तुर्की ने देश में दुर्लभ धातुओं रेयर अर्थ का विशाल भंडार मिलने का दावा किया है. इलेक्ट्रिक कारों और विंड टरबाइन के निर्माण के लिए यह धातुएं काफी महत्वपूर्ण हैं. क्या विशाल भंडार के मिलने से चीन का दबदबा खत्म होगा?
विज्ञापन
यूरोप रूसी ऊर्जा पर निर्भरता खत्म करने के लिए काफी संघर्ष कर रहा है. इसके लिए जरूरी है कि अक्षय ऊर्जा के स्रोत को बढ़ावा दिया जाए. अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए दुर्लभ धातु रेयर अर्थ की काफी ज्यादा जरूरत होती है. अब तक इस धातु के लिए यूरोप पूरी तरह चीन पर निर्भर था, क्योंकि चीन के पास रेयर अर्थ का सबसे बड़ा भंडार है. हालांकि, अब तुर्की यूरोप की चीन पर निर्भरता को कम कर इस समस्या का हल कर सकता है.
तुर्की की सरकार ने इस महीने रेयर अर्थ एलिमेंट के विशाल भंडार की खोज की घोषणा की है. इसे प्रोसेस करके इलेक्ट्रिक वाहन, विंड टरबाइन, और सौर पैनल बनाए जा सकते हैं. इस भंडार का पता लगाने के लिए तुर्की में पिछले करीब एक दशक से खुदाई की जा रही थी. तुर्की के भू-वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि देश के उत्तर-पश्चिमी शहर एस्कीसेहिर के समीप करीब 694 मिलियन टन रेयर अर्थ धातु मौजूद है. वहीं, चीन के पास 800 मिलियन टन का भंडार है. इस हिसाब से यह चीन के बाद रेयर अर्थ का दूसरा सबसे बड़ा भंडार है.
रेयर अर्थ वास्तव में इतनी दुर्लभ धातु नहीं है जितना इसके बारे में बताया जाता है. इन्हें ‘दुर्लभ' बताने की वजह है कि यह अन्य धातुओं के साथ मिश्रित अवस्था में रहती हैं और इन्हें अलग करना एक जटिल प्रक्रिया है. इससे चुंबक का निर्माण होता है, जिसका इस्तेमाल व्यावसायिक और सैन्य प्रोद्योगिकी में किया जाता है. लाइटर, लेजर, बैटरी, फाइबर ऑप्टिक केबल, सुपर कंडक्टर जैसी चीजों के निर्माण में भी इनका इस्तेमाल होता है.
गुणवत्ता को लेकर अड़ा तुर्की
तुर्की का मानना है कि उसके देश में जो भंडार मिला है वह अगले 1,000 साल तक पूरी दुनिया की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है. हालांकि, यहां मिले एलिमेंट की गुणवत्ता को लेकर पर्याप्त जानकारी न होने की वजह से कई विश्लेषक असमंजस में हैं.
यूके रिसर्च हाउस हॉलगार्टन एंड कंपनी के प्रिंसिपल और खनन रणनीतिकार क्रिस्टॉफर एक्लेस्टोन ने डीडब्ल्यू को बताया, "अगर वे इतने बड़े विशाल भंडार का दावा कर रहे हैं, तो उन्होंने काफी ज्यादा खुदाई की होगी और उन्हें पता होगा कि धातु की गुणवत्ता कैसी है. आखिर पूरी जानकारी कहां है?”
लीथियम आर्थिक तरक्की लाएगा या आपदा
05:10
ग्लोबल कंसल्टेंसी फर्म वुड मैकेन्सी में रेयर अर्थ के शोध निदेशक डेविड मेरिमैन ने डीडब्ल्यू को बताया कि तुर्की में जो भंडार मिला है उसमें रेयर अर्थ एलिमेंट लैंथेनम और सीरियम ज्यादा होने की संभावना है जो ‘वर्तमान समय में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं' और ‘उच्च गुणवत्ता वाले चुंबक के निर्माण के लिए दुर्लभ मांग' में शामिल नहीं हैं.
ब्रिटिश भूविज्ञानी कैथरीन गुडइनफ ने हाल ही में वायर्ड पत्रिका को बताया कि तुर्की के भंडार में लगभग 14 मिलियन टन रेयर अर्थ ऑक्साइड होने का अनुमान है, जो चीन के अनुमानित भंडार के एक तिहाई से भी कम है.
चीन के दबदबे से यूरोपीय संघ और अमेरिका को खतरा
दुनिया में रेयर अर्थ मटीरियल की जितनी मांग है उसके 80 फीसदी हिस्से की आपूर्ति चीन करता है. यूरोपीय संघ में रेयर अर्थ चुंबक का 98 फीसदी हिस्सा चीन से आयात किया जाता है, जो प्रति वर्ष करीब 16,000 टन है. इसके पीछे की बड़ी वजह यह है कि चीन के सप्लाई चेन में शामिल सबसे बड़ी कंपनियों पर सरकार का मालिकाना हक है और उन्हें काफी ज्यादा सब्सिडी मिलती है. इससे, एशिया में बनने वाले चुंबक की कीमत यूरोप की तुलना में करीब एक तिहाई कम होती है.
चीन के इस एकाधिकार को लेकर बेल्जियम, जर्मनी, और अमेरिका ने चिंता जताई है. उनका कहना है कि कारोबार और भू-राजनीतिक विवाद के दौरान चीन रेयर अर्थ का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकता है. 2010 में चीन ने सीमा विवाद को लेकर जापान को रेयर अर्थ निर्यात करने पर रोक लगा दी थी.
दुर्लभ धातुओं की रिसाइकिल
04:01
This browser does not support the video element.
अमेरिकी वित्त मंत्री जैनेट येलेन ने इस सप्ताह कहा कि उनका देश चीनी रेयर अर्थ पर अपनी ‘बहुत अधिक निर्भरता' को कम करने का प्रयास कर रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि चीन ने ‘अपनी बात न मानने वाले कई देशों पर दबाव बनाया'.
दो साल पहले, ईयू ने यूरोपियन रॉ मटीरियल अलायंस बनाया था. इसका मकसद यह था कि रेयर अर्थ सहित अन्य धातुओं के कच्चे माल के आयात के लिए ईयू के सदस्य देश किसी एक देश पर निर्भर न रहें और वे तीसरी दुनिया के अलग-अलग देशों से आयात करें. वहीं, कोरोना महामारी से उत्पन्न हालात को देखते हुए क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने की कोशिशें तेज कर दी गई हैं.
तुर्की रेयर अर्थ के भंडार को लेकर जितना दावा कर रहा है अगर उतना वाकई में है, तो इससे राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान का कद नाटो सहयोगियों के बीच पहले की तुलना में बढ़ जाएगा. साथ ही, इससे तुर्की की कमजोर अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी.
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब एर्दोवान की घोषणा को संदेह के नजरिए से देखा गया है. दो साल पहले, तुर्की ने काले सागर में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार की खोज की घोषणा की थी. इसे लेकर एर्दोवान ने कहा था कि इससे ऊर्जा के आयात पर होने वाले खर्च में काफी कमी आएगी. विश्लेषकों को संदेह है कि क्या यह भंडार लगभग 320 बिलियन क्यूबिक मीटर (11.3 ट्रिलियन क्यूबिक फीट) होगा, जितना शुरू में अनुमान लगाया गया था. साथ ही, उस समय किए गए वादे के मुताबिक क्या 2023 तक यहां से गैस की निकासी शुरू हो पाएगी?
पश्चिमी देशों के लिए रेयर अर्थ का रणनीतिक महत्व इतना अधिक है कि इससे जुड़ी कई अन्य परियोजनाओं ने हाल के वर्षों में अपनी क्षमता बढ़ा दी है, ताकि वे निवेशकों को आकर्षित कर सकें.
कैसे अमेरिका को चुनौती देने वाली महाशक्ति बन गया चीन
सोवियत संघ के विघटन के बाद से अमेरिका अब तक दुनिया की अकेली महाशक्ति बना रहा. लेकिन अब चीन इस दबदबे को चुनौती दे रहा है. एक नजर बीते 20 साल में चीन के इस सफर पर.
तस्वीर: Colourbox
मील का पत्थर, 2008
2008 में जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी से खस्ताहाल हो रही थी, तभी चीन अपने यहां भव्य तरीके ओलंपिक खेलों का आयोजन कर रहा था. ओलंपिक के जरिए बीजिंग ने दुनिया को दिखा दिया कि वह अपने बलबूते क्या क्या कर सकता है.
तस्वीर: AP
मंदी के बाद की दुनिया
आर्थिक मंदी के बाद चीन और भारत जैसे देशों से वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की उम्मीद की जाने लगी. चीन ने इस मौके को बखूबी भुनाया. उसके आर्थिक विकास और सरकारी बैंकों ने मंदी को संभाल लिया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
ग्लोबल ब्रांड “मेड इन चाइना”
लोकतांत्रिक अधिकारों से चिढ़ने वाले चीन ने कई दशकों तक बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में खूब संसाधन झोंके. इन योजनाओं की बदौलत बीजिंग ने खुद को दुनिया का प्रोडक्शन हाउस साबित कर दिया. प्रोडक्शन स्टैंडर्ड के नाम पर वह पश्चिमी उत्पादों को टक्कर देने लगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मध्य वर्ग की ताकत
बीते दशकों में जहां, दुनिया के समृद्ध देशों में अमीरी और गरीबी के बीच खाई बढ़ती गई, वहीं चीन अपने मध्य वर्ग को लगातार बढ़ाता गया. अमीर होते नागरिकों ने चीन को ऐसा बाजार बना दिया जिसकी जरूरत दुनिया के हर देश को पड़ने लगी.
चीन के आर्थिक विकास का फायदा उठाने के लिए सारे देशों में होड़ सी छिड़ गई. अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और ब्रिटेन समेत तमाम अमीर देशों को चीन में अपने लिए संभावनाएं दिखने लगीं. वहीं चीन के लिए यह अपने राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को विश्वव्यापी बनाने का अच्छा मौका था.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS.com/Tang Ke
पश्चिम के दोहरे मापदंड
एक अरसे तक पश्चिमी देश मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चीन की आलोचना करते रहे. लेकिन चीनी बाजार में उनकी कंपनियों के निवेश, चीन से आने वाली मांग और बीजिंग के दबाव ने इन आलोचनाओं को दबा दिया.
तस्वीर: picture-alliance/Imagechina
शी का चाइनीज ड्रीम
आर्थिक रूप से बेहद ताकतवर हो चुके चीन से बाकी दुनिया को कोई परेशानी नहीं थी. लेकिन 2013 में शी जिनपिंग के चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद नजारा बिल्कुल बदल गया. शी जिनपिंग ने पहली बार चीनी स्वप्न को साकार करने का आह्वान किया.
तस्वीर: Getty Images/Feng Li
शुरू हुई चीन से चुभन
आर्थिक विकास के कारण बेहद मजबूत हुई चीनी सेना अब तक अपनी सीमा के बाहर विवादों में उलझने से बचती थी. लेकिन शी के राष्ट्रपति बनने के बाद चीन ने सेना के जरिए अपने पड़ोसी देशों को आँखें दिखाना शुरू कर दिया. इसकी शुरुआत दक्षिण चीन सागर विवाद से हुई.
तस्वीर: picture alliance/Photoshot/L. Xiao
लुक्का छिप्पी की रणनीति
एक तरफ शी और दूसरी तरफ अमेरिका में बराक ओबामा. इस दौरान प्रभुत्व को लेकर दोनों के विवाद खुलकर सामने नहीं आए. दक्षिण चीन सागर में सैन्य अड्डे को लेकर अमेरिकी नौसेना और चीन एक दूसरे चेतावनी देते रहे. लेकिन व्यापारिक सहयोग के कारण विवाद ज्यादा नहीं भड़के.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/H. Guan
कमजोर पड़ता अमेरिका
इराक और अफगानिस्तान युद्ध और फिर आर्थिक मंदी, अमेरिका आर्थिक रूप से कमजोर पड़ चुका था. चीन पर आर्थिक निर्भरता ने ओबामा प्रशासन के पैरों में बेड़ियों का काम किया. चीन के बढ़ते आक्रामक रुख के बावजूद वॉशिंगटन कई बार पैर पीछे खींचता दिखा.
तस्वीर: AFP/Getty Images/S. Marai
संघर्ष में पश्चिम और एकाग्र चीन
एक तरफ जहां चीन दक्षिण चीन सागर में अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा था, वहीं यूरोप में रूस और यूरोपीय संघ बार बार टकरा रहे थे. 2014 में रूस ने क्रीमिया को अलग कर दिया. इसके बाद अमेरिका और उसके यूरोपीय साझेदार रूस के साथ उलझ गए. चीन इस दौरान अफ्रीका में अपना विस्तार करता गया.
तस्वीर: imago stock&people
इस्लामिक स्टेट का उदय
2011-12 के अरब वसंत के कुछ साल बाद अरब देशों में इस्लामिक स्टेट नाम के नए आतंकवादी गुट का उदय हुआ. अरब जगत के राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष ने पश्चिम को सैन्य और मानवीय मोर्चे पर उलझा दिया. पश्चिम को आईएस और रिफ्यूजी संकट से दो चार होना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/
वन बेल्ट, वन रोड
2016 चीन ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना शुरू की. जिन गरीब देशों को अपने आर्थिक विकास के लिए विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कड़ी शर्तों के साथ कर्ज लेना पड़ता था, चीन ने उन्हें रिझाया. चीन ने लीज के बदले उन्हें अरबों डॉलर दिए और अपने विशेषज्ञ भी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Chhin Sothy
हर जगह चीन ही चीन
चीन बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट सहारे अफ्रीका, दक्षिण अमेरका, पूर्वी एशिया और खाड़ी के देशों तक पहुचना चाहता है. इससे उसकी सीधी पहुंच पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक भी होगी और अफ्रीका में हिंद और अटलांटिक महासागर के तटों पर भी.
तस्वीर: Reuters/T. Mukoya
सीन में ट्रंप की एंट्री
जनवरी 2017 में अरबपति कारोबारी डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका के नए राष्ट्रपति का पद संभाला. दक्षिणपंथी झुकाव रखने वाले ट्रंप ने अमेरिका फर्स्ट का नारा दिया. ट्रंप ने लुक्का छिप्पी की रणनीति छोड़ते हुए सीधे चीन टकराने की नीति अपनाई. ट्रंप ने आते ही चीन के साथ कारोबारी युद्ध छेड़ दिया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Young-joon
पड़ोसी मुश्किल में
जिन जिन पड़ोसी देशों या स्वायत्त इलाकों से चीन का विवाद है, चीन ने वहाँ तक तेजी से सेना पहुंचाने के लिए पूरा ढांचा बैठा दिया. विएतनाम, ताइवान और जापान देशों के लिए वह दक्षिण चीन सागर में है. और भारत के लिए नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
सहयोगियों में खट पट
चीन की बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए ट्रंप को अपने यूरोपीय सहयोगियों से मदद की उम्मीद थी, लेकिन रक्षा के नाम पर अमेरिका पर निर्भर यूरोप से ट्रंप को निराशा हाथ लगी. नाटो के फंड और कारोबारियों नीतियों को लेकर मतभेद बढ़ने लगे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Nicholls
दूर बसे साझेदार
अब वॉशिंगटन के पास चीन के खिलाफ भारत, ब्रेक्जिट के बाद का ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम जैसे साझेदार हैं. अब अमेरिका और चीन इन देशों को लेकर एक दूसरे से टकराव की राह पर हैं.
तस्वीर: Colourbox
कोरोना का असर
चीन के वुहान शहर ने निकले कोरोना वायरस ने दुनिया भर में जान माल को भारी नुकसान पहुंचाया. कोरोना ने अर्थव्यवस्थाओं को भी चौपट कर दिया है. अब इसकी जिम्मेदारी को लेकर विवाद हो रहा है. यह विवाद जल्द थमने वाला नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/Ritzau Scanpix/I. M. Odgaard
चीन पर निर्भरता कम करने की शुरुआत
अमेरिका समेत कई देश यह जान चुके हैं कि चीन को शक्ति अपनी अर्थव्यवस्था से मिल रही है. इसके साथ ही कोरोना वायरस ने दिखा दिया है कि चीन ऐसी निर्भरता के क्या परिणाम हो सकते हैं. अब कई देश प्रोडक्शन के मामले में दूसरे पर निर्भरता कम करने की राह पर हैं.
खनन रणनीतिकार एक्लेस्टोन बताते हैं कि करीब एक दशक पहले भी रेयर अर्थ की खोज करने वाली परियोजनाओं की संख्या बढ़ गई थी. हालांकि, ‘खोजे गए कई बड़े भंडार कम गुणवत्ता वाले थे, काफी दूर-दूर पर थे या सही तरीके से उनका प्रसंस्करण नहीं किया गया था. इस वजह से वे जमीन में ही रह गए.'
वहीं, मेरिमैन ने कहा कि वुड मैकेंसी वर्तमान में दुनिया भर में रेयर अर्थ से जुड़ी 150 परियोजनाओं पर नजर बनाए हुए हैं, जहां खनन शुरू हो गया है. वहीं, इनमें से 100 ऐसी परियोजनाएं हैं जहां प्रसंस्करण हो रहा है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "रेयर अर्थ परियोजनाओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन जिन्हें व्यावसायिक तौर पर विकसित किया जा सकता है उनके हालात अलग हैं.”
वर्तमान में यूरोप में एस्टोनिया में केवल एक रेयर अर्थ संशोधन केंद्र है और यहां बहुत सीमित संख्या में चुंबक निर्माता हैं. इनमें से सबसे बड़ा निर्माता जर्मनी का वैक्यूमस्मेल्त्से है.
जर्मनी फिर कोयले की शरण में क्यों?
01:56
This browser does not support the video element.
तेजी से बदलते हालात
एक्लेस्टोन ने अनुमान लगाया कि बाजार तेजी से बदल रहा है. हालांकि, ऐसी उम्मीद कम ही है कि अगले एक दशक में चीन को इस मामले में कोई टक्कर दे सकता है. उन्होंने कहा, "चीन पहले से ही हेवी रेयर अर्थ यानी 17 में से करीब आधे एलिमेंट में अपना दबदबा खो चुका है. अब उसे उन्हें आयात करना होगा.” इस बीच, इनर मंगोलिया में मौजूद देश की सबसे बड़ी रेयर अर्थ खदान बायन ओबे में आने वाले समय में उत्पादन में कमी आ सकती है.
दरअसल, रेयर अर्थ मिनरल्स या रेयर अर्थ एलिमेंट 17 धातुओं का एक समूह है. इसमें स्कैंडियम, इट्रियम, लैंथेनम, सीरियम, प्रेसीओडियम, निओडीमियम, प्रोमेथियम, सैमेरियम, यूरोपियम, गैडोलिनियम, टर्बियम, डाइस्प्रोसियम, होल्मियम, एर्बियम, थूलियम, येटरबियम और लूटेटियम शामिल हैं.
मेरिमैन ने कहा कि रेयर अर्थ मटीरियल में अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के निवेश बढ़ाने के बावजूद, चीन का दबदबा कायम रहेगा, क्योंकि उसने चुंबक जैसे रेयर अर्थ उत्पाद के लिए खुदाई, प्रोसेसिंग और निर्माण से जुड़ा बेहतर ढांचा तैयार कर लिया है.
उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "अगर आप चुंबक के तत्वों को देखते हैं, तो आपको पता चलता है कि रेयर अर्थ के कच्चे माल को पहले धातु में बदलना होता है, फिर मिश्र धातु वाले चुंबक में और सबसे आखिर में विशुद्ध चुंबक तैयार करना होता है. इन सब के अलावा, आपूर्ति श्रृंखला में भी काफी काम करने की जरूरत होती है और चीन के बाहर इसे लेकर काफी कुछ किया जाना बाकी है.”
अमेरिका को पछाड़ चीन बना दुनिया का सबसे अमीर देश
अमेरिका को पछाड़ते हुए चीन दुनिया का सबसे अमीर देश बन गया है. मैकंजी एंड कंपनी ने दुनिया की कुल आय के 60 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करने वाले 10 देशों की बैलेंस शीट से यह रिपोर्ट तैयार की है.
तस्वीर: Getty Images
वैश्विक धन तीन गुना
पिछले दो दशकों में वैश्विक धन तीन गुना हो गया है, जिसमें चीन सबसे आगे है. चीन ने अमेरिका को पछाड़ते हुए दुनिया के सबसे अमीर देश का स्थान हासिल कर लिया है.
तस्वीर: AFP
चीन की कितनी दौलत
चीन की दौलत पिछले दो दशकों में तेजी से बढ़ी है. साल 2000 में चीन की कुल दौलत 520.59 लाख करोड़ रुपये थी, जो 2020 में बढ़कर 8,924 लाख करोड़ रुपये हो गई.
तस्वीर: Nicolas Asfouri/AFP
पिछड़ गया अमेरिका
मैनेजमेंट कंसल्टेंट मैकंजी एंड कंपनी की रिसर्च के मुताबिक अमेरिका की संपत्ति दो दशक में दोगुना बढ़कर 90 खरब डॉलर पर पहुंच गई. चीन और अमेरिका दोनों ही दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं.
तस्वीर: daniel0Z/Zoonar/picture alliance
कुछ अमीरों के पास दौलत
मैकंजी एंड कंपनी की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में सबसे ज्यादा धन वाले चीन और दूसरे नंबर पर मौजूद अमेरिका में भी दौलत का बड़ा हिस्सा कुछ ही अमीर परिवारों के पास है. इनकी हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है.
तस्वीर: Imago Images/blickwinkel
कमाई वाले देश
दुनिया की 60 फीसदी से अधिक कमाई इन्हीं देशों से आती है. इनमें चीन, अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, मेक्सिको और स्वीडन शामिल हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Zhang Nan
रिएल एस्टेट में संपत्ति
मैकंजी की गणना के अनुसार वैश्विक कुल संपत्ति का 68 प्रतिशत अचल संपत्ति के रूप में है. बाकी की संपत्ति बुनियादी ढांचे, मशीनरी और उपकरण जैसी चीजों में हैं.
तस्वीर: Wiktor Dabkowski/ZUMA/picture alliance
दुष्प्रभाव भी
रिपोर्ट के मुताबिक अचल संपत्ति मूल्यों में वृद्धि के कारण आम लोगों के घर खरीदने का सपना पूरा होना मुश्किल हो जाएगा. रिपोर्ट के मुताबिक ब्याज कम होने से संपत्ति के दाम बढ़े हैं.