भारत के फैसले से प्रवासी भारतीयों को आटा-चावल के लाले
विवेक कुमार, सिडनी से
६ अक्टूबर २०२२
भारत सरकार ने पिछले कुछ महीनों में गेहूं, आटा और चावल का निर्यात या तो रोक दिया है या उस पर कर लगा दिया है. उसका असर अब विदेशों में रहने वाले भारतीयों पर पड़ रहा है.
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जसु काना को ऑस्ट्रेलिया में रहते पांच साल हो गए हैं लेकिन आटा उन्हें एक खास भारतीय ब्रैंड का ही पसंद है. वह कहती हैं कि कोविड के दौरान जब लॉकडाउन हो गया था और सप्लाई कम हो गई थी, तब भी वह उस ब्रैंड के आटे के लिए सौ किलोमीटर दूर वूलनगॉन्ग से सिडनी जाया करती थीं. लेकिन अब उन्हें सिडनी में भी आटा नहीं मिलेगा.
डीडब्ल्यू से बातचीत में काना कहती हैं, "दुकानदार कह रहे हैं कि अब भारत से आटा नहीं आ रहा है. और कब तक आएगा, पता नहीं. कई जगह आटा खत्म हो चुका है.”
यह असर है भारत सरकार के उस फैसले का, जिसमें आटा और चावल के निर्यात पर बैन लगाया गया था. जुलाई में आटे के निर्यात पर बैन लगाया गया था और अगस्त में चावल का निर्यात कड़ा कर दिया गया. 7 जुलाई के अपने आदेश में विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने कहा था कि आटा निर्यातकों को अपना उत्पाद देश से बाहर भेजने से पहले सरकार की अनुमति लेनी होगी.
अधिसूचना जारी कर डीजीएफटी ने कहा, "गेहूं और आटे की आपूर्ति में वैश्विक गड़बड़ी ने कई नए खिलाड़ियों को जन्म दिया है जिसकी वजह से दाम ऊपर नीचे हुए हैं और गुणवत्ता से संबंधित भावी सवालों को भी जन्म दिया है. इसलिए भारत से निर्यात होने वाले आटे की गुणवत्ता सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है."
ये प्रतिबंध 12 जुलाई से लागू हुए और छह जुलाई से पहले जो माल सीमा शुल्क विभाग के पास पहुंच चुका था या जिसे जहाजों पर भरना शुरू कर दिया गया था, उसे ही निर्यात की अनुमति दी गई. कुछ अनुमान बताते हैं कि भारत ने इस साल अप्रैल में लगभग 96,000 टन आटा निर्यात किया, जो कि एक साल में निर्यात में भारी उछाल है. पिछले साल अप्रैल में सिर्फ 26,000 टन आटा निर्यात किया गया था. लेकिन 2022 में गेहूं निर्यात बढ़ा और उसी के साथ आटे का निर्यात भी बढ़ा. मई में जब भारत ने गेहूं का निर्यात रोक दिया तो निर्यातकों ने जम कर आटा निर्यात करना शुरू कर दिया था.
भारतीय दुकानों में आटा खत्म
उस पाबंदी का असर अब विदेशों में भारतीय माल बेचने वाली दुकानों पर नजर आने लगा है. वूलनगॉन्ग में एक इंडियन स्टोर चलाने वाले फणींद्र बताते हैं, "इस महीने तक तो आटा और चावल मिले हैं लेकिन अब आटा नहीं आ रहा है. मतलब, हमारे पास अब इंडियन आटा ब्रैंड नहीं होंगे.” फणींद्र कहते हैं कि अभी उनके पास दो महीने का स्टॉक है क्योंकि जुलाई में जो कंटेनर बैन लागू होने से पहले निकल गए थे, वे पहुंच रहे हैं.
एक किलो चिकन के लिए 4000 लीटर पानी!
फिलहाल पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिसपर जीवन मुमकिन है. इसकी एक बड़ी वजह है पानी की मौजूदगी. इसलिए इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए. लेकिन हम जो खाना खाते हैं, उसे उगाने में कितना पानी खर्च होता है, आइए जानते हैं.
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कॉफी 18,900 लीटर प्रति किलो
एक कप कॉफी के लिए 130 लीटर वर्चुअल पानी लगता है. कई देशों में कॉफी बहुत शौक से पी जाती है. दुनिया भर में करीब 85 अरब घन मीटर पानी का इस्तेमाल कॉफी की खेती के लिए इस्तेमाल होता है.
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चीज 10,000 लीटर प्रति किलो
चीज दूध का ही उत्पाद है. लेकिन उसके ज्यादा दिन तक टिकने की कीमत पानी से चुकानी पड़ती है. एक किलो चीज के लिए 10 किलो दूध लगता है. पार्मेजान जैसे बहुत कड़े चीज के लिए 16 लीटर दूध लगता है.
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चिकन 4,325 लीटर प्रति किलो
आम तौर पर एक मुर्गी को 38 दिन पाला जाता है. तब तक इसे चुग्गा पानी देना होता है. मुर्गियों को बड़ी संख्या में पिंजरे में पाला जाता है जिसकी देख रेख के लिए बहुत सारे पानी की जरूरत होती है.
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अंडे 3,300 लीटर प्रति किलो
एक अंडे में खर्च होने वाले पानी की मात्रा 200 लीटर है. मुर्गियों के खाने में इस्तेमाल होने वाला पानी भी इसमें शामिल है. सामान्य दुकानों में बिकने वाले अंडे पिंजरे की मुर्गियों से मिलते हैं. एक किलो गेहूं का चुग्गा बनाने के लिए 1,300 लीटर पानी चाहिए.
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चावल 2,500 लीटर प्रति किलो
दुनिया की आधी आबादी चावल पर निर्भर है. हर साल करीब 67 लाख टन चावल का उत्पादन होता है. चावल को उगाने से लेकर इसके बाजार में आने तक कम से कम ढाई हजार लीटर पानी की जरूरत पड़ती है.
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मक्का 2,450 लीटर प्रति किलो
मक्का, चावल और गेहूं हमारा मुख्य खाना हैं. दुनिया भर में करीब साढ़े 84 लाख टन मक्का होता है. एक किलो मक्का के उत्पादन पर भारत में 2,450 लीटर पानी लगता है, जबकि अमेरिका में 760 लीटर.
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गेहूं 1,300 लीटर प्रति किलो
मुख्य खाने का तीसरा अहम घटक है गेहूं. हर साल दुनिया भर में 65 लाख टन गेहूं होता है. जलवायु के हिसाब से पानी लगता है. स्लोवाकिया में एक किलो के लिए 465 लीटर तो सोमालिया में 18,000 लीटर की जरूरत पड़ती है.
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दूध 1,000 लीटर प्रति लीटर
हर साल दुनिया भर में 60 लाख टन दूध का उत्पादन होता है. लेकिन दूध निकालने और उसकी प्रोसेसिंग में कुल हजार लीटर पानी खर्च होता है. इसमें गाय के पीने और चारे लिए लगने वाला पानी भी शामिल है.
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वर्चुअल वॉटर
जर्मनी में हर व्यक्ति रोज औसतन 130 लीटर पानी का सीधे इस्तेमाल करता है. लेकिन इससे परे रोजमर्रा के उत्पादों पर खर्च होने वाला पानी भी है जो 4,000 लीटर प्रति व्यक्ति है. इसे वर्चुअल वॉटर कहा जाता है.
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इस कारण दाम भी बढ़ गए हैं. फणींद्र बताते हैं कि आटे और चावल के ही नहीं बल्कि उनसे बनने वाले उत्पादों के दाम भी बढ़ गए हैं. जैसे फ्रोजन नान और रोटी के दाम 2-4 डॉलर (यानी 110 से 220 रुपये) तक बढ़ चुके हैं. आने वाले दिनों में चावल की भी इसी तरह की कमी होने का अंदेशा है, जिसका असर कीमतों पर नजर आएगा.
फणींद्र के मुताबिक चावल के दाम पहले ही 20 प्रतिशत तक बढ़ चुके हैं. ऐसा भारत द्वारा चावल के निर्यात पर 20 फीसदी कर लगाने के बाद हुआ है. दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातक भारत ने सितंबर में टूटे चावल के निर्यात पर रोक लगा दी थी और अन्य किस्मों पर निर्यात कर 20 प्रतिशत कर दिया. औसत से कम मॉनसून बारिश के कारण स्थानीय बाजारों में चावल की बढ़ती कीमतों पर लगाम कसने के लिए यह फैसला किया गया.
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पूरी दुनिया में असर
ऑस्ट्रेलिया की स्थिति थोड़ी अलग है क्योंकि यहां चीजों का आयात यूरोप और अमेरिका से अलग होता है. यूरोप और अमेरिका में आयात ज्यादा बड़े पैमाने पर होता है और वहां आयात करने वाले भी ज्यादा हैं. ऑस्ट्रेलिया में जनसंख्या तुलनात्मक रूप से कम होने के कारण आयात भी कम होता है. लेकिन आटे की समस्या सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में नहीं बल्कि बाकी देशों में भी पेश आ रही है.
जर्मन शहर कोलोन में भारतीय खानपान में इस्तेमाल होने वाले चीजों की दुकान ‘शालिमार स्टोर' चलाने वाले बाबुराम अरनेजा ने बताया कि यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही सामान के सप्लाई की दिक्कत हो रही है और कई चीजों के दाम बढ़ गये हैं लेकिन भारत के गेंहू और चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद स्थिति और बिगड़ गई है.
गाय से नहीं, पौधों से बनने वाला दूध
भारत के ज्यादार घरों में गाय के दूध का इस्तेमाल होता है. लेकिन आजकल वीगन डायट का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है. साथ ही कई लोगों को पांरपरिक दूध में पाए जाने वाले लैक्टोस से एलर्जी भी होती है. ऐसे लोगों के पास कुछ विकल्प हैं.
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सोया का दूध
सभी प्लांट मिल्क की तुलना में सोया के दूध में सबसे ज्यादा प्रोटीन होता है. एक कप (240 एमएल) सोया के दूध में करीब 6 ग्राम प्रोटीन मिलता है. सोया मिल्क कैल्शियम और विटामिन डी से भी भरपूर होता है.
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बादाम का दूध
बादाम के दूध की दुनिया में काफी डिमांड है. यह इसलिए क्योंकि बादाम खुद काफी पोषक है. इसमें प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, विटामिन ई और गुणकारी मोनोअनसैचुरेटेड फैट होता है. एक कप आल्मंड मिल्क में करीब 1 ग्राम प्रोटीन होता है. बादाम का दूध बच्चों और वयस्कों दोनें के लिए अच्छा विक्लप है, जिन्हें गाय या दूसरे जानवरों के दूध से एलर्जी है.
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काजू का दूध
काजू के दूध का स्वाद मलाईदार होता है. यह विटामिन, खनिज, हेल्थी फैट और अन्य लाभकारी तत्वों से भरपूर है. यह इम्यूनिटी, दिल, आंख और त्वचा के लिए भी लाभदायक है.
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नारियल का दूध
कोकोनट मिल्क आजकल काफी ट्रेंड में है. यह सैचुरेटेड फैट से भरपूर होता है. एक कप नारियल के दूध में करीब 4 ग्राम प्रोटीन होता है. कोकोनट मिल्क का उपयोग अक्सर कई एशियाई व्यंजनों में किया जाता है.
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चावल का दूध
सोया, पारंपरिक दूध और नट्स की तुलना में चावल में बहुत कम एलर्जेन होते हैं. इसमें करीब 1 ग्राम (एक कप) प्रोटीन होता है. जिन लोगों को लैक्टोस से एलर्जी है, उनके लिए यह एक अच्छा विकल्प है.
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कीनूआ का दूध
कीनूआ एक तरह का अनाज है जिसे अक्सर सलाद के रुप में खाया जाता है. यह बाकी अनाजों की तुलना में ज्यादा प्रोटीन और फाइबर प्रदान करता है. यह ग्लूटेन-फ्री होता है और इसमें सभी आवश्यक अमीनो एसिड होते हैं. यह आयरन, मैग्नीशियम और जिंक से भरपूर है.
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ओट/जई का दूध
ओट मिल्क का स्वाद सौम्य और मलाईदार होता है. गाय के दूध की तुलना में ओट मिल्क में अधिक विटामिन बी-2 होता है. ओट/जई के दूध का इस्तेमाल मीठे और नमकीन दोनों प्रकार के व्यंजनों में किया जाता है. एक कप ओट मिल्क में करीब 4 ग्राम प्रोटीन होता है.
तस्वीर: Zacharie Scheuer/dpa/picture alliance
तीसी का दूध
बाजार में कई तरह के दूध के विकल्पों के बीच फ्लैक्स मिल्क भी मिलता है. फ्लैक्स मिल्क में डेयरी मिल्क के मुकाबले कम कैलोरी और कम फैट होता है.
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मटर का दूध
सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन चिंता की बात नहीं है क्योंकि इस दूध का स्वाद हरे मटर की तरह नहीं होता. मटर के दूध में एक तिहाई सैचुरेटेड फैट होता है. इसमें गाय के दूध की तुलना में 50 प्रतिशत ज्यादा कैल्शियम होता है.
तस्वीर: Nadezhda Soboleva/Zoonar/picture alliance
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डीडब्ल्यू से बातचीत में अरनेजा ने कहा, "चावल और आटे की दिक्कत ज्यादा बढ़ गई है. चीजें या तो मिल नहीं रहीं और अगर मिलती हैं तो ऊंची कीमत पर. अलग-अलग किस्मों के चावल के 10 किलो के पैकेट की कीमत 3 से 4 यूरो (250-350 रुपये) तक बढ़ गई है. आटे के लिए दिक्कत और ज्यादा है और प्रति 10 किलो 4-5 यूरो (300-400 रुपये) ज्यादा देने पर भी आटा जल्दी नहीं मिल रहा है."
अरनेजा कहते हैं कि इस कमी का असर मसालों और दालों की सप्लाई पर भी पड़ा है और उनकी आमद भी काफी घट गई है.
इसका फायदा स्थानीय उत्पादकों को हो रहा है क्योंकि लोगों को अब स्थानीय ब्रैंड्स खरीदने होंगे. फणींद्र कहते हैं, "यहां ऑस्ट्रेलिया के ब्रैंड्स को फायदा होगा क्योंकि उनका माल बिकेगा. हमारे ग्राहक इंडियन ब्रैंड्स पसंद करते हैं और वही मांगते हैं लेकिन वे होंगे नहीं तो लोकल ब्रैंड्स ही खरीदने पड़ेंगे. लेकिन डिमांड बढ़ेगी तो उनकी कीमत भी बढ़ जाएगी.”