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डिजिटल खतरों का सामना कैसे करेगा जर्मनी का चुनाव

१७ जनवरी २०२५

आम चुनाव के लिए कमर कस रहे जर्मनी में अलोकतांत्रिक शक्तियों के लोगों की राय को प्रभावित करने की कोशिशों को लेकर चिंता है. इनके तिकड़मों में साइबर हमलों से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए दुष्प्रचार तक शामिल है.

साइबर हमले की प्रतीकात्मक तस्वीर
चुनावों को प्रभावित कर के लिए एआई और सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा हैतस्वीर: Nikolas Kokovlis/NurPhoto/IMAGO

इस साल की 23 फरवरी को जर्मनी में नई संसद के लिए चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं. अधिकारी लोगों की राय को प्रभावित करने या फिर लोगों में मतभेद बढ़ाने की कोशिशों को लेकर चेतावनी दे रहे हैं. 

जर्मनी की घरेलू खुफिया एजेंसी बुंडेसफरफासुंग्सशुत्स ने चुनाव पर "विदेशी सरकारों के असर डालने की कोशिशों" को लेकर भी चेतावनी दी है. एजेंसी का कहना है कि इसके लिए "गलत जानकारी, साइबर हमलों के साथ ही जासूसी और तोड़फोड़" का इस्तेमाल हो सकता है. एजेंसी को सोशल मीडिया अल्गोरिद्म के जरिए फैलाई जा रही गलत जानकारियां, हैकिंग के कुछ गोपनीय जानकारियों के प्रसार या फिर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए दुष्प्रचार की आशंका है. 

ऐसी ही चेतावनी जर्मनी की साइबर सिक्योरिटी एजेंसी फेडरल ऑफिस फॉर इंफॉर्मेशन सिक्योरिटी (बीएसआई) की प्रमुख क्लाउडिया प्लाटनर ने भी दी है. उन्होंने पत्रकारों से कहा, "जर्मनी के भीतर और बाहर की कुछ ताकतों की दिलचस्पी चुनावी प्रक्रिया पर हमले और लोकतांत्रिक व्यवस्था को बिगाड़ने में है."

जर्मनी कें श्टुटगार्ड में लगे चुनावी पोस्टरतस्वीर: Arnulf Hettrich/IMAGO

मध्यावधि चुनाव के लिए समयसीमा संक्षिप्त है. ऐसे में अधिकारियों के सामने सारे इंतजामों की चुनौती थोड़ी बड़ी है. इसके साथ ही चुनाव ऐसे वक्त में हो रहे हैं जब राजनीतिक तनाव भी बढ़ा हुआ है. जनवरी के आखिर में बर्लिन में होने जा रहे पोलिटिकल टेक समिट के सीईओ जोसेफ लेंच का कहना है, "आर्थिक स्थिति से लेकर भू राजनीति तक कई मुद्दे हैं जो समाज को बांट रहे हैं." डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने यह भी कहा, "लोकलुभावनवादी और चमरपंथी खास तौर से इस सामाजिक विभाजन का फायदा उठा रहे हैं."

जर्मनी के चुनाव में जयपुर के सिद्धार्थ भी हैं उम्मीदवार

अंदर और बाहर दोनों ओर से खतरा

विशेषज्ञों का कहना है कि प्रमुख लोगों और संगठनों के खिलाफ साइबर हमले का डर इन चुनावों के लिए काफी अहम है. संवेदनशील जानकारियां एक बार गलत हाथों में पड़ जाएं तो उनका इस्तेमाल "हैक एंड लीक" अभियानों में हो सकता है. ऐसे मामलों में चुराई हुई सामग्री के साथ अकसर छेड़ छाड़ करके या फिर उनका संदर्भ बताए बगैर प्रसारित कर दिया जाता है जिससे कि राजनीतिक उम्मीदवारों या फिर पार्टियों की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया जा सके.

जर्मनी की घरेलू खुफिया एजेंसी ने नवंबर महीने के आखिर में चेतावनी दी थी, "यूक्रेन पर रूसी हमले को देखते हुए, रूस की बड़ी और स्वाभाविक दिलचस्पी इस चुनाव पर असर डालकर अपना हित साधने में है."

सूचना तकनीक की सुरक्षा से जुड़ी कंपनियों को भी चुनवों में दखलंदाजा का अंदेशा हैतस्वीर: Oliver Berg/dpa/picture alliance

जर्मनी में चुनाव नतीजों को आम वोटर भी दे सकते हैं चुनौती

तकनीकी विशेषज्ञ लेंच सावधान करते हुए कहते हैं कि हालांकि जर्मनी के भीतर काम कर रहे कुछ घरेलू तत्व भी चुनावों की पवित्रता के लिए उतना ही बड़ा खतरा हैं. उनका कहना है, "सार्वजनिक मंच का उभार हुआ है, लोकतंत्र विरोधी तत्व अब व्हाट्सएप और टेलिग्राम जैसे मेसेजिंग चैनलों और टिक टॉक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का इस्तेमाल पारंपरिक मीडिया और दूसरी भरोसेमंद संस्थाओं के फिल्टरों को धोखा देने के लिए कर रहे हैं."

हाशिए पर मौजूद चरमपंथी तत्व और अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) जैसी लोकलुभावनवादी पार्टियां, दोनों ने इस "वैकल्पिक डिजिटल ढांचे" को विकसित करने में कई साल खर्च किए हैं. उन्होंने यह भी कहा, "इसका नतीजा है कि वो अब स्थापित पार्टियों की तुलना में करीब दशक भर आगे हैं."

रोमानिया से सबक

लेंच के मुताबिक इस डिजिटल तंत्र की राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन हाल ही में रोमानिया में राष्ट्रपति चुनाव के पहले चरण में हुआ, जब राष्ट्रवादी कलिन जॉर्जेस्कू ने चौंकाने वाली जीत हासिल की.

जॉर्जेस्कू रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के धुर दक्षिणपंथी समर्थक हैं. वह किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े हैं. उन्होंने चुनाव अभियान के दौरान टीवी पर प्रसारित किसी प्रमुख बहस में हिस्सा नहीं लिया. इसके बजाय उन्होंने खुद के सोशल मीडिया चैनलों से अभियान चलाया. खासतौर से टिक टॉक पर जहां उनके 520,000 फॉलोअर और 57 लाख से ज्यादा लाइक हैं.

रिसर्चर आशंका जता रहे हैं कि डिजिटल खतरे का डर जर्मनी के चुनावों को हैतस्वीर: Deutsche Gesellschaft für Auswärtige Politik

लेंच ने चेतावनी दी है, "रोमानिया यूरोपीय संघ का देश है. जो वहां हुआ वह जर्मनी समेत कहीं किसी और देश में भी हो सकता है."

एआई के दुष्प्रचार का उदय 

थिंक टैंक जर्मन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस की रिसर्च फेलो कात्या मुनोज के मुताबिक अपनी बात रखने के लिए किसी भी पार्टी का डिजिटल ढांचा एएफडी के बराबर नहीं है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा कि सोशल मीडिया अकाउंटों के इस नेटवर्क के भीतर बहुत से अकाउंट एक दूसरे से संपर्क करते हैं ताकि प्लेटफॉर्म के अल्गोरिद्म की मदद से पोस्ट की रीच बढ़ाई जा सके. उन्होंने कहा, "यह एक गुप्त रूप से उठाया कदम है ताकि समान विचारों को बढ़ावा मिल सके."

इसके साथ उसी समय नए कथित "जेनेरेटिव एआई" प्रोग्रामों ने पार्टियों और लोगों को पोस्ट क्रिएट करने की आजादी दी जिसमें शब्द, तस्वीर या वीडियो बनाए जाने लगे, यह पहले की तुलना में बहुत तेज है और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के असर को बढ़ावा दे रहा है. 

 एआई के इस्तेमाल के उदाहरण

यूरोपीय चुनावों और 2024 के क्षेत्रीय चुनावों के इर्द गिर्द जर्मन राजनीतिक पार्टियों के एआई तकनीक का इस्तेमाल के विश्लेषण का हवाला दे कर  मुनोज ने कहा, "जर्मनी में हमने देखा कि जो पार्टी एआई- कंटेंट को सबसे ज्यादा फैला रही थी वह एएफडी थी."

मुनोज ने यह भी कहा, "यह कंटेंट हमेशा गलत नहीं होता, लेकिन यह उलझन पैदा करने वाला है और इसका मकसद पहले से मौजूद विश्वासों की पुष्टि करना है, यह एआई का दुष्टप्रचार है." उन्होंने 78 सेकेंड के एक वीडियो का उदाहरण दिया जिसे  क्षेत्रीय चुनाव से आठ दिन पहले एएफडी ने जारी किया. इसमें नीली आंखों और सुनहरे बालों वाले लोगों के सामने दूसरे रंग वाले लोगों को नकारात्मक संदर्भ में दिखाया गया था.

जर्मन राजनीति में क्यों दखल दे रहे हैं मस्क

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वोटों की सुरक्षा कैसे होगी?

विशेषज्ञों का कहना है कि जर्मनी में प्रचार और चुनाव की पवित्रता बचाने के लिए कई स्तरों पर उपाय करने की जरूरत होगी. साइबर हमलों के खतरे को रोकने के लिए खुफिया एजेंसी बीएफवी ने एक स्पेशल टास्क फोर्स बनाई है जो खतरों पर नजर रखेगी. साइबर सिक्योरिटी एजेंसी बीएसआई उम्मीवारों और पार्टियों को ऑनलाइन सेमिनार के जरिए अपने उपकरणों और ऑनलाइन खातों को साइबर घुसपैठियों से सुरक्षित रखना सिखा रही है.

बीएसआई के अध्यक्ष प्लाटनर ने डॉयचलांड रेडियो से कहा, "आमतौर पर हम यह काम उस जगह पर जा कर निजी रूप से करना चाहते हैं लेकिन अब हम वेबिनार की तरफ मुड़ गए हैं क्योंकि हमारे पास तैयारियों के लिए उतना समय नहीं है जितना हमने सोचा था."

चुनाव में अब कुछ हफ्ते ही बाकी है. ऐसे में तकनीकी जानकार लेंच ने जोर दे कर कहा है, "नागरिक समाज, राजनेता और सरकारी अधिकारियों के लिए चर्चा करना बहुत जरूरी है, खासतौर से इसलिए क्योंकि चुनाव के लिए ज्यादा समय नहीं है."

मुनोज ने कहा कि अधिकारियों को गलत जानकारी और एआई के दुष्प्रचार के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिशों को तेज करना चाहिए, "अधिकारियों को लोगों को यह समझाना चाहिए कि कैसे सार्वजनिक विचारधारा को प्रभावित किया जाता है और कैसे हाशिये पर पड़े विचारों को धकेल कर बहस के केंद्र में लाया जाता है."

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