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जितने तरह का सूखा, उतनी तरह की समस्याएं

टिम शाउएनबेर्ग
१८ जून २०२५

कई जगहों पर तेज सूखा और पानी की कमी फसलों, अर्थव्यवस्था और लोगों की जिंदगी को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है. ऐसे में पानी की कमी को कैसे हल किया जा सकता है?

जर्मनी की राइन नदी में सूखे की तस्वीर
जर्मनी की राइन नदी में सूखे की तस्वीरतस्वीर: Marc John/picture alliance/Bonn.digital

यह चिंता सिर्फ यूरोप तक ही सीमित नहीं है. जैसे-जैसे कोयला, तेल और गैस जलाने से दुनिया का तापमान बढ़ रहा है, वैसे-वैसे दुनिया के कई हिस्सों में सूखे की अवधि भी बढ़ती जा रही है. लेकिन हर सूखा एक जैसा नहीं होता ना ही हर सूखे का एक जैसा प्रभाव होता है.

मौसम संबंधी और कृषि संबंधी सूखा

स्विट्जरलैंड की फेडरल इंस्टिट्यूट फॉर फॉरेस्ट, स्नो एंड लैंडस्केप रिसर्च (डब्लूएसएल) की इस साल जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 40 सालों में दुनिया भर में सूखे की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. औसतन, हर साल 50,000 वर्ग किलोमीटर जमीन सूखे से प्रभावित हो रही है, जो कि स्लोवाकिया देश के लगभग बराबर है.

चिली के उत्तरी हिस्से के लोग पिछले 14 सालों से सूखे जैसी स्थिति में जी रहे हैं. अमेरिका के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से जैसे एरिजोना, न्यू मेक्सिको और कैलिफोर्निया के कुछ भाग पिछले तीन साल से गंभीर सूखे की चपेट में हैं.

सूखा अलग अलग जगहों में अलग रूप धर कर आता है और उसके नतीजे भी अलग होते हैंतस्वीर: Andrew Medichini/AP Photo/picture alliance

मौसम संबंधी सूखा तब होता है, जब किसी क्षेत्र में सामान्य वर्षा की तुलना में बहुत कम बारिश होती है. हर क्षेत्र के अनुसार यह अलग हो सकती है. जर्मन मौसम विभाग के अनुसार यदि एक या दो महीने तक असामान्य रूप से बहुत कम बारिश होती है, तो उसे मौसम संबंधी सूखा कहा जा सकता है. जब जमीन सूखती है तो किसानों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पता है. ना पौधे ठीक से बढ़ पाते हैं और फसल भी बर्बाद हो जाती हैं. ऐसे में इसे कृषि सूखा कहा जाता है.

जल-संबंधी सूखा

यह सूखा तब होता है जब नदियों, झीलों और जमीन के नीचे मौजूद प्राकृतिक जल भंडारों का स्तर एक निश्चित न्यूनतम से नीचे चला जाता है और मीठे पानी की आपूर्ति लगभग खत्म हो जाती है.

जल-संबंधी सूखा अक्सर लंबे समय तक चलने वाले मौसम संबंधी सूखे के बाद आता है. जर्मन मौसम विभाग के अनुसार, अगर किसी क्षेत्र में कम से कम चार महीने तक असामान्य रूप से कम बारिश होती है, तो वहां जल-संबंधी सूखा हो सकता है.

दुनिया के ज्यादातर क्षेत्रों में अब सामान्य रूप से सूखा पड़ रहा है. विश्व बैंक का अनुमान है कि 2050 तक अफ्रीका के बड़े हिस्से, दक्षिण-पूर्व एशिया, अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में रहने वाले लोगों को पानी की गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

साइप्रस में सूख गई नदियां और जलाशय

भूमध्य सागर का द्वीप, साइप्रस इस समय कृषि और जल-संबंधी दोनों तरह के सूखे का सामना कर रहा है. कई हफ्तों से बारिश ना होने से जलाशय खाली पड़े हैं, नदियों का तल सूख रहा है और किसानों के पास अपनी फसलों के लिए पर्याप्त पानी नहीं है. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, इस साल की फसल पूरी तरह खराब होने की कगार पर है.

साइप्रस इंस्टिट्यूट के एनर्जी, एनवायरनमेंट और वॉटर रिसर्च सेंटर की एसोसिएट प्रोफेसर एड्रियाना ब्रुगमैन ने कहा, "पिछला साल भी इस लिहाज से काफी खराब था, लेकिन यह लगातार दूसरा साल है जिसमें बहुत सूखा पड़ा है.”

ब्रुगमैन ने समझाया कि आमतौर पर सर्दियों के महीनों में बारिश ज्यादा होती है, जिससे झीलें और नदियां भर जाती है. लेकिन जब उस समय में बारिश नहीं होती, तो साइप्रस के जलाशय खाली हो जाते हैं. उन्होंने कहा, "यहां स्थिति ठीक नहीं हैं.”

सामाजिक और आर्थिक सूखा

सूखे के अलग-अलग प्रकारों के बीच साफ अंतर करना हमेशा आसान नहीं होता क्योंकि कई बार यह स्थितियां एक साथ सामने आती हैं.

स्विट्जरलैंड के डब्लूएसएल संस्थान के डिर्क कार्गर के अनुसार, आम लोग जिस सूखे को सबसे ज्यादा महसूस करते हैं, वह सामाजिक और आर्थिक सूखा होता है.

यह तब होता है जब बहुत सूखा समाज और अर्थव्यवस्था पर सीधा असर डालता है. जैसे जब पानी की कमी के कारण बिजली और दूसरी चीजें महंगी हो जाती है. 2024 में जब स्पेन और इटली में भीषण सूखा पड़ा था. तब कई बार पानी की आपूर्ति नियंत्रित करनी पड़ी थी. यहां तक कि पड़ोसी देश, फ्रांस में कई न्यूक्लियर प्लांट को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया था क्योंकि रिएक्टरों को ठंडा करने के लिए पानी ही नहीं था.

सूखा कई तरह का होता है और हर गुजरता साल दुनिया भर में इसकी भीषणता बढ़ा रहा हैतस्वीर: Bruno Kelly/REUTERS

जिम्बाब्वे में एक हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट को भी पानी की भारी कमी के कारण बिजली उत्पादन रोकना पड़ा था और बिजली गुल हो गई थी. कई बार सूखा गंभीर सामाजिक और आर्थिक संकट को पैदा कर देता है. जैसे सूडान, दक्षिणी सूडान और माली में लगातार पड़ रहे सूखे ने भूख की समस्या को गंभीर कर दिया है.

डिर्क कार्गर के अनुसार, "अगर हम पश्चिम को देखें तो अमेरिका में पिछले दस वर्षों से पानी की कमी चल रही है. जिसका असर साफ तौर पर जल आपूर्ति पर पड़ा है. चिली में भी स्थिति सामान ही है.”

अमेरिका के पश्चिमी राज्यों, जैसे कैलिफोर्निया और नेवादा में महीनों तक सूखा रहा. जिसने ऐसी स्थिति बना दी कि सर्दियों में जंगलों में आग लग गई और जनवरी 2025 में लॉस एंजेलेस ने अब तक का सबसे भीषण आग झेला.

पारिस्थितिक सूखा

जर्मनी के हेल्महोल्त्स सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल रिसर्च के अनुसार, भीषण सूखे के प्रभावों को अक्सर कम आंका जाता है जबकि यह तूफान, बाढ़ या तेज बारिश की तुलना में कई गुना अधिक आर्थिक नुकसान पहुंचा सकता है.

दूसरे मौसमी आपदाओं के उलट सूखा धीरे-धीरे आता है और इसका कोई साफ संकेत मुश्किल होता है. यह कितना गंभीर है, इसका अंदाजा भी तब लगता है, जब यह हाथ से निकल चुका होता है. सिर्फ अमेरिका में ही हर साल सूखे से 6 से 9 अरब डॉलर तक का नुकसान होता है.

इसी वजह से वैज्ञानिक अब सूखे की एक पांचवीं श्रेणी की ओर इशारा कर रहे हैं, जो कि है पारिस्थितिक सूखा. यह तब होता है, जब अत्यधिक सूखे के कारण जानवर, पौधे और पूरा पारिस्थितिक तंत्र असंतुलित हो जाता है.

बाढ़ झेलते 'सूखे शहर' कैसे कर सकते हैं अपना बचाव

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भूजल स्तर और मिट्टी की नमी में भारी गिरावट पारिस्थितिकी तंत्र और जीव दोनों पर ही गंभीर असर डालती है. डब्लूएसएल के शोधकर्ताओं के अनुसार, इसके कारण बड़े पैमाने पर फसलें खराब होना, पेड़ों के सूखने में वृद्धि, पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता में गिरावट और जल आपूर्ति पर खतरा हो सकता है.

सूखा किसी भी प्रकार की जमीन को नहीं छोड़ता. घास के मैदानों में जब सूखा पड़ता है तो उसका असर तुरंत दिखाई देता है, लेकिन बारिश के लौटने पर यह तेजी से ठीक भी हो जाता है. हालांकि, जंगलों के लिए स्थिति अलग है, वह आसानी से नहीं संभलते और ऐसा मौसम उन्हें स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है.

सूखा अन्य आपदाओं का खतरा भी बढ़ा देता है. उदाहरण के तौर पर अगर लंबे सूखे के बाद अचानक भारी बारिश होती है, तो सूखी मिट्टी पानी को सोख नहीं पाती है. जिससे बाढ़, भूस्खलन और कीचड़ से भरे मलबे का बहाव बढ़ जाता है.

हम पानी बचा कर सूखे से कैसे निपट सकते हैं?

विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में सूखा और गंभीर होने से रोकने के लिए हमें सबसे पहले जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के लिए उठाने होंगे. इसके साथ-साथ, लोगों को अब लंबे समय तक बारिश ना होने वाली स्थितियों के लिए खुद को तैयार करना होगा. जिसके लिए जरूरी है कि हम पानी को समझदारी से इस्तेमाल करें. सिंगापुर जैसे देश पानी संरक्षण में दुनिया को सही राह दिखा सकते हैं.

सिंगापुर बारिश के पानी की हर बूंद बचा कर दुनिया को सूखे से निपटने का रास्ता दिखा रहा हैतस्वीर: Aleksandr Simonov/Depositphotos/Imago Images

सिंगापुर बारिश का पानी इकट्ठा करने के मामले में दुनिया में सबसे आगे है. यहां शहर भर में जलाशय  बनाए गए हैं, जो आसमान से गिरने वाली हर बूंद को संग्रहित करते हैं. यह जलाशय सूखे के समय पीने का पानी उपलब्ध कराते हैं और गर्मी की लहरों के दौरान शहर को ठंडा रखने में भी मदद करते हैं. साथ ही, पानी साफ करने वाले प्लांट पुराने या इस्तेमाल किए हुए पानी को फिर से पीने योग्य बनाते हैं. सिंगापुर गिने-चुने देशों में से एक है, जिसने पानी बचाने के लिए इतने व्यापक कदम उठाए हैं.

सिंगापुर की रणनीति दूसरे शहरों और देशों के लिए एक बेहतरीन उदाहरण बन सकती है, जिससे वह भी भविष्य में पानी की कमी के लिए तैयार हो सकते हैं.

पानी बचाने का एक और तरीका है. दुनिया भर के शहरों में रिसाव या टूटे हुए पाइपों की वजह से हर साल हजारों लीटर पानी बर्बाद हो जाता है. जैसे इटली में करीब 40 फीसदी ताजा पानी उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले ही रिस कर बर्बाद हो जाता है. पूरे यूरोप में लगभग 25 फीसदी पीने का पानी गलत प्रबंधन के कारण नष्ट हो जाता है.अगर पाइपों की नियमित मरम्मत की जाए और समय-समय पर रिसाव की जांच की जाए तो दुनिया भर में जल आपूर्ति बनाए रखने में मदद हो सकती है.

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