फैसलों को प्रभावित करता है रोबोट की आंखों में देखना
२ सितम्बर २०२१
इटली के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि रोबोट की आंखों में देखने से इंसान के दिमाग पर असर होता है. ऐसा करने से इंसानों की निर्णय क्षमता प्रभावित होती है.
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इस बारे में वैज्ञानिक काफी पहले से जानते हैं कि रोबोट की आंखों में झांकना परेशान करने वाला अनुभव हो सकता है. इस अहसास को अंग्रेजी में ‘अनकैनी वैली' के नाम से जाना जाता है. लेकिन इटली के कुछ शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि यह सिर्फ एक अहसास नहीं है बल्कि इसका असर गहरा होता है.
जिनोआ में स्थित इटैलियानो डि टेक्नोलोगिया (IIT) इंस्टिट्यूट की एक टीम ने रिसर्च में दिखाया है कि कैसे रोबोट की आंखों में झांकने से हमारे फैसले प्रभावित हो सकते हैं.
तस्वीरों मेंः रोबोट ने पकाया खाना
रोबोट ने पकाया खाना, शेफ बोले 'वाह'
क्या रोबोट इंसान जैसा लजीज खाना बना सकते हैं? किसी प्रोफेशनल शेफ जैसा खाना? स्पेन में यह प्रयोग हुआ. एक शेफ ने रोबोट का बनाया पाएला चखा. कैसा लगा ये परंपरागत खाना?
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बीआर5 की तकनीक
स्पेन की कंपनी बीआर5 ने एक रोबोट बनाया है. यह रोबोट खाना पका सकता है. खासकर स्पेन की दुनिया भर में मशहूर डिश पाएला. और इसका बनाया पाएला एक प्रोफेशनल शेफ ने चखकर कहा, बढ़िया है. इसके बाद तो स्पेन ही नहीं, विदेशों में भी रेस्तरां और होटल मालिक इस रोबोट में दिलचस्पी दिखा रहे हैं.
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परंपरागत डिश
पाएला चावल का एक खिचड़ी जैसा डिश है, लेकिन शाकाहारी नहीं. ये डिश मूल रूप से स्पेन के वेलेंसिया इलाके से आया है, लेकिन स्पेन का सबसे लोकप्रिय डिश होने के कारण आज विदेशों में इसे स्पेन का राष्ट्रीय डिश माना जाने लगा है. वेलेंसिया की भाषा में पाएला का अर्थ फ्राइंग पैन है जिसमें ये डिश बनती है.
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घर जैसा नहीं, बाहर जैसा
बीआर5 के संस्थापक एनरीके लीयो कहते हैं, “बेशक किसी रविवार को घर में बना चावल का यह डिश तो जाहिर है हमेशा बेहतर होगा. हम वैसा कुछ सोच भी नहीं रहे हैं. हमारा मकसद तो बस ये है कि दुनिया में कहीं भी हों, वैसा चावल खा सकें जैसा हम अपने देश में खाते हैं.”
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बिक्री शुरू
एनरीके लीयो बताते हैं कि जापान में तो कुछ मनोरंजन पार्क और रिसॉर्ट पाएला बनाने वाले इस रोबोट को खरीद भी चुके हैं. लेकिन सिर्फ विदेशों में ही इस रोबोट के बनाए खाने की खुशबू नहीं फैल रही है. इस रोबोट का बनाया खाना स्थानीय लोगों में भी जगह बना रहा है.
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शेफ को भी पसंद आया
एक प्रदर्शन के दौरान शेफ सैर्जी एस्कोला बता रहे हैं कि रोबोट पाएला कैसे बनाता है. कुकिंग स्कूल कोसीनिया की डाइरेक्टर और पाएला शेफ मारिया मुनोज कहती हैं, “मेरे ख्याल से तो यह एक बढ़िया मशीन है. इसे बनाने वालों को शाबाश क्योंकि मुझे तो ये बहुत पसंद आया.”
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सब कुछ एक साथ
रोबोट में एक स्टोव है जिसे कंप्यूटर से कंट्रोल किया जा सकता है. इसकी एक मेकैनिकल बाजू है जो पाएला की सामग्री को कड़ाही में डालती है, हिलाती है और चलाती है. मुनोज कहती हैं कि रेस्तरांओं के लिए यह मशीन काफी उपयोगी होगी क्योंकि वे एक साथ काफी पाएला बना सकते हैं.
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साइंस रोबॉट्स नामक पत्रिका में प्रकाशित रिसर्च की मुख्य लेखिका प्रोफेसर एग्निस्चिका वाइकोवस्का कहती हैं, "आंखों में झांकना एक बहुत महत्वपूर्ण सामाजिक संकेत है जिसे हम रोजमर्रा की जिंदगी में लोगों से संवाद करते हुए प्रयोग करते हैं. सवाल यह है कि रोबोट की आंखों में झांकने से भी क्या मानव मस्तिष्क में वैसी ही प्रतिक्रिया होती है, जैसी एक इंसान की आंखों में झांकने से होगी.”
कैसे हुआ शोध
अपनी रिसर्च के लिए इटली की इस टीम ने 40 लोगों को ‘चिकन' नाम की वीडियो गेम खेलने को कहा. हर खिलाड़ी को यह फैसला करना था कि कार को सामने वाली कार से भिड़ जाने दे या टक्कर टालने के लिए रास्ता बदल ले. सामने वाली कार में ड्राइवर के रूप में एक रोबोट बैठा था.
खेलते वक्त खिलाड़ियों को रोबोट की ओर देखना था, जो कई बार उनकी आंखों में झांकता था तो कई बार दूसरी तरफ देखता. हर बार के लिए शोधकर्ताओं ने आंकड़े जमा किए और इलेक्ट्रोएंसफालोग्रैफी (EEG) के जरिए मस्तिष्क में हो रही प्रतिक्रियाओं को रिकॉर्ड किया.
तस्वीरों मेंः मिलिए ग्रेस से
मिलिए ग्रेस से, स्वास्थ्य देखभाल के लिए अनोखा रोबोट
रोबोट सोफिया तो याद ही होगी आपको. सोफिया जब बात करती तो उसके चेहरे पर बदलते भाव लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचते. लेकिन महामारी ने एक और रोबोट को पैदा कर दिया. इसका नाम ग्रेस है. वह स्वास्थ्यकर्मी के रूप में काम करेगी.
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कोरोना काल में आ गई "ग्रेस"
सेलिब्रिटी ह्यूमनॉइड रोबोट सोफिया के पीछे हांग कांग की जो टीम थी, वह एक नया प्रोटोटाइप रोबोट लेकर आई है. इसका नाम ग्रेस है, जिसे स्वास्थ्य सेवा बाजार पर लक्षित किया गया है और इसे बुजुर्गों और कोविड-19 महामारी से अलग-थलग होने वालों लोगों के साथ बातचीत करने के लिए डिजाइन किया गया है.
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नर्स की तरह का काम
नीले रंग की नर्स की ड्रेस पहने हुए, ग्रेस में एशियाई विशेषताएं हैं. उसके काले बाल कंधे तक आते हैं. ग्रेस की छाती पर एक थर्मल कैमरा लगा है जो मरीज के शरीर का तापमान लेने और उसकी प्रतिक्रिया को मापने के लिए है. वह अंग्रेजी, मंदारिन और कैंटोनीज भाषा बोल सकती है.
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ग्रेस क्या करेगी?
कोरोना संकट की शुरुआत से ही स्वास्थ्यकर्मी अथक परिश्रम कर रहे हैं. हैनसन रोबोटिक्स ने उनकी मदद के लिए ही ग्रेस का प्रोटोटाइप तैयार किया है. वह कोरोना के संक्रमण से भी बच सकती है और बुजुर्गों और लंबे समय से घर में नजरबंद लोगों से बात कर सकती है.
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ग्रेस किस तरह से स्वास्थ्य सेवा देगी
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बदौलत ग्रेस कुछ चीजों के बारे में लोगों से सहजता से बात कर सकती है. अपनी बहन सोफिया के बगल में खड़ी ग्रेस कहती है, "मैं लोगों के घर जाकर उनके दिन को उज्ज्वल कर सकती हूं. उनसे बात कर सकती हूं. स्वास्थ्यकर्मियों की मदद कर सकती हूं."
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कीमत कितनी
हैनसन रोबोटिक्स के मुताबिक अगले साल के भीतर हांग कांग, चीन, जापान और कोरिया में ऐसे रोबोट का उत्पादन जोरों पर शुरू हो जाएगा. हैनसन रोबोटिक्स का मानना है कि भविष्य में अगर उसका उप्तादन ज्यादा होता है तो ग्रेस की कीमत में काफी गिरावट आएगी. फिलहाल एक रोबोट का दाम एक कीमती लग्जरी कार के बराबर है.
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सोफिया की खासियत
आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस से लैस ह्यूमनॉइड रोबोट सोफिया जब दुनिया में पहली बार पेश की गई तो उसने खूब सुर्खियां बटोरी. इसमें कोई शक नहीं है रोबोट हमारी जिंदगी को आसान बना रहे हैं. और इनका इस्तेमाल हर क्षेत्र में हो रहा है. सोफिया तो पहली ऐसी महिला रोबोट है जिसके पास एक देश की नागरिकता है.
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हर जगह रोबोट
जर्मनी की डाक सेवा डॉयचे पोस्ट ने काफी समय पहले रोबोट का इस्तेमाल शुरू कर दिया. पीले रंग के रोबोट डाक ले कर लोगों के घर तक जाते हैं. हालांकि क्योंकि अभी इन्हें सीढ़ियां चढ़ना नहीं आता है, इसलिए एक व्यक्ति मदद के लिए इनके साथ रहता है.
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प्रोफेसर वाइकोवस्का बताती हैं, "हमारे नतीजे दिखाते हैं कि मानव मस्तिष्क रोबोट के आंखों में झांकने को भी एक सामाजिक संकेत के रूप में ग्रहण करता है और इस संकेत का हमारे फैसलों, गेम की हमारी रणनीतियों और हमारी प्रतिक्रियाओं पर असर होता है.”
क्या रहा असर
शोध कहता है कि रोबोट से आंखें मिलाने का असर यह हुआ कि फैसलों में देरी हो गई जिस कारण खेल के दौरान खिलाड़ी बहुत धीमे फैसले ले रहे थे.
इन नतीजों का असर भविष्य में रोबॉट्स के इस्तेमाल पर भी हो सकता है. प्रोफेसर वाइकोवस्की कहती हैं, "जब हम यह समझ जाते हैं कि रोबोट सामाजिक अनुकूलन को प्रभावित करते हैं तो हम ये फैसले कर सकते हैं कि किस संदर्भ में उनका होना इंसान के लिए लाभदायक हो सकता है और किस संदर्भ में नहीं.”
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रोबोटिक्स के मुताबिक 2018 से 2019 के बीच प्रोफेशनल सर्विस देने वाले रोबोट की बिक्री में 32 प्रतिशत की बढ़त हुई थी और यह 11 अरब डॉलर को पार कर गई थी.