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एक इंसान, जो एचआईवी और ल्यूकेमिया दोनों से ठीक हो गया

क्लेयर रोठ
५ अगस्त २०२३

जर्मनी के एक 54 साल के शख्स कई साल तक चले लंबे इलाज के बाद एचआईवी और ल्यूकेमिया से ठीक हो गए हैं. उनके इस लंबे संघर्ष की कहानी को समझने के लिए डीडब्ल्यू ने उनसे मुलाकात की.

ड्यूसलडॉर्फ पेशेंट मार्क फ्रैंके
मार्क फ्रैंके के डॉक्टरों का कहना है कि वह एचआईवी और ल्यूकेमिया, दोनों से ठीक हो गए हैं. तस्वीर: Gabriel Borrud/DW

पश्चिमी जर्मनी के रहने वाले 54 वर्षीय मार्क फ्रैंके को पहला झटका 2008 में तब लगा, जब उन्हें पता चला कि उन्हें एचआईवी है. वह कहते हैं कि यह एक ऐसी सूचना थी, जिसने एक तरह से उनकी दुनिया ही उजाड़ दी.

नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया स्थित अपने घर में उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "मैंने हमेशा सुरक्षित तरीकों का इस्तेमाल किया था, लेकिन जाहिर तौर पर एक बार मैंने सुरक्षा नहीं बरती और यही मुझ पर भारी पड़ गया.”

शुक्र है कि एचआईवी के लिए अब मौत की सजा नहीं है, जो पहले हुआ करती थी. दशकों की चिकित्सा प्रगति के बाद अब यह संभव हो सका है कि एंटीरीट्रोवायरल थेरेपी यानी एआरटी लेने वाले रोगियों की जीवन प्रत्याशा, गैर-संक्रमित रोगियों के समान ही होती है.

लेकिन तीन साल बाद जब फ्रैंके केवल 42 साल के थे, तो वह फिर से बीमार महसूस करने लगे. उन्हें लगा कि शायद निमोनिया हो गया है. लेकिन अस्पताल में जांच के कुछ दिनों बाद उन्हें दूसरा झटका तब लगा, जब उन्हें पता चला कि वह अक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया की चपेट में आ गए हैं. यह एक ऐसी बीमारी है, जो आमतौर पर 69 साल के ऊपर के लोगों को होती है, जबकि फ्रैंके अभी अपनी युवावस्था में ही थे.

इंगो से मुलाकात

साल 2011 में उनका अस्पताल में रहना जीवन बदलने वाला अनुभव साबित हुआ. सिर्फ इसलिए नहीं कि फ्रैंके को तब यह पता चला था कि उन्हें ल्यूकेमिया है, बल्कि इसलिए कि यह उनके भावी पति इंगो के साथ पहली मुलाकात थी जो ड्यूसलडॉर्फ के एक स्कूल में शिक्षक थे.

फ्रैंके कहते हैं, "हमने ऑनलाइन बातचीत की और वह मिलने आया. उसे मेरे एचआईवी पीड़ित होने की भी परवाह नहीं थी. उसे मेरे खून की समस्या की भी परवाह नहीं थी. उसे मेरी बीमारी की परवाह नहीं थी. एक इंसान के तौर पर उसे सिर्फ मेरी परवाह थी.” फ्रैंके बताते हैं कि इंगो के साथ भविष्य के रिश्ते की संभावना ने ही उन्हें इस दोहरे रोग के बावजूद बचाए रखा. फ्रैंके इसे ‘प्यार की ताकत' कहते हैं.

फ्रैंके कहते हैं, "जब इंगो मिलने आए, तो मुझे अच्छा दिखना था. डॉक्टर कह रहे थे कि मार्क, एचआईवी और ल्यूकेमिया के लिए कीमोथेरेपी के साथ तो तुम्हें बहुत खतरनाक महसूस हो रहा होगा. लेकिन मैंने कहा कि नहीं, ऐसा नहीं है. मुझे पता था कि मैं उसके साथ रहना चाहता था और उसी ने मुझे इन सब खतरों से बाहर निकाला.”

बीमारी के दोबारा लौटने से एक आशा जगी

कीमोथेरेपी से गुजरने के बाद फ्रैंके को आराम मिल गया, लेकिन सिर्फ एक साल बाद अगस्त 2012 में वह फिर से बीमार हो गए. ल्यूकेमिया उनके शरीर में आक्रामक रूप से फैलने लगा और स्थिति इतनी बिगड़ गई कि उनके पास इलाज के लिए कुछ ही विकल्प बचे थे. एकमात्र संभावना स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की बची थी, जो कि एक आक्रामक प्रक्रिया है. इसकी सलाह सिर्फ कुछ घातक किस्म के कैंसर, जैसे ल्यूकेमिया के मरीजों को ही दी जाती है, जिनपर कीमोथेरेपी का असर नहीं होता है.

डॉक्टर, फ्रैंके पर इस इलाज के प्रयोग के इच्छुक थे. वे ऐसे कुछ अन्य मामलों के बारे में जानते थे, जब इस प्रकार के प्रत्यारोपण से, जिसमें एक विशिष्ट जेनेटिक म्यूटेशन वाले लोगों से स्टेम सेल लेकर एचआईवी के मरीजों को ठीक किया गया था. ऐसे लोगों से स्टेम सेल लिया जाता है, जिनमें ‘सीसीआर 5-डेल्टा 32 रिसेप्टर' की कमी होती है. इसके जरिए डॉक्टर यह देखना चाहते थे कि क्या वही उसके लिए काम कर सकता है.

टिमोथी रे ब्राउन, जिन्हें ‘बर्लिन पेशेंट' के रूप में जाना जाता था, इस पद्धति का उपयोग करके एचआईवी से ठीक होने वाले पहले व्यक्ति थे. उनके ठीक होने की घोषणा 2008 में की गई थी. एडम कैस्टिलजो, यानी ‘लंदन पेशेंट' ठीक होने वाले दूसरे व्यक्ति बने. उनके ठीक होने की घोषणा 2019 में की गई थी. दो अन्य लोगों को शायद वायरस से ठीक हुआ मान लिया गया था.

सीसीआर5-डेल्टा म्यूटेशन वाले लोग अनिवार्य रूप से एचआईवी के प्रति इम्यून होते हैं क्योंकि वायरस को शरीर में रहने के लिए सीसीआर5 रिसेप्टर से जुड़ना पड़ता है. रिसेप्टर के बिना वायरस जीवित नहीं रह सकता.

अब डॉक्टरों ने डोनर की तलाश शुरू कर दी. 

संयोग से वे जल्दी ही म्यूटेशन वाले एक व्यक्ति का पता लगाने में कामयाब हो गए. और ये डोनर थीं, पूर्व फ्लाइट अटेंडेंट अंजा प्राउज जो कि पश्चिमी जर्मन क्षेत्र नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया से थीं. प्राउज के बोन मेरो का उपयोग करके फरवरी 2013 में वेलेंटाइन डे पर प्रत्यारोपण हुआ और यह सोचा गया कि इससे फ्रैंके का एचआईवी ठीक हो जाएगा. लेकिन जब तक दोनों में से किसी को यह पता नहीं चलेगा कि यह काम कर गया है, कई साल लग जाएंगे.

अंजा प्राउज का जेनेटिक म्यूटेशन हूबहू वैसा था, जैसा फ्रैंके के स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के लिए चाहिए था. तस्वीर: Privat

ऐसा उपचार नहीं, जिसे मापा जा सके

फ्रैंके जैसे ल्यूकेमिया के मरीजों में स्टेम सेल प्रत्यारोपण कुछ इस तरह काम करते हैं. सबसे पहले, गहन कीमोथेरेपी अनिवार्य रूप से रोगी की पुरानी प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम को मिटा देती है. फिर डॉक्टर, डोनर की कोशिकाओं को मरीज के रक्तप्रवाह में डालकर स्टेम सेल प्रत्यारोपण को सुविधाजनक बनाते हैं. यदि सब कुछ सही रहा, तो ये कोशिकाएं मरीज की बोन मेरो को खोज लेंगी और नई म्यूटेंट रक्त कोशिकाओं का उत्पादन शुरू कर देंगी.

डॉक्टरों का कहना है कि यह एक उच्च जोखिम वाली प्रक्रिया है, जिसके परिणामस्वरूप 15 फीसद मामलों में मरीज की मौत हो जाती है क्योंकि यह उपचार नैतिक रूप से केवल फ्रैंके जैसे मरीजों को ही दिया जा सकता है, जिन्हें जीवित रहने के लिए स्टेम सेल प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है. कैंसर-मुक्त एचआईवी रोगी इसके लिए पात्र नहीं हैं.

फ्रैंके के डॉक्टर ब्योर्न येन्सन कहते हैं, "लोगों को संक्रमण, रक्तस्राव वगैरह का बहुत अधिक खतरा रहता है. यही कारण है कि लोग इस प्रक्रिया के दौरान मर जाते हैं और इसी वजह से आप इसका उपयोग उन बीमारियों के नहीं लिए कर सकते हैं, जो घातक नहीं हैं. भले ही मरीज यह जोखिम उठाने को तैयार हों, लेकिन एक चिकित्सक के दृष्टिकोण से यह बिल्कुल अनैतिक है क्योंकि जब आप कॉम्बिनेशन एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी लेते हैं, तो 15 फीसद संभावना के साथ किसी को मारने का जोखिम लेना ठीक नहीं है.”

ब्योर्न येन्सन ने एक दशक से ज्यादा वक्त तक फ्रैंके का इलाज कियातस्वीर: Universitätsklinikum Düsseldorf

कितना महत्वपूर्ण है इलाज?

विकसित देशों में एंटीरेट्रोवाइरल उपचारों की सर्वव्यापकता को देखते हुए किसी को आश्चर्य हो सकता है कि क्या इस बिंदु पर एचआईवी का इलाज इसके लायक है? एंटीरेट्रोवायरल उपचार यदि प्रतिदिन लिए जाएं, तो यह किसी व्यक्ति के एचआईवी को लगभग खत्म कर सकता है. 

एचआईवी पॉजिटिव मरीजों के साक्षात्कार से यह पता चलता है.

दक्षिण अफ्रीका के एक एचआईवी मरीज पैट्रिक मैकग्रेगर ने डीडब्ल्यू को बताया, "मैं पिछले 15 साल से एचआईवी के साथ जी रहा हूं. हमारे भाइयों और बहनों की अनावश्यक मृत्यु को रोकने के लिए इलाज खोजना हमारे लिए जरूरी होगा क्योंकि अभी भी बहुत से लोगों की एचआईवी की वजह से मौत हो रही है. खासतौर पर हमारे देश में और दक्षिण अफ्रीका में मेरे प्रांत में. मेरे कई साथी जिन्हें मैं जानता हूं, वे उपचार से चूक गए और इसलिए उनकी मौत हो जाती है.”

रिसर्च से पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर एचआईवी से पीड़ित 25 फीसद लोग एआरटी दवाएं नहीं ले रहे हैं क्योंकि ये उनकी क्षमता से बाहर हैं. इसमें वे लोग शामिल नहीं हैं, जो सिर्फ अपनी दवाइयां लेना भूल जाते हैं, जो परेशानियों का कारण बन सकती हैं.

जेनेटिक मॉडिफिकेशन संभावित समाधान है

तो यदि स्टेम सेल प्रत्यारोपण कभी भी स्केलेबल इलाज प्रदान नहीं करेगा, तो क्या करेगा? डॉक्टर, मरीजों के CCR-5 रिसेप्टर्स, श्वेत रक्त कणिकाओं की सतह पर मौजूद प्रोटीन और जेनेटिक मॉडिफिकेशन के माध्यम से उनकी संपूर्ण प्रतिरक्षा प्रणाली को नष्ट किए बिना, एचआईवी को ठीक करने के अन्य तरीकों पर विचार कर रहे हैं.

मोनिक निझुइस, नीदरलैंड के यूट्रेक्ट में एआई सिस्टम मुख्यालय में एचआईवी के इलाज पर शोध करती हैं. वे फ्रैंके की तरह इलाज प्रक्रियाओं से गुजरने वाले मरीजों की देखरेख करती हैं. निझुइस कहती हैं कि वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला सेटिंग्स में एचआईवी को ‘ठीक' करने के लिए पहले ही सफलतापूर्वक सुविधा प्रदान कर दी है.

उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "मैं इन विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके एचआईवी से संक्रमित कोशिकाओं को बहुत आसानी से ठीक कर सकती हूं. बात यह है कि हमें इसे एचआईवी से पीड़ित व्यक्ति के लिए इस तरह ट्रांसलेट करना होगा, जिससे एचआईवी से पीड़ित व्यक्ति को कोई नुकसान न हो.”

निझुइस कहती हैं कि हालांकि जेनेटिक मॉडिफिकेशन, स्टेम सेल प्रत्यारोपण जितना जोखिम भरा नहीं है, फिर भी जनसंख्या स्तर पर इलाज करने के लिए वैज्ञानिकों को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि इलाज में शामिल ‘कैंची' केवल इच्छित रिसेप्टर, CCR5 को काटे, उसके अलावा और कुछ नहीं.

वह कहती हैं, "मैं वास्तव में शत-प्रतिशत निश्चिंत नहीं हूं कि ये कैंची, जिन्हें हमने CCR5 को पहचानने के लिए प्रयोगशाला में इतना प्रशिक्षित किया है, गलती से कुछ और भी नहीं पहचान पा रही हैं. क्योंकि यह हानिकारक होगा अगर वे कैंची चलेंगी और सीसीआर2 या किसी अन्य केमोकाइन रिसेप्टर के खिलाफ प्रतिक्रिया करेंगी.”

यह सुनिश्चित करने के लिए अभी और अधिक शोध किए जाने की जरूरत है कि कैंची केवल एक विशिष्ट रिएक्टर, CCR5 को काटती है, न कि लोगों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक अन्य रिएक्टर्स को. मौजूदा समय में ऐसे शोध संस्थान हैं, जो यह काम कर रहे हैं. जैसे, अमेरिकी राज्य लुइसियाना में तुलाने विश्वविद्यालय. साथ ही, अमेरिका स्थित कंपनी "अमेरिकन जीन टेक्नोलॉजिज" भी है, जो मनुष्यों पर क्लिनिकल ट्रायल के पहले चरण को प्रकाशित करने वाली है.

डॉक्टर मोनिक निझुइस, नीदरलैंड के यूट्रेक्ट में एआई सिस्टम मुख्यालय में एचआईवी के इलाज पर शोध करती हैं.तस्वीर: Division Laboratory/Pharmacy en Biomedical Genetics/Medical MicrobiologyUniversity Medical Center Utrecht

फ्रैंके की अपने डोनर से मुलाकात

फ्रैंके को स्टेम सेल ट्रांसप्लांट मिलने के दो साल बाद, उनकी मुलाकात प्राउज से हुई. दोनों के बीच संपर्क प्राउज के एक पत्र से शुरू हुआ. उन्हें डॉक्टरों ने सूचित किया था कि फ्रैंके के साथ अब सब कुछ ठीक हो गया है.

उन्होंने लिखा, "हैलो! मुझे लगता है कि आनुवांशिक दृष्टि से हम काफी हद तक एक "बुल्सआई" हैं. हम लगभग एक परिवार हैं. जैसा कि मैंने सुना है कि आप अब बेहतर हैं. बेशक आप ठीक होंगे. पूरी तरह से ठीक होने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना होगा. लेकिन मुझे बहुत खुशी है कि आपने मेरी प्रत्यारोपित कोशिकाओं को सफलतापूर्वक ले लिया है. मैं हमेशा आपके साथ हूं. मैं एक छोटे से क्षण के लिए अपनी आंखें बंद करती हूं और आशा करती हूं कि जल्द ही आपसे सुनूंगी कि आप ठीक हैं. पूरे दिल से प्यार के साथ.”

कुछ साल बाद 2018 में, फ्रैंके ने डॉक्टरों की देखरेख में एचआईवी के लिए एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी का उपयोग बंद कर दिया. उन्होंने हफ्ते में दो बार वायरस का परीक्षण जारी रखा, जो वह अब भी जारी रखे हुए हैं. लेकिन हर दो महीने में केवल एक बार.

फ्रैंके कहते हैं, "जब लोग डॉक्टर जेन्सन को मेरा इलाज करने वाला कहते हैं, तब वे भी 'इलाज' शब्द को लेकर बहुत सावधान रहते हैं. लेकिन जब वे नेचर मेडिसिन में एक लेख लिखते हैं कि मैं एचआईवी से कैसे ठीक हुआ हूं, तो मुझे लगता है कि यही वह सबूत है जिसकी मुझे जरूरत है.”

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