दूसरे देशों से बच्चे गोद नहीं ले पाएंगे डेनमार्क के लोग
१७ जनवरी २०२४
डेनमार्क के लोग अब भारत समेत दूसरे देशों से बच्चे गोद नहीं ले पाएंगे. बच्चे गोद लेने के लिए काम करने वाली देश की एकमात्र एजेंसी ने कहा है कि अनियमितताओं के चलते उसने कामकाज बंद कर दिया है.
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डेनमार्क इंटरनेशनल अडॉप्शन एजेंसी (DIA) अपना कामकाज बंद कर रही है. लोगों को दूसरे देशों से बच्चे गोद लेने में मदद करने वाली इस एजेंसी ने अनियमितताओं के आरोपों के बाद काम बंद करने का फैसला किया है. सिलसिलेवार तरीके से एजेंसी की गतिविधियां बंद कर दी जाएंगी.
दुनिया भर में समान लिंग वाले माता-पिता के अधिकार
समलैंगिक जोड़ों के लिए माता-पिता बनना सबसे कठिन प्रक्रियाओं में से एक माना जाता है. दुनिया के हर पांच में से एक से भी कम देश इन लोगों को बच्चे गोद लेने का अधिकार देते हैं.
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कितने देश देते हैं बच्चा गोद लेने के अधिकार
एक अंतरराष्ट्रीय संगठन (आईएलजीए) के आंकड़ों के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से केवल 40 देश समलैंगिक जोड़ों को बच्चे गोद लेने की इजाजत देते हैं और उनमें से ज्यादातर यूरोप, उत्तरी और लैटिन अमेरिका में स्थित हैं. ये वही देश हैं जिन्होंने सेम सेक्स मैरिज या सिविल यूनियन की इजाजत दी है.
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सबसे पहले नीदरलैंड्स
नीदरलैंड्स दुनिया का पहला देश था जिसने 2001 में समलैंगिक जोड़ों को बच्चे गोद लेने की अनुमति दी थी और 22 यूरोपीय, लैटिन और उत्तरी अमेरिकी देशों के साथ-साथ दक्षिण अफ्रीका, इस्राएल, ताइवान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने यह कानून पारित किया है.
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कठिन चुनौती
जिन देशों में गोद लेना कानूनी है वहां गोद लेने के लिए अपेक्षाकृत कम बच्चे उपलब्ध हैं, जिसके कारण कुछ समान-लिंग वाले जोड़े खुद बच्चे पैदा करने की कोशिश करते हैं.
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कानून से मिला बच्चा गोद लेने का अधिकार
दुनिया भर में समलैंगिक विवाह कानूनों के तहत दोनों पार्टनर एक साथ बच्चा गोद लेने के पात्र हैं.
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लंबा इंतजार
फ्रांस में समलैंगिक विवाह विधेयक के लागू होने के आठ साल बाद 2021 में समलैंगिक महिला जोड़ों को प्रजनन उपचार तक पहुंच प्राप्त हुई थी.
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पुरुषों के लिए चुनौती
कई समलैंगिक पुरुष जोड़े बच्चा पैदा करने के लिए सरोगेसी की तलाश करते हैं, लेकिन फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन और स्वीडन समेत कई यूरोपीय देशों में सरोगेसी पर प्रतिबंध है.
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एशियाई देशों की स्थिति
एशियाई देश थाईलैंड और भारत जिन्हें अतीत में मुख्य सरोगेसी गंतव्य माना जाता था, दोनों ने हाल के सालों में कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा दिया.
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रूस और यूक्रेन में क्या स्थिति
यूक्रेन, जो फरवरी 2022 में रूस के हमले से पहले सरोगेसी चाहने वाले जोड़ों के लिए एक प्रमुख गंतव्य था, केवल समलैंगिक विवाहित जोड़ों के लिए सरोगेसी को वैध बनाता है, जबकि रूस ने सभी विदेशियों को सरोगेसी की मदद से बच्चे पैदा करने पर प्रतिबंध लगा दिया है.
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एक बयान में डीआईए ने कहा कि वह "सिलसिलेवार तरीके से अपनी गतिविधियां समेटना शुरू कर रही है." इससे पहले डेनमार्क के सामाजिक मामलों के मंत्रालय ने उन छह देशों से बच्चे गोद लेने पर रोक का ऐलान किया, जिनके साथ डीआईए काम कर रही थी. यह छह देश थेः चेक रिपब्लिक, भारत, फिलीपींस, दक्षिण अफ्रीका, ताइवान और थाईलैंड.
मेडागास्कर में डीआईए का कामकाज पिछले साल ही बंद हो गया था क्योंकि वहां फ्रॉड के आरोप लगे थे. अब एजेंसी ने कहा है कि उसके पास काम बंद करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. अपने बयान में उसने कहा, "डेनमार्क में जो मौजूदा हालात हैं, उनमें विदेशों से बच्चे गोद लेने का काम डीआईए जैसी गैरसरकारी संस्था नहीं कर सकती.”
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नॉर्वे में भी रोक
डेनमार्क की संस्था के मुताबिक फिलहाल उसके पास 36 मामले हैं. लेकिन अब इन मामलों का क्या होगा, यह जानकारी नहीं दी गई है. 2010 के बाद डेनमार्क में विदेशों से बच्चों के गोद लेने के मामले में 10 गुना से ज्यादा की कमी आई है. 2010 में वहां 418 बच्चे गोद लिए गए थे.
दिसंबर में नॉर्वे ने भी फिलीपींस, ताइवान और थाईलैंड से बच्चे गोद लेने पर रोक लगा दी थी, जब मीडिया में अवैध रूप से बच्चे गोद लिए जाने की खबरें आई थीं.
इन खबरों पर कार्रवाई करते हुए नॉर्वे के डायरोक्टोरेट फॉर चिल्ड्रन, यूथ ऐंड फैमिली अफेयर्स ने दिसंबर में इन देशों से बच्चे गोद लेने पर रोक का ऐलान किया था. इस साल की शुरुआत से दक्षिण कोरिया से बच्चे गोद लेने पर भी रोक लगा दी गई है.
कानून से अनाथ बच्चों की भलाई
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में कई अहम संशोधन किए गए हैं. सरकार का कहना है कि इन संशोधनों से बच्चा गोद लेना आसान होगा और उनकी सुरक्षा भी बढ़ेगी. इस विधेयक में बाल संरक्षण को मजबूत करने के उपाय भी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/STR
गोद लेने की प्रक्रिया आसान
किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में संशोधन करने के लिए किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 राज्यसभा में पारित हो चुका है और यह जल्द ही कानून बन जाएगा. इस कानून के तहत बच्चों के गोद लेने की प्रक्रिया आसान बनाई जा रही है.
सरकार का कहना है कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में संशोधन से कानून मजबूत होगा और बच्चों की सुरक्षा बेहतर ढंग से होगी.
तस्वीर: IANS
अनाथ बच्चों का कल्याण
सरकार का कहना है कि यह एक बेहतर कानून है जिससे अनाथ बच्चों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलना सुनिश्चित किया जा सकता है. कानून के प्रभावी तरीके से लागू होने से अनाथ बच्चों को शोषण से बचाया जा सकता है.
तस्वीर: Getty Images/Y. Nazir
किशोर अपराध से जुड़े मामले जल्द निपटेंगे
संशोधित कानून में एक अहम बदलाव ऐसे अपराध से जुड़ा है जिसमें भारतीय दंड संहिता में न्यूनतम सजा तय नहीं है. 2015 में पहली बार अपराधों को तीन श्रेणियों में बांटा गया-छोटे, गंभीर और जघन्य अपराध. तब ऐसे केसों के बारे में कुछ नहीं बताया गया था जिनमें न्यूनतम सजा तय नहीं है. संशोधन प्रस्तावों के कानून बन जाने से किशोर अपराध से जुड़े मामले जल्द निपटेंगे.
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बाल कल्याण समिति
संशोधन प्रस्तावों में बाल कल्याण समितियों (सीडब्ल्यूसी) को ज्यादा ताकत दी गई है. इससे बच्चों का बेहतर संरक्षण करने में मदद मिलेगी. एक्ट में प्रावधान है कि अगर बाल कल्याण समिति यह निष्कर्ष देती है कि कोई बच्चा, देखरेख और संरक्षण की जरूरत वाला बच्चा नहीं है, तो समिति के इस आदेश के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती है. बिल इस प्रावधान को हटाता है.
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बढ़ेगी जवाबदेही, तेजी से होगा निस्तारण
संशोधन विधेयक में बच्चों से जुड़े मामलों का तेजी से निस्तारण सुनिश्चित करने और जवाबदेही बढ़ाने के लिए जिला मजिस्ट्रेट व अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को ज्यादा शक्तियां देकर सशक्त बनाया गया है. इन संशोधनों में अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट समेत जिला मजिस्ट्रेट को जेजे अधिनियम की धारा 61 के तहत गोद लेने के आदेश जारी करने के लिए अधिकृत करना शामिल है.
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और भी बदलाव
विधेयक में सीडब्ल्यूसी सदस्यों की नियुक्ति के लिए पात्रता मानकों को फिर से परिभाषित किया गया है. सीडब्ल्यूसी सदस्यों की अयोग्यता के मानदंड भी यह सुनिश्चित करने के लिए पेश किए गए हैं कि, केवल आवश्यक योग्यता और सत्यनिष्ठा के साथ गुणवत्तापूर्ण सेवा देने वालों को ही सीडब्ल्यूसी में नियुक्त किया जाए.
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बदलाव की जरूरत क्यों
बाल अधिकार सुरक्षा पर राष्ट्रीय आयोग ने देश भर के बाल संरक्षण गृहों का ऑडिट कर साल 2020 में रिपोर्ट दी थी. 2018-19 के इस ऑडिट में सात हजार के करीब बाल गृहों का सर्वेक्षण किया गया, ऑडिट में पाया गया कि 90 प्रतिशत संस्थानों को एनजीओ चलाते हैं और करीब 1.5 फीसदी कानून के हिसाब से काम नहीं कर रहे थे.
तस्वीर: picture-alliance/ZB
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डायरेक्टोरेट ने दो साल के लिए विदेशों से बच्चे गोद लेने पर पूरी तरह से रोक लगाने की सिफारिश की है जब तक कि आरोपों की जांच पूरी नहीं हो जाती. हालांकि सरकार ने उसकी सिफारिश नहीं मानी है और जांच को जल्द से जल्द खत्म करने को कहा है.
कहां-कहां है बच्चे गोद लेने की सुविधा
हाल ही में वर्ल्ड पॉप्युलेशन रिव्यू नामक संस्था ने 20 उन देशों की सूची जारी की थी जहां से बच्चे गोद लेना सबसे आसान है. इसमें पहले नंबर पर प्रार्थी के अपने देश का नाम रखा गया था. डब्ल्यूपीआर के मुताबिक अपने देश में बच्चा गोद लेना सबसे आसान होता है.
उसने अमेरिका की मिसाल देते हुए कहा, "देश के फॉस्टर केयर सिस्टम में बेशक बहुत सी खामियां हैं और बच्चा गोद लेने में बहुत वक्त लग सकता है. यहां तक कि कई साल का इंतजार करना पड़ सकता है. लेकिन तब भी खर्च बहुत कम होगा और आपको बच्चे के परिवार व स्वास्थ्य के बारे में कहीं ज्यादा जानकारी मिल पाएगी. साथ ही, बच्चे की तस्करी की संभावना लगभग ना के बराबर होगी.”
जिन देशों से बच्चा गोद लेना सबसे आसान बताया गया है, उनमें कजाखस्तान, भारत, हैती, चीन, थाईलैंड, कोलंबिया, मलावी, ताइवान, साउथ कोरिया, बहामास, यूक्रेन, फिलीपींस, बुल्गारिया, हांग कांग, युगांडा, होंडुरास, घाना, ब्रूंडी और इथियोपिया का नाम है.
जापान में लोग यहां अपने बच्चों को छोड़ कर चले जाते हैं
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भारत के बारे में संस्था ने कहा, "वहां जाने की जरूरत नहीं है और बहुत से ऐसे अनाथ बच्चे हैं जिन्हें परिवारों की जरूरत है. इनमें शिशुओं से लेकर बड़ी उम्र के बच्चे और विशेष जरूरत वाले बच्चे शामिल हैं.”
हाल के सालों में भारत में बच्चे कम गोद लिए जा रहे हैं. 2022 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में करीब तीन करोड़ बेसहारा बच्चे थे जिनमें से सालाना तीन से चार हजार बच्चे ही गोद लिए जाते हैं. भारत में बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया बेहद जटिल है. जुलाई 2022 तक 16,000 से ज्यादा भारतीय परिवार बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया पूरी होने का इंतजार कर रहे थे.