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द्रौपदी मुर्मू बनीं भारत की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति

२१ जुलाई २०२२

संथाल आदिवासी समुदाय से संबंध रखने वाली द्रौपदी मुर्मू को भारत के 15वें राष्ट्रपति के रूप में चुन लिया गया है. वो राष्ट्रपति बनने वाली दूसरी महिला और पहली आदिवासी हैं.

Indien | Draupadi Murmu In Kalkutta
तस्वीर: Sankhadeep Banerjee/NurPhoto/picture alliance

द्रौपदी मुर्मू को जीत की बधाई देते हुए विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिंहा ने ट्वीट किया, "देशवासियों को उम्मीद है कि 15वें राष्ट्रपति के रूप में वो बिना किसी भय या पक्षपात के संविधान की संरक्षक के रूप में जिम्मेदारी निभाएंगी."

मुर्मू का 44 पार्टियों का और सिन्हा को 34 पार्टियों का समर्थन प्राप्त था. लेकिन कई राज्यों में विपक्ष के कुछ विधायकों ने मतदान के बाद खुद ही जानकारी दी थी कि उन्होंने मुर्मू के पक्ष में मतदान किया.

सांसद और विधायक चुनते हैं राष्ट्रपति

संविधान के अनुच्छेद 54 के अनुसार राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचन मंडल (इलेक्टोरल कॉलेज) करता है जिसमें शामिल होते हैं लोकसभा और राज्यसभा के सभी निर्वाचित सदस्य, सभी राज्यों और दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू और कश्मीर की विधान सभाओं के सभी चुने हुए सदस्य. मतदान गुप्त होता है और आनुपातिक प्रतिनिधित्व के साथ साथ एकल हस्तांतरणीय पद्धति के आधार पर होता है.

कई लोगों का मानना है कि मुर्मू का राष्ट्रपति बनना आदिवासी समाज के सशक्तिकरण का प्रतीक है. लेकिन सच्चाई यह है कि देश में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ता ही जा रहा है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध में कोई कमी नहीं आ रही है.

ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में देश में अनुसूचित जनजाति के लोगों के साथ अत्याचार के 8,272 मामले दर्ज किए गए, जो 2019 के मुताबिक 9.3 प्रतिशत का उछाल है. इन मामलों में सबसे आगे रहा मध्य प्रदेश जहां कुल मामलों में से 29 प्रतिशत मामले (2,401) दर्ज किए गए. एनसीआरबी के मुताबिक अदालतों में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के कम से कम 10,302 मामले लंबित हैं. जिन मामलों में सुनवाई पूरी हुई उन्हें सजा होने की दर महज 36 प्रतिशत है.

तीसरा बड़ा आदिवासी समुदाय हैं संथाल

64 साल की द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के मयूरभंज जिले में रहने वाले एक संथाल आदिवासी परिवार से आती हैं. राजनीति में आने से पहले वो एक स्कूल में पढ़ाती थीं. उनके पिता और दादा दोनों अपने अपने समय में सरपंच थे. वो खुद 1997 में बीजेपी से जुड़ीं और नगर पंचायत में पार्षद चुनी गईं. जल्द ही वो विधायक और ओडिशा सरकार में मंत्री भी बनीं. मई 2015 में उन्हें झारखंड का राज्यपाल बनाया गया.

गोंड और भील के बाद संथाल देश के तीसरे सबसे बड़े आदिवासी समुदाय हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में उनकी कुल आबादी 70 लाख से ज्यादा है. ये पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड समेत सात राज्यों में पाए जाते हैं. ऐतिहासिक रूप से ये मूल रूप से खेती बाड़ी और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहे हैं.

आदिवासी समुदायों में सामान्य रूप से शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं होता और संथाल इस संदर्भ में विशेष रूप से पिछड़े हुए हैं. इनके आर्थिक हालात अच्छे नहीं होते और देश में अधिकांश संथाल गरीब हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक पश्चिम बंगाल के संथालों में साक्षरता दर सिर्फ 54.72 प्रतिशत थी.

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