इस्राएल-हमास युद्ध के कारण भारत में बढ़ी हेट स्पीचः विशेषज्ञ
२८ नवम्बर २०२३
फैक्ट चेकर और फेक न्यूज का अध्ययन करने वाले कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इस्राएल-हमास युद्ध को भारत में मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
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7 अक्टूबर को जब हमास ने इस्राएल पर हमला किया, तो भारत में वॉट्सऐप पर एक लिस्ट वायरल हुई. इस सूची में 17 हिंदुओं के नाम दिए गए और कहा गया कि हमास के हमले में ये लोग घायल हुए या मारे गए. इस पोस्ट पर बहुत उग्र प्रतिक्रियाएं आईं. लेकिन यह लिस्ट झूठी थी. इस हमले में कोई हिंदू घायल नहीं हुआ था.
तथ्यों की जांच करने वाले पेशेवरों का कहना है कि उसके अगले कई हफ्तों तक सोशल मीडिया पर सैकड़ों ऐसी पोस्ट शेयर की गईं, जिनमें इस्राएल और हमास के युद्ध के बारे में भ्रामक जानकारियां थीं. इन संदेशों में चेतावनी दी गई कि अगर हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी अगले साल चुनाव हार गई, तो हिंदुओं का वजूद खतरे में होगा.
दुनियाभर में इस्राएल-हमास युद्ध की गूंज
इस्राएल और हमास के बीच 7 अक्टूबर को शुरू हुए युद्ध की गूंज दुनियाभर में सुनायी दे रही है. कई पश्चिमी देशों ने इस्राएल के समर्थन में बयान दिये हैं.
तस्वीर: Mahmud Hams/AFP
बर्लिन में इस्राएली झंडा
बर्लिन का मशहूर ब्रांडेनबुर्ग गेट इस्राएली झंडे के रंग में रोशन किया गया. ऐसा प्रशासन ने हमास के हमले के बाद इस्राएली लोगों के प्रति समर्थन जताने के लिए किया.
तस्वीर: Fabian Sommer/dpa/picture alliance
तुर्की में फलस्तीन समर्थन
तुर्की के शहर इस्तांबुल में 7 अक्टूबर को लोगों ने इस्राएल पर हमास के हमले का समर्थन करते हुए जुलूस निकाला.
तस्वीर: Khalil Hamra/AP/picture alliance
अमेरिका में आमने-सामने
इस्राएल और हमास के समर्थक अमेरिका के न्यूयॉर्क में टाइम्स स्क्वेयर पर एक साथ पहुंच गये. दोनों के बीच झड़प रोकने के लिए पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी.
तस्वीर: Jorge Estrellado/dpa/picture alliance
मिस्र में पर्यटकों का कत्ल
8 अक्टूबर को मिस्र में एक पुलिसकर्मी ने दो इस्राएली और एक मिस्री नागरिक की हत्या कर दी. मीडिया के मुताबिक जवान ने अपने निजी हथियार से पर्यटकों पर गोलियां दागीं.
तस्वीर: AFP/Getty Images
सैकड़ों की मौत
7 अक्टूबर को हमास के सैनिक इस्राएल में घुस गये और सड़कों पर गोलीबारी शुरू कर दी. इस्राएली मीडिया संस्थानों के मुताबिक हमास के हमलों में अब तक इस्राएल में 600 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं.
तस्वीर: Mahmud Hams/AFP
इस्राएल के हमले
इस्राएल ने गजा में कई जगहों पर हमले किये हैं. फलीस्तीनी प्रशासन के मुताबिक इस्राएल के हमलों में अब तक 313 फलीस्तीनी मारे जा चुके हैं. वहां घायलों की संख्या दो हजार से ज्यादा है.
तस्वीर: Hatem Moussa/AP/picture alliance
सबसे बड़ा हमला
50 साल पहले चौथा इस्राएल-अरब युद्ध लड़ चुके इस्राएली पूर्व सैनिकों के मुताबिक, सात अक्टूबर 2023 को हुआ हमला, 1973 के हमले से भी ज्यादा ताकतवर था.
तस्वीर: Mahmud Hams/AFP
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झारखंड से काम करने वाले स्वतंत्र फैक्ट-चेकर भरत नायक कहते हैं, "हर स्थानीय या अंतरराष्ट्रीय घटना को यह संदेश देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है कि मुसलमान बुरे हैं और हिंदुओं को उनसे डरने की जरूरत है. अगर कोई घटना नहीं होती, तो पुरानी घटनाओं को फर्जी तस्वीरों और वीडियो के साथ जारी कर दिया जाता है, जिनमें एक ही बात कही जाती हैः हिंदुओं को सुरक्षित रहना है तो बीजेपी को वोट दें.”
हेट स्पीच में उछाल
इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटिजिक डायलॉग नामक थिंकटैंक के मुताबिक 7 अक्टूबर के बाद से दुनियाभर में इस्लाम और यहूदी विरोधी हेट स्पीच में उछाल आया है. फेसबुक, इंस्टाग्राम, टिकटॉक और एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म ऐसी करोड़ों पोस्ट से भरे हुए हैं.
भारत की 1.4 अरब की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा लगभग 14 प्रतिशत है. देश में अगले साल मई से पहले आम चुनाव होने हैं और इसी महीने कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं. फैक्ट चेकर और तकनीकी विशेषज्ञ कहते हैं कि इसी कारण हेट स्पीच और फर्जी सूचनाएं बढ़ गई हैं और अक्सर उनमें मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है.
कतर स्थित हमाद बिन खलीफा यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर मार्क ओवन कहते हैं, "युद्ध और चुनाव हमेशा ही इस तरह के माहौल को बढ़ावा देते हैं. इस (इस्राएल-हमास) युद्ध का रुख हिंदू-मुस्लिम विवाद को हवा देने का सटीक मौका है. सरकार समर्थित लोग इस युद्ध को बंटवारे का माहौल बनाने और फर्जी सूचनाओं को फैलाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.”
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बीजेपी का रुख
भारतीय जनता पार्टी इसे गलत बताती है. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता टॉम वडक्कन कहते हैं, "बीजेपी और सरकार किसी भी समुदाय या व्यक्ति के खिलाफ नफरत को प्रोत्साहित नहीं करती.”
भारत के प्रधानमंत्री भी इस तरह की बातें कह चुके हैं. जून में अमेरिका यात्रा के दौरान व्हाइट हाउस में उन्होंने कहा था कि भारत में "किसी तरह के भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं है.”
लेकिन उनकी पार्टी के बहुत से नेताओं पर अन्य समुदायों के खिलाफ हिंसक, उग्र और नफरत भरे बयान देने के आरोप लगते रहे हैं. हाल ही में पार्टी के एक नेता रमेश बिधूड़ी ने संसद में एक भाषण के दौरान कई मुस्लिम-विरोधी शब्दों का इस्तेमाल किया. उसके बाद उन्हें राजस्थान में चुनाव की जिम्मेदारी दे दी गई.
कैसे पहचानें 'डीपफेक'
जैसे जैसे टेक्नोलॉजी प्रगति कर रही है, असली तस्वीरों और 'डीपफेक' में फर्क करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है. फिर भी कुछ सुराग जरूर हैं जिनका इस्तेमाल करके आप इनका पता लगा सकते हैं. पेश हैं ऐसा करने के कुछ तरीके.
तस्वीर: thispersondoesnotexist.com
चेहरों के कोनों को देखिए
डच नेता मार्क रट की इस तस्वीर को देखिए. उनकी कॉलर पर एक सिकुड़न दिखाई दे रही है. जब डीपफेक में चेहरे बदले जाते हैं तो उनमें इसी तरह की असंगतियां रह जाती हैं. ये अधिकतर तब नजर आती हैं जब बदले हुए हिस्से के कोने कपड़ों, बालों या गहनों के नजदीक हों.
तस्वीर: De Correspondent
झुमकों से भी मिलते हैं सुराग
इस तस्वीर में दोनों कानों के झुमके एक दूसरे से काफी अलग हैं. जेनेरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क (जीएन) के लिए जटिल गहनों की बारीकियों को बनाना मुश्किल होता है. वो अक्सर कानों में अलग अलग झुमके छोड़ देता है जबकि अधिकांश लोग झुमकों को इस तरह नहीं पहनते हैं. इसके अलावा अगर आप गौर से उस बिंदु को भी देखेंगे जहां झुमका कान से लटकता है तो आपको दिख जाएगा की तस्वीर असली है या डीपफेक.
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चश्मों का रहस्य
अगर आप गौर से नहीं देखेंगे तो शायद आप इस बात पर ध्यान नहीं दे पाएंगे कि इस तस्वीर में जो चश्मा है उसके दाहिने तरफ का फ्रेम बाएं फ्रेम से अलग है. एक फ्रेम ज्यादा अंडाकार है तो दूसरा ज्यादा आयताकार. क्या आपने इस पर ध्यान दिया?
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पीछे का दृश्य भी बताता है कहानी
पीछे के ऐसे दृश्यों पर कभी भरोसा मत कीजिए जो फोकस की गहराई की कमी से धुंधला दिखने की जगह मंगल गृह की सतह जैसे दिखते है. जैसे इस तस्वीर में पीछे के दृश्य को देखिए. यहां क्या हो रहा है? ये कहां की तस्वीर हो सकती है? क्या आप इस पर भरोसा कर पा रहे हैं?
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दांतों से संकेत
जीएन के लिए दांतों की बनावट की भी कल्पना करना मुश्किल है. कभी कभी साफ दिखाई दे रहा होता है कि दांत अलग अलग आकार के हैं और उनके कोने भी साफ नजर नहीं आ रहे हैं. क्या आप इस तस्वीर में ऐसे दांत देख पा रहे हैं?
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कपड़ों पर भी नजर डालिए
कपड़ों में काफी विविधता होती है और सब लोग अलग अलग तरह के कपड़े पहनते हैं. लेकिन यहां क्या हो रहा है? क्या ऐसा नहीं लग रहा है कि इस व्यक्ति के गले के बाल उसकी शर्ट के ऊपर जा रहे हैं? क्या ऐसा हो सकता है? क्या यह एक शर्ट है? क्या आप इस पर भरोसा कर सकते हैं?
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बाल भी बताते हैं असलियत
संभव है कि यह पकड़ने में सबसे मुश्किल डीपफेक हो. क्या आप माथे पर बालों को उगते देखने की उम्मीद रखते हैं? क्या आप सुराग को देख पाए? (जूलिया बायर)
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सोशल मीडिया पर तो ऐसा आम होता है. #coronajihad और #lovejihad जैसे ट्विटर ट्रेंड इस बात की गवाही देते रहे हैं. वॉट्सऐप या फेसबुक पर फर्जी सूचनाओं के कारण कई जगह हिंसा भी हो चुकी है.
हालांकि, भारतीय जनता पार्टी ने अपने 2024 के चुनाव में मुसलमान मतदाताओं को लुभाने के लिए अभियान शुरू किया है. पार्टी एक वरिष्ठ मुस्लिम नेता ने रॉयटर्स को बताया कि हिंदू-मुस्लिम हिंसा सिर्फ इसलिए सुर्खियों में रहती है, क्योंकि राजनीतिक विरोधी उनकी पार्टी को निशाना बनाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं.