नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भेजा गया डॉनल्ड ट्रंप का नाम
९ सितम्बर २०२०
इस्राएल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच शांति समझौता कराने के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का नाम 2021 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए सुझाया गया है.
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अमेरिकी न्यूज चैनल फॉक्स न्यूज के अनुसार नॉर्वे के एक सांसद क्रिस्टियान टिबरिंग ग्येद्दे ने यह नामांकन भेजा है. ग्येद्दे ने फॉक्स न्यूज से बातचीत में कहा, "मुझे लगता है कि नामांकित किए गए बाकी के लोगों की तुलना में उन्होंने (ट्रंप ने) देशों के बीच शांति स्थापित करने के लिए काफी ज्यादा प्रयास किए हैं." ऐसा पहली बार नहीं है जब ग्येद्दे ने ट्रंप का नाम शांति पुरस्कार के लिए भेजा हो. इससे पहले 2018 में भी वे ऐसा कर चुके हैं.
उस वक्त उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन के साथ शिखर वार्ता आयोजित करने को ट्रंप की उपलब्धि बताया गया था और उत्तर कोरिया और अमेरिका में बेहतर संबंधों को दुनिया में शांति के लिए एक महत्वपूर्ण कदम भी कहा गया था. हालांकि नामांकन के बाद ट्रंप को शांति पुरस्कार के लिए चुना नहीं गया था. इसके बाद 2019 में जब इथियोपिया के प्रधानमंत्री आबी अहमद को पड़ोसी देश इरिट्रिया के साथ शांति के प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया, तब ट्रंप ने उन्हें औपचारिक रूप से बधाई देने से भी इंकार कर दिया और कहा कि दोनों अफ्रीकी देशों के बीच शांति स्थापित करने का असली श्रेय उन्हें जाता है.
साल 2020 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए 300 से भी ज्यादा व्यक्तियों और संस्थाओं को नामांकित किया जा चुका है. इतनी बड़ी संख्या में इससे पहले कभी इस पुरस्कार के लिए नामांकन नहीं देखे गए हैं. इस पुरस्कार के लिए कोई भी नामांकन भेज सकता है और नोबेल कमिटी नामांकित लोगों की कोई औपचारिक सूची जारी नहीं करती है. नॉर्वे में बैठी नोबेल कमिटी इन सभी नामांकनों पर चर्चा करती है और विजेता को चुनती है.
2021 के नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा अगले साल अक्टूबर में होगी. ट्रंप से पहले अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा को 2009 में इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
हर साल स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में 10 दिसंबर को रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र, अर्थशास्त्र, साहित्य एवं विश्व शांति के क्षेत्र में इसे दिया जाता है. और जानिए इस पुरस्कार के बारे में.
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क्या मिलता है?
पुरस्कार पाने वाले हर व्यक्ति को करीब साढ़े चार करोड़ रुपये की राशि मिलती है. साथ ही 23 कैरेट सोने से बना 200 ग्राम का पदक और प्रशस्ति पत्र भी दिया जाता है. पदक के एक ओर नोबेल पुरस्कारों के जनक अल्फ्रेड नोबेल की छवि, उनके जन्म तथा मृत्यु की तारीख लिखी होती है. वहीं दूसरी ओर यूनानी देवी आइसिस का चित्र, रॉयल एकेडमी ऑफ साइंस स्टॉकहोम तथा पुरस्कार पाने वाले व्यक्ति की जानकारी होती है.
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कब हुई शुरुआत?
नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत 10 दिसंबर 1901 को हुई थी. उस समय रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र, चिकित्सा शास्त्र, साहित्य और विश्व शांति के लिए पहली बार यह पुरस्कार दिया गया था. उस वक्त बतौर पुरस्कार करीब साढ़े पांच लाख रुपये की राशि दी जाती थी. नोबेल पुरस्कार की स्थापना स्वीडन के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक व डायनामाइट के आविष्कारक डॉक्टर अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के आधार पर 27 नवंबर 1895 को की गई थी.
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वसीयत में क्या
इन पांचों क्षेत्रों में विशिष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों के नाम का चयन करने के लिए डॉ नोबेल ने अपनी वसीयत में कुछ संस्थाओं का उल्लेख किया था. 10 दिसंबर 1896 को वे दुनिया से विदा हो गए पर रसायन, भौतिकी, चिकित्सा, साहित्य व विश्व शांति के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वालों के लिए अथाह धनराशि छोड़ गए.
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कौन थे अल्फ्रेड नोबेल?
अल्फ्रेड नोबेल विश्व के महान आविष्कारक थे. अपने जीवन में उन्होंने विभिन्न आविष्कारों पर कुल 355 पेटेंट कराए थे. उन्होंने रबड़, चमड़ा, कृत्रिम सिल्क जैसी चीजों का आविष्कार करने के बाद डायनामाइट का आविष्कार कर पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया. डायनामाइट के आविष्कार के बाद ही सुरक्षित विस्फोटक के जरिए भारी-भरकम चट्टानों को तोड़कर सुरंगें व बांध बनाने तथा रेल की पटरियां बिछाने का कार्य संभव हो पाया था.
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एक उद्योगपति भी थे
नोबेल सिर्फ एक आविष्कारक ही नहीं बल्कि एक उद्योगपति भी थे. 21 अक्टूबर 1833 को जन्मे अल्फ्रेड की मां एंडीएटा एहसेल्स धनी परिवार से थी और अल्फ्रेड के पिता इमानुएल नोबेल एक इंजीनियर तथा आविष्कारक थे. उन्होंने स्टॉकहोम में अनेकों पुल एवं भवन बनाए थे. हालांकि जिस साल अल्फ्रेड का जन्म हुआ था, उसी साल उनका परिवार दिवालिया हो गया. इसके बाद पूरा परिवार स्वीडन छोड़कर रूस के पीटर्सबर्ग शहर में जा बसा.
पीटर्सबर्ग में नोबेल परिवार ने कई उद्योग स्थापित किए, जिनमें से एक विस्फोटक बनाने का कारखाना भी था. अल्फ्रेड 17 साल की उम्र में ही स्वीडिश, फ्रेंच, अंग्रेजी, जर्मन, रूसी भाषाएं सीख चुके थे. युवावस्था में वह अपने पिता के विस्फोटक बनाने के कारखाने को संभालने लगे. 1864 में कारखाने में अचानक एक दिन भयंकर विस्फोट हुआ और उसमें उनका छोटा भाई मारा गया.
अल्फ्रेड भाई की मौत से बहुत दुखी हुए और उन्होंने विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए कोई आविष्कार करने की ठान ली. आखिरकार उन्हें डायनामाइट का आविष्कार करने में सफलता मिली. उन्होंने 20 देशों में अपने करीब 90 कारखाने स्थापित किए. आजीवन कुंवारे रहे अल्फ्रेड की साहित्य और कविताओं में भी गहरी रुचि थी और उन्होंने कई नाटक, कविताएं और उपन्यास भी लिखे लेकिन रचनाओं एवं कृतियों का प्रकाशन नहीं हो पाया.
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कहा अलविदा
10 दिसंबर 1896 को अल्फ्रेड दुनिया से विदा हो गए. 1866 में डायनामाइट का आविष्कार कर उसका पेटेंट हासिल करके अल्फ्रेड बहुत अमीर हो गए थे. डायनामाइट उपयोगी साबित हुआ लेकिन डायनामाइट के दुरुपयोग की आशंका के चलते अल्फ्रेड खुद भी इस आविष्कार से खुश नहीं थे और इससे कमाई सारी धनराशि से नोबेल पुरस्कार शुरू करने की घोषणा की.(आईएएनएस/एए)