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कितनी जरूरी है चोटी के एथलीटों के लिए कुछ कुछ घंटों की नींद

ओलिविया गैर्स्टेनबैर्गर
३० दिसम्बर २०२२

क्रिस्टियानो रोनाल्डो या जर्मन नाविक बोरिस हरमन रात में ही नहीं सोते बल्कि दिन में भी कई बार अपनी नींद पूरी कर लेते हैं. उनकी वजहें अलग अलग हैं, लेकिन खिलाड़ियों के लिए इसके फायदों को लेकर सवाल भी हैं.

Weltumsegler Boris Herrmann
तस्वीर: Boris Herrmann/Team-Malizia/dpa/picture alliance

शीर्ष एथलीटों के लिए एक अच्छी आरामदेह नींद का बड़ा भारी महत्व है. इसकी बदौलत उनके प्रदर्शन में तीन फीसदी तक का इजाफा हो सकता है. कई खेलों में तो ये जीत और हार का अंतर तय करने वाला भी हो सकता है. नींद के दौरान, मांसपेशियां पुनर्जीवित होकर बढ़ती हैं, शरीर गति के सिलसिले को जज्ब करता है और मानसिक सामर्थ्य हासिल होती है. दूसरी ओर, नींद की कमी, एकाग्रता, मूड परिवर्तन, प्रतिक्रिया करने और प्रदर्शन में सुधार की क्षमता को प्रभावित करती है और शारीरिक बीमारी का कारण बन सकती है.

लेकिन ऐसे व्यक्ति के लिए जो महीनों तक पूरी दुनिया का नाव से चक्कर लगाता हो, उसे एकबारगी मुकम्मल नींद हासिल हो पाना नामुमकिन है. सोलो सरकमनैविगेटर यानी पानी से पूरी दुनिया का अकेले चक्कर लगाने वाले नाविक बोरिस हरमन ने खुद को दिन में कई बार, छोटी छोटी अवधि में नींद लेने के लिए प्रशिक्षित किया. लेकिन 2021 में नॉनस्टॉप राउंड द वर्ल्ड वेंडी ग्लोब यॉट रेस के आखिरी चरण में जो झपकी उन्होंने ली उसने उनका बड़ा नुकसान कर दिया. जब वे सो रहे थे, टेक्निकल मॉनिटरिंग के उपकरण में अलार्म देना भूल गए और उनकी नाव, मछली पकड़ने वाले एक जहाज से जा टकराई. हरमन, जीतते जीतते रह गए.

दूसरे एथलीट भी अपनी खास जरूरतों के हिसाब से अपनी नींद को एडजस्ट करते हैं. जैसे कि मुक्केबाज, अपनी प्राकृतिक आंतरिक घड़ी के विपरीत अपनी नींद की लय को बदल देते हैं जिससे वे देर रात के मुकाबलों में विशेष तौर पर बेहतर प्रदर्शन कर सकें. क्रिस्टियानो रोनाल्डो और रॉबर्ट लेवानदोव्स्की जैसे पेशेवर फुटबॉल खिलाड़ी स्लीप थेरेपिस्टों की मदद लेते हैं और दिन में कई बार नींद लेते हैं. उनके लिए बाकायदा एक व्यवस्थित नींद का प्लान तैयार किया जाता है, इस उम्मीद में कि उनका शरीर खुद को तेजी से तरोताजा कर सके.

कई चरणों की नींद का मॉडल खासतौर पर लोकप्रिय

नींद के जानकार और शोधकर्ता, नींद के तीन अलग अलग मॉडल बताते हैं. मोनोफेजिक यानी एकल चरण वाली नींद, बाइफेजिक यानी दो चरण की नींद और पॉलीफेजिक यानी कई चरणों वाली नींद. अधिकांश लोग रात में औसतन एक बार में सात घंटे तक सोते हैं तो वो उनकी मोनोफेजिक नींद कहलाएगी. कुछ लोग झपकी भी ले लेते हैं. वो बाइफेजिक स्लीप है. एक दिन में 90 मिनट के तीन से छह चरण वाला नींद पैटर्न पॉलीफेजिक स्लीप मॉडल कहलाता है. ऐसी नींद शिशुओं की होती है लेकिन कुछ प्रतिस्पर्धी एथलीट भी इसे अपनाने लगे हैं.

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इस नये स्लीप पैटर्न में ढलने के लिए अक्सर दो से तीन सप्ताह का समय लग जाता है. कोलोन स्थित जर्मन खेल यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक संस्थान से जुड़े क्रिस्टियान सेप ने डीडब्ल्यू को बताया, "इसका आपको अभ्यास करना होता है. ये एक कठिन काम है. लेकिन अपना प्रदर्शन सुधारने के लिए तो पेशेवर एथलीट कुछ भी कर गुजरेंगे. अगर आप खुद को ऐसी नींद के लिए प्रशिक्षित कर लेते हैं तो आपका शरीर भी नींद के महत्वपूर्ण चरण में तत्परता से जाना सीख लेता है. और उतनी ही तेजी से अपने मेटाबॉलिक उत्पाद भी विखंडित करने लगता है."

नींद के निर्धारित शेड्यूल को बनाए रखना जरूरी

मनोवैज्ञानिक दबाव, प्रतिस्पर्धा से पहले के तनाव, बेहद कड़ी ट्रेनिंग और बड़ी थकाऊ यात्रा की वजह से एथलीट अक्सर नींद में गड़बड़ी की शिकायत करते हैं. सेप कहते हैं कि अंतरालों वाली नींद का पैटर्न, प्रदर्शन में सुधार के लिए जरूरी नहीं है. एथलीट अगर नींद के शेड्यूल और नींद के हाइजीन को सही ढंग से अपनाते रहें तो वे असल में और बेहतर ढंग से सो पाएंगे. सही समय पर बिस्तर पर जाएं, बेडरूम को ठंडा रखें, रात में हल्का खाना खाएं और स्मार्टफोन जैसी ध्यान हटाने वाली चीजों से परहेज करें.

लेकिन ऐसे नियमों का पालन करने के लिए हर कोई अनुशासित नहीं होता. कोविड 19 महामारी ने भी अपना असर दिखाया है. सेप के मुताबिक, उसकी वजह से कुछ एथलीट देर से सोने के आदी हो गए थे. सेप कहते हैं, "2020 में मैंने ऐसे बहुत से एथलीट देखे, खासकर युवा एथलीट, जिन्होंने किसी भी चीज पर ध्यान लगाना बंद कर दिया था. वे तड़के तीन बजे बिस्तर पर जाते और किसी मोड़ पर सोचने लगते कि उनका प्रदर्शन खराब क्यों हो रहा है." 

पावर झपकी के अलग अलग आकलन

स्वस्थ नींद चक्रों में होती है. हर 60 से 90 मिनट में शरीर, हल्की, सामान्य और गहरी नींद वाली अवस्थाओं के सिलसिले से गुजरता है. हर साइकिल का समापन आरईएम स्लीप (रैपिड आई मूवमेंट या स्वप्न की नींद) से होता है. उसके आखिर में आमतौर पर आपकी नींद खुल जाती है. तो इस तरह आप रात भर गहरी नींद में नहीं सो रहे होते हैं. नींद के कुल समय में उसका हिस्सा सिर्फ करीब 25 फीसदी का है.

फुटबॉलर रोबर्ट लेवानदोव्स्की दिन में कई झपकियां लेते हैंतस्वीर: Franck Fife/AFP

कोलोन स्थित स्लीप रिसर्चर और मनोवैज्ञानिक क्रिस्टीन हाम कहती हैं, "रात के पहले हिस्से में गहरी नींद के लंबे चरण देखे जा सकते हैं लेकिन दूसरे हिस्से में उन चरणों की अवधि में महत्वपूर्ण कमी आने लगती है." उनके मुताबिक, "नींद ज्यादा आसानी से बाधित हो जाती है और वो कई दफा खुलती भी रहती है. बेसिक रिसर्च से ज्ञात है कि आप रात में कम से कम 25 बार नींद से जाग जाते हैं."

अच्छी नींद लेने वालों को आमतौर पर इसका अंदाजा नहीं होता क्योंकि वे तत्काल फिर से नींद में चले जाते हैं. दूसरी तरफ जिन्हें अच्छी नींद नहीं आती वो अक्सर रात में नींद खुलते ही जाग जाते हैं और उन्हें उन अवधियों की बखूबी याद रहती है. क्रिस्टीन हाम ने डीडब्ल्यू को बताया, "जिन लोगों को नींद न आने की समस्या है और जो पूरी रात सो नहीं पाते उन्हें अक्सर एक 'उच्चतर नींद दबाव' की जरूरत होती है." उनके लिए दिन में झपकी लेने की सख्त तौर पर मनाही है.

कोई पॉवर नैप के पक्ष में कोई विरोध में

हाम जोर देकर कहती हैं कि, "उसकी वजह से सोने-जगने की लय बिगड़ जाती है." उनके मुताबिक, इसी दौरान स्वस्थ नींद के लिए नींद का समय नियमित रखना भी एक महत्वपूर्ण शर्त है. दोपहर की लंबी झपकी जो अच्छी नींद वालों के लिए फायदेमंद होती है, वो यहां इस स्थिति में नुकसान कर सकती है. नासा के एक अध्ययन के मुताबिक, एक छोटी सी झपकी जिसे पावर नैप भी कहा जाता है, वो प्रतिक्रिया की रफ्तार और एकाग्रता को बढ़ा सकती है. लेकिन दूसरे अध्ययनों से पता चला है कि दिन भर में कई झपकियों का सेहत पर गलत असर पड़ सकता है क्योंकि वो मानव स्वभाव के अनुकूल नहीं होती हैं.

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इंसान स्वाभाविक तौर पर दिन में सक्रिय रहते हैं. दिन-रात की लय को हॉर्मोन नियंत्रित करते हैं. दिन की अवस्था के दौरान, स्ट्रेस हॉर्मोन कोर्टिसोल बढ़ जाता है और रात की अवस्था में नींद का हॉर्मोन मेलाटोनिन. कई शोधकर्ता रात की अच्छी नींद को कुलमिलाकर ज्यादा आरामदायक मानते हैं. उन्हें लगता है कि ये उस स्लीप प्लान से बेहतर है जो रोनाल्डो के स्लीप कोच निक लिटिलहेल्स ने उनके लिए तैयार किया है जिसमें दिन की झपकी भी शामिल है.

पश्चिमी जर्मनी के फाल्सक्लिनिकुम में इंटरडिसिप्लिनरी स्लीप सेंटर के हेड हंस-ग्युंटर वीस उन शोधकर्ताओं में से हैं जिन्होंने रोनाल्डो के स्लीप कोच लिटिलहेल्स के मॉडल पर सवाल उठाए हैं. वीस ने जर्मनी की सार्वनजिक प्रसारण सेवा एसडब्लूआर को बताया, "मैं कतई ये मानता हूं कि रोनाल्डो ने नींद के ये चक्र कभी अपनाए ही नहीं. वरना उनका एथलीटी प्रदर्शन वैसा नहीं होता जैसा हमने हाल के वर्षों में देखा है."  दरअसल, जैसा कि मेंटल ट्रेनिंग के सभी पहलुओं में होता है, प्रदर्शन पर स्लीप ट्रेनिंग का असर मापना कठिन है. खेल में एक ही चीज आंकी जाती है, वो है खेल के मैदान पर सफलता का स्तर.

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