन, स्पेन और सिंगापुर जैसे देश पसंदीदा ठिकाना बनकर सामने आए हैं. भारतीय नागरिकता छोड़ लोग यहां जाकर बसना पसंद कर रहे हैं.
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भारत के लिए एसेट
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में दिए बयान में कहा कि सरकार मानती है कि देश के बाहर रह रहे लोग देश के लिए बहुत मायने रखते हैं. उनका कहना है कि विदेश में रहने वाले भारतीयों की कामयाबी और प्रभाव से देश को लाभ पहुंचता है.
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क्यों छोड़ रहे हैं नागरिकता
विदेश मंत्री ने बताया कि पिछले दो दशकों में बड़ी संख्या में भारतीय ग्लोबल वर्कप्लेस की तलाश करते रहे हैं. उन्होंने कहा कि इनमें से कई लोगों ने अपनी सुविधा के लिए दूसरे देशों की नागरिकता ली.
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करोड़पति छोड़ रहे भारत
ब्रिटिश कंपनी हेनली एंड पार्टर्नस की सालाना हेनली प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट 2023 के मुताबिक इस साल भारत के 6,500 करोड़पति देश छोड़कर चले जाएंगे. पिछले साल के मुकाबले यह संख्या कम है. 2022 में 7,500 करोड़पतियों ने भारत छोड़ा था.
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यूरोपीय लोकतंत्र भी गिरावट में
रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि यूरोप लोकतंत्र के मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला क्षेत्र है, लेकिन ऑस्ट्रिया, हंगरी, लग्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, पोलैंड, पुर्तगाल और यूनाइटेड किंग्डम में लोकतंत्र में गिरावट आ रही है.
इसके अलावा अजरबैजान, बेलारूस, रूस और तुर्की जैसे देशों ने यूरोपीय औसत से नीचे प्रदर्शन किया.
आईडीईए के प्रोग्राम अफसर माइकल रूनी ने कहा, "यह लगातार छठा साल है जब हमने कई देशों में लोकतंत्र में सुधार के बजाय गिरावट देखी है."
उन्होंने आगे कहा, "हम यूरोप, उत्तरी अमेरिका और एशिया में ऐतिहासिक रूप से उच्च प्रदर्शन करने वाले लोकतंत्रों में गिरावट भी देख रहे हैं."
गिरावट का कारण क्या है?
थिंक टैंक का कहना है कि लोकतांत्रिक प्रदर्शन में गिरावट को आजीविका संकट, जलवायु परिवर्तन और यूक्रेन पर रूस के हमले की पृष्ठभूमि में भी देखा जाना चाहिए, जिसने चुने हुए नेताओं के लिए बड़ी चुनौतियां पैदा की हैं. रिपोर्ट में खास तौर पर कोविड-19 के प्रकोप का जिक्र किया गया है.
कैसास जमोरा ने कहा कि संस्थानों में गिरावट के बावजूद वह लोकतंत्र को बनाए रखने के अन्य वैकल्पिक रूपों के बारे में आशावादी बने हुए हैं.
उन्होंने कहा, "लेकिन जबकि विधायिका जैसी हमारी कई पारंपरिक संस्थाएं कमजोर हो रही हैं, हमें उम्मीद है कि लोकतंत्र की निगरानी करने वाले पत्रकारों से लेकर चुनाव आयुक्तों और भ्रष्टाचार विरोधी आयुक्तों तक ये अधिक अनौपचारिक जांच और संतुलन, सत्तावादी और लोकलुभावन रुझानों से सफलतापूर्वक लड़ सकते हैं."
एए/वीके (रॉयटर्स, एएफपी)
अफ्रीकी देशों में बार-बार क्यों हो रहा तख्तापलट
अफ्रीकी देशों में सैन्य तख्तापलट की घटनाएं बढ़ रही हैं. इसी साल सूडान में दो बार तख्तापलट की कोशिश हुई, एक बार वह विफल हो गया लेकिन दूसरी बार जनरल आब्देल-फतह बुरहान इसमें कामयाब हुए.
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सूडान
सूडान ने इस साल दो ऐसी घटनाओं का अनुभव किया है, एक सितंबर में जो विफल रही और सबसे नया जिसमें जनरल आब्देल-फतह बुरहान ने सरकार और सेना व नागरिक प्रतिनिधियों को मिलाकर बनाई गई संप्रभु परिषद को भंग कर दिया. 25 अक्टूबर 2021 को सूडान में सेना ने तख्तापलट कर देश में आपातकाल लागू कर दिया.
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गिनी
5 सितंबर 2021 को पश्चिची अफ्रीकी देश गिनी में विद्रोही सैनिकों ने तख्तापलट करने के बाद राष्ट्रपति अल्फा कोंडे को हिरासत में ले लिया और संविधान को अवैध घोषित कर दिया.
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माली
मई 2021 में सेना ने विद्रोह करते हुए चुनी हुई सरकार को उखाड़ दिया और सत्ता खुद संभाल ली. एक साल के भीतर ही माली में सेना ने दो बार सरकार के कामकाज में दखल देने की कोशिश की.
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चाड
इदरीस डेबी इस साल अप्रैल में सरकार विरोधी उग्रवादियों से लड़ते हुए मारे गए थे जिसके बाद उनके बेटे महामत इदरीस डेबी देश के अंतरिम राष्ट्रपति बने. डेबी की मौत के बाद फैसला लिया गया था कि महामत के नेतृत्व में बनी एक सैन्य परिषद अगले 18 महीनों तक शासन करेगी.
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जिम्बाब्वे
अफ्रीकी देशों में तख्तापलट पिछले एक दशक से जारी है. साल 2017 में सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली और रॉबर्ट मुगाबे को गिरफ्तार कर लिया.
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बुरकीना फासो
पश्चिमी अफ्रीका में बुरकीना फासो ने सबसे सफल तख्तापलट का झेला जिसमें सात सफल अधिग्रहण और केवल एक असफल तख्तापलट हुआ है.
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मध्य अफ्रीकी गणराज्य
खनिज संपन्न मध्य अफ्रीकी गणराज्य में 2013 में तख्तापलट हुआ था. सेलाका विद्रोहियों ने तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रेंकोइस बोजोजी को पद से हटा दिया था.
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तख्तापलट से बढ़ी चिंता
सितंबर में यूएन महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने चिंता व्यक्त की कि "सैन्य तख्तापलट वापस आ गए हैं." उन्होंने सैन्य हस्तक्षेपों के जवाब में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच एकता की कमी को जिम्मेदार ठहराया था.
तस्वीर: John Angelillo/UPI/newscom/picture alliance