एचआरडब्ल्यू: तानाशाही के खिलाफ लोकतांत्रिक नेता सक्रिय हों
१८ जनवरी २०२२
ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में सत्तावादी सोच बढ़ रही है और विश्व शक्तियां लोकतंत्र की रक्षा करने में विफल हो रही हैं.
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ह्यूमन राइट्स वॉच के कार्यकारी निदेशक केनेथ रॉथ ने समाचार एजेंसी एएफपी को दिए इंटरव्यू में कहा है कि लोकतांत्रिक मूल्यों और अधिकारों की प्रभावी ढंग से रक्षा करने में लोकतांत्रिक नेताओं की विफलता दुनिया भर में निरंकुश लोगों के उदय को सक्षम कर रही है. रॉथ ने कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेताओं को साहसी और सैद्धांतिक नेतृत्व दिखाने की आवश्यकता पर जोर दिया.
मानवाधिकार संस्था के कार्यकारी निदेशक रॉथ का कहना है, "डर है कि अगर लोकतांत्रिक शासक अपनी आवाज नहीं उठाते हैं, जो कि सबसे महत्वपूर्ण है, तो इससे दुनिया भर में निराशा और अशांति फैल जाएगी और तानाशाही को बढ़ावा मिलेगा." उन्होंने कहा कि वास्तव में ऐसा लगता है कि निरंकुशता बढ़ रही है.
दुनियाभर में अधिकारों का हनन
दुनिया भर में अधिकारों के हनन पर एचआरडब्ल्यू की 750 पन्नों से ज्यादा की सालाना रिपोर्ट पिछले हफ्ते जारी हुई थी जिसमें चीन, रूस, बेलारूस और मिस्र जैसे देशों में असंतुष्ट आवाजों पर कार्रवाई तेज करने का विवरण दिया गया है. रिपोर्ट में म्यांमार और सूडान समेत दुनिया भर में हाल ही में सैन्य तख्तापलट के बारे में तथ्यों को सूचीबद्ध किया गया है.
रिपोर्ट में उन देशों का भी उल्लेख किया गया है जिन्हें कभी लोकतांत्रिक माना जाता या वे अभी भी हैं, लेकिन रिपोर्ट पिछले कुछ सालों में निरंकुश प्रवृत्ति वाले नेताओं के उद्भव को भी उजागर करती है. इन देशों में हंगरी, पोलैंड, ब्राजील, भारत और पिछले साल तक अमेरिका शामिल हैं.
भले ही पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और उनके सहयोगियों द्वारा 2020 के चुनावों के परिणामों को उलटने के प्रयास विफल रहे, रॉथ ने आगाह किया कि अमेरिकी लोकतंत्र को "आज भी स्पष्ट रूप से चुनौती दी जा रही है." उन्होंने कहा कि 6 जनवरी 2021 को कैपिटॉल हिल में ट्रंप समर्थकों द्वारा हुई हिंसा "वास्तव में सिर्फ शुरुआत थी."
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तानाशाही को दें चुनौती
रॉथ ने कहा कि उन्हें डर है कि 6 जनवरी की हिंसा "चुनावों को उलटने का एक प्रयास था, और अब एक और अधिक परिष्कृत प्रयास चल रहा है, जिसका लक्ष्य अगले राष्ट्रपति चुनावों के लिए है." उन्होंने कहा, "अमेरिका में लोकतंत्र की रक्षा करने की तत्काल जरूरत है."
इन सभी खतरों को स्वीकार करते हुए रॉथ ने पारंपरिक ज्ञान को चुनौती दी है, इस बात पर जोर देते हुए कि तानाशाही बढ़ रही है और लोकतंत्र का पतन हो रहा है. लेकिन वास्तव में दुनिया में कई तानाशाह खुद को पतन के कगार पर धकेल रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि नजरबंदी या गोली मारने की धमकी के बावजूद दुनिया को म्यांमार और सूडान जैसे दमनकारी सैन्य शासन के खिलाफ बोलना चाहिए.
ये हैं 2022 के सबसे बड़े खतरे
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम ने 2022 में दुनिया की सबसे बड़ी चुनौतियों पर अपनी सालाना रिपोर्ट ‘ग्लोबल रिस्क्स रिपोर्ट 2022’ जारी की है. इसमें बताए गए सबसे बड़े खतरे कौन से हैं, जानिए...
तस्वीर: Zoonar/picture alliance
भारत के निराश युवा
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के मुताबिक भारत के लिए सबसे बड़े खतरों में मतिभ्रम से जूझ रहे युवा भी हैं. इसके अलावा राज्यों के खराब होते आपसी रिश्ते, तकनीक आधारित प्रशासन की विफलता, बढ़ता कर्ज और डिजिटल असमानता भारत के सामने सबसे बड़े खतरे हैं.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय खतरे
इस रिपोर्ट में दुनिया के लिए जो सबसे बड़े खतरे बताए गए हैं, वे हैं पर्यावरण का संकट, बढ़ती सामाजिक असमानता, साइबर असुरक्षा और कोविड से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों का असमान उबार.
रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सामने जो दस सबसे बड़े खतरे हैं उनमें से छह तो जलवायु परिवर्तन से ही जुड़े हैं. उत्सर्जन को कम करने वाली तकनीक का इस्तेमाल ना कर पाने का दुनिया को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.
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बढ़ती असमानता
रिपोर्ट कहती है कि दुनिया की समरसता खतरे में हैं क्योंकि गैरबराबरी बढ़ रही है. आय में असमानता और वैक्सीन तक पहुंच में इतनी अधिक गैरबराबरी है कि एक हिस्सा दूसरे से बहुत ज्यादा पीछे है.
तस्वीर: imago stock&people
विस्थापन
लोगों के लिए ना चाहते हुए भी प्रवासन के लिए मजबूर होना एक बड़ा खतरा माना गया है. यह भी पर्यावरण परिवर्तन से जुड़ा है जो लोगों को अपनी बसी-बसाई जिंदगी छोड़ दूसरी जगह जाने पर मजबूर कर रहा है.
तस्वीर: Simon Wohlfahrt/AFP
बढ़ता कर्ज
कोरोनावायरस महामारी ने पूरी दुनिया में ही उद्योग-धंधों को प्रभावित किया है. इस कारण महंगाई और कर्ज बढ़ा है जो एक बड़े खतरे के रूप में सामने आया है क्योंकि इससे लौटना मुश्किल होता जा रहा है.
तस्वीर: Zoonar/picture alliance
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रॉथ ने कहा, "उन लोगों के खिलाफ महत्वपूर्ण प्रतिरोध होना चाहिए जो तानाशाही को फिर से लागू करना या बनाए रखना चाहते हैं." उन्होंने कहा कि रूस, हांग कांग, युगांडा और निकारागुआ जैसे देशों ने खुले तौर पर सभी विरोधों से छुटकारा पाने, मीडिया को चुप कराने और सार्वजनिक प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगाने के बाद चुनावी रैलियों को आयोजित करने का एक बिंदु बना लिया है.
रॉथ का मानना है कि हालांकि ऐसे शासक इस तरह के "बेजान चुनाव" को जीत सकते हैं, लेकिन ऐसे चुनाव किसी भी वैधता को प्रदान नहीं करते हैं जो नेता चाहते हैं. वह कहते हैं, "विश्व स्तर पर मुझे लगता है कि हम लोकतांत्रिक नेताओं के साथ आंशिक रूप से असंतोष देख रहे हैं, क्योंकि लोकतांत्रिक समाज के महत्वपूर्ण हिस्से को लगता है कि वे पीछे छूट गए हैं." उनके मुताबिक, "लोकतंत्र के भीतर बेहतर शासन और दुनिया भर में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एक अधिक सुसंगत दृष्टिकोण की तत्काल जरूत है."
एए/वीके (एएफपी)
मिल गया काबुल की भगदड़ में खोया सोहेल
अगस्त में जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया और तमाम लोग देश छोड़कर भागना चाहते थे, तो एक भगदड़ मच गई थी. उस भगदड़ में दो महीने का सोहेल अपने परिवार से बिछड़ गया था. पांच महीने बाद सोहेल मिल गया है.
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पांच महीने बाद मिला नन्हा सोहेल
काबुल की भगदड़ में अपने माता-पिता से बिछड़ा सोहेल तब दो महीने का था. 19 अगस्त को सोहेल लापता हो गया था.
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भागते मां-बाप के हाथों से छूटा
तालिबान के आने के बाद जब लोग किसी भी तरह काबुल से बाहर निकलना चाहते थे तब सोहेल को दीवार के ऊपर से एक अमेरिकी सैनिक को सौंपा गया था
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भटकते रहे माता-पिता
सोहेल के पिता मिर्जा अली अहमदी अमेरिकी दूतावास में सिक्यॉरिटी गार्ड के तौर पर काम करते थे. उन्हें, उनकी पत्नी और चार अन्य बच्चों को एक अमेरिकी विमान से काबुल से बाहर निकाला गया.
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महीनों तक पता नहीं चला
वे लोग तो अमेरिका चले गए लेकिन दो महीने का सोहेल पीछे छूट गया. महीनों तक वे दर-दर भटकते रहे लेकिन सोहेल का कहीं पता नहीं चला.
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खबरों से पता चला
सोहेल के बारे में कई जगह समाचार छपे. उन समाचारों को काबुल में भी लोगों ने पढ़ा. और तब बात एक टैक्सी ड्राइवर हामिद सफी तक पहुंची.
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सोहेल को मिला नया नाम
सफी ने बताया कि उन्होंने सोहेल के घरवालों को काफी खोजा फिर उसे वे अपने घर ले गए. उन्होंने उसे मोहम्मद आबिद नाम भी दिया और अपने फेसबुक पेज पर उसकी तस्वीरें पोस्ट की.
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दादा को सौंपा सोहेल
सारी मालूमात के बाद सोहेल के दादा मोहम्मद कासिम रजावी सफी से मिले. दोनों परिवारों के बीच सात हफ्ते तक बातचीत होती रही. इस बीच पुलिस को भी दखल देना पड़ा.
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आखिरकार घर लौटा सोहेल
रजावी ने जब अपने पोते को सफी से गोद में लिया तो सफी फूट-फूटकर रो रहे थे. पांच महीने में ही सोहेल उनका अपना हो गया था.
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अब अमेरिका का सफर
सोहेल के सौंपे जाने को उसके माता-पिता वीडियो चैट से देख रहे थे. रजावी बताते हैं कि वे खुशी से नाचने-गाने और उछलने लगे थे. परिवार को उम्मीद है कि सोहेल के अमेरिका जाने का प्रबंध जल्दी ही किया जाएगा जहां वह महीनों बाद अपनी अम्मी से मिल पाएगा.