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लद्दाख में भारत-चीन की सेना पीछे हटी लेकिन स्थानीय लोग दुखी

सलमान लतीफ
२१ सितम्बर २०२२

स्थानीय लोगों का कहना है कि हाल में विवादित जगह से सेनाओं के पीछे हटने के बाद उनकी आजीविका खतरे में है. लद्दाख के लोगों ने भारत पर अपने इलाके को बफर जोन में बदलने और चीन को बड़ी छूट देने का आरोप लगाया है.

लद्दाख में चीन और भारत का सीमा विवाद
स्थानीय लोगों को डर है कि चीन के गड़रिये उनके इलाकों में अपनी बकरियां ले कर आयेंगेतस्वीर: Mukhtar Khan/ASSOCIATED PRESS/picture alliance

इलाके के गांवों में रहने वाले लोगों का कहना है कि भारत और चीन की सेना पीछे हट गई हैऔर लद्दाख में कुगरांग वैली के करीब 120 वर्ग किलोमीटर के जिस इलाके को लेकर विवाद था वह बफर जोन बन गया है. यह जगह पश्मीना बकरियों के चारागाहों और ठंडे बियाबान के लिये जानी जाती है.

ये लोग भारत-चीन की सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा एलएसी की तरफ चीन की विस्तारवादी योजनाओं को रोकने में भारत के नाकाम रहने का आरोप लगा रहे हैं. लद्दाख के फोबरांग गांव के प्रमुख आखो स्टोबगाइस का कहना है, "हमें झटका लगा है. हमारे इलाके को सरकार कैसे छोड़ सकती है? ये सीमित चारागाह हमारी जीवनरेखा हैं. इनके बगैर हमारे मवेशी और उनके साथ ही हमारा रोजगार भी खत्म हो जायेगा."

फोबरांग, लुकुम और उरगो गांव में रहने वाले 113 परिवारों की कम से कम 4500 पश्मीना बकरियां, 700 याक और दूसरे मवेशी कुगरांग वैली के चारागाहों पर निर्भर हैं. स्टोबागाइस का कहना है कि अब यह इलाका भारतीय सैनिकों और आम लोगों के जाने के लिये प्रतिबंधित हो गया है.

8 सितंबर को भारत और चीन ने घोषणा की कि वो अपने सैनिकों को पैट्रोल प्वाइंट 15 (पीपी-15) से पीछे हटा रहे हैं. पूर्वी लद्दाख के इलाके में यह जगह बीते दो साल से दोनों देशों के सैनिकों के बीच तनाव में घिरी है. 

भारत और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास फौज की भारी तैनाती कर रखी हैतस्वीर: Mukhtar Khan/ASSOCIATED PRESS/picture alliance

शीर्ष स्तर पर बातचीत

गोगरा के उत्तर में पीपी-15 रणनीतिक लिहाज से अहम एक चंद्राकार रेखा पर एक बिंदु है जो एलएसी बनाता है. काराकोरम में प्वाइंट 1 से यह शुरू हो कर डेपसांग के मैदान और पेनगोंग लेक से गुजरता है.

कमांडर स्तर की 16 दौर की बातचीतके बाद पिछले हफ्ते उज्बेकिस्तान में शंघाई कॉपरेशन ऑर्गनाइजेशन की बैठक से ठीक पहले पीछे हटने पर सहमति बनी. संयुक्त बयान में कहा गया है, "भारत चीन कमांडर स्तर के 16 दौर की बातचीत के बाद बनी सहमति के मुताबिक भारत और चीन के सैनिकों ने गोगरा हॉटस्प्रिंग के इलाके से सहयोग और योजनाबद्ध तरीके से पीछे हटना शुरू कर दिया है, जो सीमावर्ती इलाके में उथलपुथल को घटाने और शांति में सहयोग करेगा."

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची का कहना है, "इस बात पर सहमति बन गई है कि इलाके में दोनों तरफ के अस्थायी निर्माण और दूसरे बुनियादी ढांचे को खत्म किया जायेगा और आपसी तौर पर इसकी पुष्टि की जायेगी. दोनों तरफ इलाके की जमीन को विवाद शुरू होने से पहले की स्थिति में लाया जायेगा."

क्या लद्दाख में पीछे हटने से चीन को फायदा हुआ है?

स्टोबगाइस 2019-20 में भारतीय सेना के लिये ड्राइवर के रूप में काम करते थे. वो भारत सरकार के इस दावे को चुनौती दे रहे हैं कि इलाके को अप्रैल 2020 में विवाद शुरू होने से पहले की स्थिति में लाया जा रहा है.

उनका कहना है कि भारत ने अपने इलाके में असैन्य क्षेत्र बना कर नामालूम कारणों से चीन को बड़ी छूट दे दी है. स्टोबगाइस ने कहा, "मैं करम सिंह हिल से भारतीय सेना के लिये राशन उठाने जाता था, कुगरांग के मुहाने पर करीब 30 किलोमीटर की ड्राइव के बाद पीपी-16 था वहां वहां भारतीय सेना का बेस कैंप था. वहां से मैं भारतीय सेना को कई बार गलवान घाटी की तरफ 11 किलोमीटर दूर पीपी-15 तक ले कर गया."

स्टोबगाइस ने साथ ही यह भी कहा कि 2011 में भारतीय सीमा प्रहरी पीपी-15 से 8 किलोमीटर आगे एलएसी की तरफ अल्फा-3 पास तक गश्त लगाते थे. स्टोबगाइस का कहना है, "अब पूरी कुगरांग वैली को छोड़ दिया गया है. सबसे ज्यादा चौंकाऊ तो यह है कि सरकार ने पीपी-16 के पास 1962 से मौजूद भारतीय सीमा प्रहरी के बैरकों को भी हटाने की मंजूरी दे दी है और करम सिंह हिल तक पीछे चली गई है."

हाल की घटनाओं से चिंतित नजर आ रहे स्टोबगाइस ने कहा, "अगर भारत इसी तरह चीन को एकतरफा छूट देता रहा तो वह समय दूर नहीं है जब पीएलए (चीन की सेना) हमारे गांवों तक फैल जायेगी."

स्टोबगाइस ने भारत से आग्रह किया है कि वो चीन के साथ बातचीत में स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधियों को भी शामिल करे क्योंकि वे विवादित पहाड़ी इलाके में भारतीय क्षेत्र की सीमाओं को जानते हैं.

शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भारत चीन के नेता मिले लेकिन अलग से बात नहीं हुईतस्वीर: picture alliance / ASSOCIATED PRESS

भारत के रणनीतिक विश्लेषक प्रवीन सावने स्थानीय लोगों का समर्थन करते हैं उनका कहना है कि पीछे हटने के लिये बफर जोन भारतीय इलाके में इसलिये बनाया गया है क्योंकि भारत वहां से पीएलए को नहीं हटा सकता.

सावने ने कहा, "चीन ने साफ तौर पर कहा है कि वह अप्रैल 2020 की स्थिति में पीछे नहीं जायेगा और पीछे हटने की प्रक्रिया उनकी शर्तों और समय के हिसाब से होगी. बफर भारत के क्षेत्र में बनाये गये हैं और उन्होंने भारत को कह दिया है कि डेपसांग के मैदान पर कोई समझौता नहीं होगा."

भारतीय जनता पार्टी की नेता प्रिया सेठी ने इस बात से इनकार किया है कि लद्दाख में भारत ने कोई जमीन गंवाई है. उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश अपनी एक इंच जमीन भी नहीं छोड़ेगा. सेठी का कहना है, "भारत में मोदी के खिलाफ एक संगठित अभियान चल रहा है क्योंकि वैश्विक स्तर पर उनका कद बढ़ रहा है. यह समूह गलत जानकारी फैला रहे हैं कि हमने लद्दाख में जमीन गंवाई है. मोदी निर्णायक हैं और पिछले नेताओं से अलग दुश्मन की आंखों में झांकते हैं."

इससे पहले अगस्त 2021 में जब दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटी थीं तो पीपी-17ए के पास चांगलुंग ला नहर और कुगरांग नदी के मिलने वाली जगह पर बफर जोन बना था. यह जगह एलएसी के पास भारत की ओर है और 2020 के विवाद से पहले चीन ने कभी इस पर अपना दावा नहीं किया.

हिमालय के ऊंचे इलाकों की जमीन पर चीन का 'कब्जा'

भारतीय इलाके में असैन्य क्षेत्र के बनने से वहां के निवासियों को चिंता है कि चीनी बंजारे अपने मवेशी कुगरांग वैली के इलाके में चराने के लिये लायेंगे.

 स्थानीय पार्षद कोनचोक स्टानजिन का कहना है, "यह चीनी लोगों का जमीन हड़पने का खास तरीका है. वो पहले अपने बंजारे भेजते हैं, चारागाह की जमीन पर दावा करते हैं और उसके बाद पीएलए के सैनिक इलाके पर कब्जा कर लेते हैं."

स्टानजिन का कहना है कि सेनाओं के पीछे हटने से स्थानीय लोगों को कोई राहत नहीं मिली है बल्कि भारत पूर्वी लद्दाख में पश्मीना पट्टी को विवादित जमीन बना रहा है. 

दौलत बेग ओल्डी सड़क भारत के पूर्वी लद्दाख और सुदूर उत्तरी इलाके को जोड़ती हैतस्वीर: Samaan Lateef/DW

स्टोबगाइस का कहना है कि पश्मीना बकरियां अपने चारे के लिये 12 किलोमीटर के घेरे में जाती हैं. मवेशियों से गुजारा चलाने भर की कमाई के लिये एक परिवार को कम से कम 300 बकरियां पालनी पड़ती हैं ताकि पर्याप्त पश्मीना के रेशे मिल सकें. चार बकरियों से करीब एक किलो रेशा मिलता है जिसकी कीमत 44 डॉलर है.

स्टानजिन ने कहा, "हम भारतीय सेना के खिलाफ नहीं हैं. हमारी चिंता चारागाह की जमीन है जो सीधे हमारी आजीविका और पश्मीना के रेशों की अर्थव्यवस्था पर असर डालती है."

दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र बनता लद्दाख

भारत ने जब भारत प्रशासित कश्मीर का विशेषाधिकार खत्म किया तो उसके तुरंत बाद ही एलएसी के पास भारत और चीन ने सैनिकों की बड़े पैमाने पर तैनाती कर दी. इसके बाद जून 2020 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई जिसमें दोनों तरफ के कई सैनिकों की मौत हुई. इसके बाद से ही दोनों देशों ने इलाके में हजारों सैनिकों और भारी हथियारों को तैनात कर रखा है. इसके साथ ही बड़े पैमाने पर हवाई ताकत, टैंक, मानवरहित विमान और ड्रोन भी उनकी मदद के लिये वहां मौजूद हैं.

संकट दूर करने के लिये दोनों तरफ की सेनाओं ने कई दौर की बातचीत की है और उसका नतीजा इलाके में संघर्ष के कई ठिकानों पर दोनों सेनाओं के पीछे हटने के रूप में सामने आया है. इनमें पेनगोंग लेक के उत्तर और दक्षिण की तरफ पीपी-14, पीपी-15 और पीपी-17ए शामिल हैं.

चीन की सेना अब भी एलएसी के साथ लगते डेपसांग के मैदानी क्षेत्र में पारंपरिक गश्त के इलाकों में भारतीय सेना को जाने से रोक रही है. भारत के लिये डारबुक श्योक दौलत बेक ओल्डी (डीएसडीबीओ) सड़क पर हमले का खतरा पैदा हो गया है. 255 किलोमीटर लंबी यह सड़क पूर्वी लद्दाख ओर भारत के सुदूर उत्तरी इलाके दौलते बेग ओल्डी (डीबीओ) को जोड़ती है. दौलत बेग ओल्डी काराकोरम दर्रे के बेस में है और चीन के शिनजियांग स्वायत्तशासी क्षेत्र को लद्दाख से अलग करता है.

डीएसडीबीओ सड़क भारत की पहुंच तिब्बत शिनजियांग हाइवे तक ले जाती है और एलएसी के समानांतर अकसाई चीन से हो कर गुजरती है. यह कश्मीर का पूर्वी हिस्सा है जिस पर 1950 के दशक से ही चीनी सरकार का प्रशासन है.

डीबीओ के पश्चिम में पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर गिलगित बाल्टिस्तान का इलाका है जहां चीन ने हाल के वर्षों में चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का निर्माण शुरू किया है. इसके जरिये इस  इलाके को पाकिस्तान के ग्वादर शहर के बंदरगाह से जोड़ा जा रहा है.

सावने का कहना है, "चीन का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है और पीएलए के इसमें ताकत झोंकने की वजह से यह बढ़ता ही जा रहा है."

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