क्या मकड़ियां सोती हैं? यही जानने को जागते रहे वैज्ञानिक
१० अगस्त २०२२
मकड़ियों का मनुष्य प्रजाति से रिश्ता बहुत दूर का है. इसलिए दोनों के बीच कम ही चीजें मिलती हैं. तो क्या मकड़ियां वैसे ही सोती हैं, जैसे मनुष्य या अन्य प्रजातियां? कुछ वैज्ञानिक इस सवाल के लिए रतजगे कर रहे हैं.
विज्ञापन
क्या मकड़ियां सोती हैं? यह एक ऐसा सवाल है जो कुछ वैज्ञानिकों को सोने नहीं दे रहा है. इस सवाल का जवाब खोजने के लिए डेनिएला रोएसलर और उनके सहकर्मियों ने कई रातें जाग कर काटी हैं. उन्होंने मकड़ियों की रातों की गतिविधियां जानने के लिए कैमरों के जरिए उनके वीडियो फिल्माए. इन वीडियो को जब लगातार आंका गया तो एक तरह का निश्चित व्यवहार पकड़ में आया.
डेनिएला और उनके साथियों ने कई-कई रातों तक फिल्माए गए वीडियो का अध्ययन किया और पाया कि मकड़ियों का भी एक तरह का निद्रा चक्र होता है. एक वक्त आता है जब उनकी आंखें झपकने लगती हैं और टांगें मुड़ जाती हैं. इस अवस्था को वैज्ञानिकों ने ‘तीव्र नेत्र गति – नींद जैसी स्थिति' (REM – Rapid Eye Movement) नाम दिया है. वे बताते हैं कि आरईएम एक ऐसी अवस्था है जब मस्तिष्क के कुछ हिस्से किसी गतिविधि के कारण सक्रिय हो जाते हैं. इसे सपने देखने की अवस्था भी माना जाता है.
नया है यह अध्ययन
कुछ पक्षियों और स्तनधारियों में भी आरईएम नींद की अवस्था देखी गई है. लेकिन मकड़ियों का इस विषय में ज्यादा अध्ययन नहीं हुआ है. जर्मनी की कोंस्टांज यूनिवर्सिटी में जीवविज्ञानी रोएसलर कहती हैं कि अभी तक पता ही नहीं है कि मकड़ियां सोती हैं या नहीं. कोंस्टांज और उनके साथियों का यह शोध ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकैडमी ऑफ सांइसेज' नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.
रोएसलर ने इस शोध पर काम करना तब शुरू किया जब एक दिन उन्होंने अपने प्रयोगशाला में रात के वक्त एक मकड़ी को जाले से लटका देखा. वह जंपिंग स्पाइडर कही जाने वालीं इन मकड़ियों को एक अन्य अध्ययन के लिए कुछ समय पहले ही लेकर आई थीं. यह बहुत आम प्रजाति होती है जिसका भूरे बालों से ढका शरीर होता है और दो बड़ी आंखें भी. उस वक्त को याद करते हुए रोएसलर कहती हैं, "मैंने जो देखा वह सबसे अनोखी चीज थी.”
दुनिया के सबसे जहरीले जीव
रोएंदार पैरों वाली विशाल मकड़ी गोलायथ से लेकर 2.5 फीट के कोमोडो ड्रैगन तक दुनिया के सबसे जहरीले जीव यह सब शामिल हैं. पृथ्वी पर 20,000 से ज्यादा कीड़े, सांप, बिच्छू और दूसरे ऐसे जीव है जिन्हें विषैला माना जाता है.
तस्वीर: Trustees of Natural History Museum, London, Goliath Vogelspinne
गोलियाथ फोगल स्पिन्ने
तस्वीर: Trustees of Natural History Museum, London, Goliath Vogelspinne
फ्लॉवर अर्चिन
तस्वीर: Trustees of Natural History Museum, London
ब्लैक विडो मकड़ी
तस्वीर: Trustees of Natural History Museum, London, Falsche schwarze Witwe
कोस्टल ताइपान
तस्वीर: Trustees of Natural History Museum, London, Coastal Taipan
स्कॉर्पियन
तस्वीर: Trustees of Natural History Museum, London
गाबोन वाइपर
तस्वीर: Trustees of Natural History Museum, London, Gabon Viper
मून जेलीफिश
तस्वीर: Trustees of Natural History Museum, London, Moon Jellyfish, Mondqualle
लेसर वीवर फिश
तस्वीर: Trustees of Natural History Museum, London, Lesser Weever Fish
तारंतुला हॉक वैस्प
तस्वीर: Trustees of Natural History Museum, London
9 तस्वीरें1 | 9
बस तभी उन्होंने और उनके साथियों ने अध्ययन करना शुरू कर दिया. उन्होंने रात को मकड़ियों को रिकॉर्ड करना शुरू किया. अध्ययन में उन्होंने पाया कि मकड़ियों की रात की गतविधियां अन्य प्रजातियों में पाए जाने वाले आरईएम साइकल जैसी ही हैं. रोएसलर बताती हैं कि जैसे कुत्ते और बिल्लियां अपनी नींद में अचानक उछलते हैं, वैसा ही होता है. एक और विशेष बात यह पता चली कि नींद का यह चक्र वैसा ही है जैसा इंसानों में होता है.
विज्ञापन
क्या हैं चुनौतियां?
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में जीवविज्ञानी पॉल शैंबल भी इस शोध का हिस्सा रहे हैं. वह बताते हैं कि मकड़ियों जैसी ज्यादातर प्रजातियों की आंखों में गतिशीलता नहीं होती, इसलिए उनकी नींद का अध्ययन करना चुनौतीपूर्ण है. वह कहते हैं, "ये जंपिंग स्पाइडर ऐसे शिकारी जीव हैं जो अपनी आंखों की पुतलियों को इधर-उधर हिलाते हैं. शिकार करते वक्त अपनी नजर को बदलने के लिए वे ऐसा करते हैं. साथ ही, युवा मकड़ियों की आंखों पर पारदर्शी परत होती है जिससे उनके शरीर के भीतर देखना आसान है.”
रोएसलर और उनका दल यह सब देख पाया, इसके बारे में शैंबल यह भी कहते हैं कि कई बार जीवविज्ञानी के रूप में आपकी किस्मत भी आपका बहुत साथ देती है. फिलहाल शोध शुरुआती दौर में है. इस दल को यह पता करना है कि रात का यह आरईएम साइकल तकनीकी रूप से सोना माना जा सकता है या नहीं. रोएसलर बताती हैं कि अभी जांच करनी है कि इस अवस्था में उनकी प्रतिक्रिया होती ही नहीं है या एकदम धीमी हो जाती है.
कहीं आपको भी कोई फोबिया तो नहीं
फोबिया यानि डर कई तरह के होते हैं. लोगों को कुत्ते, बिल्ली, कीड़े, परिंदे और यहां तक कि इंसानों से भी डर लगता है. जितने अजीब ये डर हैं, उतने ही अजीब उनके नाम भी हैं.
तस्वीर: Fotolia/ lassedesignen
एरेकनोफोबिया
मकड़ी से डर सबसे आम तरह का फोबिया है और इसके शिकार एक तिहाई लोग अमेरिका में हैं. हालांकि मकड़ी की 40,000 में से केवल 20 ही प्रजातियां इंसान को नुकसान पहुंचाने लायक जहरीली होती हैं.
तस्वीर: Fotolia/fovito
ओफिडियोफोबिया
दूसरे नंबर पर है सांप का डर. रिसर्चर इसे एक सर्वाइवल इंस्टिंक्ट यानि जीवित रहने के लिए इंसानों में कुदरत द्वारा डाला गया एक जरूरी डर बताते हैं. दुनिया की एक तिहाई आबादी को सांप से डर लगता है.
ऊंचाई से डर. 100 में से करीब पांच लोगों को इस तरह का फोबिया होता है. कई बार डर की हद यह हो जाती है कि वह पैनिक अटैक में तब्दील हो जाता है. ऐसे में सांस लेना तक मुश्किल हो सकता है.
तस्वीर: Imago/Norbert Schmidt
एगोराफोबिया
ऐसे लोगों को खुली जगह और भीड़ भाड़ दोनों से डर लगता है. किसी खुले खेत में जा कर उन्हें लग सकता है कि वे वहां खो जाएंगे और कभी बाहर नहीं आ सकेंगे. ऐसे लोग अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Ehlers
सायनोफोबिया
कुत्ते से डर ज्यादातर महिलाओं को लगता है. इस डर की शुरुआत बचपन में ही हो जाती है. सांप और मकड़ी के बाद जानवरों से डर के मामले में कुत्तों का डर सबसे आम है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Fischer
एस्ट्राफोबिया
ऐसे लोगों को बिजली के कड़कने और बादलों के गरजने से डर लगता है. यह डर ज्यादातर बच्चों में पाया जाता है. इंसानों के अलावा जानवरों में भी ऐसा डर देखा गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Schmidt
क्लॉस्ट्रोफोबिया
तंग जगहों का डर. इस तरह के डर के कारण लोग लिफ्ट में जाने से कतराते हैं. एमआरआई मशीन में जाना उनके लिए नामुमकिन होता है. हालांकि इसे दूर किया जा सकता है लेकिन बहुत कम ही लोग अपना इलाज करवाते हैं.
तस्वीर: Fotolia/lassedesignen
मायजोफोबिया
कीटाणुओं का डर. ऐसे लोग बार बार नहाते हैं, अपने हाथ धोते हैं, सैनिटाइजर लगाते हैं, लोगों से हाथ मिलाने से कतराते हैं. इस तरह के लोगों को अक्सर ओसीडी यानि ऑब्सेसिव कम्पल्जिव डिसऑर्डर भी होता है.
तस्वीर: BilderBox
एरोफोबिया
उड़ान से डर. जिन लोगों को काम के सिलसिले में काफी यात्रा करनी होती है, उनके करियर पर इस डर का प्रभाव पड़ता है. फ्लाइट लेने के ख्याल से ही सांस फूलने लगती है और चक्कर आने लगता है.
तस्वीर: Imago
डेंटोफोबिया
डेंटिस्ट के पास जाने से बहुत लोग कतराते हैं. जिन्हें डेंटोफोबिया होता है उन्हें दांतों में ड्रिल से डर लगता है. हालांकि आधुनिक तकनीक में दांतों को पहले की तरह ड्रिल नहीं किया जाता लेकिन डर बरकरार है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Stratenschulte
त्रिसकेडेकाफोबिया
नंबर 13 से डर. बहुत लोग 13 नंबर को अशुभ मानते हैं. दुनिया के कई मशहूर लेखक और संगीतकार भी इससे डरते रहे हैं. यहां तक कि कई इमारतों में तो इस डर के कारण 13वां माला ही नहीं होता.
तस्वीर: DW/C. Chimoy
कार्सिनोफोबिया
यह है कैंसर से डर. ऐसे लोग अपने खान पान पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देते हैं. उन्हें डर लगा रहता है कि कहीं वे कुछ ऐसा ना खा लें जिससे उन्हें कैंसर हो जाए.
तस्वीर: Colourbox
ग्लॉसोफोबिया
एक अच्छा वक्ता लोगों को मंत्रमुग्ध कर सकता है लेकिन ऐसे भी बहुत लोग होते हैं जिनके स्टेज पर जाते ही पसीने छूट जाते हैं. इसी को ग्लॉसोफोबिया कहा जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Gambarini
मोनोफोबिया
अकेलेपन से डर. ऐसे लोगों को जीवन में अकेले छूट जाने का डर तो होता ही है, साथ ही अकेले बैठ कर खाना खाना या फिर बिस्तर में अकेले सोना भी इनके लिए मुमकिन नहीं होता.
तस्वीर: Fotolia
ऑर्निथोफोबिया
परिंदों से डर. जरूरी नहीं कि इन्हें जानवरों या कीड़ों से भी डर लगता हो. ऐसे लोग अक्सर कुत्ते, बिल्लियों से काफी प्यार करते हैं. इन्हें बस परिंदों का अपने इर्द गिर्द उड़ना बर्दाश्त नहीं होता.
तस्वीर: picture-alliance/chromorange/M. Raedlein
टेलेगफोनोफोबिया
ऐसे लोगों को फोन पर बात करने से डर लगता है. वे एसएमएस या फिर ईमेल के जरिये बात करना पसंद करते हैं. बाकी कई डरों की तरह यह भी बेतुका है लेकिन सच है.
तस्वीर: picture-alliance/Bildagentur-online/Tetra
कैटोपट्रोफोबिया
आईने से डर. ऐसे लोग खुद को आईने में देखने से डरते हैं. अधिकतर वे खुद को बदसूरत या मोटा समझते हैं. एक कमरे में अगर बहुत सारे आईने हों, तो उन्हें पैनिक अटैक भी हो सकता है.
तस्वीर: Fotolia/giorgiomtb
टोकोफोबिया
ऐसी महिलाओं को गर्भावस्था और बच्चे को जन्म देने से डर लगता है. डॉक्टर मानते हैं कि इस डर को अधिकतर संजीदगी से नहीं लिया जाता, जबकि महिलाओं की मानसिक स्थिति पर इसका काफी बुरा असर हो सकता है.
तस्वीर: Imago/Westend61
सोमनीफोबिया
ऐसे लोगों को नींद से डर लगता है. उन्हें लगता है कि उनके सोने के बाद उनके साथ कुछ ऐसा बुरा हो सकता है जिसका नींद के कारण वे सामना नहीं कर पाएंगे. इसलिए वे जगे रहते हैं. इस स्थिति को इनसोमनिया कहते हैं.
तस्वीर: Fotolia/Focus Pocus LTD
निक्टोफोबिया
ऐसे लोगों को अंधेरे से डर लगता है. वे रात में बत्ती जला कर सोना पसंद करते हैं. अक्सर बच्चों में ऐसा डर देखने को मिलता है.
तस्वीर: Fotolia/Maksym Dykha
20 तस्वीरें1 | 20
फिर भी, इस शोध को लेकर दुनिया के अन्य जीवविज्ञानी उत्साहित हैं. विस्कॉन्सिन-ला क्रॉस यूनिवर्सिटी में कीट-पतंगों पर अध्ययन करने वाले बैरेट क्लाइन कहते हैं कि यह बहुत उत्साहित करने वाली बात है कि मनुष्य से इतनी दूर की प्रजाति में भी आरईएम साइकल के संकेत मिले हैं लेकिन बहुत सारे सवालों के जवाब अभी खोजने बाकी हैं. क्लाइन कहते हैं, "आरईएम नींद अभी बहुत हद तक एक ब्लैक बॉक्स है.”