अमेरिका में चुनाव अभियान जोरों पर है. प्रेसिडेंशियल डिबेट से ठीक पहले ट्रंप के आयकर से जुड़ी रिपोर्ट अमेरिकी अखबार "द न्यूयॉर्क टाइम्स" में छपी है जिसके अनुसार उन्होंने 2016 और 2017 में महज 750 डॉलर का टैक्स भरा था.
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2016 में जब डॉनल्ड ट्रंप पहली बार राष्ट्रपति पद के लिए खड़े हुए तब उनका आयकर का मामला लगातार सुर्खियों में रहा. हिलेरी क्लिंटन हर डिबेट में उनसे टैक्स के कागजात मांगती दिखीं और ट्रंप लगातार इससे इनकार करते रहे. अब चार साल बाद 2020 में वे एक बार फिर राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल हैं और एक बार फिर इस पर चर्चा होने लगी है.
न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी के एक रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप ने 2016 में कुल 750 डॉलर का इनकम टैक्स भरा था. राष्ट्रपति बन जाने के बाद पहले साल यानी 2017 में भी उन्होंने इतना ही टैक्स भरा था. इतना ही नहीं, इससे पहले के 15 सालों में 10 साल उन्होंने टैक्स भरा ही नहीं. उनकी दलील थी कि व्यापार में उन्हें लगातार घाटा हो रहा था. अपने को सफल कारोबारी बताने वाले ट्रंप ने ना ही पैसा कमाया और ना ही उन्हें टैक्स देने की जरूरत पड़ी.
चुनाव जीतने से पहले ट्रंप ने लोगों से वादा किया था कि वे टैक्स के कागजात सार्वजनिक करेंगे लेकिन उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया. अमेरिका के इतिहास में राष्ट्रपति निक्सन के बाद ट्रंप एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्होंने अपने टैक्स की जानकारी को छिपा कर रखा है. रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब ट्रंप से इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने इसे "फेक न्यूज" बता दिया. ट्रंप अकसर अपनी आलोचनाओं को फेक न्यूज बताते आए हैं. पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, "पहली बात तो यह कि मैंने बहुत रकम चुकाई है, मैंने बहुत सारा आयकर भी चुकाया है. मैं ये सब दिखाऊंगा."
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जो बाइडेन को मिला मुद्दा
मंगलवार को अमेरिका में पहली बार प्रेसिडेंशियल डिबेट होनी है जिसमें राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप और जो बाइडेन पहली बार आमने सामने होंगे. ऐसे वक्त पर इस तरह की रिपोर्ट का सामने आना ट्रंप के लिए घातक साबित हो सकता है. जो बाइडेन ट्रंप पर वार करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं. बाइडेन की टीम ट्विटर पर कैम्पेन चलाती नजर आ रही है जिसमें बाइडेन और ट्रंप के टैक्स की तुलना देखी जा सकती है. कमला हैरिस और बर्नी सैंडर्स द्वारा दिए गए टैक्स को भी तुलना के लिए दिखाया जा रहा है. 2017 में जहां सैंडर्स ने लगभग तीन लाख डॉलर और हैरिस ने करीब पांच लाख डॉलर टैक्स भरा, वहीं बाइडेन ने 37 लाख डॉलर से भी ज्यादा का कर चुकाया, जबकि ट्रंप ने महज 750 डॉलर.
इनकम टैक्स यूं भी जो बाइडेन के चुनाव अभियान का एक बड़ा मुद्दा रहा है. वे लंबे समय से अध्यापकों, नर्सों और दमकल कर्मियों के टैक्स को घटाने की पैरवी करते रहे हैं. इन लोगों को सालाना पांच से दस हजार डॉलर के बीच टैक्स भरना होता है. प्रेसिडेंशियल डिबेट के दौरान बाइडेन का इसे मुद्दा बनाना लगभग तय ही दिख रहा है.
आखिर कितने अमीर हैं डॉनल्ड ट्रंप
अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को यहां तक पहुंचाने में उनकी दौलत ने काफी मदद की है. केवल ट्रंप के नाम पर दुनिया भर मशहूर हैं ये जगहें.
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लास वेगस
लास वेगस में ट्रंप इंटरनेशनल होटल एंड टावर स्थित है. इसके बराबर में मौजूद लक्जरी विन रिजॉर्ट भी इसके सामने बौना नजर आता है. ट्रंप कॉम्प्लेक्स इस शहर की तीसरी सबसे ऊंची इमारत है.
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शिकागो
शिकागो के बहुत सारे लोगों को यहां दिखने वाले ट्रंप होटल एंड टावर से परेशानी है. मेयर राहम इमैनुएल ने तो इसे "भद्दा और असुरुचिपूर्ण" तक कह डाला और उनके नाम के हिस्से 'ट्रंप' को बैन भी करवाया. लेकिन पांच साल के बाद फिर ट्रंप ने इसकी 16वीं मंजिल पर अपना नाम लगवा लिया.
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अटलांटिक सिटी
यहां ताज महल कैसे? असल में ट्रंप ने 1990 में न्यू जर्सी की अटलांटिक सिटी में ताज महल का निर्माण कार्य पूरा करवाया. करीब एक अरब डॉलर की लागत से बने इस कसीनो और होटल को 25 साल तक चलाने के बाद दिवालिया होने की नौबत आ गई थी. 2014 में यह बिक गया लेकिन नए मालिकों ने ट्रंप ब्रांड नहीं छोड़ा.
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मैनहैट्टन की सड़कों पर
न्यूयॉर्क में स्थित ट्रंप टावर उनकी बहुत खास संपत्ति माना जाता है. ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के अभियान के लिए यही उनका मुख्यालय भी है. इस इमारत में फुटबॉल सितारे क्रिस्टियानो रोनाल्डो, अभिनेता ब्रूस विलिस जैसे कई मशहूर सेलेब्रिटीज के आशियाने हैं. खुद ट्रंप का परिवार भी यहीं लक्जरी टावर में रहता है.
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न्यूयॉर्क का विवादित प्रतीक
725 फिफ्थ एवेन्यू पर बने ट्रंप टावर को बहुत से स्थानीय निवासी पसंद नहीं करते तो कई इसे बहुत शालीन और टाइमलैस बताते हैं. यह छह मंजिला ट्रंप टावर संगमरमर और सुनहरे रंगों से सजा है. आधुनिक आर्किटेक्चर के शौकीनों और ट्रंप समर्थकों के लिए यह बड़ा आकर्षण है.
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गरीबी-अमीरी का साफ अंतर
पनामा सिटी के ट्रंप ओशन क्लब में एक होटल, 700 अपार्टमेंट और अपना प्राइवेट यॉट क्लब है. यह पूरे लैटिन अमेरिका की सबसे ऊंची बिल्डिंग है. हालांकि इससे पास ही स्थित गरीब लोगों की बस्ती के कारण कई लोग इन अपार्टमेंट में नहीं रहना चाहते.
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स्कॉटिश विरोध
भले ही एबरडीन, स्कॉटलैंड में बनाए अपने ट्रंप इंटरनेशनल गोल्फ लिंक्स एस्टेट को डॉनल्ड ट्रंप "दुनिया का सर्वोत्तम गोल्फ कोर्स" कहते रहें, पास की एक जमीन को बेचने के लिए एक स्थानीय स्कॉट आज तक तैयार नहीं हुआ. जून में ही ट्रंप वहां पहुंचे और स्कॉटलैंड के ईयू में बने रहने की इच्छा को नजरअंदाज करते हुए यूके के ब्रेक्जिट के निर्णय की खूब तारीफ की.
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एर्दोआन के मुकाबले ट्रंप
पूरे यूरोप में सबसे पहला ट्रंप टावर इस्तांबुल में ही बना था. यह अपने विशाल वाइन संग्रह के लिए मशहूर है. हालांकि इस ऊंचे टावर से ट्रंप का नाम हटाने की मांग हुई थी. इस कॉम्प्लेक्स का मालिक एक तुर्की अरबपति है जिसने ट्रंप ब्रांड नेम लिया हुआ था. ट्रंप के इस्लाम और मुस्लिम विरोधी विचारों के कारण राष्ट्रपति एर्दोआन समेत तुर्की के कई मुसलमान नाखुश हैं.
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कैसे बचाया टैक्स?
आयकर बचाने के लिए लोग तरह तरह के उपाय खोजते हैं. कोई निवेश करता है तो कोई संपत्ति रिश्तेदारों के नाम पर दिखा देता है. लेकिन ट्रंप ने अलग ही पैंतरे अपनाए. 2004 से 2017 के बीच ट्रंप "द अप्रेंटिस" नाम का एक रियलिटी टीवी शो होस्ट करते थे. इस दौरान उन्होंने अपने ऐसे बहुत से खर्चे दिखा दिए जिनपर वे कर कटौती के हकदार बने. इसमें रहने का और विमान का खर्च शामिल था. यहां तक कि अपने बालों की स्टाइलिंग के लिए उन्होंने 70,000 डॉलर का खर्च भी दिखा डाला.
2018 की ट्रंप की फाइलें दिखाती हैं कि उन्होंने 43.4 करोड़ डॉलर की कमाई की लेकिन इसी दौरान उन्हें 4.7 करोड़ का नुकसान भी हुआ. साल 2000 में उन्होंने 31.5 करोड़ डॉलर के नुकसान की बात कही. क्योंकि डॉनल्ड ट्रंप का व्यापार अमेरिका के बाहर भी कई देशों में फैला हुआ है, इसलिए उन्हें विदेशों में भी कर चुकाना होता है. रिकॉर्ड दिखाते हैं कि 2017 में उन्होंने फिलीपींस में 15.6 लाख और भारत में 14.5 लाख डॉलर का टैक्स भरा, जबकि अमेरिका में इस दौरान उन्होंने केवल 750 डॉलर का टैक्स ही भरा.
पैसा बचाने के लिए लोग क्या क्या नहीं करते. और अगर किसी देश के नियम ही ऐसे हों कि वहां ना ही आपको टैक्स चुकाना पड़े और ना ही आपके डाटा के साथ छेड़छाड़ हो, तो और क्या चाहिए. जानिए पैसा बचाने के लिए लोग कहां कहां जाते हैं.
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स्विट्जरलैंड
भारत में जैसे ही काले धन का जिक्र होता है, तो सबसे पहले लोगों के जहन में स्विट्जरलैंड का नाम ही आता है. यह जगह इतनी मशहूर है कि फिल्मों में विलन का भी स्विस बैंक अकाउंट होना जरूरी हो गया है. वजह है यहां की गोपनीयता नीति.
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हांगकांग
चीन में होते हुए भी हांगकांग की अपनी अलग मुद्रा है, अपने अलग कानून हैं, अपनी अलग राजनीति है. बेहद कम टैक्स दर और कई तरह के गोपनीयता कानून दुनिया भर के व्यापारियों को यहां खींचते हैं. खास कर चीन के लोग टैक्स बचाने यहां आते हैं.
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अमेरिका
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अपने नागरिकों से तो टैक्स वसूलने में कामयाब रहती है लेकिन बड़ी बड़ी कंपनियां इसके हाथ नहीं आती. अमेरिकी कानून में ऐसे कई पेंच हैं जिनका फायदा उठा कर कंपनियां कॉर्पोरेट टैक्स देने से बचती हैं और पैसा आसानी से देश से बाहर ले जाती हैं.
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सिंगापुर
1965 में जब सिंगापुर मलेशिया से अलग हुआ तब कौन सोच सकता था कि इतनी जल्दी वह दुनिया के सबसे रईस देशों में गिना जाने लगेगा. यहां बैंक अकाउंट खुलवाना बेहद आसान है लेकिन किसी के अकाउंट को ट्रैक करना बेहद मुश्किल.
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केमन द्वीप
क्यूबा और जमैका के करीब बसा छोटा सा केमन आयलैंड पैसा बचाने के लिए जन्नत है. विदेशी कंपनियों को यहां ना ही इंकम टैक्स देना होता है और ना ही कंपनी टैक्स.
तस्वीर: dapd
लग्जमबर्ग
यह छोटा सा देश जर्मनी, फ्रांस और बेल्जियम के बीच स्थित है. महज पांच लाख की आबादी वाले इस देश में 27 देशों के करीब 150 अलग अलग बैंक मौजूद हैं. लेकिन यूरोपीय संघ ने हाल में जो कानूनी बदलाव किए हैं, उसके बाद लग्जमबर्ग में बैंक अपनी गोपनीयता नीति को बरकरार नहीं रख पाएंगे.
तस्वीर: picture alliance/dpa
लेबनान
जितनी लेबनान की कुल आबादी है, उससे ज्यादा लेबनानी देश के बाहर रहते हैं और वहां से पैसा अपने देश भेजते हैं. गोपनीयता को ले कर कानून बहुत सख्त हैं जिस कारण उन्हें सरकार को अपने धन का पूरा ब्यौरा नहीं देना पड़ता.
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जर्मनी
आम नागरिक की जेब से वेतन का करीब चालीस फीसदी सीधे टैक्स में चला जाता है लेकिन कॉर्पोरेट टैक्स की अगर बात की जाए, तो जर्मनी उससे कुछ खास नहीं कमा पता. टैक्स के एक्सपर्ट पेंचीदगियों को जानते हैं और कंपनियों का टैक्स बचा लेते हैं.
यहां की अर्थव्यवस्था जितनी तेल से जुड़ी है उतनी ही विदेशियों के धन से भी. बहरीन को इस्लामिक बैंकिंग के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जाता है. विदेशी कंपनियों के लिए यहां ना ही इंकम टैक्स है और ना ही कॉर्पोरेट टैक्स.
पनामा
पनामा पेपर लीक्स के बाद से यह नाम सबकी जुबान पर है. यहां कई भारतीयों की फर्जी कंपनियां होने की भी खबरें हैं. कर चोरी के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं. मनी लॉन्डरिंग किस किस तरह से होती है, यह जानने के लिए ऊपर दिए गए "और+" पर क्लिक करें.