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समाजजर्मनी

बच्चों को स्मार्ट नहीं, बुद्धू बना रहा है कम्प्यूटर?

फ्रेड श्वालर
१ दिसम्बर २०२३

बच्चों के विकास में कम्प्यूटर का बुरा असर होता है. ये कहना है उन 40 शोधकर्ताओं का, जिन्होंने जर्मन स्कूलों के डिजिटलीकरण पर रोक लगाने की याचिका डाली है.

Grundschüler
कुछ जर्मन रिसर्चर चाहते हैं कि प्राइमरी स्कूलों में कम्यूटर का इस्तेमाल नहीं होना चाहिएतस्वीर: Dave Thompson/PA/picture alliance/empics

स्कूली शिक्षा में कम्प्यूटर और टैबलेट की अहमियत बढ़ती ही जा रही है. संयुक्त राष्ट्र डाटा के मुताबिक, दुनिया के 46.7 प्रतिशत प्राइमरी स्कूलों में कम्प्यूटर की सुविधा दी गई है. यूरोप में ये आंकड़ा 98 फीसदी है.

हालांकि हर कोई नहीं मानता कि कम्प्यूटर कक्षाओं के लिए फायदेमंद होते हैं. ऑफनबाख यूनिवर्सिटी में मीडिया सिद्धांत के प्रोफेसर राल्फ लानकाउ का कहना है, "टैबलेट और लैपटॉप बच्चों को स्मार्ट नहीं बल्कि बुद्धू बनाते हैं." उनका इशारा 10 साल की उम्र तक के बच्चों की ओर है.

लानकाउ उन 40 अकादमिक विद्वानों में से हैं जिन्होंने जर्मनी की "गेजलशाफ्ट फ्युर बिल्डुंग उंड विजन (शिक्षा और ज्ञान का समाज) के जरिए एक याचिका तैयार की है जिसमें बच्चों के विकास पर डिजिटल तकनीक के प्रभावों पर चिंता जताई गई है.

ये समूह, जर्मनी में 4 से 11 साल की उम्र के बच्चों के लिए स्कूलों और किंडरगार्डनों में डिजिटलीकरण पर रोक लगाने की मांग कर रहा है.

लानकाउ ने डीडब्ल्यू को बताया, "मकसद डिजिटल तकनीक को बैन करने का नहीं, बल्कि शिक्षण के काम की ओर लौटने का है. हमें ये पूछना चाहिएः सीखने का उद्देश्य क्या है और एनालॉग और डिजिटल मीडिया उसमें हमारी मदद कैसे करेगा? ये नहीं पूछना चाहिए कि कौन सी नयी तकनीक उपलब्ध है और उसे स्कूल में कैसे इस्तेमाल करें?"

डिजिटल तकनीकी शिक्षा पर पुनर्विचार

ये याचिका ऐसे समय में सामने आई जब डिजिटलीकरण में पिछड़ जाने के लिए जर्मन स्कूलों की आलोचना हो रही है, लेकिन लानकाउ और दूसरे विद्वान चाहते हैं कि जर्मन शिक्षा मंत्रालय किंडरगार्डन और कक्षाओं में टेक्नोलोजी के उपयोग के बारे में फिर से सोचे.

लानकाउ कहते हैं कि मौजूदा शिक्षा प्रणाली, सामाजिक कौशल सीखने और उनके शैक्षिक फायदों पर फोकस नहीं करती.

वह कहते हैं, "शैक्षणिक संस्थाओं को एक एक बच्चे पर फोकस करना चाहिए कि वे कैसे अपनी रुचियों और झुकावों के मुताबिक विकास कर, सामाजिक समुदाय का हिस्सा बन सकते हैं."

उनके मुताबिक मुख्य समस्या ये है कि 40 साल से आईटी और बिजनेस संगठन ही तय कर रहे हैं कि स्कूलों में क्या होगा जबकि पूछना ये चाहिए कि "स्टाफ और संभवतः मीडिया टेक्नोलोजी के लिहाज से भी, आपके स्कूल की स्थानीय जरूरतें क्या हैं?"

दुनिया भर में बच्चे ज्यादा से ज्यादा कंप्यूटर के इस्तेमाल की तरफ बढ़ रहे हैंतस्वीर: Hannibal Hanschke/REUTERS

कम्प्यूटर और बाल विकास में जुड़ाव के साक्ष्य क्या है?

ग्रीस की वेस्ट एटिका यूनिवर्सिटी में बाल शिक्षा और डिजिटल टेक्नोलोजी की विशेषज्ञ मारिया हैत्जिगियानी का कहना है कि लानकाउ की टिप्पणियां, पुराने "टेक्नोलोजी विरोधी" रुझान का हिस्सा हैं.

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "लोग 1990 के दशक से कम्पूयटरों को लेकर ऐसी टिप्पणियां करते आ रहे हैं. जब कभी नई टेक्नोलोजी सामने आती है, लोग दहशत में आ जाते हैं. करीब ढाई हजार साल पहले सुकरात ने भी कहा था कि हम चीजों को लिखने लगे तो उन्हें भूलने लगेंगे."

लेकिन कम्प्यूटर का इस्तेमाल बच्चों के लिए आखिर कितना बुरा है? क्या ये मामला महज बड़ों का बच्चों को बार बार झिड़कने जैसा है कि कम्प्यूटर स्क्रीन से दूर रहें, या चिंताए वास्तविक हैं?

अमेरिका की नॉर्थ डकोटा यूनिवर्सिटी में साइबर सुरक्षा रिसर्च सेंटर के निदेशक प्रकाश रंगनाथन के मुताबिक, बच्चों के विकास में डिजिटल टेक्नोलोजी के प्रभावों से जुड़े वैज्ञानिक साक्ष्य मिले-जुले हैं.

रंगनाथन ने डीडब्ल्यू को बताया, "संज्ञानात्मक विकास (सोचने-समझने के तरीके) पर पड़ने वाले असर को लेकर कुछ प्रमाण तो है, कम्प्यूटर के अत्यधिक इस्तेमाल से ध्यान केंद्रित कर पाने में अक्षमता, सीखने के निष्क्रिय अनुभव की ओर ले जाती है जिससे आलोचनात्मक ढंग से सोचने-समझने और समस्या को हल का कौशल बाधित होता है. लेकिन ये अस्पष्ट है कि ये संभावित नकारात्मक प्रभाव कम समय के लिए होते हैं या लंबे समय तक बने रहते हैं."

कुछ अध्ययनों ने पाया है कि कम्प्यूटरों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल, शारीरिक सेहत को प्रभावित करता है. इसमें मोटापा, नींद न आना और घबराहट-बेचैनी जैसी स्थितियां शामिल हैं.

इनमें से कई चिंताएं, युवाओं पर इंटरनेट और सोशल मीडिया के प्रभावों से उठे व्यापक डरों से जुड़ी हैं. लेकिन रंगनाथन कहते हैं कि ये जुड़ाव कितना ठोस है, इसके लिए और रिसर्च की जरूरत है.

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बाल विकास में मदद कर सकते हैं कम्प्यूटर

रंगनाथन कहते हैं कि कम्प्यूटरों के वैसे और बहुत बड़े फायदे भी हैं.

रंगनाथन और हैत्जिगियानी ने उस रिसर्च को रेखांकित किया जिसमें दिखाया गया है कि सीखने के संदर्भ में डिजिटल टेक्नोलोजी में जो भी काम हुए, वे साक्षरता और अंक-ज्ञान की क्षमता, हाथ की फुर्ती, दृश्य-स्थानिक कार्य स्मृति यानी किसी जगह पर किसी चीज को चिन्हित कर याद रखने का कौशल बढ़ाने में असरदार रहे.

अध्ययनों में पाया गया है कि इंटरैक्टिव डिजिटल टेक्नोलोजी के उपयोग से बच्चों में भाषा को सीखने, ध्यान केंद्रित कर कार्य संपन्न करने और याददाश्त के कौशल बढ़ जाते हैं.

हैत्जिगियानी कहती हैं, "हमारे पास रोबोटिक्स, कोडिंग, भाषा का सबक, क्रियात्मक साक्षरता, गणित- सब कुछ है. टेक्नोलोजी वह औजार है जिसके जरिए हम सूचना हासिल करते हैं और अपने सबक को रचनात्मक बनाते हैं. मेटाकॉग्निशन यानी अपनी चिंतन प्रक्रिया के बारे में जागरूक होने में इससे भारी मदद मिलती है."

शिक्षा में बच्चों की भागीदारी

4 से 6 साल की उम्र वाले बच्चों के लिए किंडरगार्टन में डिजिटल लर्निग ऐप तैयार करने के लिए हैत्ज्गियानी, ग्रीक सरकार के साथ काम कर रही हैं. उनका कहना है कि बच्चों, अध्यापकों और माता-पिता की परस्पर भागीदारी वाले लर्निंग प्लेटफॉर्म सबसे ज्यादा कामयाब रहे हैं.

वह कहती हैं, "सही सवाल ये होना चाहिएः सीखने की प्रक्रिया को बढ़ाने और शिक्षण को सुधारने के लिए हम सही टेक्नोलोजी का इस्तेमाल बिना डरे कैसे करेंगे."

उनका कहना है कि स्वस्थ डिजिटल माहौल बनाने के लिए जरूरी है कि शिक्षक बच्चों के साथ मिलकर काम करें. उन्होंने बच्चों के इनपुट की अनदेखी के लिए जर्मन समूह की आलोचना कीः "ये काफी विंडबनापूर्ण है, वे कहते हैं कि वे बच्चों में ज्यादा आलोचनात्मक सोच और विश्लेषण क्षमता पैदा कराना चाहते हैं, लेकिन वे बच्चों से उनकी डिजिटल शिक्षा का विकल्प भी छीन ले रहे हैं. क्या उन्होंने कभी बच्चों से पूछा कि वे क्या चाहते हैं?"

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