'खबर लहरिया' को बुंदेलखंड में सिर्फ महिला पत्रकारों की एक टीम चलाती है. इन पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म को ऑस्कर पुरस्कारों के लिए मनोनीत किया गया है.
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'राइटिंग विद फायर' नाम की इस डॉक्यूमेंट्री को रिंटू थॉमस और सुष्मित घोष ने बनाया है. इसे 'सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री फीचर' के ऑस्कर पुरस्कार के लिए मनोनीत किया गया है. फिल्म में 'खबर लहरिया' की टीम के अखबार से डिजिटल मीडिया बनने के सफर को दिखाया गया है. यह ऑस्कर के लिए मनोनीत होने वाली पहली भारतीय फीचर डॉक्यूमेंट्री है.
'खबर लहरिया' उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में फैले बुंदेलखंड इलाके में ग्रामीण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित रखने वाला एक मीडिया संगठन है जिसमें सिर्फ महिलाएं काम करती हैं. इसमें पत्रकारों की एक टीम है जिसके सदस्य ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को पत्रकारिता का प्रशिक्षण भी देते हैं.
यही महिलाएं फिर अपने और अपने समाज की कहानियां बयां करती हैं. इस तरह स्थानीय भाषाओं में स्थानीय मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने के लिए स्थानीय महिलाओं को ही पत्रकारिता का प्रशिक्षण दे कर एक संस्था चलाने के इस मॉडल को 2009 में संयुक्त राष्ट्र का यूनेस्को किंग सेजोंग पुरस्कार दिया गया था.
'खबर लहरिया' की शुरुआत 2002 में एक अखबार के रूप में हुई थी. 2013 में इसकी वेबसाइट शुरू की गई, 2015 में यूट्यूब चैनल और फिर 2019 में सब्सक्रिप्शन आधारित सेवाएं. संस्था का दावा है कि इसकी डिजिटल सेवाएं हर महीने करीब एक करोड़ लोगों तक पहुंचती हैं.
संस्था की वेबसाइट के मुताबिक "खबर लहरिया खासतौर पर सरकार की ग्रामीण विकास और सशक्तिकरण के लिए बनाई गई योजनाओं के दावों और उनकी हकीकत के बीच के अंतर को उजागर करता है." कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह भी बताया जा रहा है कि यह दलित महिलाओं का संगठन है. हालांकि खुद 'खबर लहरिया' की वेबसाइट पर ऐसा दावा नहीं किया गया है.
पुरस्कृत फिल्मकार
'राइटिंग विद फायर' डॉक्यूमेंट्री को बनने में पांच साल लगे. इसे पहली बार 2021 में अमेरिका के प्रतिष्ठित सनडांस फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया था. यह सुष्मित की पहली डॉक्यूमेंट्री फीचर फिल्म है.
रिंटू भी सुष्मित की ही तरह फिल्में बनाती हैं.उन्होंने ट्विटर पर एक वीडियो साझा किया है जिसमे ऑस्कर के लिए मनोनीत होने की घोषणा पर उनकी पहली प्रतिक्रिया स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है.
रिंटू और सुष्मित ने साथ मिल कर 2009 में ब्लैक टिकट फिल्म्स नाम की कंपनी की शुरुआत की थी जिसके बैनर तले उन्होंने 'मिरेकल वॉटर विलेज', 'दिल्ली' और 'टिम्बकटू' जैसी लघु फिल्में बनाईं. 'टिम्बकटू' आंध्र प्रदेश में ऑर्गेनिक खेती पर काम कर रहे लोगों की कहानी है. इसे 2012 में सर्वश्रेष्ठ पर्यावरण फिल्म का राष्ट्रीय परस्कार दिया गया था.
भारत में लॉरेयस पुरस्कारों की छाप
खेलों के ऑस्कर कहे जाने वाले लॉरेयस पुरस्कार का भारत से भी खास नाता है. हर साल लॉरेयस अकादमी भारत के तंगहाल इलाकों में पहुंच कर बच्चों को नए सपने देती है. एक नजर सपनों के इस सफर पर.
तस्वीर: Getty Images for Laureus/Alexander Scheuber
बच्चों के साथ राहुल
लॉरेयस रियल हीरोज प्रोजेक्ट के तहत मार्च 2016 में भारत के कई इलाकों में मैजिक बस घूमी. इस बस में कई बड़े खिलाड़ियों ने यात्रा की और जगह जगह जाकर बच्चों को खेलों के लिए प्रेरित किया. इस दौरान कभी बल्लेबाजी की दीवार कहे जाने वाले राहुल द्रविड़ ने बच्चों को क्रिकेट के गुर सिखाए.
तस्वीर: Getty Images for Laureus/Ritam Banerjee
कमजोर बच्चों को बढ़ावा
मुंबई में लॉरेयस स्पोर्ट्स फॉर गुड के एम्बेसडर और पूर्व भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह ने कमजोर तबके के बच्चों को खेलों में आगे बढ़ाने की मुहिम की अगुवाई की.
तस्वीर: Laureus/Ashima Narain
लोकल हीरो
मुंबई की आधी से ज्यादा आबादी झुग्गियों में रहती है. नितिन बावसकर भी झुग्गी की जिंदगी से गुजरते हुए खेलों में बड़ा मुकाम हासिल करना चाहते हैं. लॉरेयस रियल हीरोज प्रोजेक्ट के दौरान वह अपने जैसे परिवेश में रहने वाले कई बच्चों का भरोसा बने.
तस्वीर: Getty Images for Laureus/Ritam Banerjee
बच्चों के साथ नीको रोसबर्ग
27 अक्टूबर 2013 को भारत में आखिरी बार फॉर्मूला वन रेस हुई थी. यह तस्वीर उस रेस से तीन दिन पहले की है. तब मर्सिडीज टीम के तत्कालीन स्टार ड्राइवर नीको रोसबर्ग ने ग्रां प्री से पहले टाइम निकाला और मैजिक बस प्रोजेक्ट के तहत कुछ वक्त बच्चों के साथ बिताया. इस मुलाकात के 72 घंटे बाद रोसबर्ग इंडियन ग्रां प्री में दूसरे नंबर पर रहे.
तस्वीर: Laureus/Steve Etherington
बड़े खेल सितारे सक्रिय
क्रिकेट के सबसे सफल कप्तानों में शुमार ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेटर स्टीव वॉ भी भारत में खेलों को बढ़ावा देने में काफी सक्रिय रहे हैं. स्टीव लंबे समय से लॉरेयस पुरस्कारों से जुड़े हैं.
तस्वीर: Laureus/Vinayak Prabhakar Wadekar
सितारों से मिलने की खुशी
शारीरिक अक्षमता से जूझने वाली जोधपुर की इन बच्चियों को जब पता चला कि उनसे मिलने कपिल देव और टैनी ग्रे थॉम्पसन आ रहे हैं तो उनके चेहरे की खुशी देखने लायक थी.
तस्वीर: Getty Images for Laureus/Maria Barry-Jester
बाधा नहीं अक्षमता
टैनी ग्रे थॉम्पसन ने बच्चियों के साथ काफी वक्त बिताया. शारीरिक रूप से अक्षम टैनी व्हीलचेयर रेसर रह चुकी हैं. राजनीति में आने से पहले वेल्स की थॉम्पसन ने 11 गोल्ड मेडल जीते और 30 रिकॉर्ड अपने नाम किए. अब वह दुनिया भर के ऐसे बच्चों को प्रेरित करती हैं.
तस्वीर: Getty Images for Laureus/Anna Maria Barry-Jester
व्यापक खेल को समर्थन
शारीरिक या मानसिक कमजोरी के बावजूद इंसान क्या कुछ कर सकता है, जोधपुर में लॉरेयस प्रोजेक्ट के दौरान ली गई यह तस्वीर इसकी गवाही देती है. पुरस्कार अकादमी की वित्तीय मदद से ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
तस्वीर: Getty Images for Laureus/Anna Maria Barry-Jester
पिछड़े इलाकों में खेलों को समर्थन
1983 में भारत को पहली बार क्रिकेट का विश्व विजेता बनाने वाले कप्तान कपिल देव लंबे समय से इन पुरस्कारों से जुड़े हैं. कपिल अपने समकालीन खिलाड़ियों के साथ पिछड़े इलाकों में जाकर खेलों को बढ़ावा देने का काम करते रहे हैं. सर इयान बॉथम के साथ उनकी यह तस्वीर मुंबई के धारावी की है.
तस्वीर: Laureus/Daniel Pepper
नामी खिलाड़ियों का साथ
खेलों को दुनिया के कोने कोने में फैलाने के इरादे से लॉरेयस वर्ल्ड स्पोर्ट्स एकेडमी काफी कुछ करती है. इसी अभियान के तहत हर साल भारत में कुछ आयोजन होते हैं. 2004 में ऐसे ही एक आयोजन में महान ट्रैक रेसरों में शुमार अमेरिका के एडविन मोजेस भी पहुंचे. 1977 से 1987 के बीच मोजेस ने लगातार 107 फाइनल जीते.