कतर वर्ल्ड कपः जिन्होंने बनाया वे किसी कतार में नहीं
१७ नवम्बर २०२२
कतर में फुटबॉल विश्व कप जिन स्टेडियमों में खेला जाएगा वहां हजारों मजदूरों का खून-पसीना बहा है. बहुत से मजदूर खाली हाथ घर लौट गए और अपनी जिंदगियों से जूझ रहे हैं.
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दोहाका शानदार खलीफा इंटरनेशनल स्टेडियम बनाने में औपन मीर ने भी खून-पसीना बहाया है. बांग्लादेश के रहने वाले औपन मीर राज मिस्त्री हैं और उन्होंने खलीफा स्टेडियम के निर्माण में काम किया है. इस स्टेडियम में वर्ल्ड कप के आठ मैच खेले जाएंगे, जिन्हें हजारों दर्शक टिकट लेकर देखेंगे और आयोजकों को करोड़ों का मुनाफा होगा. लेकिन मीर की इतनी हैसियत नहीं है कि वह किसी मैच का टिकट खरीद सकें. वह चार साल कतर में खपाने के बाद खाली हाथ घर लौट चुके हैं.
मीर कहते हैं, "क्या सुंदर स्टेडियम बना है. अविश्वसनीय रूप से खूबसूरत है. लेकिन दुख की बात है कि इतने बड़े स्टेडियम के निर्माण का हिस्सा होने के बावजूद हमें पैसा नहीं मिला. हमारे फोरमैन ने हमारे नाम से सारा पैसा बैंक से निकाला और फरार हो गया.”
फुटबॉल वर्ल्ड कप के लिए तैयार कतर के छह लाजवाब स्टेडियम
इस महीने कतर में फुटबॉल वर्ल्ड कप शुरू होगा. जब से कतर को वर्ल्ड कप मिला, तभी से वहां काम को लेकर विवाद चलता रहा है. कतर में आठ स्टेडियम तैयार किए गए हैं. उनमें से छह सबसे खास स्टेडियम देखिए...
तस्वीर: Jewel Samad/AFP/Getty Images
अहमद बिन अली स्टेडियम
सेंट्रल दोहा से 20 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक अल-अफाई शहर में बने इस स्टेडियम की क्षमता है 40 हजार दर्शक. स्टेडियम को स्थानीय सांस्कृतिक प्रतीकों के आधार पर डिजाइन किया गया है. स्टेडियम तक पहुंचने के लिए नई मेट्रो बनाई गई है.
तस्वीर: Qatar's Supreme Committee for Delivery and Legacy/AFP
एजुकेशन सिटी स्टेडियम
यह स्टेडियम है अल रय्यान शहर में. इसके चारों ओर कई विश्वविद्यालय कैंपस भी हैं. इस स्टेडियम का डिजाइन हीरे से प्रेरित है. फुटबॉल वर्ल्ड कप के बाद इस स्टेडियम की ऊपरी मंजिल को पूरी तरह हटा दिया जाएगा और सीटों को किसी ऐसे देश को दान में दिया जाएगा, जहां खेल की सुविधाओं की कमी है.
तस्वीर: Karim Jaafar/AFP
एजुकेशन सिटी स्टेडियम
यह स्टेडियम है अल रय्यान शहर में. इसके चारों ओर कई विश्वविद्यालय कैंपस भी हैं. इस स्टेडियम का डिजाइन हीरे से प्रेरित है. फुटबॉल वर्ल्ड कप के बाद इस स्टेडियम की ऊपरी मंजिल को पूरी तरह हटा दिया जाएगा और सीटों को किसी ऐसे देश को दान में दिया जाएगा, जहां खेल की सुविधाओं की कमी है.
तस्वीर: Karim Jaafar/AFP
स्टेडियम 974
इस स्टेडियम का अनोखा नाम है इसके निर्माण की वजह से. यह एक अस्थायी स्टेडियम है जिसे 974 शिपिंग कंटेनरों को रीसाइकल कर बनाया गया है. वर्ल्ड कप के बाद इसे हटा दिया जाएगा. वर्ल्ड कप के इतिहास में यह पहला अस्थायी स्टेडियम होगा.
तस्वीर: Karim Jaafar/AFP
खलीफा इंटरनेशनल स्टेडियम
इसे नेशनल स्टेडियम भी कहा जाता है. राजधानी दोहा में स्थित यह स्टेडियम शहर के स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का हिस्सा है, जहां बड़े पैमाने पर खेल सुविधाएं उपलब्ध हैं. इसे 1976 में बनाया गया था और यहां 30 हजार कर्मचारी काम करते हैं.
तस्वीर: Jewel Samad/AFP
अल तुमामा स्टेडियम
कतर के अल तुमामा में बना यह स्टेडियम हमाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पास है. इसका डिजाइन कतर की पारंपरिक ताकिया टोपी पर आधारित है. 40 हजार सीटों वाले इस स्टेडियम के चारों ओर 50 हजार वर्ग मीटर में पार्क बनाया गया है.
तस्वीर: Karim Sahib/AFP
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पश्चिमी बांग्लादेश में श्रीपुर के रहने वाले औपन मीर 2016 में इस ख्वाब के साथ कतर पहुंचे थे कि धन कमाएंगे और अपनी व अपने परिवार की जिंदगी बदल देंगे. उन्होंने कर्ज लेकर कतर का टिकट खरीदा था. वह एक भारतीय निर्माण कंपनी के साथ काम कर रहे थे. लेकिन उनके पास वैध वर्क परमिट नहीं था इसलिए 2020 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और स्वदेश भेज दिया गया.
स्वदेश लौटने से पहले उन्होंने चिलचिलाती गर्मी में भूखे पेट रहकर कई-कई दिन काम किया. खुले में समुद्र किनारे सोये और अपने पसीने में खून बहाकर स्टेडियम की मिट्टी में मिलाया. 33 साल के मीर बताते हैं, "कतर में अपनी किस्मत बदलने के लिए मैंने लगभग सात लाख टका (करीब 5.5 लाख भारतीय रुपये) खर्च किए. मैं 25 रियाल (करीब सात हजार टका या पांच हजार भारतीय रुपये) जेब में लेकर लौटा हूं. कतर ने मुझे बस इतना ही दिया है."
ऐसी हजारों कहानियां
एक कहानी भारत के रहने वाले श्रवण कल्लाडी और उनके पिता रमेश की है. दोनों पिता-पुत्रों ने भी उसी भारतीय कंपनी के लिए काम किया. उन्होंने स्टेडियम की ओर जाने वालीं सड़कें बनाईं. लेकिन रमेश कल्लाडी घर नहीं लौट पाए. वहीं हृद्यघात से उनकी मौत हो गई.
श्रवण कल्लाडी बताते हैं, "जिस दिन मेरे पिता का निधन हुआ, काम करते हुए ही उनके सीने में दर्द होने लगा था. हम उन्हें जल्दी से अस्पताल ले गए. मैंने डॉक्टरों से बार-बार कहा कि इन्हें बचा लो. फिर कोशिश करो.”
कल्लाडी बताते हैं कि कतर में काम के हालात बिल्कुल अच्छे नहीं थे. वह घंटों तक ओवरटाइम करते थे जिसका कोई पैसा नहीं मिलता था. उनके पिता ड्राइवर की नौकरी पर थे और सुबह तीन बजे से रात को 11 बजे तक गाड़ी चलाते थे.
फुटबॉल विश्व कप से पहले दोहा की ये जगहें और नजारे मन मोह लेंगे
कतर की राजधानी दोहा इस साल फुटबॉल विश्व कप की मेजबानी कर रहा है. यहां डेजर्ट सफारी से लेकर शानदार वास्तुकला तक का लुत्फ उठाया जा सकता है.
तस्वीर: nordphoto GmbH/PIXSELL/picture alliance
कतर का सांस्कृतिक केंद्र दोहा
कतर खाड़ी का एक छोटा सा देश है, जो करीब 11,500 वर्ग किलोमीटर (4,468 वर्ग मील) में फैला है. तुलना करें तो, आयरलैंड से सात गुना बड़ा है. इस मध्य पूर्वी इलाके, खासकर राजधानी दोहा में सदियों पुरानी परंपराएं और आधुनिक वास्तुकला के खजाने दिखते हैं. ज्यादातर आबादी कतर के इसी वित्तीय, सांस्कृतिक और पर्यटन वाले इलाके में रहती है.
तस्वीर: nordphoto GmbH/PIXSELL/picture alliance
डाउनटाउन दोहा में वेस्ट बे की चकाचौंध
दोहा एक अत्याधुनिक महानगर है जहां दौलत, शोहरत का जलवा दिखता है. विशाल तेल और गैस के भंडार की वजह से कतर दुनिया में सबसे ज्यादा प्रति व्यक्ति आय ($98,000)वाला देश है. हालांकि यहां के 28 लाख निवासियों में से सिर्फ 10% ही कतरी नागरिक हैं. वेस्ट बे जिले में पर्यटकों के स्वागत के लिए खड़ी गगनचुंबी इमारतें अवंत-गार्दे वास्तुकला की झलक देती हैं.
तस्वीर: Kamran Jebreili/AP/dpa/picture alliance
पुराने दौर की याद दिलाता सांस्कृतिक गांव कटारा
ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि कतर को मूल रूप से कटारा कहा जाता था. मध्य पूर्व और एशिया के बीच बसा ये देश खुद को अलग-अलग संस्कृतियों को एक ही जगह मिलाने वाले बर्तन की तरह देखता है.और ऐसा ही है सांस्कृतिक गांव "कटारा" जिसे संग्रहालयों, प्रदर्शनियों के लिए 2010 में खोला गया था. शहर के केंद्र से सिर्फ 10 मिनट में यहां आसानी से ड्राइव कर पहुंचा जा सकता है.
तस्वीर: Marina Lystseva/TASS/dpa/picture alliance
अजान की आवाज है पहचान
कतर आधिकारिक रूप से इस्लामिक देश है, और बड़े पैमाने पर यहां के निवासी सुन्नी मुसलमान हैं. यहां दिन में पांच बार अजान की आवाज सुनाई देती है. पर्यटकों को बड़ी संख्या में मस्जिद दिखते हैं. दोहा में 30,000 लोगों की क्षमता वाला राष्ट्रीय मस्जिद, इमाम अब्दुल वहाब मस्जिद है. एक गैर-मुस्लिम के तौर पर आप तभी मस्जिदों में जा सकते हैं जब नमाज ना हो रही हो.
तस्वीर: Nikku/Xinhua/dpa/picture alliance
मॉल की सैर का शानदार अनुभव
कतर के मॉल काफी बड़े हैं, और अपने आप में एक अलग दुनिया हैं. वे ना सिर्फ खरीदारी के लिए बने हैं बल्कि कुछ में थीम पार्क, सिनेमा और रेस्तरां सबकुछ है. एक मॉल में तो आप स्नोमैन यानी बर्फ के पुतले भी बना सकते हैं, जबकि एक मॉल के अंदर आप नाव यात्रा का लुत्फ उठा सकते हैं, मानो आप वेनिस में हों! गर्मियों में बाहरी तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है, ऐसे में मॉल की सैर आपको ठंडक पहुंचाएगी.
कतर का सबसे पुराना बाजार दोहा में है जिसे कहते हैं सूक वकीफ. प्रतिकृति होने के बावजूद ये काफी असल रूप में और आकर्षक लगता है. मूल इमारत 2003 में आग से तबाह हो गई थी. फिर भी, व्यापारी एक सदी से भी ज्यादा समय से यहां कपड़े, हस्तशिल्प, मसाले और बाकी सामान बेच रहे हैं. स्मृति चिन्ह संजोने या शाम को टहलने के लिए ये बढ़िया जगह है.
तस्वीर: Igor Kralj/PIXSELL/picture alliance
रेत और समुद्र से प्रेरित संग्रहालय
कतर कई सालों तक मोती व्यापार का केंद्र रहा है. कतर के राष्ट्रीय संग्रहालय का फव्वारा मोतियों की लड़ियों के आकार का है. यह फ्रांसीसी वास्तुकार जां नौवे ने बनाया है. मोती डाइविंग का प्रतीक है, जो देश की ऐतिहासिक परंपराओं में से एक है. कतर की सांस्कृतिक विरासत के बारे में जानने के लिए यह सबसे अच्छी जगह है.
तस्वीर: Sharil Babu/dpa/picture alliance
कतर में एक दूसरे को मात देते नामी आर्किटेक्ट
जाहा हदीद, सर नॉर्मन फोस्टर और रेम कुल्हास वास्तुकला फर्मों में से हैं जिन्होंने कतर को शानदार इमारतें बनाकर मायानगरी में तब्दील कर दिया है.एक आकर्षण स्कूल ऑफ इस्लामिक स्टडीज भी है जिसे लंदन और बार्सिलोना में स्थित मंगेरा यवार्स आर्किटेक्ट्स ने डिजाइन किया है. इसका घुमावदार वास्तुशिल्प नायाब नमूना है.
तस्वीर: Kamran Jebreili/AP/dpa/picture alliance
इस्लामिक आर्ट म्यूजियम
दोहा का इस्लामी कला संग्रहालय अरब के सबसे अहम संग्रहालयों में से एक है. इसे चीनी-अमेरिकी वास्तुकार आईएम पेई ने डिजाइन किया है. यह इमारत पानी पर तैरता महसूस होता है. यहां इस्लामी शिल्प कौशल के खूबसूरत उदाहरण, कीमती पांडुलिपियां, चीनी मिट्टी के सामान, गहने, कपड़े और बहुत कुछ प्रदर्शित किये जाते हैं. यह दिखाता है कि इस्लाम ने दक्षिण पूर्व एशिया, भारत, इराक और सीरिया में जिंदगी को कैसे आकार दिया.
तस्वीर: Norbert SCHMIDT/picture alliance
डेजर्ट सफारी
देश के ज्यादातर हिस्से रेगिस्तानी नजर आते हैं, जो आश्चर्यजनक और खूबसूरत दोनों हैं. यहां रेतीले टीले एक आकर्षण हैं, इसलिए कई पर्यटक ऊंट की सवारी या जीप यात्रा पर जाना पसंद करते हैं. यहां कुछ बेडौइन शैली के कैंप भी हैं जहां पर्यटक रात गुजार सकते हैं. यूनेस्को से मान्यता प्राप्त खोर अल-अदद, जहां सागर रेत से मिलता है, भी देखने लायक है.
दोहा में घूमने के लिए रेगिस्तान और लंबे समुद्र तट दोनों हैं. कटारा बीच पर लोगों की काफी चहलकदमी नजर आती है. हालांकि, धार्मिक ड्रेस कोड की वजह से यहां नहाने की इजाजत तभी दी जाती है जब आप कपड़ों से ढके हों. यानी महिलाओं को बिकिनी या स्विमिंग सूट पहनने की इजाजत नहीं है. यहां आप पारंपरिक नावों पर सवारी करके या बस किनारों पर टहल कर समुद्र का आनंद ले सकते हैं.
तस्वीर: Serdar Bitmez/AA/picture alliance
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तेलंगाना के रहने वाले कल्लाडी कहते हैं, "कैंप के उस कमरे में हम 6-8 लोग रहते थे जबकि वहां चार आदमियों के ठीक से बैठने की जगह भी नहीं थी. हमें अत्यधिक गर्मी में काम करना पड़ता था और खाना भी अच्छा नहीं था.”
पिता का शव भारत ले जाने के बाद कल्लाडी कभी कतर नहीं गए. उन्हें मुआवजे के तौर पर सिर्फ एक महीने की तन्ख्वाह मिली. अब अधूरा बना घर उन्हें रह-रहकर अपने अधूरे सपनों और गंवाए सालों की याद दिलाता है. बीते छह साल से वह उन लोगों के शवों का मध्य-पूर्व के देशों से भारत लाने का काम कर रहे हैं जो काम करते हुए मारे जाते हैं. कल्लाडी बताते हैं, "जब तक हम काम कर रहे हैं, तभी तक हम कंपनी के होते हैं. मरने के बाद नहीं. हम उन पर भरोसा करके अपना घर-गांव छोड़कर गए पर उन्होंने हमें बेसहारा छोड़ दिया.”
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देर आयद, कम आयद
कतर को जब विश्व कप की मेजबानी मिली तो वहां निर्माण कार्य शुरू हुआ. तब वहां जाकर ‘खूब सारा पैसा' कमाने की चाह में लाखों लोग पहुंचे. कतर की 28 लाख आबादी का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा तो आप्रवासी ही हैं. इनमें से ज्यादातर भारतीय उप-महाद्वीप और फिलीपींस से आते हैं. इसके अलावा अफ्रीकी देशों जैसे केन्या और युगांडा के भी काफी लोग हैं.
काम करने की कठोर परिस्थितियों, कम या बिना वेतन के काम और बड़ी संख्या में मजदूरों की मौत को लेकर कतर लगातार आलोचना झेलता रहा है. वैसे वहां की सरकार ने ऐसी कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की योजनाएं बनाई हैं जो मजदूरों के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं. मजदूरों को लाखों का मुआवजा भी दिया गया है. लेकिन मानवाधिकार समूह कहते हैं कि ये कदम बहुत थोड़े हैं और बहुत देर से उठाए गए.
2022 में इन देशों पर आफत टूटी
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद दुनिया भर में ऐसा लग रहा है कि राजनीतिक उथल-पुथल का सिलसिला शुरू हो गया है. कई देशों में अस्थिरता का माहौल बन गया है.
तस्वीर: Cristian Ștefănescu/DW
यूक्रेन पर हमला
रूस ने यूक्रेन पर 24 फरवरी को हमला कर दिया था और उसके बाद से ही वह यूक्रेनी शहरों को निशाना बना रहा है. पहले यह कहा जा रहा था कि कीव कुछ दिनों में रूस के कब्जे में आ जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. युद्ध में सैकड़ों बेगुनाह लोग मारे गए हैं.
तस्वीर: Vadim Ghirda/AP/picture alliance
पाकिस्तान में राजनीतिक संकट
पाकिस्तान में नेशनल असेंबली के भंग किए जाने को लेकर संग्राम छिड़ा हुआ है. संसद को भंग किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है. इमरान खान का आरोप है कि विदेशी शक्ति देश को कमजोर करने में लगी हुई है.
तस्वीर: GHULAM RASOOL/AFP
श्रीलंका में हाहाकार
श्रीलंका की जनता पिछले कई हफ्तों से जरूरी चीजों के ऊंचे दाम को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन कर रही है. देश में दवा, खाद्य और ईंधन की भारी कमी हो गई है. सरकार के मंत्रिमंडल ने 3 अप्रैल को इस्तीफा दे दिया था. श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने 5 अप्रैल को देशव्यापी आपातकाल को हटा लिया. यह आपातकाल एक अप्रैल से लागू किया गया था. श्रीलंका इस समय अपने सबसे बुरे आर्थिक संकट से जूझ रहा है.
तस्वीर: Dinuka Liyanawatte/REUTERS
कुवैत में सियासी संकट
कुवैत की सरकार ने अपने गठन के कुछ ही महीनों बाद 5 अप्रैल को इस्तीफा दे दिया, सरकार के इस्तीफे के बाद नई अनिश्चितता पैदा हो गई. सरकार को आने वाले दिनों में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना था. सरकार के इस्तीफे के बाद देश में आर्थिक और सामाजिक सुधार अधर में लटक गए हैं.
तस्वीर: Xinhua/picture alliance
म्यांमार में लोकतंत्र अभी दूर
भारत के पड़ोसी देश में पिछले साल चुनी हुई सरकार को बेदखल कर सेना ने सत्ता अपने हाथों में ले लिया था. देश की नेता आंग सान सू ची को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था. सैन्य जुंटा ने लोकतंत्र की स्थापना के लिए अबतक कोई कदम नहीं उठाए हैं.
तस्वीर: Thuya Zaw/ZUMA Wire/picture alliance
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मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशल की 2021 की एक रिपोर्ट में कहती है कि कतर में काम करने वाले लोगों का शोषण व्यवस्थागत रूप से होता है क्योंकि वहां काम करने जाने वाले लोग अपने मालिकों के रहमोकरम पर होते हैं. लोग अपने मालिकों की इजाजत के बिना नौकरी नहीं बदल सकते और इसकी प्रक्रिया भी बेहद दुरूह है.
फुटबॉल की विश्व संस्था फीफा की भी इस बात के लिए आलोचना हुई है कि उसने कतर में मजदूरों के अधिकारों के लिए समुचित दबाव नहीं बनाया. मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट कहती है कि फीफा ना सिर्फ स्टेडियम बनाने वाले कर्मियों के लिए जिम्मेदार है बल्कि देश की कुल आप्रवासी आबादी का एक छोटा हिस्सा भी उसके आयोजन के लिए काम कर रहा था, जिस पर अनुमानतः कुल 220 अरब डॉलर का खर्च आया.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा, "स्वयं मजदूरों और मानवाधिकार संगठनों द्वारा बार-बार चेतावनियां दिए जाने के बावजूद फीफा उनके अधिकारों के लिए सख्त शर्तें लागू करने में नाकाम रहा और इस तरह विस्तृत शोषण में हिस्सेदार बना.”