क्या गांधी भारत के बीच से पाकिस्तान को गलियारा देना चाहते थे
ऋषभ कुमार शर्मा
२ अक्टूबर २०१९
महात्मा गांधी के बारे में कहा जाता है कि वे पाकिस्तान के दोनों हिस्सों के बीच भारत से होकर एक गलियारा देना चाहते थे. ये बात एक दम काल्पनिक है. गांधी का इस पूरे विवाद से कोई लेना देना ही नहीं था.
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सोशल मीडिया पर महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के बारे में ऐसी कई बातें फैलाई जा रही हैं, जिनका तथ्य से कोई लेना देना नहीं है. भारत का दक्षिणपंथी समुदाय गांधी और नेहरू को विलेन साबित करने में लगा है. इसी कड़ी में कई सारी ऐसी झूठ फैलाई जाती हैं जिससे गांधी को विलेन साबित किया जा सके. सोशल मीडिया के जमाने में लोग वॉट्सऐप और फेसबुक पर आए मैसेजों को सच मान अपनी राय कायम कर लेते हैं. हम आपको गांधी के बारे में चलने वाले कुछ झूठ और उनके पीछे की सच्चाई बताएंगे.
भ्रम- गांधी पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान को जोड़ने के लिए भारत के बीच से एक 16 किलोमीटर चौड़ा गलियारा देना चाहते थे.
सच- उस समय भारत के दोनों ओर स्थित पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच गलियारे का समर्थन करने की बात की सच्चाई जानने के लिए हमने पंजाब विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर राजीव लोचन से बात की. उन्होंने बताया, "दोनों पाकिस्तानों के बीच गलियारे की बात पहली बार 22 मई 1947 को जिन्ना ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के पत्रकार के सवाल के जवाब में कही थी. रॉयटर्स के पत्रकार ने सवाल पूछा कि क्या आपको नहीं लगता कि दोनों पाकिस्तान के बीच सड़क मार्ग के लिए भारत को गलियारा देना चाहिए. जिन्ना ने इसके जवाब में हामी भर दी. ये बात उन्होंने कांग्रेस के नेताओं के साथ किसी आधिकारिक बातचीत में कभी नहीं कही.
जून, 1947 में ब्रिटिश सरकार ने कहा कि भारतीयों को बड़ा दिल दिखाकर पाकिस्तान को गलियारा दे देना चाहिए. तब पहली बार कांग्रेस की तरफ से पी राजगोपालाचारी ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया था. न्यूज एजेंसी एसोसिएट प्रेस से राजगोपालाचारी का कहना था कि यह एकदम गैरजरूरी मांग है जिस पर बात नहीं की जाएगी. नेहरू ने भी जिन्ना की इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया था. गांधी इस पूरी बातचीत में कहीं नहीं थे. नेहरू और राजगोपालाचारी के इस मांग को खारिज करने के बाद यह बात कभी गांधी के सामने आई ही नहीं. गांधी ने इस मांग पर कभी कोई बयान नहीं दिया था. यहां तक की जिन्ना के समर्थक रहे हैदराबाद के निजाम ने भी जिन्ना की इस मांग को बेवकूफी भरी मांग बताया. उन्होंने इस विवाद के लिए रॉयटर्स के संवाददाता के लोडेड सवाल को जिम्मेदार बताया. 1 नवंबर 1953 को टाइम्स ऑफ इंडिया को इंटरव्यू देते हुए कहा कि निजाम ने इस मांग के लिए जिन्ना को फटकार लगाई थी." तो गांधी के बारे में फैलाई गई इस बात में कोई सच्चाई नहीं है.
इस लेख में दी गई कई जानकारियां गांधी सेवाग्राम आश्रम, वर्धा की वेबसाइट, मार्क शेपर्ड की किताब 'गांधी और उनसे जुड़े झूठ' और पंजाब विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजीव लोचन के साथ बातचीत पर आधारित हैं.
इंग्लैंड जाकर कानून की पढ़ाई करने वाले मोहनदास करमचंद गांधी के जीवन के वो पड़ाव जिन्होंने उन्हें महात्मा बना दिया.
तस्वीर: AP
घर से शुरू हुआ आंदोलन
अपने सबसे छोटे बेटे देवदास के साथ बापू. यह तस्वीर 1931 में लंदन में ली गई. महात्मा गांधी ने अपने परिवार पर वही अनुशासन लागू किया जो बाकी दुनिया से चाहा.
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...जब लौटे भारत
यह तस्वीर 1915 में ली गई जब मोहनदास करमचंद गांधी अपनी पत्नी कस्तूरबा के साथ दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे. भारत आने के बाद उन्हें रवींद्र नाथ टैगोर ने पहली बार महात्मा कह कर पुकारा. इसके बाद ही उन्हें महात्मा गांधी के नाम से जाना जाने लगा.
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खिंचे चले आते थे लोग
1944 में ब्रिटिश अधिकारियों से बातचीत करने जब बापू मुंबई आए तो रेलवे स्टेशन पर उनका जोरदार स्वागत हुआ. हजारों लोग सिर्फ उनकी एक झलक पाने के लिए मीलों पैदल चलकर आए थे.
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मन में जन जन
मैं जितनी बार चरखे से सूत निकालता हूं उतनी ही बार भारत के गरीबों का विचार करता हूं: गांधी
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झुकने को तैयार
आजादी से पहले भारत में सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ गया. जगह जगह हिंदू मुस्लिम दंगे होने लगे. इन परिस्थितियों में 1944 में गांधी जी मुस्लिम लीग के प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना के पास गए. जिन्ना ने बेहद आदर के साथ गांधी की एक एक बात सुनी.
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किया, फिर कहा
"सत्य से ऊपर कोई भगवान नहीं है. ताकत शारीरिक क्षमता से नहीं आती है. ताकत अदम्य इच्छाशक्ति से आती है." गांधी ने जो कहा, उसे पहले कर के दिखाया. फिल्म 'गांधी' में बेन किंग्सले.
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सीमाओं से परे
''यदि भारत ने हिंसा को अपना धर्म स्वीकार कर लिया और यदि उस समय मैं जीवित रहा, तो मैं भारत में नहीं रहना चाहूंगा. तब वह मेरे मन में गर्व की भावना उत्पन्न नहीं करेगा.'' इतनी बड़ी बात कहने वाला आदमी ही जाति, धर्म और देश की सीमाओं से परे जन जन के मन पर राज कर सकता है. जोहानिसबर्ग में बापू की मूर्ति.
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अब कहां हैं गांधी?
''संस्था जितनी बड़ी होगी, उसके दुरुपयोग की संभावनाएं भी उतनी ही बड़ी होंगी. लोकतंत्र एक बड़ी संस्था है, इसलिए उसका दुरुपयोग भी बहुत हो सकता है.लेकिन उसका इलाज लोकतंत्र से बचना नहीं, बल्कि दुरुपयोग की संभावना को कम से कम करना है.'' आज गांधी कहां हैं?
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भविष्य देखने वाला
''विदेशी भाषा के माध्यम ने बच्चों के दिमाग को शिथिल कर दिया है, उनके स्नायुओं पर अनावश्यक जोर डाला है, उन्हें रट्टू और नकलची बना दिया है तथा मौलिक कार्यों और विचारों के लिए सर्वथा अयोग्य बना दिया है. इसकी वजह से वे अपनी शिक्षा का सार अपने परिवार के लोगों तथा आम जनता तक पहुंचाने में असमर्थ हो गए हैं.''
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बापू के कुछ दुख
भारत पाकिस्तान विभाजन के वक्त हुए दंगों से गांधी जी इतने दुखी हुए कि वह आमरण अनशन पर बैठ गए. छह दिन बाद 18 जनवरी 1948 को जब हिंदू, मुस्लिम और सिख नेताओं ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह शांति बहाल कराएंगे तो बापू के पेट में अन्न का दाना गया.
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किसने कितना समझा
30 जनवरी 1948, हिंदू कट्टरपंथियों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी. कट्टरपंथी गांधी जी के धार्मिक सहिष्णुता के सिद्धांत के विरोधी थे. दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले साबरमती के संत को अपने ही देश के कुछ लोग नहीं समझ पाए.
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गांधी की आजादी
''सच्चा स्वराज्य थोड़े लोगों के द्वारा सत्ता प्राप्त कर लेने से नहीं बल्कि जब सत्ता का दुरुपयोग होता हो तब सब लोगों के द्वारा उसका प्रतिकार करने की क्षमता प्राप्त करके हासिल किया जा सकता है.आजादी नीचे से शुरू होनी चाहिए.''
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बापू होते तो...
गांधी जी की हत्या के आरोपियों पर चले मुकदमे की सुनवाई लाल किले में हुई. नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा हुई. गोपाल गोडसे को उम्रकैद हुई. कुछ आलोचक कहते हैं कि हत्यारों को फांसी देने का फैसला करते ही भारत ने बापू के अहिंसा के विचारों को तिलाजंलि दे दी.
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एक सवाल
महात्मा गांधी अब विचारों, तस्वीरों और मूर्तियों में हैं. दुनिया के 20 से ज्यादा देशों के किसी एक प्रमुख शहर में गांधी जी की प्रतिमा दिखाई पड़ती है. लेकिन भारत में गांधी कहां बचे हैं? आप पूछते हैं खुद से यह सवाल?