सऊदी का 'बुलडोजर' अभियान, रातोरात बेघर हुए लोग
२२ अप्रैल २०२२सऊदी अरब में शासन विरोधी भावनाएं बहुत कम ही दिखती हैं. मगर पिछले कुछ समय से यहां चल रहे एक "बुलडोजर अभियान" को लेकर सऊदी के दूसरे सबसे बड़े शहर जेद्दाह में लोगों के बीच नाराजगी है.
रमजान में रोक दिया गया अभियान
मक्का को इस्लाम में सबसे पवित्र शहर माना जाता है. इसी मक्का का प्रवेश द्वार कहलाता है जेद्दाह. रेड सी के किनारे बसा यह शहर बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है. कट्टर माने जाने वाले सऊदी में जेद्दाह की छवि थोड़ी हटकर है.यहां रहने वालों को अपेक्षाकृत थोड़ी ज्यादा आजादी है. इसीलिए इस शहर का एक प्रचलित विशेषण है- जेद्दाह गैर. यानी, जेद्दाह अलग है.
पिछले कुछ महीनों से सऊदी सरकार यहां एक बड़ा तोड़-फोड़ अभियान चला रही है. यह अभियान एक महत्वाकांक्षी शहरी विकास परियोजना का हिस्सा है. आरोप है कि इस अभियान के तहत शहर के गरीब और कम आयवर्ग वाले इलाकों को निशाना बनाया जा रहा है. बुलडोजर चलाकर लोगों के घरों को ढहाया जा रहा है. फिलहाल रमजान के मद्देनजर यह अभियान रुका हुआ है, लेकिन मई में इसके दोबारा शुरू होने का अनुमान है.
जेद्दाह को नई शक्ल देने की कोशिश
यह अभियान 20 अरब डॉलर के 'जेद्दाह सेंट्रल प्रॉजेक्ट' का हिस्सा है. इसका एलान सऊदी पब्लिक इन्वेस्टमेंट फंड ने किया था. क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान इस फंड के प्रमुख हैं. इसके तहत जेद्दाह में म्यूजियम, ओपेरा हाउस, स्टेडियम, एक्वेरियम, होटल और नए रिहायशी इलाके बनाने की योजना है. इस नए निर्माण के लिए जगह बनाने के लिए शहर के करीब 30 इलाकों को चिह्नित किया गया है. इन इलाकों में सऊदी नागरिकों के अलावा अन्य एशियाई देशों की मिली-जुली बसाहट है.
इस अभियान को लेकर न्यूज एजेंसी एएफपी ने जेद्दाह के एक डॉक्टर से बात की.इन डॉक्टर ने लोन लेकर जमीन खरीदी थी. उसपर अपना घर बनवाया था. लोन की 15 साल की किस्तें अब भी बाकी हैं, लेकिन घर बुलडोजर से ढहा दिया गया है. उन्हें किराये के घर में रहना पड़ रहा है. ऊपर से करीब 400 डॉलर की मासिक किस्त भी चुकानी पड़ रही हैं. पीड़ित डॉक्टर अपनी बात कहते हुए पहचान नहीं जाहिर करना चाहते क्योंकि उन्हें प्रशासन से बदले की कार्रवाई किए जाने की आशंका है. वह बताते हैं, "हम अपने ही शहर में अजनबी हो गए हैं. हम तकलीफ में हैं, इस कड़वाहट को महसूस कर रहे हैं."
सालों से बसे लोग उजड़ गए
इस तोड़-फोड़ अभियान के कारण सत्ता विरोधी भावनाएं भड़कने की भी आशंका जताई जा रही है. 'एएलक्यूएसटी फॉर ह्यूमन राइट्स' नाम के एक गैर-सरकारी संगठन ने बताया कि अभियान के कारण बेघर हुए लोगों में ऐसे भी हैं, जो लंबे समय से वहां रह रहे थे. ऐसे भी पीड़ित हैं, जो 60 साल से इन घरों में रहते आए थे. कई ऐसे भी हैं, जिनकी बिजली और पानी आपूर्ति बंद कर उन्हें घर से निकाला गया. लोगों को जेल का डर दिखाकर भी उनसे घर खाली करवाया गया.
शहर के दक्षिणी हिस्से में बसा एक इलाका है, गलिल. यहां इस डेमोलिशन कैंपेन की शुरुआत अक्टूबर 2021 में हुई.यहां रहने वाले फहद बताते हैं कि घर गिराए जाते समय सुरक्षा बलों ने लोगों के मोबाइल फोन जब्त कर लिए, ताकि तोड़-फोड़ से जुड़ी तस्वीरें और वीडियो बाहर ना आएं. फहद ने बताया, "हमें एकाएक रातों रात हमारे घरों से निकाल दिया गया, बिना कोई चेतावनी दिए." 2022 की शुरुआत से इस अभियान से जुड़ी खबरें जोर पकड़ने लगीं. लोग सोशल मीडिया पर इसका विरोध करते दिखे. ट्विटर पर अरबी भाषा में इससे जुड़े हैशटैग शेयर किए जाने लगे.
अली अल-अहमद सऊदी अरब के एक कार्यकर्ता हैं. वह वॉशिंगटन में इंस्टिट्यूट फॉर गल्फ अफेयर्स में स्कॉलर भी हैं. अहमद ने इस तोड़-फोड़ अभियान से जुड़े ब्योरों को सामने लाने, इससे जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक करने के लिए एक ऑनलाइन मुहिम चलाई. वह बताते हैं, "लोगों की सहमति और नई जगह पर बसने के लिए समुचित मुआवजा दिए बिना नागरिकों के घर गिराना स्वीकार्य नहीं है."
सरकारी आश्वासन बनाम आपबीतियां
एएफपी के एक पत्रकार ने हाल ही में शहर के एक डेमोलिशन प्रभावित इलाके का मुआयना किया. यहां कई ऐसे आवासीय ब्लॉक मिले, जिन्हें ढहा दिया गया है. कई ऐसे ब्लॉक जो अब भी मौजूद हैं, वहां प्रशासन ने लाल अक्षरों में नोटिस चिपकाया हुआ था: खाली करें (इवैक्यूएट). कुछ साइनबोर्ड ऐसे भी मिले, जिनमें लोगों को अपने सामान के साथ घर खाली करने का निर्देश दिया गया था. यह सलाह भी दी गई थी कि वे मुआवजे के लिए सरकारी वेबसाइट पर अपने कागजात जमा करें.
सऊदी सरकार ने पीड़ित परिवारों को मुआवजे देने की बात कही है.फरवरी 2022 में घोषणा की गई कि पीड़ितों के वैकल्पिक आवास के लिए इस साल के अंत तक 5,000 हाउसिंग यूनिट बनाए जाएंगे. लेकिन पीड़ितों के बयान सरकारी आश्वासन से मेल नहीं खाते. एएफपी ने जितने भी पीड़ितों से बात की, उन्होंने अभी तक कोई मुआवजा ना मिलने की बात कही. इनमें ऐसे लोग भी शामिल हैं, जिनके घर अभियान के शुरुआती दौर में ही ढहा दिए गए थे. भुक्तभोगियों का यह भी कहना है कि ढहाए हुए घरों की असली कीमत तय करने का कोई स्पष्ट तरीका भी नहीं है.
फहद बताते हैं, "महीनों बीत गए, लेकिन मुझे अपने घर का मुआवजा नहीं मिला है. मैं घर का मालिक हुआ करता था. अब मैं किरायेदार हूं, जिसे किराया भरने के लिए जूझना पड़ रहा है." एएलक्यूएसटी संस्था के एक सर्वे के मुताबिक, कुछ पीड़ितों को अभी मुआवजे का दावा दायर करने की प्रक्रिया भी स्पष्ट मालूम नहीं है. कईयों को यह भी नहीं बताया गया है कि मुआवजा मिलेगा. उधर अधिकारी इस परियोजना का बचाव कर रहे हैं. उनका दावा है कि इस अभियान से शहर आधुनिक बनेगा. यहां 17,000 नई आवासीय इकाईयां बनेंगी.
घर तोड़े जाने की तकलीफ
समस्या बस घर गिराए जाने और मुआवजे की अनिश्चितता पर खत्म नहीं होती है. आरोप है कि प्रभावित इलाकों की छवि भी खराब की जा रही है. मसलन, जेद्दाह के मेयर ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा कि इस अभियान के तहत उन इलाकों पर कार्रवाई की गई, जो अपराध के गढ़ थे. इस चरित्र चित्रण पर कई लोग आपत्ति जता रहे हैं.
शिकायत करने वालों में जेद्दाह के रहने वाले सऊदी नागरिक तुर्की भी शामिल हैं.तुर्की जिस घर में रहते थे, उसे उनके दादा ने बनवाया था. तुर्की इसी घर में बड़े हुए. वह चाहते थे कि उनके बच्चे भी इसी घर में बड़े हों. तुर्की का यह सपना पूरा नहीं होगा क्योंकि उनका घर ढहाया जा चुका है. उसकी हालत देखकर तुर्की रो पड़ते हैं. वह कहते हैं, "हर तरफ तोड़-फोड़ और विध्वंस की आवाजें थीं. हर ओर बिखरा मलबा देखकर महसूस हुआ मानो कयामत का दिन आ गया हो."
एसएम/ओएसजे