जापान में हर साल हजारों भालुओं को कत्ल कर दिया जाता है. अब कुछ लोगों ने उन्हें बचाने के लिए नए तरीके इस्तेमाल किए हैं.
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जापान में हर साल हजारों भालुओं को गोली मार दी जाती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भालू लोगों के लिए दिक्कत बनते जा रहे हैं. ऐसे में जुनपेई तनाका और उनकी कुतिया रेला ने एक अलग और दयालु तरीका खोजा है.
जापान का समाज लगातार बूढ़ा हो रहा है. लोग ग्रामीण इलाकों से ज्यादा तादाद में शहरों की ओर जा रहे हैं. साथ ही जलवायु परिवर्तन भी एक वजह है, जिसके कारण भालुओं को खाने-पीने की समस्या हो रही है और उनका शीतनिद्रा का समय भी प्रभावित हो रहा है. इसलिए पहले से ज्यादा बड़ी संख्या में भालू अब शहरों की ओर जा रहे हैं.
बढ़ रहे हैं हमले
इस बारे में कोई ठोस आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है कि शहरों की ओर आने वाले भालुओं की संख्या कितनी बढ़ी है लेकिन हाल ही में एक अखबार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि पिछले 11 साल में इनकी संख्या लगभग तीन गुना बढ़ गई है. इसी साल शहरों में पिछले साल से लगभग दोगुने भालू देखे गए.
करीब 500 किलोग्राम वजनी ये शक्तिशाली जानवर दौड़ने में भी बहुत तेज होते हैं और इंसान को पीछे छोड़ सकते हैं. सरकार ने 2006 में भालुओं द्वारा इंसानों पर हमलों के आंकड़े जमा करने शुरू किए थे और यह साल अब तक का सबसे घातक साल बनने जा रहा है.
अब तक छह लोग भालू के हमले में मारे जा चुके हैं जिनमें एक बुजुर्ग महिला भी शामिल है जिस पर उसके घर के सामने ही भालू ने हमला किया था. मई में एक झील के किनारे एक मछुआरे का कटा सिर मिला था और एक भालू को उसका शव मुंह में लिए देखा गया था. इसके अलावा 212 लोग ऐसे हमलों में घायल हो चुके हैं.
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भालुओं के लिए ज्यादा घातक
भालुओं के लिए आंकड़े ज्यादा घातक स्थिति बयान करते हैं. पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक पिछले पांच साल में औसतन हर साल 4,895 भालू मारे गए हैं. इस साल नवंबर तक 6.287 भालुओं को कत्ल किया जा चुका है. सिर्फ नवंबर में 2,000 भालू मारे गए.
पिचियो रिसर्च सेंटर के लिए काम करने वाले भालू विशेषज्ञ जुनपेई तनाका कहते हैं, "अनुमान है कि इस साल मरने वाले भालुओं की संख्या 8,000 को पार कर जाएगी.”
जब नन्ही पोलर भालू पहली बार निकली टहलने
जर्मनी के हैम्बुर्ग के एक चिड़ियाघर में एक नन्ही पोलर भालू को पहली बार अपने बाड़े के बाहरी हिस्से में टहलने दिया गया. उसकी मां उससे बस एक कदम दूर थी. देखिये क्या किया नन्ही भालू ने.
तस्वीर: Marcus Brandt/dpa/picture alliance
रोमांचकारी अनुभव
दिसंबर 2022 में जब हैम्बुर्ग के टियरपार्क हागेनबेक चिड़ियाघर में 21 साल की ध्रुवीय भालू विक्टोरिया ने एक बच्चे को जन्म दिया था, तब वहां काफी हलचल मच गई थी. अब वो बच्ची छह महीने की हो गई और समय आ गया है कि वो पहली बार अपनी मां के साथ बाहरी बाड़े में घूम फिर सके.
तस्वीर: Marcus Brandt/dpa/picture alliance
नामकरण का इंतजार
नन्ही शावक जिज्ञासा के साथ लेकिन सावधानीपूर्वक ऊंचे नीचे रास्तों पर अपनी मां के पीछे पीछे चली. वो अब काफी बड़ी हो गई है और उसका वजन 40 किलो हो चुका है, लेकिन अभी तक उसका नाम नहीं रखा गया है. पिछले महीने ही चिड़ियाघर आने वाले लोगों को इजाजत दी गई कि वो उसके नाम के लिए चार विकल्पों में से एक को चुनें - अनूक, ताल्वी, स्मिला और सनफ्लावर.
तस्वीर: Marcus Brandt/dpa/picture alliance
कैद में जन्म
दर्शक शावक को देखकर बहुत खुश थे और उसे भी दर्शकों को देखकर जिज्ञासा हो रही थी. उसकी मां विक्टोरिया का भी इसी चिड़ियाघर में 2002 में जन्म हुआ था. अपनी बेटी के जन्म से पहले वह ही यहां पैदा हुई आखिरी मादा पोलर भालू थी. दुनिया में करीब 25,000 पोलर भालू बचे हैं, जिसकी वजह से उन्हें गंभीर रूप से लुप्तप्राय माना जाता है.
तस्वीर: Marcus Brandt/dpa/picture alliance
पानी में उतरा जाए या नहीं
ऐसा लग रहा था जैसे शावक यह तय नहीं कर पा रही थी कि अपने बाड़े के "बर्फीले सागर" में उतरे या नहीं. अंत में उसने एक डुबकी मारने का फैसला कर ही लिया, लेकिन तुरंत पानी से बाहर निकल आई और दौड़ कर पत्थरों पर चढ़ गई.
तस्वीर: Marcus Brandt/dpa/picture alliance
अनुभव से सीखना जरूरी
शावक को जून में पहली बार पानी में उतारा गया था, हालांकि उस समय ऐसा उसके बाड़े के अंदर ही किया गया था. पशु चिकित्सक माइकल फ्लूगर कहते हैं, "एक युवा पशु के लिए सबसे अच्छा यही है कि उसकी दिनचर्या में विविधता हो और वो बाहरी बाड़े में नए अनुभवों से खूब सीखे."
तस्वीर: Tierpark Hagenbeck/dpa/picture alliance
मां की चौकन्नी निगाहें
जंगली वातावरण में बिना सेफ्टी ग्लास के एक पोलर भालू और उसके शावक को इतने करीब से देखना संभव नहीं होगा. शीशा होने के बावजूद मां विक्टोरिया दर्शकों को सावधानी से देख रही है. वो अगले करीब दो सालों तक अपनी बेटी का ख्याल रखती रहेगी और उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ेगी.
तस्वीर: Marcus Brandt/dpa/picture alliance
सोने का समय हो गया
रोमांचकारी समय बिताने के बाद नन्ही भालू अपनी मां के पंजों पर सो गई. वो अपने पिता 'काप' से नहीं मिली है, जिसे कार्ल्सरूह चिड़ियाघर से लोन पर लाया गया था. 'काप' तीन साल विक्टोरिया के साथ प्रेम से रहा और फिर उसे वहीं लौटा दिया गया. (क्लाउडिया डेन)
तस्वीर: Tierpark Hagenbeck/dpa/picture alliance
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इस बढ़ती संख्या से देश में बेचैनी भी है क्योंकि तीन चौथाई पहाड़ी इलाके वाला जापान खुद को प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहने वाला देश कहता है.
तनाका कहते हैं, "बहुत लंबे समय तक जापानी लोग जंगली जानवरों के साथ मिलजुल कर रहे हैं. वे मानते हैं कि हर जीव में ईश्वर है और गैरजरूरी हत्याओं से बचते हैं. लेकिन अब जंगली जानवरों को इंसानी बस्तियों से दूर रखना मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि पर्यावरण, समाज और लोगों की जीवन शैली बदल रही है.”
तनाका ने कारुइजावा कस्बे में एक परियोजना शुरू की है जिसका मकसद भालुओं के कत्ल को रोकना है. वह दिखाना चाहते हैं कि बिना उन्हें गोली मारे भी उनसे बचा जा सकता है. वह कहते हैं कि उनके तरीके भालू और इंसान दोनों की सुरक्षा कर सकते हैं.
कुत्तों का इस्तेमाल
अपने साथियों के साथ वह पीपों में शहद भरकर भालुओं के लिए जाल फैलाते हैं. जब वे भालू पकड़े जाते हैं तो उनके गले में रेडियो कॉलर लगाकर उन्हें दूर जंगल में छोड़ दिया जाता है. साथ ही कस्बे में कचरे के ऐसे डिब्बे लगाए गए हैं जिनमें से भालू खाना नहीं निकाल सकते. साथ ही लोगों को ज्यादा जागरूक करने की भी कोशिश की जा रही है.
इन दिल तोड़ती तस्वीरों को आप रोक सकते हैं
आज विश्व पर्यावरण दिवस है. संयुक्त राष्ट्र की आम सभा ने 1972 में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के तौर पर अपनाया था. इस साल आयोजन की 50वीं सालगिरह है. इस साल का फोकस प्लास्टिक प्रदूषण के समाधानों पर है.
तस्वीर: Kamran Jebreili/AP Photo/picture alliance
सिंगल-यूज प्लास्टिक है बड़ा संकट
प्लास्टिक प्रदूषण सबसे गंभीर पर्यावरण संकटों में से एक है. दुनिया में सालाना करीब 43 करोड़ टन से ज्यादा प्लास्टिक का उत्पादन होता है. इसमें से आधा सिंगल-यूज प्लास्टिक है, जिसमें 10 फीसदी से भी कम रीसाइकल होता है.
तस्वीर: FRED DUFOUR/AFP
हर जगह पहुंच गया है प्लास्टिक
दूसरे विश्व युद्ध के बाद बड़े स्तर पर प्लास्टिक का व्यावसायिक उत्पादन बढ़ा और कुछ ही दशकों में इसका इस्तेमाल हमारी जिंदगी के कोने-कोने में फैल गया. कई मामलों में प्लास्टिक ने क्रांतिकारी बदलाव किए, लेकिन सिंगल-यूज प्लास्टिक जैसी इस्तेमाल करे और फेंको की संस्कृति ने प्लास्टिक उत्पादन और खपत में बेहिसाब इजाफा किया.
तस्वीर: Paulo de Oliveira/IMAGO/Ardea
समंदर भी बन गया है गटर
अनुमान है कि लगभग सवा दो करोड़ टन तक प्लास्टिक नदियों, झीलों और समंदर में पहुंचता है. प्लास्टिक प्रदूषण के लिए समुद्र एक विशाल हौदी जैसा है. बड़ी नदियां और कचरे को पानी में बहाने की प्रवृत्ति प्लास्टिक का अंबार समुद्र में पहुंचाती है. कचरे का एक बड़ा हिस्सा समुद्र में ही बना रहता है. कई बार लहरें उसे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में किनारे तक पहुंचा देती हैं.
तस्वीर: Darko Vojinovic/AP/picture alliance
धरती के सुदूर हिस्सों तक भी पहुंचा
इसके नतीजे की झलकियां वक्त-वक्त पर आपको उन तस्वीरों में मिलेंगी, जिनमें प्लास्टिक की थैली में उलझकर किसी कछुए की जान पर बन आई. या, मेनलैंड नॉर्वे और उत्तरी ध्रुव के बीच स्थित स्वालबार्ड, जो कि दुनिया का सबसे सुदूर उत्तरी निर्जन इलाका है, वहां एक ध्रुवीय भालू मुंह में प्लास्टिक की थैली दबाए खड़ा है. या, प्लास्टिक की रस्सियों के बने जाले में उलझी कोई सील मरी पड़ी है.
तस्वीर: DW
जानवर चुका रहे हैं बड़ी कीमत
यह तस्वीर संयुक्त अरब अमीरात के एक लैब की है. यह हॉक्सबिल कछुआ समंदर किनारे पड़ा मिला था. ऑटोप्सी हुई, तो इसके पेट में ज्यादातर प्लास्टिक की चीजें मिलीं. मरीन पॉल्यूशन बुलेटिन के एक शोध के मुताबिक, शारजाह में जितने ग्रीन टर्टल मरते हैं, उनमें से करीब 75 फीसदी के मरने की वजह समुद्र में मौजूद प्रदूषक तत्व हैं. जैसे प्लास्टिक थैलियां, बोतल के ढक्कन, रस्सी, मछली पकड़ने के जाल वगैरह.
तस्वीर: Kamran Jebreili/AP Photo/picture alliance
लाखों जानवर मारे जाते हैं
दुनिया का सबसे ऊंचा पहाड़ हिमालय हो या समंदर का कोई दूर-दराज का हिस्सा, आपको प्लास्टिक की मौजूदगी हर जगह मिलेगी. अनुमान है कि हर साल लाखों जानवर प्लास्टिक के कारण मारे जाते हैं. खाना खोजते हुए प्लास्टिक थैलियां चबाने और निगलने वाली गायों को देखना तो आपके लिए भी रोजमर्रा की बात होगी. समुद्री जीवों के लिए तो प्लास्टिक बहुत विनाशक आपदा बन गया है.
तस्वीर: Paulo de Oliveira/Photoshot/picture alliance
घटाना होगा प्लास्टिक का उत्पादन
अप्रैल 2023 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने प्लास्टिक प्रदूषण कम करने के लक्ष्य को रेखांकित करते हुए कहा था, "हर मिनट कूड़े के एक ट्रक जितना प्लास्टिक समुद्र में फेंक दिया जाता है. प्लास्टिक प्रदूषण कम करने और इसके असर को कम करने के लिए हमें प्लास्टिक का उत्पादन कम करना होगा." क्या आप निजी स्तर पर प्लास्टिक का इस्तेमाल घटाने की कोशिश कर रहे हैं?
तस्वीर: Grgo Jelavic/PIXSELL/picture alliance
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इस काम में तनाका की कुतिया रेला भी उनकी मदद करती है. फिनलैंड में पाई जाने वाली कैरेलियान बेयर नस्ल की रेला को भालुओं को भगाना आता है. जब भी रेडियो कॉलर के कारण किसी भालू के इलाके में होने की सूचना मिलती है तो रेला को ले जाया जाता है और वह भालू को डराकर भगा देती है.
भालुओं को भगाने के लिए कुत्तों का इस्तेमाल जापान में नया है. शहर प्रशासन के अधिकारी मासाशी शुचिया कहते हैं, "भालू खतरनाक जानवर हैं. इसलिए हमें लोगों ने कहा कि उन्हें मार दिया जाना चाहिए. लेकिन पिचियो की परियोजना से हमने सीखा है कि हम उन पर काबू कर सकते हैं और उनके व्यवहार को पहचानकर उन्हें भगा सकते हैं.”