1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

अफ्रीका को अनाज की मदद के पीछे क्या है रूस का इरादा?

प्रिविलेज मुसवानहिरि
२९ मार्च २०२४

भीषण सूखे की चपेट में आए जिम्बाब्वे की मदद के लिए रूस ने अनाज की खेप भिजवाई है. लाखों लोगों के सामने भुखमरी का संकट है. लेकिन प्रेक्षकों को संदेह है कि रूसी मदद पूरी तरह से मानवीय है या उसकी मंशा कुछ और है.

जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति एमर्सन मनगाग्वा के साथ रूस के राष्ट्रपति पुतिन
जिम्बाब्वे उन छह अफ्रीकी देशों में है, जिन्हें रूस से अनाज मिला है. उसके अलावा देश बुर्किना फासो, माली, इरिट्रिया, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक और सोमालिया हैं.तस्वीर: Mikhail Metzel/AP/picture alliance

विनाशकारी सूखे से निपटने के लिए मानवीय मदद के तौर पर रूस की ओर से जिम्बाब्वे को 25,000 मीट्रिक टन गेहूं और 23,000 टन उर्वरक भेजा गया है.

अल नीनो की वजह से 2023-24 के दौरान अधिकांश फसलें खत्म हो गईं, जिसकी वजह से 30 लाख से ज्यादा लोगों पर भुखमरी का खतरा मंडराने लगा है. जिन किसानों की फसल चौपट हो गई, उनमें 79 साल के एनी न्याशानु भी हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि हालात बहुत खराब हैं, "मुझे इस फसल से काफी उम्मीदे थीं. मुझे भरोसा था कि पैदावार से हम गुजारा कर पाएंगे. लेकिन अब कोई उम्मीद नहीं, और न ही कहीं भागने की जगह है. पूरा देश इसकी चपेट में है."

पूरे जिम्बाब्वे में, खासतौर पर मानीकलांद प्रांत के बुहेरा जिले में फसलें सूख कर खत्म हो गईं. खाद्य वितरण केंद्र में एक निवासी ने बताया, "खेतों में कुछ भी नहीं बचा. हम लोग बेसब्री से बारिश का इंतजार कर रहे हैं. खेतों से कुछ मिलेगा, ये उम्मीद हमने छोड़ दी है."

संयुक्त राष्ट्र का विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) पर्याप्त खाद्य मदद के लिए जूझ रहा है. डब्ल्यूएफपी जिम्बाब्वे से जुड़ी शेरिता मानयिका बताती हैं, "फंडिंग की चुनौती है और बनी रहेगी." डब्ल्यूएफपी पूरी तरह स्वैच्छिक दान से फंड हासिल करता है. मानयिका कहती हैं कि पैसों की भारी कमी है.

कई जानकारों के मुताबिक, अफ्रीकी देशों को गेहूं और उर्वरक भेजना रूस के लिए प्रभाव बढ़ाने की एक कोशिश हो सकती है. तस्वीर: Fanny Noaro-Kabre/AFP/Getty Images

बचाने के लिए आगे आया रूस?

2023 की रूस-अफ्रीका शिखर बैठक के दौरान अफ्रीकी देशों को दो लाख टन अनाज देने का अपना संकल्प पूरा करते हुए रूस ने ताजा मदद भेजी, जो जिम्बाब्वे के लिए डूबते को तिनके का सहारा जैसी थी. जिम्बाब्वे उन छह अफ्रीकी देशों में है, जिन्हें रूस से अनाज मिला है. उसके अलावा देश बुर्किना फासो, माली, इरिट्रिया, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक और सोमालिया हैं.

जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति एमर्सन मनगाग्वा ने रूसी दान की दिल से प्रशंसा करते हुए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का आभार जताया है. एक आधिकारिक कार्यक्रम में मनगाग्वा ने कहा, "जिम्बाब्वे के लोगों और सरकार की ओर से मैं अपने प्रिय भाई, रूसी फेडरेशन के अध्यक्ष के प्रति अपना गहरा आभार व्यक्त करता हूं."

जिम्बाब्वे में बहुत से लोग उम्मीद करते हैं कि उनके जीवन को बचाने के लिए ये मदद आगे भी जारी रह पाएगी. खाद्य वितरण केंद्र में एक महिला ने डीडब्ल्यू से कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि हमारे परिवारों की जिंदगी के लिए ये मदद जारी रहेगी. हमारे पास भोजन जुटाने का कोई और जरिया नहीं है."

रूस के इरादों पर सवाल

अनाज की मदद जिम्बाब्वे के लिए एक राहत है, लेकिन कुछ जानकार इसे अफ्रीका में रूसी इरादों से जोड़कर देखने लगे हैं. लंदन स्थित चैटम हाउस में अफ्रीका प्रोग्राम के निदेशक एलेक्स वाइंस ने डीडब्ल्यू को बताया कि रूसी दान मानवीय आधार पर उतना नहीं, जितना कि राजनीतिक रणनीति से प्रेरित हो सकता है.

वाइंस बताते हैं, "यह अफ्रीका में रूस की कसती कूटनीति नहीं है. यह रूस के बेहतरीन मित्रों को पुरस्कृत करना है, या उन देशों को जिनके साथ रूस अपनी सक्रियता बढ़ाना चाहता है." वह आगे कहते हैं कि ऐसे कई अफ्रीकी देश जिन्हें मदद की शायद ज्यादा जरूरत है, इस अनाज के करार में शामिल नहीं किए गए थे, ऐसे में "यह मानवीय मदद की अपेक्षा एक राजनीतिक कदम है."

इसके अलावा, पश्चिमी शक्तियों के साथ जिम्बाब्वे के तनावपूर्ण रिश्ते रूस को एक आकर्षक साझेदार बनाते हैं. इस बहाने वह अपना प्रभाव भी दिखा सकता है. वाइंस कहते हैं, "जिम्बाब्वे एक ऐसा देश है, जिसके पश्चिम के साथ रिश्ते खराब हैं. यह एक राजनीतिक बयान है, जिसके जरिए दिखाया जा रहा है कि उनके पास दूसरे पार्टनर भी हैं और रूस उनमें से एक है."

अनिवार्य संसाधन मुहैया कराकर रूस खुद को एक भरोसेमंद दोस्त की तरह पेश कर रहा है. इस तरह उसने पश्चिम के साथ खराब संबंधों से पैदा हुई खाली जगह को भरने की कोशिश की है.

यहां दाने-दाने को मोहताज हैं लोग

02:58

This browser does not support the video element.

यूक्रेन युद्ध से 'अतिरिक्त बोझ में दबा' हुआ रूस

रूसी मदद की खेप जारी है. साथ ही साथ, अफ्रीका के साथ रूस के जुड़ाव के दूरगामी निहितार्थों के बारे में भी सवाल उठने लगे हैं. अनाज की और अधिक मदद भेजने और संबंधों की मजबूती के बावजूद वाइंस कहते हैं कि अफ्रीका में टिकाऊ भागीदारी की रूसी क्षमता, अन्य जगहों पर उसकी व्यस्तताओं या प्राथमिकताओं की वजह से सीमित हो सकती है, खासकर यूक्रेन पर हमले के कारण.

वाइंस बताते हैं, "रूसी रणनीति अफ्रीकी महाद्वीप के साथ रिश्ते जोड़ने की है. वास्तविकता ये है कि रूस बहुतक व्यस्त है, उस पर बहुत बोझ है." सैन्य कोशिशों समेत रूस के तमाम संसाधन दूसरी प्राथमिकताओं पर खर्च हो रहे हैं, जिस वजह से अफ्रीका में अपनी उपस्थिति को पुख्ता करने की उसकी क्षमता के सामने चुनौतियां हैं.

इधर जिम्बाब्वे सरकार का ध्यान जनता को ये विश्वास दिलाने पर है कि कोई भी भूखा नहीं रहेगा. जिम्बाब्वे के सूचना मंत्री जेनफन मुसवेरे कहते हैं, "खाद्य-असुरक्षा वाले लोगों का पंजीकरण और अनाज का वितरण देश के आठों ग्रामीण प्रांतों के सभी इलाकों में शुरू हो चुका है. अल नीनो से पड़ने वाले सूखे की अवधि में भी ये काम निर्बाध चलता रहेगा."

रूस-अफ्रीका संबंधों का भविष्य

रूस में ब्लादीमिर पुतिन ने 5वीं बार राष्ट्रपति पद संभाला है. लेकिन यह अनिश्चित है कि अफ्रीका को और अनाज भेजा जाएगा या नहीं. ये भी साफ नहीं है कि अफ्रीका के साथ रूस के रिश्ते क्या आकार लेंगे.

वाइंस का मानना है कि यूक्रेन की लड़ाई से रूसी संसाधन वहीं सिमट कर रह गए हैं. वह कहते हैं, "अफ्रीकी देशों को रक्षा मदद में हम काफी गंभीर कटौती देखते हैं क्योंकि रूस का सैन्य साजो-सामान युद्धरत क्षेत्र की ओर मोड़ा जा रहा है." वाइंस के मुताबिक इसका एक आशय यह है कि अफ्रीका में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए चीन जैसे दूसरे देशों के लिए संभावित दरवाजा खुल सकता है.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें