आधुनिक दुनिया की विडंबना ये है कि लोग स्मार्टफोन तो खरीद रहे हैं लेकिन डॉक्टर तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. इसी को देखते हुए एक ऐसा ऐप तैयार किया गया है, जो बच्चों की सेहत के बारे में जानकारी दे पाएगा.
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आधुनिक समय में अवसाद से कारण बच्चों और किशोरों में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं. यह पता होना जरूरी है कि वे कौन सी बातें हैं जो बच्चों में अवसाद पैदा करती हैं.
बच्चों को डिप्रेशन से बचाइए
आधुनिक समय में अवसाद से कारण बच्चों और किशोरों में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं. यह पता होना जरूरी है कि वे कौन सी बातें हैं जो बच्चों में अवसाद पैदा करती हैं.
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तनाव
वर्तमान जीवनशैली में बहुत से बच्चे तनाव की भेंट चढ़ रहे हैं. स्कूलों और खेलकूद के क्लबों में उन पर लगातार बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव है. घर वापस आकर भी ढेरों होमवर्क होता है. तनाव शारीरिक तंत्र को कमजोर करता है. तनाव से शरीर में लगातार कॉर्टिसॉल बनता है जो अवसाद की ओर ले जाता है.
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पारिवारिक बिखराव
परिवार में माता पिता के बीच तलाक या लगातार होने वाले झगड़ों का बच्चों पर बुरा असर पड़ता है. जर्नल ऑफ मैरिज एंड फैमिली में छपी रिपोर्ट के मुताबिक टूटे परिवारों से आने वाले बच्चों को अवसाद का ज्यादा खतरा होता है.
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कम खेलकूद
बच्चों के विकास में केलकूद की अहम जगह होती है. खेलकूद से दिमाग को काफी कुछ सीखने और विकास का मौका मिलता है. बच्चों को समस्याएं सुलझाने, क्षमता बढ़ाने और अपनी रुचि को समझने का मौका मिलता है. बच्चों में होने वाली मानसिक बीमारियों के विशेषज्ञ पीटर ग्रे कहते हैं, कम खेलकूद से बच्चों में समस्याओं को सुलझाने की क्षमता में कमी आती है.
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इलेक्ट्रॉनिक खेलों की लत
अमेरिकन जर्नल ऑफ इंडस्ट्रियल मेडिसिन के मुताबिक वे बच्चे जो दिन में पांच घंटे से ज्यादा कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठकर गेम खेलते हैं, टैबलेट या स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें अवसाद होने की ज्यादा संभावना होती है.
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चीनी का ज्यादा इस्तेमाल
इन दिनों खाने पीने की कई ऐसी चीजें बाजार में मिलती हैं जिनके कारण चीनी का इस्तेमाल बढ़ गया है, जैसे केक, मिठाइयां, कोक और पेप्सी जैसी कार्बोनेटेड ड्रिंक्स. रिसर्चरों के मुताबिक चीनी की ज्यादा मात्रा का संबंध डिप्रेशन और स्कित्जोफ्रेनिया से है. चीनी दिमाग के विकास के हार्मोन को भी प्रभावित करती है. डिप्रेशन और स्कित्जोफ्रेनिया के मरीजों में इस हार्मोन का स्तर कम पाया जाता है.
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एंटीबायोटिक का इस्तेमाल
मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने चूहों को एंटीबायोटिक देकर उनपर टेस्ट किया और पाया कि ऐसे चूहे आसानी से बेचैनी के शिकार हो जाते हैं और उनके दिमाग का वह हिस्सा प्रभावित होता है जो भावनाओं के लिए जिम्मेदार होता है.
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टॉक्सिन से बचें
हमारा पर्यावरण बुरी तरह प्रदूषित है. फसलों में इस्तेमाल होने वाले पेस्टिसाइड, सफाई के लिए इस्तेमाल हो रही सामग्री, खाद्य सामग्री में मिलावट और गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण, सभी हमारे शरीर को विषैला कर रहे हैं. इन विषैले तत्वों के शरीर में पहुंचने से बेचैनी और अवसाद की समस्याएं बढ़ती हैं.