1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
इतिहासफ्रांस

नेपोलियन की सेना के छुपे हुए हत्यारे का राज डीएनए ने खोला

मैथ्यू वार्ड आगीयूस
३१ अक्टूबर २०२५

साल 1812 में नेपोलियन की सेना रूस से वापस आ रही थी. तब जो हुआ, वह इतिहास की सबसे घातक सैन्य घटनाओं में से एक है. आनुवांशिक जांच ने इस घटना के एक बड़े रहस्य पर रोशनी डाली है.

लिथुआनिया में नेपोलियन के सैनिकों की एक सामूहिक कब्रगाह
अब तक यह माना जाता रहा है कि टाइफस और ट्रेंच फीवर ने नेपोलियन की सेना में कहर बरपाया थातस्वीर: Michel Signoli UMR 6578 - CNRS, Aix-Marseille Université, EFS

नेपोलियन की वो सेना, कोई आम सेना नहीं थी. यह इतिहास की सबसे बड़ी आक्रमणकारी सेना थी. जब उन्होंने रूस पर हमले के लिए कूच किया, तब मानो फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन बोनापार्ट की "ग्रैंड आर्मी" की नाकामी और मौत पहले से तय थी. और, यह हार केवल लड़ाई के मैदान तक सीमित नहीं थी.

अब फ्रांस की एक रिसर्च टीम ने उन दो "दोषियों" का खुलासा किया है, जिन्होंने 1812 के नेपोलियन के रूस अभियान के दौरान उनके पांच लाख सैनिकों के विनाश में बड़ा योगदान दिया.

कौन थे ये हत्यारे? दो तरह के बैक्टीरिया, जिनके कारण बुखार होता है.

यह चौंकाने वाली खोज पेरिस के पाश्चर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा की गई है. जो कि एक फ्रांसीसी पैलियोजीनोमिक शोध समूह (यानी प्राचीन डीएनए का अध्ययन करने वाले दल) का हिस्सा है.

साल 2002 में लिथुआनिया की राजधानी विलनियस में खुदाई के दौरान नेपोलियन की सेना के सैकड़ों सैनिकों के शव मिले. यह वही जगह थी, जहां उनकी सेना ने कुछ समय के लिए पड़ाव डाला थातस्वीर: Michel Signoli, Aix-Marseille Université

आज से पहले तक यह माना जाता रहा है कि टाइफस और ट्रेंच फीवर ने नेपोलियन की सेना में कहर बरपाया था. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने पाया है कि उस समय दो अन्य संक्रमण भी फैले थे, जो भले ही अलग तरह की बीमारियां पैदा करते हैं, लेकिन उनके लक्षण बहुत समान होते हैं.

फ्रांस की राजधानी पेरिस स्थित पस्तर इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में एक फ्रेंच रिसर्च पेलियोजेनॉमिक्स ग्रुप ने यह हैरान करने वाली खोज की है. पेलियोजेनॉमिक्स, प्राचीन जीनोम के अध्ययन का विज्ञान है.

पहले माना जाता था कि 1812 में रूस से पीछे हटते हुए नेपोलियन की सेना को जिस बीमारी ने घेरा, वो टायफस और ट्रेंच फीवर थे. अब जिन संक्रमणों की खोज की गई है, वो अलग बीमारी का कारण बनते हैं, लेकिन उनके लक्षण मिलते-जुलते हैं.  

पस्तर इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिक निकोलस रास्कोवान ने इस स्टडी का नेतृत्व किया. उन्होंने बताया, "आज भी, दूसरे रोगाणुओं के कारण हुए बुखार के इन लक्षणों में फर्क कर पाना तकरीबन नामुमकिन होगा. किसी भी डॉक्टर के लिए यह बता पाना नामुमकिन है कि आपको कौन-सा रोगाणु संक्रमित कर रहा है."

पहले पीछे हटे, फिर मौत मिली

नेपोलियन, ब्रिटेन के खिलाफ लागू अपने व्यापार प्रतिबंध पर अमल करने के लिए रूस के जार अलेक्जेंडर प्रथम को मजबूर करना चाहता था. इस कोशिश में, नेपोलियन ने यूरोप की अब तक की सबसे बड़ी सेना के साथ रूस पर धावा बोला. यह सेना पोलैंड, लिथुआनिया और बेलारूस से होकर रूस गई.

साल 1812 की गर्मियों में, नेपोलियन की सेना को मॉस्को पर कब्जा करने में कामयाबी मिली. इसके बाद वे एक गतिरोध की स्थिति में फंस गए. अलेक्जेंडर ने बातचीत से इनकार कर दिया.

नेपोलियन की सेना के पास लूटा हुआ खजाना था. ऊपर से नेपोलियन खुद पेरिस की ओर रवाना हो चुका था. पीछे बची उसकी सेना अपनी वापसी टालती रही, और आखिरकार 17 अक्टूबर के बाद ही उन्होंने पीछे हटना शुरू किया.

नेपोलियन अपनी सेना से पहले ही मॉस्को से निकल चुका थातस्वीर: The Print Collector/Heritage Images/picture alliance

तब एक भयानक चुनौती उनके सामने आई आ खड़ी हुई. यह चुनौती रूसी सैनिकों की नहीं थी. नेपोलियन की "ग्रैंड आर्मी" को तीन घातक चुनौतियों से लड़ना था. कड़ाके की रूसी सर्दी, खत्म होता राशन और बीमारियां अब उनके सबसे बड़े दुश्मन थे. पांच लाख की सेना में से बमुश्किल 30,000 (यानी समूची सेना का केवल छह फीसदी हिस्सा) सैनिक ही जिंदा बच पाए थे.

नेपोलियन की संपत्ति हड़पने को लेकर जर्मनी और वहां की चर्चों में विवाद

लंबे समय तक, यह माना जाता रहा कि भूख और ठंड के साथ-साथ टाइफस नाम का फ्रांसीसी सैनिकों के लिए सबसे घातक दुश्मन साबित हुए.

लेकिन साल 2002 में, लिथुआनिया की राजधानी विलनियस में खुदाई के दौरान नेपोलियन की सेना के सैकड़ों सैनिकों के शव मिले. यह वही जगह थी, जहां उनकी सेना ने कुछ समय के लिए अपना पड़ाव डाला था. इसके बाद 2006 में इन अवशेषों के डीएनए विश्लेषण में दो बैक्टीरिया के प्रमाण मिले. पहला, रिकेट्सिया प्रोवाजेकी, जो टाइफस फैलाता है. और दूसरा, अर्टोनेला क्विंटाना जो ट्रेंच फीवर का कारण बनता है.

अब नई जेनेटिक जांच में विलनियस के सामूहिक कब्रिस्तान से मिले 13 शवों में दो नए, घातक बैक्टीरिया पाए गए हैं. इन्होंने नेपोलियन की सेना की तबाही में एक निर्णायक भूमिका निभाई थी.

कब्र में मिले एक दांत की जांच में रिसर्चरों को उस बैक्टीरिया के जेनेटिक अंश मिले, जिसके कारण सैनिकों को पैराटाइफाइड और रिलैप्सिंग फीवर हुआतस्वीर: Claudio Centonze/Commission européenne

प्राचीन अवशेषों में घातक बैक्टीरिया के निशान

निकोलस रास्कोवान और उनकी टीम जब इस कब्रिस्तान पहुंची, तो वो असल में टाइफस और ट्रेंच फीवर जैसी बीमारियों की ही खोज कर रही थी. लेकिन उनके हाथ आईं दो अलग बीमारियां. 

प्राचीन डीएनए के विश्लेषण के लिए आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए वैज्ञानिकों ने दो नए बैक्टीरिया के आनुवंशिक अवशेष पाए. पहला, साल्मोनेला एंटेरिका एंटेरिका, जो पैराटाइफाइड बुखार का कारण बनता है. दूसरा, बोरेलिया रिकरेंटिस, जो रिलैप्सिंग फीवर (यानी, बार-बार लौटने वाले बुखार) का कारण बनता है.

रोमन हॉलीडेः प्राचीन रोम में लोग कैसे मनाते थे छुट्टियां

नेपोलियन के सैनिकों के अवशेषों में अब तक चार अलग-अलग बीमारियों के सबूत मिल चुके हैं. इन सभी में बदन दर्द और थकान जैसे मिलते-जुलते लक्षण होते हैं, जिन्हें आमतौर पर बुखार का लक्षण माना जाता है. साल 1812 में तो सेना के डॉक्टरों के लिए इन बीमारियों में फर्क कर पाना लगभग असंभव था. जांचने पर, उन्हें ये सब एक सी लगती होंगी. जब इन संक्रमणों के साथ भूख, ठंड और लगातार युद्ध करने की थकान भी जुड़ गई, तो सैनिकों के लिए जिंदा बच पाना लगभग नामुमकिन हो गया.

रास्कोवान का मानना है कि इन सैनिकों के अवशेषों में अब भी कई और घातक बीमारियां छुपी हो सकती हैं. मुमकिन है, भविष्य में उनका पता लग पाएगा.उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "2006 के बाद से प्राचीन डीएनए की स्टडी काफी आगे बढ़ गई है और इसमें बहुत तरक्की आई है. आज हम, 200 साल बाद, यह पता लगा सकते हैं कि उस समय कौन-कौन से रोगाणु मौजूद थे."

प्राचीन डीएनए से खुले इतिहास के राज

पेलियोजेनॉमिक्स के वैज्ञानिक प्राचीन अवशेषों में आनुवंशिक संकेतों की खोज करते हैं. निष्कर्ष अक्सर चौंकाने वाले होते हैं. साल 2025 की शुरुआत में, रास्कोवान और उनकी टीम ने पाया कि यूरोपियों के आने से पहले ही, साल 1492 में अमेरिका में कुष्ठ रोग का एक प्रकार फैल रहा था.

पेलियोजेनॉमिक्स पहले भी कई ऐतिहासिक रहस्यों को सुलझाने में काम आ चुका है. जैसे कि, कांस्य युग के दौरान मध्य एशिया से ब्यूबोनिक प्लेग के प्रसार का पता लगाना. इसके अलावा, रिसर्चरों ने यह भी पता लगाया है कि प्राचीन मानवों के समूह किस तरह दुनिया में फैले और कैसे एक-दूसरे के साथ संबंध बनाया.

यहां तक कि साइंस की इस धारा के कारण जर्मन संगीतकार, लुडविष फान बेथोफेन की बीमारियों का रहस्य भी सुलझ पाया. इतिहासकार उत्साहित हैं कि डीएनए विश्लेषण की मदद से पिछली कई शताब्दियों की ऐतिहासिक घटनाओं को और गहराई से समझा जा सकेगा.

एरिका चार्टर्स, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में युद्ध और रोग इतिहास की विशेषज्ञ हैं. उन्होंने बताया, "डीएनए विश्लेषण ना केवल हमारे ऐतिहासिक ज्ञान को और सटीक बनाता है, बल्कि यह हमें उस समय की सामाजिक परिस्थितियों की भी झलक देता है."

चार्टर्स, रास्कोवान की स्टडी में शामिल नहीं थीं. लेकिन, उन्होंने बताया कि 1812 तक नेपोलियन के साम्राज्य का विस्तार इतना विशाल था कि बीमारियों का पूरे यूरोप में फैलना आसान हो गया था. सिर्फ इसलिए नहीं कि सैनिक लगातार यात्रा कर रहे थे, बल्कि इसलिए भी कि फ्रांसीसी साम्राज्य और उसके सहयोगी देशों के बीच व्यापारिक गतिविधियां बीमारी फैलाने का माध्यम बन गई थीं.

रास्कोवान की टीम ने जिन दो बैक्टीरिया को खोजा, उसमें से एक का संबंध ब्रिटेन से पाया गया. यह दिलचस्प है, क्योंकि ब्रिटेन उस समय नेपोलियन का दुश्मन था और समुद्र के पार फ्रांस से अलग था. यह खोज दिखाती है कि युद्ध के समय बीमारियां कितनी तेजी से सीमाएं पार कर सकती हैं और दूर-दूर तक फैल सकती हैं.

चार्टर्स ने डीडब्ल्यू को बताया, "रूस से फ्रांसीसी सेना की वापसी सच में हैरान करने वाली है. उन्होंने अपनी 95 फीसदी सेना खो दी और उस दौरान युद्ध भी बहुत कम हुए थे."

इंका सभ्यता में गांठों की अद्भुत भाषा

04:34

This browser does not support the video element.

युद्ध और बीमारी: एक साथ होने वाली त्रासदी

इतिहासकार एरिका चार्टर्स बताती हैं कि इतिहास के नजरिए से देखें, तो इतने बड़े पैमाने पर सैनिकों की मौत जरा असामान्य लग सकती है, लेकिन युद्ध के समय बीमारियों का फैलना और उनसे लोगों का मरना बिल्कुल भी असमान्य बात नहीं थी.

उन्होंने बताया कि जब किसी देश में प्राशासनिक ढांचा टूट जाता है और खाद्य आपूर्ति बाधित होती है, तो इससे बीमारियों के प्रकोप की संभावना बहुत बढ़ जाती है. चार्टर्स ने कहा, "हम देखते हैं कि जैसे ही किसी जगह जंग छिड़ती है, तो साथ ही महामारियां भी फैलने लगती हैं. युद्ध और बीमारी, ये दोनों घटनाएं अक्सर एक साथ ही घटती हैं."

चार्टर्स ने यह भी बताया कि कैसे 15वीं और 16वीं सदी के संघर्षों के दौरान यूरोप में सिफिलिस फैला था. इसी तरह, पहले विश्व युद्ध के बाद भी इन्फ्लुएंजा ने पूरी दुनिया में तबाही मचाई थी. युद्ध के दौरान बीमारियां कैसे फैलती हैं, इसे समझना आज भी उतना ही जरूरी है. इससे आधुनिक संघर्षों से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों का अंदाजा लगाया जा सकता है.

चार्टर्स बताती हैं, "अगर आप आज अपने आसपास देखें और यह तलाश करें कि फिलहाल महामारियां कहां फैल रही हैं, तो अक्सर यह संघर्ष वाली जगहों पर मिलेगा. क्योंकि, संघर्ष के कारण जल आपूर्ति की व्यवस्था तबाह हो गई होगी. इसका मतलब है कि सफाई की व्यवस्था खत्म हो गई और बीमारियां फैलने लगीं."

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें