भारत-पाक तनाव से दूर है कश्मीर का यह फुटबॉल क्लब
६ जून २०२५
22 अप्रैल को भारतीय कश्मीर में 26 पर्यटकों को मार दिया था. यह ना केवल पीड़ित परिवारों के लिए दुखद था, बल्कि इसने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को भी काफी बढ़ा दिया. जिसका असर फुटबॉल के मैदान पर भी पड़ा. रियल कश्मीर एफसी (आरकेएफसी) पिछले कुछ सालों से दुनिया के सामने इस क्षेत्र में कश्मीर की एक सकारात्मक छवि पेश करने की कोशिश कर रहा था, जिसमें उसे कुछ हद तक सफलता भी मिली थी. लेकिन अब यह इलाका फिर से नकारात्मक खबरों की वजह से चर्चा में है.
इस समय सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अप्रैल में हुई घटना के कारण कहीं आम जनता और निजी कंपनियों की दिलचस्पी क्लब से दूर ना हो जाए. इस क्लब को अभी दस साल भी नहीं हुए हैं, लेकिन इसने एक इतने कम समय में भी एक अच्छा नाम बना लिया है. आरकेएफसी के मालिक, अरशद शॉल ने डीडब्ल्यू को बताया, "22 अप्रैल की घटना बेहद दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण थी. जिससे हमें काफी नुकसान हुआ है, क्योंकि जब लाखों पर्यटक कहीं आते हैं, तो वहां ब्रांड्स के लिए एक बड़ा बाजार बन जाता है. अब भारत और पाकिस्तान में बढ़ते तनाव के कारण यह जगह कंपनियों के लिए आकर्षक नहीं है.”
भारत और पाकिस्तान दोनों ही मुस्लिम-बहुल कश्मीर पर अपना पूरा अधिकार जताते हैं. हालांकि दोनों के पास इसका केवल एक-एक हिस्सा है और चीन के पास भी इसका कुछ हिस्सा है. 1947 में जब भारत और पाकिस्तान को ब्रिटेन से आजादी मिली थी. तभी से यह इलाका दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना रहा है. सुरक्षा स्थिति और स्थानीय अस्थिरता यहां लंबे समय से एक समस्या रही है. अप्रैल में हुई दुर्घटना से पहले भी यह इलाका अक्सर नकारात्मक वजहों से अंतरराष्ट्रीय मीडिया में आता रहा है.
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शॉल ने कहा, "हम पूरी दुनिया से कई तरह से कट गए थे. यहां के युवा हताश थे क्योंकि इस इलाके में कोई निवेश नहीं हो रहा था.”
दुखों से आगे बढ़ने की राह
2014 में, जब भीषण बाढ़ ने कश्मीर को तबाह कर दिया था, तो दो लोग इसे बदलने के लिए सामने आए. एक, मुस्लिम अखबार मालिक, शमीम मेहराज और दूसरे, हिंदू व्यापारी संदीप चट्टू (जिनका 2023 में निधन हो गया). उन्होंने सोचा कि यहां के युवाओं को सकारात्मक नजरिये की जरूरत है ताकि वह हिंसा की राह पर ना जाएं. इस सोच के साथ उन्होंने 100 फुटबॉल बांटे. यह एक साधारण कदम काफी असरदार साबित हुआ.
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शॉल ने कहा, "यह बस एक सोच थी कि चलिए, तनाव, चिंता और डिप्रेशन से जूझ रहे कश्मीर के युवाओं को खेलने का मौका दें.” यहीं से सब शुरू हुआ और 2016 में रियल कश्मीर एफसी की स्थापना हुई. "क्लब की सोच थी, ‘क्रिएट, बिलीव और इंस्पायर' यानी निर्माण करो, विश्वास रखो और प्रेरणा बनो. कश्मीर को पहले गोलियों और पत्थरों के लिए जाना जाता था, लेकिन रियल कश्मीर की हर जीत हमारी कोशिशों का प्रतीक है.”
स्थानीय लोगों के दिल को यह सोच छू गई. दक्षिण एशिया भले ही क्रिकेट के लिए जाना जाता हो, लेकिन यहां उत्तर-पश्चिमी कोने में हालात कुछ अलग हैं. क्लब के फैन अमल मिर्जा ने डीडब्ल्यू को बताया, "हम फुटबॉल के साथ बड़े हुए हैं और हमें इससे गहरा लगाव है. हमारे कश्मीर की एक पहचान है और फुटबॉल हमें उस पहचान के साथ जीने और दुनिया को दिखाने का मौका देता है.”
क्लब का आधिकारिक वीडियो भी यही संदेश देता है, "जब आप कश्मीर को फुटबॉल की नजर से देखेंगे, तब आप असल कश्मीर को देख पाएंगे.”
ऊंचाइयों के शिखर पर
स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर मिले सहयोग से रियल कश्मीर एफसी की शुरुआत भारतीय फुटबॉल की तीसरी श्रेणी से हुई. 2018 में यह क्लब आई-लीग में प्रमोट हो गया. अगले ही साल, क्लब डुरंड कप के सेमीफाइनल तक जा पहुंचा, जो कि दुनिया की सबसे पुरानी फुटबॉल प्रतियोगिताओं में से एक है.
तब से "स्नो लेपर्ड्स” नाम से मशहूर यह टीम सेकेंड डिवीजन में अच्छा प्रदर्शन कर रही है. 2024-25 सीजन में क्लब तीसरे स्थान पर रहा, जो टॉप टीम से सिर्फ तीन अंक पीछे था.
यहां की पहाड़ियों, झीलों और जंगलों की प्राकृतिक सुंदरता खिलाड़ियों की ताकत बन गई है. शॉल ने कहा, "हम ऊंचाई पर रहते हैं और हमारे शरीर की ऑक्सीजन क्षमता और डाइट अच्छी होने की वजह से हम शारीरिक रूप से भी काफी मजबूत हैं.”
रियल कश्मीर फैन क्लब के सह-संस्थापक, फैजल अशरफ शुरुआत से ही टीम के समर्थक रहे हैं. उन्होंने कहा, "कश्मीर में फुटबॉल के लिए जो प्यार है, वह शायद ही भारत के किसी और हिस्से में है. लोग एकजुट होकर टीम का समर्थन करते हैं, यही हमारी असली विरासत है.” क्लब ने डीडब्ल्यू को बताया कि पिछले सीजन में हर मैच में औसतन 6,000 से ज्यादा दर्शक आए थे, जो कि लीग की औसत से तीन गुना अधिक है.
मिर्जा ने कहा, "जब टीम खेलती है, तो हम सारी चिंताएं भूल जाते हैं. हम ना हिंसा के बारे में सोचते है और ना हमें किसी और बात की फिक्र होती है.” उन्होंने आगे कहा, "हम बस चाहते हैं कि हमारी टीम जीते. आप ध्यान देंगे तो देखेंगे कि भीड़ में सिर्फ पुरुष और लड़के नहीं हैं, बल्कि लड़कियां, महिलाएं और बुजुर्ग भी हैं. यह खेल लोगों को एकजुट करता है, बात करने और सपोर्ट करने का एक मौका देता है. मुझे उम्मीद है कि हम ऐसे ही आगे बढ़ते रहेंगे और अधिक बेहतर होंगे.”
दशकों की अस्थिरता ने राज्य में मौजूद ज्यादातर खेल सुविधाओं को बेकार बना दिया था. क्लब की तरक्की और सरकार के सहयोग से अब मैदान अच्छे हालत में हैं और इनका भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है. एडिडास और लिवप्योर जैसे अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय प्रायोजकों का भी इसमें योगदान रहा है.
आगे की राह
अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इस रफ्तार को कैसे बनाए रखा जाए और रियल कश्मीर एफसी को भारत की सबसे बेहतरीन फुटबॉल लीग, इंडियन सुपर लीग में जगह दिलाई जाए. कोलकाता, मुंबई, केरल और अन्य बड़े शहरों की दिग्गज टीमों का सामना करना क्लब के लिए एक बहुत बड़ी जीत साबित हो सकती है.
शॉल ने कहा, "यह सबसे बड़ी बात होगी, जिससे यहां के युवाओं को इंडियन सुपर लीग में देश की सबसे बड़ी टीमों को अपने मैदान पर खेलते देखने का मौका मिलेगा. यह एक नया अध्याय खोलेगा और रियल कश्मीर ही नहीं, बल्कि पूरे जम्मू-कश्मीर के लिए एक ऐतिहासिक मौका होगा.”
रियल कश्मीर सिर्फ मैदान पर जीतने के लिए नहीं बना था. शॉल ने कहा, "यह क्लब एक मिशन के साथ शुरू हुआ था, जो कि सिर्फ फुटबॉल खेलना नहीं है. बल्कि लड़कों को घरों से बाहर निकलना है ताकि वह मुख्यधारा से जुड़ सके और उन्हें खेलने का मौका मिल सके. पहले हमारे अखबारों की सुर्खियों में ये लड़के हिंसा के रास्ते पर जा रहे थे. हम वह तस्वीर बदलना चाहते थे.” और अप्रैल की घटना के बावजूद, क्लब का यह मिशन अब भी बरकरार है.