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भारत में आबादी के साथ बढ़ रहा है बेरोजगारी का संकट

३१ मई २०२३

भारत की युवा आबादी को जनसंख्या लाभ कहा कहा जाता है लेकिन यह लाभ राख में दबी चिंगारी भी साबित हो सकता है.

बेरोजगारी भारत की बड़ी समस्या होगी
बेरोजगारी भारत की बड़ी समस्या होगीतस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS

गर्म शाम है और 23 साल के निजामुद्दीन अब्दुल रहीम खान मुंबई के रफीक नगर में क्रिकेट खेल रहे हैं. इस झुग्गी बस्ती में भारत के तेज विकास की झलक नहीं मिलती. एशिया के सबसे बड़े कूड़ाघर से लगते रफीक नगर में करीब आठ लाख लोग रहते हैं. छोटे-छोटे घर हैं. तंग गलियां हैं और अंधेरे कमरे.

इस इलाके के लोगों की सबसे बड़ी चुनौती है, नौकरी खोजना. इलाके में एक गैर सरकारी संस्था चलाने वाले नसीम जाफर अली कहते हैं कि नौकरी नहीं मिलती इसलिए ये युवा दिनभर भटकते रहते हैं.

कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में शहरी बेरोजगारी दर अप्रैल से जून 2020 की तिमाही में 20.9 फीसदी पर पहुंच गई थी. तब से बेरोजगारी दर तो कम हुई है लेकिन नौकरियां कम ही उपलब्ध हैं. अर्थशास्त्री कहते हैं कि नौकरी खोजने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है.

खासकर युवा आबादी कम वेतन वाला कच्चा काम खोज रहे हैं या फिर अपना कोई छोटा-मोटा काम कर रहे हैं जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. यह हालात तब हैं जबकि देश की विकास दर दुनिया में सबसे ज्यादा 6.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया जा रहा है.

आबादी है, नौकरी नहीं

लगभग 1.4 अरब लोगों की आबादी के साथ भारत चीन को पीछे छोड़ दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन रहा है. इस आबादी का आधे से ज्यादा यानी लगभग 53 फीसदी 30 साल से कम आयु के हैं. भारत के इस जनसंख्या-लाभ की चर्चा सालों से हो रहे हैं लेकिन नौकरियां ना होने के कारण करोड़ों युवा अर्थव्यवस्था पर बोझ बनते जा रहे हैं.

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आर्थिक शोध एजेंसी आईसीआरआईईआर में फेलो राधिका कपूर कहती हैं, "बेरोजगारी तो समस्या का चेहरा मात्र है. जो उस चेहरे के पीछे छिपा है, वह अंडरइंपलॉयमेंट और अपरोक्ष बेरोजगारी का विशाल संकट है.”

मसलन, खान इमारतें बनाने वगैरह में मजदूरी करते हैं और हर महीने दस हजार रुपये तक कमाते हैं ताकि अपने पिता की मदद कर सकें. वह कहते हैं, "अगर मुझे पक्की नौकरी मिल जाए तो कोई समस्या ही नहीं रहेगी.”

भारत एक दुष्चक्र में फंसने का खतरा झेल रहा है. अगर रोजगार दर कम होती रही तो आय कम होगी और आय कम हुई तो युवाओं और बढ़ती आबादी के लिए नये रोजगार पैदा करने के लिए धन उपलब्ध नहीं होगा.

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अर्थशास्त्री जयति घोष कहती हैं कि देश का जनसंख्या-लाभ एक सुलगती हुई चिंगारी है. वह कहती हैं, "हमारे पास कितने सारे लोग हैं जो पढ़े लिखे हैं, जिनकी पढ़ाई के लिए उनके परिवार ने पैसा खर्च किया है लेकिन आज उनके पास नौकरी नहीं है, यह तथ्य बेहद डरावना है. यह सिर्फ अर्थव्यवस्था के संभावित नुकसान का सवाल नहीं है, यह पूरी पीढ़ी के नुकसान की बात है.”

छोटे उद्योग धराशायी

भारत के शहरों में बेरोजगारी और ज्यादा कठोर है, जहां महंगाई कमरतोड़ हो चुकी है और जॉब गारंटी जैसी किसी सरकारी योजना के रूप में कोई भरोसा उपलब्ध नहीं है. फिर भी, ग्रामीण भारत से बड़ी संख्या में युवा नौकरी के लिए शहरों की ओर जा रहे हैं.

जनवरी से मार्च की तिमाही में बेरोजगारी दर 6.8 फीसदी थी जबकि दिसंबर में पूर्णकालिक काम करने वाले शहरी कामगारों की संख्या घटकर 48.9 प्रतिशत रह गई थी. महामारी शुरू होने से ठीक पहले यह 50.5 फीसदी थी.

इसका अर्थ है कि देश की कुल काम करने लायक आबादी यानी 15 करोड़ में से सिर्फ 7.3 करोड़ लोगों के पास पूर्णकालिक काम है. शहरी क्षेत्रों में पूर्णाकालिक काम करने वाले लोगों के लिए महंगाई दर के आधार पर गणना के बाद अप्रैल से जून के बीच औसत मासिक वेतन 17,507 रुपये आता है. यह अक्तूबर-दिसंबर 2019 यानी महामारी की शुरुआत से ठीक पहले के मुकाबले 1.2 फीसदी ज्यादा है.

मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता जयति घोष और सीपी चंद्रशेखर का शोध कहता है कि जो लोग अपना रोजगार करते हैं, उनकी औसत मासिक आय अप्रैल से जून 2022 की तिमाही के बीच गिरकर मात्र 14,762 रुपये रह गई थी. अक्तूबर-दिसंबर 2019 की तिमाही में यह 15,247 थी.

बेटे की चाहत में बढ़ती भारत की आबादी

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घोष कहती हैं, "एक बड़ी बात ये हुई है कि छोटे व्यवसाय धराशायी हो गए हैं, जो रोजगार की रीढ़ की हड्डी होते हैं.” 2016 में भारत सरकार ने देश की 86 फीसदी करंसी नोटों को रद्दी के टुकड़ों में बदलते हुए डिमोनेटाइजेशन का ऐलान किया था. उस फैसले ने छोटे व्यापारियों पर करारी चोट की, जिसके बाद आई महामारी ने सब तहस-नहस कर दिया.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2022-23 में दस हजार से ज्यादा अति लघु, लघु और मध्यम दर्जे के व्यवसाय बंद हुए. उसे बीते साल 6,000 उद्योगों पर ताला पड़ा था. लेकिन सरकार ने यह नहीं बताया कि इस दौरान नये व्यवसाय कितने खुले.

एचएसबीसी में मुख्य अर्थशास्त्री प्रांजल भंडारी ने एक लेख में लिखा है कि भारत को अगले दस साल में सात करोड़ नौकरियां पैदा करनी होंगी. लेकिन गुंजाइश बस 2.4 करोड़ की दिखती है. यानी 4.6 करोड़ नये बेरोजगार होंगे. भंडारी ने लिखा, "इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो 6.5 फीसदी की विकास दर भारत में बेरोजागरी की समस्या का एक तिहाई ही हल कर पाएगी.”

वीके/सीके (रॉयटर्स)

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