बिहार के सीमांचल में नशे का कारोबार बढ़ रहा है. युवा और किशोर ड्रग्स की गिरफ्तर में आ रहे हैं और तस्करी के लिए महिलाओं का इस्तेमाल हो रहा है.
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पूर्णिया शहर के डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर और आर्मी अफसरों समेत कई ऐसे लोग हैं जो अपने बच्चों को सफलता के शीर्ष पर देखना चाहते थे. लेकिन उन्हें आज अपने बेटों को नशे से जूझते देखना पड़ रहा है. पूर्णिया के एक नशा मुक्ति केंद्र के संचालक के अनुसार केंद्र में आने वाले लोगों में करीब 70 प्रतिशत से अधिक संख्या 20 से 25 आयुवर्ग के लड़कों की है. इनमें से लगभग आधे स्मैक के आदी हो चुके हैं तो बाकी शराब, कोकीन और गांजे के लती हैं.
पुलिस या सुरक्षा बलों का कहना है कि ऐसा कुछ नया या अचानक नहीं हो रहा है जिस पर चौंका जाए लेकिन मीडिया में आ रही खबरें बताती हैं कि पूर्णिया ही नहीं पूरे सीमांचल में किशोरों तथा युवाओं के बीच मादक पदार्थों में खासकर स्मैक की लत काफी तेजी से बढ़ी है.
तस्वीरों मेंः बिहार को खास बनाने वाली बातें
बिहार को खास बनाने वाली बातें
बिहार पर अक्सर ध्यान राजनीति और विकास के मामले में पिछड़ेपन की खबरों को लेकर जाता है. लेकिन बिहार का एक गौरवशाली इतिहास है.
तस्वीर: Manish Kumar/DW
शिक्षा का केंद्र
प्राचीन काल में बिहार दुनिया भर के सीखने वालों के लिए शिक्षा का केंद्र था. पाटलिपुत्र भारतीय सभ्यता का गढ़ था तो नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी. नालंदा लाइब्रेरी ईरान, कोरिया, जापान, चीन, फारस से लेकर ग्रीस तक के पढ़ने वालों को आकर्षित करती थी. बख्तियार खिलजी की सेना ने इसमें आग लगा दी थी, जिसे बुझने में तीन महीने लगे थे.
तस्वीर: AP
कला की खान
सैंकड़ों साल पुरानी मिथिला पेंटिग आज देश और विदेश में प्रसिद्ध है. इसकी जन्मस्थली भी बिहार ही है. भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चार सिंहों के सिर वाला अशोक चक्र कभी बिहार में स्थित अशोक स्तंभ से ही लिया गया गया.
तस्वीर: picture alliance/DINODIA PHOTO LIBRARY
धर्मों की जन्मस्थली
बौद्ध और जैन धर्मों का उदय बिहार में हुआ, गौतम बुद्ध और महावीर के फैलाए अहिंसा के सिद्धांत की शुरुआत भी यहीं हुई मानी जाती है. इसके अलावा सिख धर्म की जड़ें भी बिहार से जुड़ी हैं. सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह पटना में जन्मे थे.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/N. Ut
भाषाएं और बोलियां
सबसे ज्यादा लोग हिन्दी बोलते समझते हैं. इसके अलावा भोजपुरी, मगही और मैथिली बोलियां भी खूब प्रचलित हैं. ऑफिसों, बैंकों, शिक्षा संस्थानों और कई प्राइवेट कंपनियों में अंग्रेजी भी बोली समझी जाती है. मैथिली में अच्छी खासी साहित्य रचनाएं हुई हैं. मैथिल कवि कोकिल कहे जाने वाले विद्यापति मैथिली के कवि और संस्कृत के बड़े विद्वान थे.
बिहार प्राचीन काल में मगध कहलाता था और इसकी राजधानी पटना का नाम पाटलिपुत्र था. मान्यता है कि बिहार शब्द की उत्पत्ति बौद्ध विहारों के विहार शब्द से हुई जो बाद में बिहार हो गया. आधुनिक समय में 22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाया जाता है.
तस्वीर: imago/epd
राज का इतिहास
बिहार में मौर्य, गुप्त जैसे राजवंशों और मुगल शासकों ने राज किया. 1912 में बंगाल के विभाजन के समय बिहार अस्तित्व में आया. फिर 1935 में उड़ीसा और 2000 में झारखण्ड बिहार से अलग होकर स्वतंत्र राज्य बने. दुनिया का सबसे पहला गणराज्य बिहार में वैशाली को माना जाता है. भारत के चार महानतम सम्राट समुद्रगुप्त, अशोक, विक्रमादित्य और चंद्रगुप्त मौर्य बिहार में ही हुए.
तस्वीर: E. Pickles/Fairfax Media/Getty Images
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कई ऐसे किशोर व युवा अपनी लत पूरी करने के लिए मोबाइल लूटने व चेन स्नैचिंग आदि के जरिए अपराधों की दुनिया में प्रवेश करते हैं और दलदल में फंसते हुए अंतत: ड्रग्स के अवैध कारोबार का हिस्सा बन जाते हैं. कई ऐसे युवा गिरफ्तार भी किए गए हैं. कई लूट कांडों की जांच के बाद भी यह बात सामने आई है.
बड़ी साजिश की आशंका
गृह मंत्रालय को हाल में भेजी गई एक रिपोर्ट में सीमांचल में फैलते ड्रग्स कारोबार के पीछे खुफिया एजेंसियों ने बड़ी साजिश के तहत राष्ट्रविरोधी ताकतों की संलिप्तता की आशंका जताई है. सूत्रों के अनुसार रिपोर्ट में कहा गया है कि नॉर्थ ईस्ट के रास्ते सीमांचल में स्मैक, चरस, गांजा व ब्राउन शुगर जैसी ड्रग्स की सप्लाई की जा रही है. आशंका जताई गई है कि पाकिस्तान व चीन में बैठे लोगों की मदद से नार्थ ईस्ट से सीमांचल तक का नेटवर्क संचालित किया जा रहा है.
रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई है कि सीमांचल के सभी जिलों के किशोर व युवा तेजी से ड्रग्स के आदी होते जा रहे हैं. इसमें खास तौर पर स्मैक का जिक्र करते हुए कहा गया है कि इसे इसलिए साजिशन हथियार बनाया गया है क्योंकि यह शारीरिक व मानसिक स्थिति को बुरी तरह प्रभावित करता है.
पाकिस्तान में भांग की खेती
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नेपाल के विराटनगर का गेटवे कहे जाने वाले अररिया जिले के फारबिसगंज अनुमंडल के जोगबनी स्थित इंडो-नेपाल बॉर्डर पर मादक पदार्थों की लगातार हो रही बरामदगी तथा तस्करों की गिरफ्तारी चौंकाने वाली है.
एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दस महीनों में नेपाल के सुनसरी, झापा व मोरंग जिले से इस धंधे में संलिप्त दस महिलाओं समेत 280 लोगों की गिरफ्तारी तीन किलो से अधिक ब्राउन शुगर व अन्य नशीले पदार्थों के साथ की गई है. केवल बीते जुलाई माह में इंडो-नेपाल बॉर्डर से नशीले पदार्थों की तस्करी करते हुए 13 लोग गिरफ्तार किए गए. जोगबनी समेत टिकुलिया, कुशमाहा, भेरियारी, इस्लामपुर व अररिया जिले के कई युवक इस अवैध कारोबार में संलिप्त बताए जाते हैं. इनमें कई पकड़े भी गए हैं.
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कैरियर बन रहीं महिलाएं
समय-समय पर भारत व नेपाल में गिरफ्तार की जा रही महिलाओं से पुलिस को इनपुट मिलता रहा है कि नशीले पदार्थों की तस्करी में ज्यादातर महिलाएं कैरियर का काम कर रहीं हैं. दरअसल सीमांचल व इसके आसपास के इलाके में तुलनात्मक रूप से गरीबी व अशिक्षा अधिक है. इसका फायदा इन तस्करों के स्थानीय मददगार उठाते हैं. वे गरीब व लाचार महिलाओं तथा बच्चों को अपना निशाना बना कर कैरियर के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. जानकारी के अनुसार ये महिलाएं अपने साथ बच्चों को रखती हैं तथा नशीले पदार्थों को उनके स्कूल बैग में रखकर सार्वजनिक वाहन से गंतव्य तक पहुंचती हैं, जहां से स्थानीय मददगार उसकी डिलीवरी ले लेते हैं.
ऐसी ही दो महिलाओं को नेपाल पुलिस ने बीती 16 जुलाई को जोगबनी सीमा से सटे नेपाल भाग के रानी मटियरवा से गिरफ्तार किया था. बीते 18 अगस्त को फारबिसगंज थाने की दारोगा मीरा कुमारी ने पूर्णिया से बस द्वारा फारबिसगंज पहुंचीं दो महिला कैरियरों को दबोच लिया था, जबकि एक अन्य फरार होने में सफल रही थी. ऐसी कई महिलाएं भारत व नेपाल पुलिस की रडार पर हैं.
पांजीपाड़ा बना ट्रांजिट रूट
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पूर्वोत्तर के राज्यों सहित नेपाल व बांग्लादेश से ड्रग्स की खेप पश्चिम बंगाल पहुंचती है, जहां से उसे डिमांड के अनुसार सीमांचल व नेपाल के इलाकों में पहुंचाया जाता है. ड्रग तस्करों का मजबूत नेटवर्क पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी, इस्लामपुर व पांजीपाड़ा में काम कर रहा है. खासकर पांजीपाड़ा ड्रग्स सप्लाई का ट्रांजिट रूट बना हुआ है.
तस्वीरों मेंः ड्रग्स की जन्मस्थली
ड्रग्स की जन्मस्थली
आज मनोरंजन के लिए ली जाने वाली कई ड्रग्स बहुत पहले जर्मनी में जर्मन केमिस्ट्स ने बनायी थीं. इनके पहले ग्राहक थे सेना और दूसरी जर्मन कंपनियां. लेकिन आज तो अवैध होने के बावजूद दुनिया भर में प्रचलित हैं कई ऐसी ड्रग्स.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/NSW Police
लड़ाने के लिए
सन 1939 में जर्मनी के नाजियों ने अपने सैनिकों को ड्रग्स देकर पोलैंड में और फिर अगले साल फ्रांस में युद्ध करने के लिए भेजा था. फ्रांस पर हमले के दौरान मेथएम्फीटेमीन पर्विटीन की 3.5 करोड़ टैबलेट सैनिकों में बांटी गयी थीं. इसे "टैंक चॉकलेट" नाम मिला. विपक्षी सेना ने भी अपने सैनिकों को ड्रग्स दी थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa-Bildarchiv
चौकन्ने और निडर
एक जापानी केमिस्ट ने सबसे पहले वो तरल पदार्थ बनाया था, जिससे बाद में जर्मनी की टेमलर दवा कंपनी ने जादुई दवा बनायी और 1937 में उसे पेटेंट करा लिया. एक साल बाद ही उनकी दवा पर्विटीन आम दवा की दुकानों में बिकने लगी. इसे लेने से लोग ज्यादा सतर्क और निडर महसूस करते और उन्हें भूख प्यास भी नहीं लगती. यह आज भी क्रिस्टल मेथ के नाम से अवैध रूप से बेची जाती है.
सबसे बड़ा उपभोक्ता खुद?
इतिहासकारों में इस पर मतभेद है कि क्या हिटलर को खुद भी पर्विटीन की लत थी. उसके निजी डॉक्टर थियो मोरेल की फाइलों में रोज की दवाओं की सूची में किसी "x" का जिक्र है. लेकिन यह साफ नहीं कि वो चीज क्या थी. हालांकि इतना पता है कि हिटलर रोजाना कई शक्तिशाली दवाइयों का कॉकटेल सा लेता था.
नाजी काल से पहले भी जर्मन केमिस्ट्स ने कुछ ऐसी ड्रग्स बनायीं थीं. फिर 19वीं सदी के अंत में जर्मन दवा कंपनी बायर ने खांसी की ऐसी दवा बनायी, जिसमें मरीजों को हेरोइन दी जाती थी. मिर्गी, दमा, स्कित्जोफ्रेनिया और दिल की बीमारियों में भी हेरोइन मिलती थी. और कंपनी ने इसका केवल एक साइड इफेक्ट बताया था, वो था कब्ज.
क्रिएटिव केमिस्ट
फेलिक्स होफमन को विश्व एस्पिरिन की खोज के लिए जानता है. लेकिन इसके अलावा उन्होंने एसिटिक एसिड के साथ प्रयोग करने के दौरान उससे हेरोइन बना डाली थी. यह एसिड को मॉर्फीन के साथ मिलाने से बनी थी. जर्मनी में 1971 तक हेरोइन वैध रही लेकिन उसके बाद से इसे अवैध दवाइयों की सूची में डाल दिया गया.
आंख के डॉक्टरों के लिए कोकेन
सन 1862 में डार्मश्टाड की दवा कंपनी मर्क ने बड़े पैमाने पर कोकेन बनाना शुरू किया. नेत्र विेशेषज्ञ इसका इस्तेमाल मरीज को बेहोश करने में करते. जर्मन केमिस्ट अल्बर्ट नीमन ने इसके पहले ही दक्षिण अमेरिकी में उगाये जाने वाले कोका की पत्तियों से कोकेन नाम का एल्केलॉइड अलग कर लिया था. कोकेन की खोज के कुछ ही समय बाद वे फेफड़ों की बीमारी से चल बसे.
तस्वीर: Merck Corporate History
यूफोरिया और जीवन शक्ति
ऑस्ट्रिया के न्यूरोलॉजिस्ट और "साइकोएनालिसिस के पिता" माने जाने वाले जिग्मंड फ्रॉयड ने कोकेन पर वैज्ञानिक स्टडी के लिए खुद ही नियमित रूप से कोकेन का सेवन किया. उन्होंने इसका कोई नुकसान नहीं बताया बल्कि उन्होंने पाया कि इससे "यूफोरिया, जीवन शक्ति और काम करने की क्षमता और बढ़ गयी." उस समय डॉक्टर सिरदर्द और पेट की परेशानियों में यह दवा देते थे.
तस्वीर: Hans Casparius/Hulton Archive/Getty Images
एमडीएमए पेटेंट
अमेरिकी केमिस्ट एलेक्जेंडर शुल्गिन को पार्टी ड्रग एक्सटेसी का जनक माना जाता है. लेकिन सच ये है कि बहुत पहले सन 1912 में ही इस कंपाउंड को दवा कंपनी मर्क ने विकसित किया और पेटेंट के लिए अर्जी भी डाली थी. यह एक रंगहीन तैलीय पदार्थ 3,4-मिथाइलीनडाईऑक्सीमेथएम्फीटेमीन या एमडीएमए था.
तस्वीर: picture-alliance/epa/Barbara Walton
मौत का साया
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक केवल 2013 में ही दुनिया भर में 1,90,000 लोग अवैध दवाओं के सेवन के कारण मारे गये. हालांकि यह भी सही है कि एक वैध ड्रग होते हुए भी इससे कहीं ज्यादा लोगों की जान अल्कोहल के सेववन से जाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2012 में दुनिया के 5.9 प्रतिशत लोगों की मौत का कारण अल्कोहल रहा, यानि करीब 33 लाख लोग. (निकोलास मार्टिन/आरपी)
तस्वीर: Imago/Blickwinkel
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तस्करों के सिंडिकेट में स्थानीय अपराधी भी शामिल हैं जो उनके मददगार होते हैं. कहा जाता है कि महिला कैरियर का चयन स्थानीय अपराधी ही करते हैं. नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 2020 के कोविड काल में नशीले पदार्थों की तस्करी बढ़ी है. रिपोर्ट के अनुसार बिहार में त्रिपुरा, श्रीलंका, पाकिस्तान व अफगानिस्तान से नशीले पदार्थों तस्करी की जा रही है.
नशे के खिलाफ मुहिम
किशनगंज के एसपी कुमार आशीष तो बकायदा नशे के खिलाफ मुहिम चला कर युवा पीढ़ी को इसके प्रति सचेत कर रहे हैं. समय निकाल कर वह रोजाना किशनगंज जिले के सुदूरवर्ती इलाकों के किसी न किसी स्कूल या गांव में पहुंच कर लोगों का जागरूक कर रहे हैं.
वह कहते हैं, "आज युवा पीढ़ी नशे की गिरफ्त में है. हमारा प्रयास युवा पीढ़ी को नशा त्यागने के लिए प्रेरित करना है. मैं उन्हें दोस्त बनकर समझाता हूं ताकि वे इस दलदल से निकल सकें. सही समय पर उन्हें बचाना ही मेरा ध्येय है."
कोसी पेंटिंग के जनक व महज 30 घंटे में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दुनिया की सबसे बड़ी पेंटिंग बनाने वाले चित्रकार राजीव राज ने भी सीमांचल की इस स्याह तस्वीर को अपने कैनवास पर उकेर कर समाज को जागरूक करने की कोशिश की है. वह बताते हैं, "यह बड़े खतरे का संकेत है, युवाओं व अभिभावकों को इससे सतर्क करना जरूरी है, शायद मैं कामयाब हो जाऊं."