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स्वास्थ्यब्रिटेन

संतान पैदा करने की क्षमता से जुड़ा है आपका जीना-मरना

फ्रेड श्वालर
२२ दिसम्बर २०२३

संतान की पैदाइश को सुगम बनाने वाली जीन्स यानी आप में फर्टिलिटी बढ़ाने की जिम्मेदार जीन्स ही समय से पहले आपका काल बन सकती हैं. ये कहना है एक नए अध्ययन का.

शुक्राणु
शुक्राणुतस्वीर: Joshua resnick/PantherMedia/IMAGO

उत्पत्ति से जुड़ी कई पहेलियों में से एक ये है कि प्रजनन क्षमता खोते ही बुढ़ापे में हम ढह क्यों जाते हैं. वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रजनन के लिए हमने जो विकास किया उसका संबंध हमारे बुढ़ापे से हो सकता है. ये लाखों-करोड़ों साल से चले आए प्राकृतिक चयन का नतीजा है.

यूके बायोबैंक के 2,76,406 प्रतिभागियों की जीनों का विश्लेषण करने वाले एक अध्ययन ने पाया कि प्रजनन को बढ़ावा देने वाली जीनों के वाहक लोगों में बुढ़ापे में बचने की संभावना कम होती है.

अमेरिका में मिशिगन यूनिवर्सिटी से जुड़ी और साइंस जर्नल में प्रकाशित उक्त अध्ययन की वरिष्ठ लेखक जियानची चियांग ने बताया, "हमारी एंटागोनिस्टिक प्लीओट्रोपी परिकल्पना कहती है कि प्रजनन को प्रोत्साहित करने वाले जीन म्युटेशनों में उम्र को कम करने की संभावना ज्यादा होती है."

बुढ़ापे और प्रजनन के बीच संबंध पर दिलचस्प शोध हो रहे हैंतस्वीर: Patricia Rehe/ANP/imago images

शोध के मुताबिक, जिन लोगों में प्रजनन को प्रोत्साहित करने वाली जीन होती हैं उनमें 76 साल की उम्र तक आते, मरने की आशंका ज्यादा होती है. अध्ययन ये भी दिखाता है कि 1940 से 1969 के दरमियान पीढ़ियों में प्रजनन के लिए जिम्मेदार जीन्स की संख्या बढ़ी थी. मतलब इंसान अभी भी इस लक्षण या खासियत को विकसित और मजबूत कर रहे हैं.

अमेरिका में बरमिंघम की अलाबामा यूनिवर्सिटी में एजिंग रिसर्च के जानकार स्टीफन ऑस्टड कहते हैं, "ये दिखाता है कि उच्च प्रजनन और निम्न बचाव (और इसका उलट भी) का विकासमूलक पैटर्न आधुनिक मनुष्यों में अभी भी मौजूद है. हमारे जीन वैरियंट, सैकड़ों हजार साल के क्रमिक विकास का नतीजा हैं. हैरान करने वाली बात ये है कि इंसानों का स्वास्थ्य पहले की अपेक्षा कहीं बेहतर हुआ है, उसके बावजूद ये पैटर्न अभी भी कायम है." स्टीफन ऑस्टड खुद इस अध्ययन में शामिल नहीं थे.

बुढ़ापे में मनुष्य ज्यादा प्रजनन-सक्षम क्यों नहीं रहते?

वैज्ञानिक कुछ समय से बुढ़ापे के विकासपरक उद्गमों पर माथापच्ची करते आ रहे हैं. विकासपरक नजरिये से ये अस्पष्ट है कि प्रजनन की हमारी क्षमता उम्र के साथ गिरती क्यों जाती है. निश्चित ही बुढ़ापे में ज्यादा जनन-सक्षम होना विकासपरक नजरिए से लाभप्रद है, तो क्या इससे अपनी जीन्स को आगे बढ़ाने का हमें और समय मिल जाता है?

जिन लोगों मे प्रजनन को प्रोत्साहित करने वाली जीन होती हैं उनमें 76 साल की उम्र तक आते, मरने की आशंका ज्यादा होती हैतस्वीर: Matias Basualdo/Zumapress/picture alliance

एंटागोनिस्टिक प्लीओट्रोपी हाइपोथेसिस के मुताबिक ऐसा नहीं है. ये परिकल्पना कहती है कि शुरुआती जीवन में प्रजनन सक्षमता के लाभ बुढ़ापे की डरावनी कीमत चुकाने का कारण बनते हैं. ये नया अध्ययन अब अपने निष्कर्षों के समर्थन में इंसानों के एक विशाल सैंपल से ठोस प्रमाण मुहैया कराता है.

स्पेन के बार्सिलोना की पोम्पिओ फाब्रा यूनिवर्सिटी में आनुवांशिकी विज्ञानी अरकादी नवारो कुआर्तिलास कहते हैं, "कुछ लक्षण (और उन्हें उभारने वाले जेनेटिक वेरियंट) युवा उम्र में महत्वपूर्ण होते हैं, हमें मजबूत, ताकतवर और जनन-सक्षम बनाए रखने में मदद करते हैं.

लेकिन जब हम उम्रदराज होते हैं, वही लक्षण या खासियतें, समस्याएं पैदा करने लगते हैं, हमें कमजोर और अस्वस्थ बनाकर. ये ऐसा है मानो कुछ म्युटेशनों (जीन परिवर्तनों) के दो पहलू हों, एक अच्छा पहलू, जब हम युवा होते हैं और थोड़ा खराब पहलू, जब हम बूढ़े होते हैं." अरकादी खुद इस अध्ययन में शामिल नहीं थे.

इसकी एक मिसाल है महिलाओं में माहवारी बंद होने और प्रजनन क्षमता खत्म हो जाने से जुड़े प्रभाव. एक स्त्री के जीवनकाल के दौरान उसके अंडाणु पूरी तरह खत्म हो जाते हैं. इसकी वजह से जवानी में वो ज्यादा जनन सक्षम रहती है लेकिन आगे चलकर माहवारी बंद हो जाने से उसकी वो उर्वरता भी चली जाती है.

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जीवविज्ञानियों का मानना है कि प्रजनन के नियमित चक्रों के लाभ, उम्र के साथ जनन सक्षमता खत्म हो जाने की स्थिति पर भारी पड़ सकते हैं. इसमें समस्या यही है कि माहवारी के बंद होने से बुढ़ापे की गति तेज हो जाती है. स्टीफन ऑस्टड कहते हैं, "दूसरा उदाहरण ये है कि एक जीन वैरियंट जनन सक्षमता को इतना बढ़ा देता है कि औरत को जुड़वा बच्चे पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है.

विकासमूलक तौर पर ये फायदेमंद हो सकता है क्योंकि वो औरत, एक बच्चा पैदा करने वाली औरत की अपेक्षा, अपने उस वैरियंट की और प्रतियां छोड़ कर जा सकती है. लेकिन जुड़वां बच्चों की पैदाइश का असर उनके शरीर पर पड़ता है और वो ज्यादा तेजी से बूढ़ी होती जाती है. एक प्रतिपक्षी प्लीओट्रोपी प्रक्रिया यही है."

उनके मुताबिक इसका उलट भी उतना ही सच है. जीवन में शुरुआती दौर में जनन सक्षमता को घटाने वाले जीन वैरियंट के चलते व्यक्ति को कम बच्चे पैदा होंगे या एक भी नहीं होगा. लिहाजा व्यक्ति में बुढ़ापा धीरे धीरे आएगा.

बुढ़ापे पर पर्यावरण का असर?

वैसे इस प्रतिपक्षी प्लीओट्रोपी परिकल्पना की आलोचना भी हो रही है. एक आलोचना ये है कि ये परिकल्पना,  बुढ़ापे पर पर्यावरण और सामाजिक-आर्थिक बदलावों के व्यापक प्रभावों को अपने विश्लेषण में शामिल नहीं करती. अध्ययन भी इस बारे में खामोश है.

हमारे जीन वैरियंट, सैकड़ों हजार साल के क्रमिक विकास का नतीजा हैं तस्वीर: Angelika Warmuth/picture alliance/dpa

आखिरकार, इतिहास में मनुष्य पहले के मुकाबले ज्यादा लंबे समय तक जी रहे हैं और इसकी बड़ी वजह आनुवंशिक विकास नहीं बल्कि बेहतर स्वास्थ्य देखरेख है.

चियांग कहती हैं, "समान लक्षण वाले बदलावों के ये रुझान, पर्यावरणीय बदलावों से संचालित हैं जिनमें जीवनशैलियों और तकनीकों के बदलाव भी शामिल हैं. ये विषमता या अंतर इस बात का संकेत है कि यहां अध्ययन के लिए आए फेनोटाइपिक बदलावों में, पर्यावरणीय कारकों के मुकाबले आनुवंशिक कारकों की भूमिका छोटी है."

ऑस्टड का कहना है कि अध्ययन का एक आश्चर्यजनक निष्कर्ष ये रहा कि प्रजनन के लिए जिम्मेदार जीनों का बुढ़ापे पर इस कदर मजबूत और गौरतलब असर होता है. वो कहते हैं, "पर्यावरणीय कारक इतने अहम है कि मैं वाकई हैरान हूं कि उनकी अहमियत के बावजूद इस अध्ययन में देखे गए पैटर्न बने रहे. मेरे ख्याल से अध्ययन में सैकड़ों हजारों लोगों को शामिल करने का फायदा है."

शोध निष्कर्षों का बुढ़ापे पर प्रभाव

ऑस्टड के मुताबिक प्रतिपक्षी प्लीओट्रोपी परिकल्पना के पास इस पर्चे से पहले प्रमाणों के ढेर थे लेकिन इंसानों के लिए नहीं. इंसानों पर रिसर्च और इतने विशाल आकार के सैंपल के साथ, ये अध्ययन बुढ़ापे से संबंधित रोगों को समझने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है.

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "आखिरकार, इनमें से कुछ वैरियंटों की अब जांच हो सकती है, ये देखने के लिए कि क्या जीवन के उत्तरार्ध में उनका किसी स्वास्थ्य समस्या से संबंध है या नहीं. इस तरह उन समस्याओं पर करीब से निगाह रखी जा सकती है और संभवतः उन्हें रोका भी जा सकता है."

वैज्ञानिक मानते हैं कि परिकल्पना ये समझाने में भी मदद कर सकती है कि बहुत सारे गंभीर आनुवंशिक विकार हमारे लंबे विकासपरक इतिहास में आखिर क्यों बने रहते आए. इस प्रतिपक्षी प्लीओट्रोपी का एक अच्छा उदाहरण है सिकल सेल एनीमिया. जहां एनीमिया का कारण बनने वाला विरासत में आया एक रक्त विकार, दरअसल मलेरिया के खिलाफ एक सुरक्षात्मक मेकेनिज्म के रूप में विकसित हुआ.

चियांग ने डीडब्ल्यू को बताया कि प्रतिपक्षी प्लीओट्रोपी, हंटिंग्टन रोग में भी काम आ सकती है. उन्होंने कहा, "स्नायु तंत्र में खराबी लाने वाले हंटिंग्टन रोग को पैदा करने वाले म्युटेशन, उत्पादकता को भी बढ़ा देते हैं." ऐसी परिकल्पनाएं भी सामने आई हैं जिनके मुताबिक इस बीमारी के जीन म्युटेशन, कैंसर के मामलों में भी कमी ले आते हैं.

चियांग का कहना है कि बुढ़ापा विरोधी विज्ञान के लिए भी इस रिपोर्ट से कुछ नतीजे निकाले जा सकते हैं. "सैद्धांतिक तौर पर, उम्र बढ़ाने के लिए उन प्रतिपक्षी प्लीओट्रोपी वाले म्युटेशनों में इधर-उधर थोड़ी मरम्मत की जा सकती है, लेकिन प्रजनन क्षमता में कमी या देरी का नुकसान भी साथ में जुड़ा है."

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