क्या इस चिप से आयी जीन थेरापी में क्रांति
१५ अगस्त २०१७Does this chip revolutionize gene therapy?
125 साल पहले अर्जेंटीना के अपराध विज्ञानियों ने कैदियों के फिंगरप्रिंट लिये. तब से अब तक कैसा रहा है पहचान और शिनाख्त की वैज्ञानिक दुनिया का सफर.
फिंगरप्रिंट का सबक: अनोखा है हर इंसान
125 साल पहले अर्जेंटीना के अपराध विज्ञानियों ने कैदियों के फिंगरप्रिंट लिये. तब से अब तक कैसा रहा है पहचान और शिनाख्त की वैज्ञानिक दुनिया का सफर.
125 साल बाद भी आधुनिक
1891 में अर्जेंटीना के अपराध विज्ञानी खुआन वुसेटिच ने मॉर्डन स्टाइल फिंगरप्रिंट आर्काइव बनाना शुरू किया. तब से फिंगरप्रिंट को अहम सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इस तस्वीर में चोरी के बाद पुलिस अफसर दरवाजे के हैंडल को साफ कर रहा है, ताकि फिंगरप्रिंट साफ दिखाई पड़ें.
सहेजना और तुलना करना
मौके से फिंगरप्रिंट जुटाने के लिए एक चिपचिपी फिल्म का इस्तेमाल किया जाता है. अचूक ढंग से फिंगरप्रिंट जुटाने में कई घंटे लग जाते हैं. एक बार फिंगरप्रिंट जुटाने के बाद जांचकर्ता उनकी तुलना रिकॉर्ड में संभाले गए निशानों से करते हैं. इन दिनों तेज रफ्तार कंप्यूटर ये काम बड़ी तेजी से कर देते हैं.
स्याही की जरूरत नहीं
पहले फिंगरप्रिंट जुटाना बहुत ही मुसीबत भरा काम होता था, स्याही से हाथ भी गंदे हो जाते थे. लेकिन अब स्कैनर ने स्याही की जगह ले ली है. स्कैन करती ही डाटा सीधे बायोमैट्रिक डाटा बैंक को भेज दिया जाता है.
क्यों खास है फिंगरप्रिंट
कंप्यूटर अंगुली की बारीक लाइनों और उनके पीछे के उभार को पहचान लेता है. अंगुली के केंद्र से अलग अलग लाइनों की मिलीमीटर के बराबर छोटी दूरी, उनकी घुमावट, उनकी टूटन सब दर्ज हो जाती है. दो लोगों के फिंगरप्रिंट कभी एक जैसे नहीं हो सकते, भले ही वे हूबहू दिखने वाले जुड़वा क्यों न हों.
कहां कहां इस्तेमाल
नाइजीरिया में चुनावों में धांधली रोकने के लिए अधिकारियों ने फिंगरप्रिंट स्कैनर का इस्तेमाल किया. यही वजह है कि सिर्फ रजिस्टर्ड वोटर ही वोट डाल पाए वो भी सिर्फ एक बार.
कौन कहां से कब आया
शरणार्थी संकट का सामना करते यूरोप में भी अधिकारी फिंगरप्रिंट का सहारा ले रहे हैं. यूरोपीय संघ के जिस भी देश में शरणार्थी पहली बार पहुंचेगा, उसका फिंगरप्रिंट वहीं लिया जाएगा. फिंगरप्रिंट लेने के लिए स्थानीय पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग दी गई है, उन्हें स्कैनर भी दिये गए हैं.
ये मेरा डाटा है
अब कई स्मार्टफोन फिंगरप्रिंट डिटेक्शन के साथ आ रहे हैं. आईफोन और सैमसंग में टच आईडी है. फोन को सिर्फ मालिक ही खोल सकता है, वो भी अपनी अंगुली रखकर. अगर फोन खो जाए या चोरी भी हो जाए तो दूसरे शख्स को फोन का डाटा नहीं मिल सकता.
ATM बैंकिंग
स्कॉटलैंड के डुंडी शहर में ऑटोमैटिक टेलर मशीन (एटीएम). इस मशीन से सिर्फ असली ग्राहक पैसा निकाल सकते हैं. फिंगरप्रिंट के जरिये मशीन कस्टमर की बायोमैट्रिक पहचान करती है. यह मशीन फर्जीवाड़े की संभावना को नामुमकिन कर देती है.
पासपोर्ट की सेफ्टी
जर्मनी समेत कई देशों ने 2005 से पासपोर्ट में डिजिटल फिंगरप्रिंट डाल दिया. पासपोर्ट में एक RFID (रेडियो फ्रीक्वेंसी कंट्रोल्ड आईडी) चिप होती है. चिप के भीतर बायोमैट्रिक फोटो होती है, यह भी फिंगरप्रिंट की तरह अनोखी होती है.
चेहरे की बनावट से पहचान
फेशियल रिकॉगनिशन सॉफ्टवेयर भी पहचान को बायोमैट्रिक डाटा में बदलता है. कंप्यूटर और उससे जुड़े कैमरे की मदद से संदिग्ध को भीड़ में भी पहचाना जा सकता है. इंटरनेट और कंप्यूटर कंपनियां भी अब फेशियल रिकॉगनिशन सॉफ्टवेयर का काफी इस्तेमाल कर रही हैं.
जेनेटिक फिंगरप्रिंट के जनक
एलेक जेफ्रीज ने 1984 में किसी संयोग की तरह डीएनए फिंगरप्रिंटिंग की खोज की. उन्होंने जाना कि हर इंसान के डीएनए का पैटर्न भी बिल्कुल अलग होता है. डीएनए फिंगरप्रिंटिंग की उन्होंने एक तस्वीर तैयार की जो बारकोड की तरह दिखती है.
हर इंसान के लिये बारकोड
जर्मनी की फेडरल क्रिमिनल पुलिस ने 1998 से अपराधियों का डीएनए फिंगरप्रिंट बनाना शुरू किया. जेनेटिक फिंगरप्रिंट की मदद से जांचकर्ता अब तक 18,000 से ज्यादा केस सुलझा चुके हैं.
निर्दोष की मदद
परिस्थितिजन्य सबूतों या वैज्ञानिक सबूतों के अभाव में कई बार निर्दोष लोग भी फंस जाते हैं. घटनास्थल की अच्छी जांच और बायोमैट्रिक पहचान की मदद से निर्दोष लोग झेमेले से बचते हैं. किर्क ब्लड्सवर्थ के सामने नौ साल तक मौत की सजा खड़ी रही. अमेरिका में डीएनए सबूतों की मदद से 100 से ज्यादा बेकसूर लोग कैद से बाहर निकले.
पीड़ित परिवारों को भी राहत
डीएनए फिंगरप्रिंटिंग का पहली बार बड़े पैमाने पर इस्तेमाल स्रेब्रेनित्सा नरसंहार के मामले में हुआ. सामूहिक कब्रों से शव निकाले गए और डीएनए तकनीक की मदद से उनकी पहचान की गई. डीएनए फिंगरप्रिंट को परिजनों से मिलाया गया. पांच साल की एमा हसानोविच को तब जाकर पता चला कि कब्र में उनके अंकल भी थे. 6,000 मृतकों की पहचान ऐसे ही की गई.
फोन और कंप्यूटर में बायोमैट्रिक डाटा
बायोमैट्रिक डाटा के मामले में काफी काम हो रहा है. वैज्ञानिक अब आवाज के पैटर्न को भी बायोमैट्रिक डाटा में बदलने लगे हैं. वॉयस रिकॉगनिशन सॉफ्टवेयर की मदद से धमकी देने वालों को पहचाना जा सकता है. फिंगरप्रिंट की ही तरह हर इंसान के बोलने के तरीका भी अलग होता है. मुंह से निकलती आवाज कई तरंगों का मिश्रण होती है और इन्हीं तरंगों में जानकारी छुपी होती है.