हरियाणा के अरावली वन क्षेत्र में अवैध रूप से बसी खोरी बस्ती तोड़ी जा रही है. यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर की जा रही है. अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि बस्ती टूटने से करीब एक लाख लोग बेघर हो जाएंगे.
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सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने खोरी गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में अतिक्रमित 10 हजार आवासीय निर्माण को हटाने के लिए आदेश जारी किया था. कोर्ट में आदेश पर रोक लगाने की एक याचिका भी दायर हुई थी लेकिन शीर्ष अदालत ने राहत नहीं दी थी. कोर्ट ने अरावली क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने के आदेश पर रोक नहीं लगाते हुए कहा था, "हम अपनी वन भूमि खाली चाहते हैं."
खोरी गांव में कौन रहते हैं?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से खोरी गांव में रहने वाले लोग अपने सिर से छत छिनती देख चिंतित हैं. गांव में करीब दस हजार परिवार रहते हैं. यहां रहने वाले अनौपचारिक कामगार, रेहड़ी पर खाना बेचने वाले, सफाई कर्मचारी और ई-रिक्शा चालक हैं.
उनके घर अवैध रूप से संरक्षित वन भूमि पर बनाए गए थे, जो अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा हैं. यह श्रृंखला उत्तरी और पश्चिमी भारत में करीब 700 किलोमीटर तक फैली है.
बुधवार को फरीदाबाद नगर निगम ने भारी बारिश के बावजूद करीब 300 मकान ढहा दिए. मौके पर मौजूद अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की 19 जुलाई की समयसीमा के पहले हजारों और मकान ढहा दिए जाएंगे.
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आशियाने को बचाने की कोशिश नाकाम
15 साल पुराने घर ढह जाने के बाद एक महिला ने न्यूज चैनल एनडीटीवी से कहा, "हमारे पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है. हम यहां भीग जाएंगे. मेरे छोटे बच्चे हैं."
अखबारों में छपी खबरों में बताया गया है कि कैसे बुधवार को तोड़फोड़ के दौरान प्रशासन ने मीडिया को खोरी गांव से दूर रखा. पत्रकारों और फोटोग्राफरों को भी गांव में जाने की इजाजत नहीं दी गई. रिपोर्ट में बताया कि एक होटल में दूरबीन के सहारे तोड़फोड़ देखने का इंतजाम किया गया था.
मंगलवार को हरियाणा सरकार ने खोरी गांव में रहने वाले लोगों के लिए पुनर्वास नीति जारी की, जिसके बाद तोड़फोड़ की शुरुआत की गई है. खोरी गांव में रहने वाले लोगों को डबुआ कॉलोनी और बापू नगर में खाली पड़े फ्लैट दिए जाएंगे. हालांकि, सरकार ने फ्लैट के लिए शर्तें भी लगाई हैं. एक शर्त यह भी है कि परिवार की सालाना आय तीन लाख रुपये से कम होनी चाहिए. घर के मालिक को वोटर कार्ड, बिजली का बिल या फिर परिवार पहचान पत्र में से कोई भी एक दस्तावेज दिखाना होगा.
कठोर मौसम और संघर्ष से बढ़ रहा विस्थापन
आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र और नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल की संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक संघर्ष और प्राकृतिक आपदाओं ने लाखों लोगों को देश के अंदर विस्थापित होने को मजबूर किया. यह संख्या रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है.
तस्वीर: DW/S. Tanha
कोरोना काल में भी विस्थापन
डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) और नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल (एनआरसी) की रिपोर्ट कहती है कि कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने लिए आवाजाही पर प्रतिबंध के बावजूद आंतरिक विस्थापन हुआ. पर्यवेक्षकों को उम्मीद थी कि पाबंदियों से आंतरिक विस्थापन कम होगा.
तस्वीर: picture-alliance/AA/M. Abdullah
हिंसा, संघर्ष और प्राकृतिक आपदा
आईडीएमसी और एनआरसी की संयुक्त रिपोर्ट कहती है कि साल 2020 में तीव्र तूफानों, लगातार संघर्षों और हिंसा की घटनाओं के कारण देशों के भीतर कुल साढ़े चार करोड़ नए विस्थापन हुए.
तस्वीर: DW
नए विस्थापित
रिपोर्ट में बताया गया कि 10 सालों में विस्थापितों की यह रिकॉर्ड संख्या है. दुनिया भर में आंतरिक रूप से विस्थापन में रहने वालों की कुल संख्या साढ़े पांच करोड़ हो गई है.
तस्वीर: Alfredo Zuniga/AFP
"अभूतपूर्व संकट"
आईडीएमसी की निदेशक एलेक्जेंड्रा बिलाक कहती हैं, "इस साल दोनों संख्या असामान्य रूप से अधिक थी." वह इसे "अभूतपूर्व" बताती हैं. आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या बतौर शरणार्थी अब देश छोड़कर गए 2.6 करोड़ लोगों से दोगुनी हो गई है.
तस्वीर: Mohammed Al-Wafi/Xinhua/picture alliance
एशिया और प्रशांत के क्षेत्र प्रभावित
एशिया और प्रशांत के घनी आबादी वाले क्षेत्र तीव्र चक्रवात, मानसून की बारिश और बाढ़ से प्रभावित हुए थे, जबकि अटलांटिक तूफान का मौसम "रिकॉर्ड पर सबसे अधिक सक्रिय था." रिपोर्ट के मुताबिक, "मध्य पूर्व और उप-सहारा अफ्रीका में विस्तारित बारिश के मौसम ने लाखों और लोगों को विस्थापित किया."
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/UNAMID/A. G. Farran
भविष्य में विस्थापन बढ़ेगा?
आईडीएमसी की निदेशक एलेक्जेंड्रा बिलाक कहती हैं, "भविष्य में हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के साथ इन आपदाओं के बारंबार आने और तीव्र होने की उम्मीद कर सकते हैं, इस वजह से आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या बढ़ सकती है."
आंतरिक रूप से विस्थापित लोग अक्सर प्राकृतिक आपदा के तुरंत बाद घर लौट जाते हैं, लेकिन आंतरिक विस्थापन में रहने वाले अधिकांश लोग युद्ध ग्रस्त क्षेत्रों से भागते रहते हैं क्योंकि उनके लिए लौटना अभी भी असुरक्षित है.
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नई-नई जगह से विस्थापन
सीरिया, अफगानिस्तान और डीआर कांगो में लंबे समय से जारी संघर्ष के कारण लोग अपने घरों को छोड़ ही रहे हैं लेकिन अब इथियोपिया, मोजाम्बिक और बुरकिना फासो में हिंसा लोगों को अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर कर रही है.
तस्वीर: Baz Ratner/REUTERS
आर्थिक नुकसान
जलवायु परिवर्तन ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में गंभीर मौसम की स्थिति पैदा कर दी है. मौसम की यह स्थिति कम नहीं हो रही बल्कि लगातार बढ़ रही है. पिछले साल, ऑस्ट्रेलिया ने अत्यधिक गर्मी के कारण जंगल की आग में 30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की थी, तूफान की संख्या में भी वृद्धि हुई है और इससे कई देशों को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ है.
तस्वीर: Reuters/
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महामारी के दौरान टूटे मकान
योजना के तहत खोरी गांव में रहने वाले लोगों को वैकल्पिक आवास में रहने के लिए छह महीने तक 2,000 रुपये किराये के रूप में दिए जाएंगे. आवास अधिकार कार्यकर्ताओं ने मकानों के ढहाने के एक दिन पहले योजना के जारी करने की आलोचना की है. कार्यकर्ताओं ने सरकार से असली हकदार की पहचान करने के लिए सर्वेक्षण कराने और अपने आपको हकदार साबित करने के लिए पर्याप्त समय देने का आग्रह किया है. साथ ही लोगों को काम के लिए कल्याणकारी योजनाओं से भी जोड़ने को कहा है.
खोरी मजदूर आवास संघर्ष समिति के सदस्य निर्मल गोराना कहते हैं, "योजना की घोषणा करने के 24 घंटों के भीतर ही आपने मकानों को ढहाना शुरू कर दिया. यह कैसा कल्याणकारी राज्य है? आप उन्हें इस महामारी के समय मरने के लिए जमीन से उखाड़ नहीं सकते हैं."
मानवाधिकार कानून नेटवर्क के चौधरी ए जेड कबीर कहते हैं, "(जबरन निकालने) के परिणामस्वरूप लोग अत्यंत गरीबी में धकेले जा सकते हैं और यह जीवन के अधिकार को खतरा है." कबीर कहते हैं कि खोरी गांव के लोगों को गरीबी में धकेला जा रहा है.
खोरी बस्ती के लोग सवाल कर रहे हैं कि जब बस्ती अवैध थी तो मोटी रकम लेकर बिजली कनेक्शन क्यों दिया गया था. बुलडोजर और पुलिसवालों के सामने महिलाएं बेबस होती रहीं और उनका सालों पुराना मकान ढहता रहा.
आमिर अंसारी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
कई दुर्लभ प्रजातियों का बसेरा है भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान
ओडिशा के भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान करीब 145 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसके मटमैले मैंग्रोव वनों में एल्बिनो मगरमच्छ और समुद्री कछुए जैसे दुर्लभ जंतु और चिड़ियों की सैकड़ों प्रजातियां रहती हैं.
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जहां धरती और समंदर मिलते हैं
भीतरकनिका उद्यान के चारों ओर भीतरकनिका अभयारण्य फैला हुआ है, जो बंगाल की खाड़ी में ब्राम्हणी और बैतरणी नदियों के मुहाने पर स्थित है. अभयारण्य अपने आप में 672 वर्ग किलोमीटर के मैंग्रोव वनों और जलमयभूमि के एक इलाके में फैला हुआ है.
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हरियाला का ठिकाना
भीतरकनिका में तीन नदियां समुद्र में मिलती हैं, जिसकी वजह से वहां मटमैली खाड़ियों और मैंग्रोव की एक भूल-भुलैया सी बन जाती है. उद्यान में पक्षियों की 215 से भी ज्यादा प्रजातियां रहती हैं.
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संभल कर रखें कदम
उद्यान के पानी में और उसके आस-पास केंद्रपाड़ा जिले के दूसरे इलाकों में खारे पानी के मगरमच्छों की जनसंख्या बढ़ गई है. वन विभाग के अधिकारियों ने पिछले साल हुई सरीसर्पों की वार्षिक गणना में 1,757 मगरमच्छ पाए थे.
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भीमकाय मगरमच्छों का घर
उद्यान के कर्मियों ने कम से कम 12 एल्बिनो मगरमच्छ और चार भीमकाय मगरमच्छों की भी गिनती की थी. यह बड़े मगरमच्छ 20 फुट से भी ज्यादा लंबे हैं और इनमें से कुछ 70 सालों से भी ज्यादा तक जिंदा रह सकते हैं.
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प्रकृति के प्रहरी
भीतरकनिका के मंडलीय वन्य अधिकारी बिकाश रंजन दाश ने बताया, "हमने उद्यान के अंदर और उसके आस-पास के इलाकों में सभी नदियों और उनकी खाड़ियों में रहने वाले मगरमच्छों की गिनती करने के लिए 22 टीमें बनाई थीं." यहां तट पर ओलिव रिडले समुद्री कछुओं के अंडों की सुरक्षा के लिए कड़ा इंतजाम भी है.
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नन्हे कछुओं की पहली यात्रा
भीतरकनिका अभयारण्य ओडिशा के पूर्वी तट पर स्थित है जो पूरी दुनिया में ओलिव रिडले समुद्री कछुओं के अंडा देने का सबसे बड़ा स्थल है. मेक्सिको और कोस्टा रिका के तटों का नंबर इसके बाद आता है. 45 से 65 दिनों के अंदर अंडों से नन्हे कछुए निकलते हैं और तब यह तट धीरे-धीरे रेंग कर समुद्र की तरफ अपनी पहली यात्रा तय करते हुए नन्हे कछुओं से भर जाता है.
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रेत में शुरू होती है जिंदगी
ओलिव रिडले कछुए समंदर में ही प्रजनन करते हैं. मादाएं प्रजनन के पूरे मौसम तक शुक्राणुओं को अपने अंदर रख सकती हैं. इससे उन्हें एक से लेकर तीन बार तक अंडे देने में मदद मिलती है. सभी समुद्री कछुओं की तरह वो भी अपने अंडे उसी तट पर देती हैं जहां वो खुद जन्मी थीं. वो हर घोसले में 50 से 200 तक अंडे देती हैं और उसके बाद समंदर में वापस लौट जाती हैं. तस्करी की वजह से इन कछुओं पर खतरा बढ़ता जा रहा है.
तस्वीर: Murali Krishnan
पानी की ओर चले
पिछले साल कोविड तालाबंदी की वजह से जब यहां बहुत कम पर्यटक आए तब 8,00,000 से भी ज्यादा ओलिव रिडले कछुए ओडिशा के तटों पर आए थे. इस तस्वीर में एक कछुआ वापस समंदर की तरफ लौट रहा है.