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विज्ञानसंयुक्त राज्य अमेरिका

क्या शुक्र पर महासागर थे, मिल गया जवाब

३ दिसम्बर २०२४

शुक्र और धरती इतने एक जैसे हैं कि उन्हें बहनें कहा जाता है. इसलिए यह सवाल अक्सर उठता रहा है कि क्या शुक्र पर भी महासागर रहे होंगे. इस सवाल का जवाब मिल गया है.

शुक्र ग्रह की कंप्यूटर से बनाई गई तस्वीर
शुक्र के ज्वालामुखियों ने खोले राजतस्वीर: Cover-Images/IMAGO

धरती एक महासागरीय ग्रह है, जिसकी सतह का 71 फीसदी हिस्सा पानी से ढका है. शुक्र, जो हमारा नजदीकी ग्रह है, अक्सर अपने आकार और चट्टानी संरचना के कारण धरती का जुड़वां कहा जाता है. लेकिन क्या शुक्र, जो आज जला हुआ और बंजर है, कभी महासागरों से ढका हुआ था? 

नए शोध के अनुसार इसका जवाब है - नहीं. शोधकर्ताओं ने शुक्र के वायुमंडल की रासायनिक संरचना के आधार पर इसके अंदरूनी हिस्से में पानी की मात्रा का अंदाजा लगाया. उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि शुक्र का अंदरूनी हिस्सा बेहद सूखा है. इससे पता चलता है कि शुक्र अपनी शुरुआती अवस्था में, जब इसकी सतह पिघले हुए लावा से बनी थी, पूरी तरह से सूखा रह गया था. 

पानी को जीवन के लिए जरूरी माना जाता है. इस शोध से पता चलता है कि शुक्र कभी भी रहने योग्य नहीं था. इस शोध ने उस परिकल्पना का भी समर्थन नहीं किया, जिसमें कहा गया था कि शुक्र की सतह के नीचे पानी का कोई भंडार हो सकता है. 

ज्वालामुखियों से मिली जानकारी

ज्वालामुखियों से निकलने वाली गैसों से चट्टानी ग्रहों के अंदरूनी हिस्सों की जानकारी मिलती है. जब लावा ग्रह के केंद्र से सतह तक पहुंचता है, तो वह गहराई से गैसें बाहर निकालता है.

धरती पर ज्वालामुखी गैसों में 60 फीसदी से ज्यादा पानी होता है, जो अंदरूनी हिस्से में पानी की मौजूदगी को दिखाता है. लेकिन शोधकर्ताओं ने पाया कि शुक्र पर ज्वालामुखी गैसों में 6 फीसदी से भी कम पानी होता है, जो इसके अंदरूनी हिस्से के सूखे होने का संकेत देता है. 

केंब्रिज यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता टेरेसा कॉन्स्टेंटिनू ने कहा "हमारा सुझाव है कि अगर शुक्र का अतीत रहने योग्य होता, तो उसके अंदरूनी हिस्से में पानी ज्यादा होता. लेकिन इसके सूखे वायुमंडल से पता चलता है कि यह हमेशा से सूखा था." उनका यह अध्ययन विज्ञान पत्रिका "नेचर एस्ट्रोनॉमी" जर्नल में प्रकाशित हुआ है. 

कॉन्स्टेंटिनू ने कहा, "शुक्र के ज्वालामुखी बहुत कम पानी छोड़ते हैं. इसका मतलब है कि ग्रह का अंदरूनी हिस्सा भी सूखा है. यह दिखाता है कि शुक्र की सतह लंबे समय से सूखी है और यह कभी भी रहने योग्य नहीं रहा."

धरती जैसा नहीं शुक्र

शुक्र सूर्य से दूसरा और धरती तीसरा ग्रह है.  कॉन्स्टेंटिनू ने बताया कि शुक्र के पानी से जुड़े दो अलग-अलग इतिहास सामने आए हैं. एक के मुताबिक, शुक्र पर अरबों साल तक पानी और हल्का मौसम रहा. दूसरे के मुताबिक, शुक्र कभी इतना ठंडा नहीं रहा कि पानी जमा सके.

शुक्र का व्यास करीब 12,000 किमी है, जो धरती के 12,750 किमी के व्यास से थोड़ा ही कम है. शोधकर्ताओं ने कहा, "धरती और शुक्र को अक्सर 'बहन ग्रह' कहा जाता है क्योंकि उनका द्रव्यमान, आकार और घनत्व एक जैसा है. लेकिन उनकी विकास प्रक्रिया पूरी तरह अलग रही है."

कॉन्स्टेंटिनू ने कहा, "शुक्र की सतह की स्थिति धरती के मुकाबले बेहद अलग है. शुक्र का वायुमंडलीय दबाव धरती से 90 गुना ज्यादा है. सतह का तापमान 465 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है. इसका वायुमंडल जहरीला है और इसमें सल्फ्यूरिक एसिड के बादल हैं. ये बातें शुक्र को धरती से अलग बनाती हैं."

शुक्र पर ज्यादा शोध की जरूरत

मंगल की कहानी अलग लगती है जो सूर्य से चौथा ग्रह है. मंगल पर सतह की विशेषताएं बताती हैं कि वहां अरबों साल पहले पानी का महासागर था. लेकिन शुक्र पर ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है. अगस्त, 2024 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, इसके नीचे पिघली हुई चट्टानों के बीच पानी का भंडार हो सकता है, जो इतना बड़ा है कि पूरे मंगल की सतह को ढक सकता है. 

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हालांकि शुक्र पर मंगल की तुलना में कम शोध हुआ है, लेकिन भविष्य में इसे लेकर नई योजनाएं बन रही हैं. नासा का दा विंची मिशन 2030 के दशक में शुक्र के बादलों से सतह तक अध्ययन करेगा. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का एनविजन मिशन भी इसी दशक में शुक्र की रेडार मैपिंग और वायुमंडल का अध्ययन करेगा.

कॉन्स्टेंटिनू ने कहा, "शुक्र हमें यह समझने का मौका देता है कि किसी ग्रह पर रहने योग्य परिस्थितियां कैसे बनती हैं या क्यों नहीं बन पातीं."

वीके/एए (रॉयटर्स)

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