धुर दक्षिणपंथ की बढ़ी ताकत के बीच होगा फ्रांसीसी चुनाव
१० जून २०२४27 देशों में चार दिनों तक चली वोटिंग में 18 करोड़ लोगों ने मतदान किया. 720 में से 184 सीटों पर जीत के साथ यूरोपियन पीपल्स पार्टी ने सबसे बड़ा दल बने रहने का जश्न भी मनाया. लेकिन ईयू चुनावों के नतीजों के बाद चर्चा के केंद्र में हैं. धुर दक्षिणपंथी पार्टियों की बढ़ती ताकत, जिसे नजरअंदाज करना अब मुमकिन नहीं. चुनावों में दूसरे नंबर पर रही सेंटर लेफ्ट पार्टी सोशलिस्ट्स एंड डेमोक्रैट्स जिसे 139 सीटें हासिल हुईं और 80 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर रहा लिबरल रिन्यू ग्रुप.
जर्मनी में रिकॉर्ड वोटरों की हिस्सेदारी और 16 साल के युवाओं को मताधिकार इन चुनावों की खासियत रहे. दूसरी ओर जर्मन चांसलर और एसपीडी नेता ओलाफ शॉल्त्स के नेतृत्व वाले गठबंधन को बड़ा झटका लगा. विपक्षी सीडीयू ने 30 फीसदी वोट हासिल किए जबकि एएफडी को 16 प्रतिशत मत मिले. शॉल्त्स की सोशल डेमोक्रैट पार्टी को 14 प्रतिशत से भी कम वोट मिले. जर्मनी की राजनीति में अहम खिलाड़ी रही इस पार्टी का यह बेहद खराब प्रदर्शन है. यूरोपीय चुनावों में अर्थव्यवस्था, अप्रवासी और यूक्रेन युद्ध जैसे मुद्दे अहम रहे.
धुर दक्षिणपंथ का बोलबाला
अंतिम रूप से यूरोपीय चुनावों में मध्यमार्गी, लिबरल और सोशलिस्ट पार्टियों का वर्चस्व बना हुआ है लेकिन घरेलू राजनीति में फ्रांस, जर्मनी, इटली और ऑस्ट्रिया में धुर दक्षिणपंथ की मजबूती आने वाले वक्त के संकेत दे रही है.
यूरोप में धुर दक्षिणपंथी दलों के पांव पसारने को लेकर अनुमान तो लगाए ही जा रहे थे. लेकिन फ्रांस की नेशनल रैली, ऑस्ट्रिया की फ्रीडम पार्टी, इटली में प्रधानमंत्री जॉर्जिया मिलोनी की ब्रदर्स ऑफ इटली और जर्मनी में ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) के जनाधार में ठोस बढ़त के बावजूद ऐसा कोई बड़ा चुनावी धमाका नहीं हुआ जो ईयू के राजनीतिक मैदान की जमीन हिला दे. इटली में नव-फासीवादी जड़ों वाली ब्रदर्स ऑफ इटली पार्टी को 28 फीसदी से ज्यादा मत मिलने का मतलब है कि यूरोपीय संसद में बनने वाले गुटों में इस पार्टी की बड़ी भूमिका हो सकती है.
इन चुनावों में धुर-दक्षिणपंथी दलों को जर्मनी में दूसरा स्थान और फ्रांस में पहला स्थान मिला है. जर्मनी में एएफडी का यह प्रदर्शन उसके नेताओं के बड़े स्कैंडलों में शामिल होने के बावजूद रहा. यह इस पार्टी के 2019 के प्रदर्शन से कहीं बेहतर है जब उसे 11 फीसदी मत मिले थे. नतीजों के बाद फ्रांस की धुर दक्षिणपंथी नेता मरीन ला पेन ने गर्व से भर कर कहा, "फ्रांसीसी लोगों ने हमें सबसे ज्यादा वोट दिए, पिछले चालीस वर्षों में सभी पार्टियों से ज्यादा." लेकिन यही ज्यादा वोट फ्रांस के लिए राजनैतिक हलचल लेकर भी आए.
फ्रांस में चुनावी तूफान
सबसे चौंकाने वाली राजनीतिक परिस्थितियां बनी फ्रांस में जहां राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने अंतिम नतीजे आने से पहले ही अचानक राष्ट्रीय चुनावों की घोषणा कर दी. उनकी मध्यमार्गी रिनैसां पार्टी ने केवल 15 फीसदी मत हासिल किए. राष्ट्र के नाम दिए अपने संदेश में माक्रों ने चुनावों की घोषणा करते हुए कहा, मैंने फैसला किया है कि "आप वोट के जरिए अपना संसदीय भविष्य चुने. इसलिए मैं नेशनल असेंबली भंग कर रहा हूं. धुर दक्षिणपंथी पार्टियां हर तरफ आगे बढ़ रही हैं. यह ऐसे हालात हैं जिन्हे मैं स्वीकार नहीं कर सकता."
30 जून और 7 जुलाई को फ्रांस में राष्ट्रीय चुनाव होंगे और मध्य जुलाई तक यह साफ हो जाएगा कि राजनीतिक समीकरणों में माक्रों की स्थिति क्या रहती है और क्या उन्हें एक धुर दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री के साथ मिलकर सत्ता चलाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
फ्रांस की धुर दक्षिणपंथी नेता मरीन ला पेन की नेशनल रैली ने माक्रों की पार्टी को जबरदस्त झटका दिया है. केवल दो साल पहले राष्ट्रपति पद की दूसरी पारी संभालने वाले माक्रों के अपने पद के लिए इन चुनावों से कोई अंतर पैदा नहीं होगा क्योंकि राष्ट्रपति चुनावों में अभी वक्त है और वह अपना तीन साल का बचा हुआ कार्यकाल पूरा करेंगे.
ग्रीन और लिबरल को झटका
यूरोपीय संसद के चुनावों में सबसे बड़ा नुकसान ग्रीन्स पार्टी को हुआ. पर्यावरणीय मुद्दों पर सख्ती के लिए जानी जाने वाली इस पार्टी ने संसद में लगभग 20 सीटें खो दीं यानी 2019 में मिली सीटों का लगभग एक तिहाई हिस्सा. यूरोप में क्लाइमेट से जुड़े कानूनों के चलते लगाई गई पाबंदियों से भड़के किसानों के प्रदर्शनों ने इस पार्टी को झटका देने में बड़ी भूमिका निभाई.
ईयू अपने आपको पर्यावरणीय मामलों में अग्रणी के तौर पर देखता है और यह उम्मीद की जा रही थी कि जर्मनी में पहले से ही सरकार में शामिल यह पार्टी अपनी जमीन बचा पाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अनुमानों में पहले ही कहा जा रहा था कि शॉल्त्स की गठबंधन सरकार में शामिल यह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी नुकसान झेलने वाली है. माक्रों की पार्टी समेत लिबरल पार्टियों की सीटें छिन जाने का अंदेशा भी पहले से ही लगाया जा रहा था.
यूरोपीय संसद में आगे का रास्ता
पार्टियों के वरिष्ठ अधिकारी सोमवार को बैठकें करेंगे ताकि इस पर सहमति बने कि किस तरह के गुट और गठबंधन हो सकते हैं जिससे संसद पांच साल तक काम कर सके. मंगलवार को पार्टियों के अध्यक्षों की औपचारिक मीटिंग आयोजित की जाएगी. एक बात तो साफ है कि इन नतीजों के बाद, जलवायु परिवर्तन और कृषि क्षेत्र को सब्सिडी जैसे तमाम मुद्दों पर फैसले लेने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाएगी.
ईयू देशों के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों की भी 17 जून को मुलाकात होगी ताकि नतीजों पर चर्चा की जा सके. इसी बैठक में उर्सुला फॉन डेयर लाएन को फिर से यूरोपियन कमीशन का प्रमुख बनाए जाने के मसले पर भी फैसला होगा.
एसबी/आरपी (रॉयटर्स, डीपीए, एएफपी)