जर्मनी अनपढ़ता से जूझ रहा है. इतनी बड़ी तादाद में लोग पढ़ने लिखने से लाचार हैं कि अब यह एक समस्या बन चुका है. कोशिशें हो रही हैं लेकिन वे नाकाफी हैं.
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जर्मनी जैसे अमीर, ताकतवर और आधुनिक देश में अनपढ़ता कोई मुद्दा हो सकता है, तीसरी दुनिया के लोगों को ख्याल भी नहीं आएगा. लेकिन जर्मनी में यह एक बड़ी समस्या है. लाखों जर्मन अनपढ़ हैं और अब यह देश के लिए समस्या बन रहा है.
कवियों और दार्शनिकों का यह देश अनपढ़ता से जूझ रहा है. देश के नौ फीसदी लोग ऐसे हैं जो तीसरी क्लास के स्तर से ज्यादा ना पढ़ सकते हैं और ना लिख सकते हैं. 2011 में हैम्बुर्ग यूनिवर्सिटी का एक सर्वे आया था जिसके मुताबिक 75 लाख लोग एकदम अनपढ़ हैं.
फेडरल असोसिएशन फॉर अल्फाबेटाइजेशन एंड बेसिक एजुकेशन के निदेशक राल्फ हेडर कहते हैं कि देश में लोगों के अनपढ़ रह जाने की एक से ज्यादा वजह हैं. वह बताते हैं, "हमेशा तो नहीं लेकिन अक्सर यह बात जरूरी हो जाती है कि लोगों का लालन-पालन कैसे हुआ है. क्या घर में पढ़ाई-लिखाई होती थी? क्या उनके माता-पिता पढ़े-लिखे थे? कुछ परिवार हैं जो शिक्षा को जरूरी नहीं मानते. इसलिए बच्चों को अगर स्कूल में कोई दिक्कत हुई तो घर पर किसी तरह का सहयोग नहीं मिल पाएगा. और जर्मन शिक्षा व्यवस्था ऐसी है कि अच्छे छात्रों पर ही केंद्रित हो जाती है. कई बार लोगों की त्रासदी भी वजह बन जाती है. जैसे कि अगर कोई बच्चा स्कूल शुरू करने के दौरान अपनी मां खो दे तो बहुत संभव है कि वह पीछे छूट जाएगा."
आगे बढ़ने से पहले जानिए, कौन से हैं दुनिया के सबसे अनपढ़ देश
दुनिया के सबसे अनपढ़ देश
यूनेस्को के स्टैटिस्टिक्स डिपार्टमेंट के 2015 के आंकडो़ं के मुताबिक दुनिया में 15 वर्ष से अधिक के 86.3% लोग पढ़े लिखे हैं. 90% पुरुष, 82.7% महिलाएं. और ये रहे सबसे अनपढ़ देश. जानिए, इन देशों में कितने लोग पढ़े लिखे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Themendienst
लाइबेरिया, 47.6%
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आइवरी कोस्ट, 43.1%
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चाड, 40%
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माली, 38.7%
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बेनिन, 38.4%
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अफगानिस्तान, 38.2%
तस्वीर: Sirat
सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, 36.8%
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बुरकीना फासो, 36%
तस्वीर: DW/K. Gänsler
गिनी, 30.4%
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नाइजर, 19.1%
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वैसे, अब समस्या पर ध्यान बढ़ गया है तो हल खोजने की कोशिशें भी शुरू हो गई हैं. शिक्षा और अनुसंधान मंत्रालय के प्रवक्ता मार्कुस फेल्स बताते हैं कि 2015 में ही केंद्र सरकार और 16 राज्यों ने 10 वर्ष लंबी एक योजना शुरू की है. डेकेड ऑफ अल्फाबेटाइजेशन नाम की इस योजना पर 18 करोड़ यूरो खर्च करने का प्रावधान है. रकम जितनी बड़ी लगती है उतनी है नहीं. हेडर कहते हैं कि इतनी रकम में से हर प्रभावित के हिस्से रोजाना के मात्र ढाई यूरो आएंगे. वह कहते हैं, "यह तो बेहद कम है. अगर हम 75 लाख लोगों की बात करें तो यह विशाल आबादी है और उसके मुकाबले रकम बहुत मामूली." हेडर का तर्क है कि प्रभावशाली शिक्षा प्रोग्राम शुरू करने और फिर लोगों को उन तक लाने के लिए प्रेरित करने के वास्ते कहीं ज्यादा बड़ी रकम की जरूरत होगी.
तस्वीरों में, सबसे खतरनाक स्कूल
सबसे खतरनाक स्कूल
खतरनाक चट्टानें, सर्पीली पगडंडियां या फिर मुश्किल से नदी पार करना, कई देशों में हजारों गरीब बच्चे आज भी इसी तरह स्कूल जाते हैं. ग्रामीण इलाकों के इन बच्चों के पास और कोई विकल्प भी नहीं है.
तस्वीर: Senator Film Verleih, Berlin
चट्टान और मौत पर चढ़ाई
चीन के शिचुआन प्रांत के अतुलेर गांव का एक स्कूल शायद दुनिया का सबसे खतरनाक स्कूल है. हर दिन बच्चों को बेहद कड़ी 800 मीटर की चढ़ाई चढ़ स्कूल जाना पड़ता है, वापसी में इसी रास्ते से नीचे भी उतरना पड़ता है.
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तीन घंटे का सफर
स्कूल पहुंचने में बच्चों को करीब डेढ़ घंटा लगता है. पथरीली चट्टान में कुछ जगहों पर लकड़ी के तख्तों वाली सीढ़ी भी लगाई गई है. भीगने के बाद फिसलने वाली इस कामचलाऊ सीढ़ी से गिरकर कई लोगों की मौत हो चुकी है. अब आखिरकार शिचुआन की प्रांतीय सरकार ने स्टील की सीढ़ियां लगाने का वादा किया है.
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अकेला मामला नहीं
अतुलेर का स्कूल अपवाद नहीं है. दक्षिणी चीन के गुआंशी प्रांत में भी बहुत से बच्चों को हर दिन दो घंटे पहाड़ी रास्ते पर चलकर स्कूल पहुंचना पड़ता है. नोग्योंग के इस पहाड़ी रास्ते में कोई रैलिंग वगैरह भी नहीं है.
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निर्धन हैं, पर निराश नहीं
चीन के गुलु नेशनल जियोपार्क के पास बसे पहाड़ी गांव गुलु के बच्चे हर दिन ऐसे ही स्कूल जाते हैं. पहाड़ी पगडंडी वाला यह रास्ता कुछ जगहों पर दो फुट चौड़ा है. एक तरफ चट्टान है तो दूसरी तरफ गहरी खाई और वहां उफनती नदी.
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ट्यूब का सहारा
टायर ट्यूब कितनी अहम होती है, इसका जबाव दुनिया भर में दूर दराज के इलाकों में बिना गाड़ियों के रहने वाले लोगों से पूछिये. फिलिपींस में बच्चे टायरट्यूब में हवा भरकर नदी पार करते हैं. बच्चे इस बात का भी ख्याल रखते हैं, उनकी यूनिफॉर्म गीली न हो.
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रस्सी पर
इंडोनेशिया के ही लेबना हुंग जिले में कई बार आर पार जाने के लिए सिर्फ रस्सी बचती है. नदी पार स्कूल जाने के लिए रस्सी वाले जुगाड़ को पार करना ही पड़ता है. अब वहां पुल बनाया जा रहा है.
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पानी के ऊपर
इंडोनेशिया के बोयोलाली के बच्चे हर दिन पेपे नदी के ऊपर संतुलन साधते हुए 30 मीटर नदी पार करते हैं. साइकिल हो तो और सावधानी से रास्ता पार करना पड़ता है.
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तरह तरह के जुगाड़
फिलिपींस के एक पिछड़े गांव में बच्चे बांस की जुगाड़ु नाव के सहारे रिजाल नदी पारकर स्कूल जाते हैं. ये हाल सिर्फ यहीं का नहीं है, देश के दूसरे पिछड़े इलाकों में भी हालात ऐसे ही हैं.
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जज्बे को सलाम
पढ़ाई के लिए हर दिन ऐसे हालात से सिर्फ गुलु के बच्चे ही नहीं गुजरते हैं. मोरक्को की जाहिरा हर दिन 22 किलोमीटर का पथरीला रास्ता पार करती है. स्कूल आने जाने में ही उसे चार घंटे लगते हैं.
तस्वीर: Senator Film Verleih, Berlin
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हेडर बताते हैं कि अपनढ़ता से लड़ने की जिम्मेदारी सबसे पहले तो प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों की है. उन्हें पढ़ाई और लिखाई के लिए कोर्स शुरू करने होते हैं. लेकिन इन कोर्सेज के बारे में जानकारी जनता तक पहुंचाने के लिए कुछ नहीं मिलता है. जो लोग कोर्स में दाखिला लेते हैं, वे तो कुछ फीस नहीं देते लेकिन केंद्रों को तो क्लासरूम भी चाहिए और अध्यापक भी. और क्लास में लोगों की संख्या भी ज्यादा नहीं हो सकती. हेडर कहते हैं, "लिटरेसी कोर्स में 6 से 8 छात्र अधिकतम हो सकते हैं. जो अनपढ़ लोग हैं, वे भी बहुत अलग अलग तरह के हैं. मसलन कुछ हैं जो अक्षरों को पहचान ही नहीं सकते. कुछ हैं जो थोड़ा बहुत पढ़ लेते हैं लेकिन लिख नहीं पाते. सबको एक जैसे कोर्स में नहीं डाला जा सकता. ये तो वैसा ही हो जाएगा कि पहली से चौथी क्लास एक ही जगह, एक साथ पढ़ाई जा रही हो."
हेडर के मुताबिक निजी शिक्षण संस्थाएं, चर्च और स्वयंसेवी संस्थाएं इस मामले में बेहतर काम कर सकती हैं. लेकिन चुनौती यह भी है कि अनपढ़ लोगों को जागरूक किया जाए. फिलहाल लिटरेसी कोर्सों में 20 हजार लोगों ने पंजीकरण करा रखा है. अगर अनपढ़ों की संख्या 75 लाख है तो फिर 20 हजार तो ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है. यानी बड़े पैमाने पर क्रांतिकारी बदलाव की जरूरत होगी.
मिलिए इन लोगों से, जो स्कूल में पीछे रहे पर जिंदगी में अव्वल
स्कूल में पीछे, जिंदगी में अव्वल
अच्छे स्कूल और कॉलेज से पढ़ाई पूरी करना सफलता की कोई गारंटी नहीं है. मौलिक विचार, कल्पनाशीलता, मेहनत और लगन हो तो इंसान बुलंदियों को छू सकता है. एक नजर स्कूल में नाकाम और जिंदगी में अव्वल रहने वाली हस्तियों पर.
तस्वीर: Toshifumi Kitamura/AFP/Getty Images
अल्बर्ट आइनस्टाइन
सापेक्षता समेत कई बड़े सिद्धांत देने वाले आइनस्टाइन ने 15 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया. साल भर बाद उन्होंने स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट की प्रवेश परीक्षा दी, जिसमें नाकामी हाथ लगी. इसके बाद आइनस्टाइन ऐसे स्कूल वापस लौटे जहां कल्पनाशीलता को समीकरण रटने से ज्यादा महत्व दिया जाता था.
तस्वीर: ullstein bild - AISA
थॉमस एडिसन
बिजली का बल्ब, फोनोग्राम और मोशन पिक्चर कैमरा जैसी क्रांतिकारी मशीनें बनाने वाले एडिसन के नाम 1,000 से ज्यादा पेटेंट हैं. बीमार रहने के कारण उन्होंने काफी देर से स्कूल जाना शुरू किया. स्कूल ने भी तीन महीने बाद ही उन्हें बाहर निकाल दिया. एडिसन की मां खुद एक टीचर थीं, उन्होंने अपने बेटे को घर पर ही पढ़ाया.
तस्वीर: picture-alliance/United Archives/TopFoto
वॉल्ट डिज्नी
वॉल्ट डिज्नी दिन में स्कूल जाते और रात में शिकागो की कला अकादमी. यह सिलसिला ज्यादा लंबा नहीं चला. 16 साल की उम्र में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया. फर्जी बर्थ सर्टीफिकेट बनाकर वह अमेरिका से फ्रांस पहुंचे और रेड क्रॉस की एंबुलेंस चलाने लगे. एंबुलेंस में कार्टून के चित्र भरे पड़े थे. यहीं से वॉल्ट डिज्नी को कार्टूनों का आइडिया आया. देखते देखते उन्होंने सिनेमा में डिज्नी साम्राज्य खड़ा कर दिया.
कॉमेडी के सर्वकालीन महान अदाकार माने जाने वाले चार्ली चैप्लिन ने भी 13 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया. मां-बाप के निधन के बाद परिवार का पेट पालने के लिए वो स्टेज शो करने लगे. स्टेज शो में उन्हें मसखरे की भूमिका मिलती. लेकिन यही भूमिका धीरे धीरे उन्हें शिखर पर ले गई.
तस्वीर: Roy Export Company Establishment
चार्ल्स डिकेंस
अंग्रेजी के महान लेखकों में शुमार चार्ल्स डिकेंस के पिता को कर्ज के कारण जेल हो गई. घर का खर्च चलाने के लिए 12 साल के डिकेंस ने स्कूल छोड़ दिया और बूट ब्लैकिंग फैक्ट्री में 10 घंटे रोज की नौकरी शुरू कर दी. इसके बाद वो कई नौकरियों और अनुभवों से गुजरे और समाज के गहरे विश्लेषण ने उन्हें कहानीकार बना दिया.
तस्वीर: picture-alliance/empics
बेंजामिन फ्रैंकलिन
बेंजामिन फ्रैंकलिन की राजनीति, कूटनीति, लेखन, प्रकाशन, विज्ञान और अमेरिका की आजादी में अहम भूमिका रही. वह अपने परिवार के 15वें बच्चे थे. गरीबी के चलते 10 साल की उम्र में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और प्रिंटिंग में पिता व भाई का हाथ बंटाने लगे.
तस्वीर: Getty Images
हेनरी फोर्ड
फोर्ड की कारें तो आपने देखी ही होंगी, इनके जनक हेनरी फोर्ड हैं. उन्हें आधुनिक उद्योगों का जनक भी कहा जाता है. 16 साल की उम्र में फोर्ड ने स्कूल छोड़ दिया. खाली वक्त में वह घड़ियों के पुर्जे खोलते और जोड़ते रहे. बाद में फोर्ड ने ऑटोमोबाइल उ्द्योग में पहली बार एसेंबली लाइन इस्तेमाल की.
तस्वीर: Topical Press Agency/Getty Images
बिल गेट्स
हावर्ड यूनिवर्सिटी के सबसे मशहूर ड्रॉपआउट छात्र होने का श्रेय माइक्रोसॉफ्ट के जनक बिल गेट्स को जाता है. कॉलेज की पढ़ाई छोड़ने के दो साल बाद गेट्स ने अपने बचपन के मित्र पॉल एलन (तस्वीर में बाएं) के साथ माइक्रोसॉफ्ट की स्थापना की. दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों में शुमार गेट्स ने अपने सॉफ्टवेयरों को जरिये कंप्यूटर को कैलकुलेटर से आगे बढ़ाया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Microsoft
स्टीव जॉब्स
आईफोन, आईपॉड और मैकबुक जैसी मशीनें बनाने वाले एप्पल के सह संस्थापक जॉब्स ने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी. इस दौरान उन्होंने कला की कक्षाओं में बिना दाखिले के जाना शुरू कर दिया. इंजीनियरिंग से प्यार करने वाले जॉब्स के मुताबिक कला की कक्षा ने उन्हें अद्वितीय खूबसूरती की परिभाषा सिखाई.
तस्वीर: Flickr/sa-by-Ben Stanfield
अजीम प्रेमजी
दयालु और दिलदार भारतीय कारोबारियों में गिने जाने वाले अजीम प्रेमजी से 21 की उम्र में कॉलेज छोड़ दिया. प्रेमजी ने अपनी कंपनी विप्रो शुरू की. आज विप्रो की कीमत 11 अरब डॉलर से ज्यादा है. प्रेमजी अपने आधे शेयर दान करने का एलान कर चुके हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Jagadeesh Nv
कर्नल हारलैंड सैंडर्स
हारलैंड सैंडर्स की उम्र सिर्फ छह साल थी जब उनके पिता की मौत हुई. मां दिन भर काम करती और साथ ही पूरे परिवार के लिए खाना भी बनाती. परिवार चलाने के लिए उन्होंने स्कूल के बजाए कई काम करने शुरू किये. इसी दौरान उन्हें नौकरीपेशा लोगों को फ्राइड चिकन बेचने का आइडिया आया. आज दुनिया भर में उनके आउटलेट्स केएफसी (कनटकी फ्राइड चिकन) के नाम से जाने जाते हैं.
तस्वीर: AP
रिचर्ड ब्रैनसन
डिसलेक्सिया के रोगी ब्रैनसन को पढ़ाई में काफी परेशानी होती थी. 16 साल में स्कूल छोड़ वो लंदन आए जहां उन्होंने कारोबार के गुर सीखे. वर्जिन अटलांटिक एयरवेज, वर्जिन रिकॉर्ड्स, वर्जिन मोबाइल जैसे कंपनियां खड़ी करने के बाद अब वह आम लोगों के लिए अंतरिक्ष यात्रा मुमकिन करने की तैयारी कर रहे हैं.
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जेम्स कैमरन
अवतार और टाइटैनिक जैसी सिनेमा जगत की सबसे बड़ी फिल्में बनाने वाले निर्देशक जेम्स कैमरन भी कैलिफोर्निया में अपनी फिजिक्स की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए. उन्होंने कॉलेज छोड़ा, एक वेटर से शादी की और रोजी रोटी के लिए ट्रक चलाने लगे. 1977 में उन्होंने स्टार वॉर्स फिल्म देखी और वहीं से वह रुपहले पर्दे की ओर खिंचे चले आए.
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कपिल देव
क्रिकेट में वेस्ट इंडीज की बादशाहत खत्म करने और पहली बार भारत को विश्व कप दिलाने वाले कपिल देव भी स्कूली पढ़ाई पूरी नहीं कर सके. भारत के बेहतरीन ऑल राउंडरों में गिने जाने वाले कपिल को हालांकि इस बात का आज भी मलाल है.
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राजकुमारी डायना
डायना स्पेंसर ने 16 साल की उम्र में ब्रिटेन छोड़ दिया और स्विट्जरलैंड के एक स्कूल में दाखिला लिया. वहां भी वह पढ़ाई पूरी नहीं कर सकीं. वह गायिकी और बेले डांस की शौकीन थी. बाद में ब्रिटेन लौटकर उन्होंने एक डे केयर सेंटर में नौकरी की, जहां उनकी मुलाकात राजकुमार चार्ल्स से हुई. शादी के बाद डायना राजकुमारी बन गईं. उनकी खूबसूरती और दरियादिली आज भी लोगों के जेहन में है.
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सचिन तेंदुलकर
क्रिकेट के महानतम बल्लेबाजों में शुमार सचिन तेंदुलकर ने 10वीं के बाद स्कूली पढ़ाई छोड़ दी. बेहतरीन बल्लेबाजी के चलते 16 साल की उम्र में वो भारतीय टीम के सदस्य बने और इसके बाद तो उनके बल्ले से कीर्तिमान बरसते चले गए.
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मार्क जकरबर्ग
फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग ने भी कॉलेज बीच में ही छोड़ दिया. कॉलेज के दिनों में जकरबर्ग एक लड़की को खोजना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने एक सोशल नेटवर्किंग साइट बनाई. दुनिया आज इसे फेसबुक के नाम से जानती हैं. फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक जकरबर्ग दुनिया के सबसे अमीर युवा हैं. आज दुनिया भर में फेसबुक के एक अरब से ज्यादा यूजर हैं.
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लेडी गागा
उनका असली नाम स्टेफनी योआने एंजेलिना जर्मनोटा है. न्यूयॉर्क में आर्ट्स की पढ़ाई करने वाली स्टेफानी ने संगीत उद्योग में अपना करियर बनाने के लिए कॉलेज बीच में ही छोड़ दिया. वह न्यूयॉर्क के क्लबों में परफॉर्म करने लगीं. 20 साल की उम्र में उन्होंने इंटरस्कोप रिकॉर्ड्स के साथ करार किया. आज लेडी गागा दुनिया के सबसे मशहूर गायकों में गिनी जाती हैं.