नासा के लिए मंगल ग्रह पर काम कर रहा अंतरिक्ष यान ‘इनसाइट’ अपने अंत की ओर बढ़ रहा है. वैज्ञानिकों को आशंका है कि दो महीने के भीतर लैंड रोवर काम करना बंद कर देगा.
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चार साल से मंगल पर लगातार काम कर रहे ‘इनसाइट' का अंत नजदीक दिख रहा है. नासा के वैज्ञानिकों ने बताया कि उसके सोलर पैनल पर धूल जम गई है. मंगलवार को अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने बताया कि सोलर पैनलों के काम बंद कर देने के बाद भी इनसाइट का प्रयोग जब तक संभव हो जारी रखा जाएगा क्योंकि उसमें सीज्मोमीटर यानी भूकंप आंकने वाले वाला यंत्र लगा है, जिससे मंगल पर आने वाले भूकंपों का पता लगाया जाता रहेगा. हालांकि जुलाई के बाद ऐसा होना शायद संभव ना हो.
उसके बाद भी इनसाइट पर इस साल के आखिर तक नजर बनाए रखी जाएगी, जिसके बाद उसे पूरी तरह मृत मान लिया जाएगा. नासा की जेट प्रोपल्शन लैबोरेट्री के प्रधान वैज्ञानिक ब्रूस बैनेर्ट ने बताया, "टीम में बहुत ज्यादा दुख का माहौल नहीं है. हम अभी भी अपना ध्यान इसे चलाए रखने पर लगा रहे हैं.”
विकल्प सोचना होगा
इनसाइट 2018 में मंगल ग्रह पर उतरा था. इस यान ने वहां 1,300 भूकंप दर्ज किए हैं. उनमें से सबसे शक्तिशाली भूकंप की तीव्रता 5 आंकी गई जो दो हफ्ते पहले ही आया था. इनसाइट धूल के कारण मंगल पर बेकार होने वाला दूसरा नासा यान होगा. 2018 में ऑपर्च्युनिटी के साथ भी यही हुआ था धूल भरे एक तूफान ने उसे बेकार कर दिया था. फर्क बस इतना है कि ऑपर्च्युनिटी एक ही तूफान में खराब हो गया था जबकि इनसाइट के काम करना बंद होने की प्रक्रिया धीमी रही है.
आसमान से यूं उतरे यात्री
छह महीने अंतरिक्ष में बिताने के बाद स्पेस एक्स कंपनी के अंतरिक्ष यात्री लौट आए हैं. देखिए, कैसे लौटे ये यात्री और कैसा रहा अभियान.
तस्वीर: Aubrey Gemignani/NASA/REUTERS
लौट आए यात्री
बीते सप्ताह स्पेस एक्स का अभियान दल पृथ्वी पर लौट आया. 6 अप्रैल को उनका वाहन फ्लोरिडा के पास मेक्सिको की खाड़ी में उतरा.
तस्वीर: Aubrey Gemignani/NASA/REUTERS
चार वैज्ञानिक
यह दल पिछले साल 11 नवंबर को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर पहुंचा था. इस दल में भारतीय मूल के राजा चारी समेत चार वैज्ञानिक थे.
तस्वीर: Aubrey Gemignani/NASA/REUTERS
तीन नए यात्री
दल के तीन यात्री पहली बार अंतरिक्ष में गए थे जबकि 61 वर्षीय वरिष्ठ अंतरिक्ष यात्री टॉम मार्शबर्न अनुभवी थे. उनके साथ भारतीय मूल के अमेरिकी नासा वैज्ञानिक राजा चारी और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के कायला बैरन और मथियास माउरर थे.
तस्वीर: Aubrey Gemignani/NASA/REUTERS
लंबी यात्रा
इस दल की वापसी की यात्रा 23 घंटे लंबी रही. यात्रियों को लेकर आया कैपसूल रात को पौने एक बजे समुद्र में गिरा और करीब एक घंटे के भीतर उसे जहाज पर चढ़ा लिया गया.
तस्वीर: Aubrey Gemignani/NASA/REUTERS
परीक्षण बाकी हैं
परीक्षण बाकी हैं 175 दिन भारहीनता में बिताने वाले इन यात्रियों को अब लंबी और गहन मेडिकल और अन्य शारीरिक जांच से गुजरना होगा.
तस्वीर: Aubrey Gemignani/NASA/IMAGO
कमर्शल क्रू-3
इस दल को नासा ने आधिकारिक तौर पर ‘कमर्शल क्रू - 3’ नाम दिया है. स्पेस एक्स ने नासा का यह तीसरा ऐसा अभियान पूरा किया है जो लंबी अवधि तक अंतरिक्ष में रहा. ये लोग अपने साथ करीब 250 किलोग्राम सामान लाए हैं जिनमें कई नमूने आदि शामिल हैं.
तस्वीर: Aubrey Gemignani/NASA/REUTERS
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इस वक्त नासा के दो अन्य यान भी मंगल पर कार्यरत हैं. क्यूरियॉसिटी और परसेवेरंस दोनों यान काम कर रहे हैं. लेकिन इसका श्रेय परमाणु ऊर्जा को जाता है, जिससे ये दोनों यान चलते हैं. प्लेनटरी साइंस डाइरेक्टर लोरी ग्लेज कहती हैं कि दो यान एक ही तरह बर्बाद हो जाने के बाद नासा सोलर पैनलों को लेकर अपनी नीति पर पुनर्विचार कर सकती है. या हो सकता है कि वे नई तरह की पैनल साफ करने वाली तकनीक पर विचार करें अथवा यान को मंगल पर भेजने के लिए ऐसे मौसम चुनें जबकि तूफान कम आते हैं.
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हवा भी काम ना आई
इनसाइट को सौर पैनलों से अपने अभियान की शुरुआत में जितनी ऊर्जा मिलती थी, अब उसका दसवां हिस्सा ही पैदा हो रही है. डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर कात्या जमोरा गार्सिया बताती हैं कि शुरुआत में इनसाइट के सोलर पैनल इतनी बिजली पैदा कर रहे थे कि इलेक्ट्रिक अवन को एक घंटा 40 मिनट तक चलाया जा सकता था. अब उस अवन को दस मिनट चलाने लायक बिजली ही पैदा हो रही है.
कैसा है नासा का मार्स रोवर - परसिवरेंस
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का यह पांचवा मार्स रोवर उसका आज तक का सबसे बड़ा और भारी अभियान है. फरवरी 2021 में यह मंगल पर उतरने वाला है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
एटलस V रॉकेट की सवारी
नासा के इंजीनियरों ने जुलाई 2020 की शुरुआत में ही मार्स रोवर को एटलस V रॉकेट पर लोड कर दिया. ‘परसिवरेंस’ अमेरिका के फ्लोरिडा से 30 जुलाई को छोड़ा जाना है
तस्वीर: NASA
करीब से ऐसे दिखता है
नासा का यह पांचवा रोवर मंगल पर पहले से काम कर रहे ‘क्यूरियोसिटी’ रोवर की मदद करेगा. इसका वजन क्यूरियोसिटी से करीब एक टन ज्यादा है और इसकी लंबाई 3 मीटर (10 फीट) है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
रोवर में क्या क्या है
कई रिसर्च उपकरण और सेंसर के अलावा इसकी भुजाओं पर 23 कैमरे और दूसरे कई टूल लगे हैं. इन्हीं की मदद से मंगल पर हर तरह के सैंपल इकट्ठे किए जाएंगे. मंगल की चट्टानों से ऑक्सीजन निकालने की संभावना तलाशना मिशन का एक अहम लक्ष्य है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
मंगल पर हेलिकॉप्टर
पहली बार किसी ग्रह पर भेजे जाने वाले ऐसे अभियान में रोवर के साथ साथ एक हेलीकॉप्टर भी भेजा जा रहा है. मंगल पर गुरुत्व बल धरती का करीब एक तिहाई होता है और ऐसे में हेलिकॉप्टर की उड़ान से कई नई जानकारियां हासिल करने का लक्ष्य है.
तस्वीर: NASA/Cory Huston
तीन पीढ़ियां एक साथ
सबसे छोटा है सोजोर्नर, जो केवल 10.6 किलोग्राम भारी था. फिर 185 किलो वजन वाला ऑपर्चुनिटी और 900 किलो भारी क्यूरियोसिटी रोवर. छोटे की स्पीड एक सेंटीमीटर प्रति सेकंड तो वहीं बड़े रोवरों की स्पीड भी चार से पांच सेंटीमीटर प्रति सेकंड ही होती है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
भविष्य के रास्ते खोलने वाले मिशन
सोजोर्नर से मिली सीख के कारण 2004 में उसी के मॉडल पर स्पिरिट और ऑपर्चुनिटी रोबोट भेजे गए. स्पिरिट ने छह साल तक काम किया और ऑपर्चुनिटी से तो 13 फरवरी, 2019 को जाकर संपर्क टूटा.
तस्वीर: picture alliance/dpa
लाल ग्रह की दुनिया
मंगल की सतह की यह तस्वीर क्यूरियोसिटी ने अपने कैमरे में कैद की थी. वह अब भी काम कर रहा है और अगले पांच साल या उससे भी लंबे समय तक सक्रिय रह सकता है. फिलहाल मंगल ग्रह पर केवल रोबोटों ने ही कदम रखा है लेकिन भविष्य असीम संभावनाओं से भरा है.
तस्वीर: Reuters
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इनसाइट के अभियान को देखने वाले दल को पहले से अनुमान था कि धूल के गुब्बार परेशानी पैदा कर सकते हैं लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि हवा इस धूल को साफ कर देंगे. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया, जबकि तेज हवाओं के चलने के कई हजार वाकये हो चुके हैं. बेनेर्ट कहते हैं, "हवा के किसी भी झोंके ने सही जगह पर निशाना नहीं लगाया जिससे धूल साफ हो पाती.”
मंगल की धूल ने एक अन्य उपकरण ‘मोल' को भी नष्ट किया है. जर्मनी में बना खुदाई करने वाला यह उपकरण मंगल पर खुदाई के लिए भेजा गया था. इसका मकसद 16 फुट गहराई तक खुदाई करना था लेकिन यह दो फुट भी नहीं जा पाया क्योंकि मंगल की लाल मिट्टी की प्रकृति और संरचना के सामने उसकी तकनीक नाकाम रही. आखिरकार इस साल की शुरुआत में उसे मृत घोषित कर दिया गया.
वीके/एए (एपी)
हबल दूरबीन की बेमिसाल तस्वीरों की एक झलक
तीस साल से अंतरिक्ष को निहारने वाली हबल दूरबीन के जरिए हमें ब्रह्मांड के सुदूर कोनों की अद्भुत तस्वीरें हासिल होती रही हैं. यहां एक निगाह डालते हैं उस दूरबीन की भेजी चुनिंदा सर्वश्रेष्ठ तस्वीरों पर.
तस्वीर: NASA/ESA/TScI
दुरुस्त हुई कम्प्यूटर की एक गड़बड़ी
नासा की हबल स्पेस दूरबीन 13 जून से 15 जुलाई 2021 तक तस्वीरें नहीं भेज पाई थी. कम्प्यूटर के मेमरी सिस्टम की एक खराबी से टेलिस्कोप का काम अटक गया था. नासा के रिटायर हो चुके जानकारों ने ये खराबी दूर की और दूरबीन को फिर से चालू किया. पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय से हबल, दूरस्थ तारों और आकाशगंगाओं की विहंगम तस्वीरें जुटाती रही है.
तस्वीर: ESA
जहां जन्म लेते हैं सितारे
अपने जीवनकाल में हबल दूरबीन जिन अशांत, अस्थिर नक्षत्रीय नर्सरियों को टटोल पाई थी, ये तस्वीर उसका एक सबसे खूबसूरत नजारा है. इसमें विशाल नेबुला एनजीसी 2014 और उसका पड़ोसी तारा, एनजीसी 2020 देखा जा सकता है. दोनों मिलकर, बड़ी मैजेलैनीय मंदाकिनी में एक विशाल नक्षत्र क्षेत्र का हिस्सा बनाते हैं. करीब 1,63,000 प्रकाश वर्ष दूर ये मंदाकिनी हमारी आकाशगंगा का चक्कर काटती है.
तस्वीर: NASA/ESA/TScI
अंतरिक्ष के पर्दे पर 'स्टार वॉर्स' की तलवार
2015 में ज्यों ही स्टार वॉर्स का नया एपिसोड सिनेमाघरों में आया, हबल ने वहां अंतरिक्ष से भी लाइटसेबर तलवार की तस्वीर उतार ली. यह खगोलीय आकार 1300 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है. यहां एक तारा प्रणाली जन्म लेती है- एक शिशु तारे और कुछ तारों के बीच की धूल से दो कॉस्मिक बौछारें फूटती हैं. दूरबीन ने सांस रोक देने वाली तस्वीरें उतारीं. और भी देखिए...
तस्वीर: NASA/ESA/Hubble
अंतरिक्ष पे निगाहें
1990 से अंतरिक्षी दूरबीनों की रानी, हबल 27 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार और 550 किलोमीटर की ऊंचाई से धरती का चक्कार काटती आ रही है. हबल 11 किलोमीटर लंबी है और इसका वजन है 11 टन. भार और आकार में एक स्कूल बस जितनी.
तस्वीर: NASA/Getty Images
अंतरिक्षीय बुलबुलों को टटोलती तस्वीरें
तारों और ग्रहों की पैदाइश को समझने में, ब्रह्मांड की उम्र का अंदाज़ा लगाने में और डार्क मैटर की प्रकृति को परखने में हबल दूरबीन ने हमारी मदद की है. इस तस्वीर में सुपरनोवा यानी एक बड़े तारे में विस्फोट से बनी गैस का एक विशाल गोला दिख रहा है.
तस्वीर: AP
पल दो-पल में फना होते रंग
अलग अलग तरह की गैसें अलग अलग रंग छोड़ती हैं. लाल रंग वाली होती है सल्फर गैस. हरा है तो हाइड्रोजन और नीला है तो ऑक्सीजन.
हबल की भेजी पहली तस्वीरें तो बरबाद थीं. हालांकि उसकी वजह ये थी कि उसका मुख्य कांच गलत आकार में गढ़ा गया था. 1993 में इंडेवर अंतरिक्षयान कुछ जानकारों को हबल के पास उसकी खराबी दूर करने ले गया. उसे नये चश्मे मुहैया कराए गए. कई वर्षों की सक्रियता में हबल दूरबीन की कुल पांच जांचों में से ये भी एक थी. आखिरी 2009 में हुई थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Nasa
अंतरिक्ष का बालविहार
हबल ने ये अविस्मरणीय तस्वीर दिसंबर 2009 में खींची थी. नीले धब्बे बहुत युवा तारे हैं, कुछ लाख साल पुराने. तारों की ये बगिया विशाल मैजेलैनीय मंदाकिनी में मिली थी. ये मंदाकिनी हमारी आकाशगंगा का उपग्रह है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Nasa
और ये तितली है ना?
अंतरिक्ष में खींची इस तस्वीर के बारे में क्या ख्याल है? कोई ठीक ठीक नहीं जानता कि हबल ने अपने लेंस में आखिर ये क्या उतारा था लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि शॉट में दम नहीं था. ये उन 30,000 तस्वीरों में एक है जो सालों से हबल खींचती आ रही है.
तस्वीर: NASA/ESA/ Hubble Heritage Team
मैक्सिकन टोप- साम्ब्रेरो जैसी एक गैलेक्सी
निहायत ही आला दर्जे की ये तस्वीर- हबल की अन्य बहुत सी तस्वीरों की तरह- बहुत सारे एकल शॉट्स का कम्पोजिशन है- एक मिलीजुली प्रस्तुति. साम्ब्रेरो गैलेक्सी, वर्गो यानी कन्या तारामंडल में स्थित एक उन्मुक्त घुमावदार गैलेक्सी है और धरती से बस दो करोड़ 80 लाख प्रकाश-वर्ष दूर है.
तस्वीर: NASA/ESA/ Hubble Heritage Team
हाड़मांस के हबल
हबल दूरबीन को ये नाम, अमेरिकी खगोलविज्ञानी एडविन पॉवेल हबल (1889-1953) से मिला था. ब्रह्मांड फैल रहा है- ये देखने वाले पहले व्यक्ति वही थे. उनके पर्यवेक्षणों की बदौलत ही आज हम अपनी ये खगोलीय समझ कायम कर पाए हैं कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति महाविस्फोट से हुई थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
अंतरिक्ष में गड़े सृष्टि-स्तंभ
ये स्तंभ सरीखी संरचनाएं ईगल नेबुला में पाई गई हैं. धरती से करीब 7,000 प्रकाश-वर्ष दूर. हबल ने इनका बारीकी से मुआयना किया और दुनिया भर में इन्हें “पिलर्स ऑफ क्रिएशन” यानी सृष्टि-स्तंभ के रूप में मान्यता दिलाई.
तस्वीर: NASA, ESA/Hubble and the Hubble Heritage Team
शुरुआती अड़चनें
हबल की मजबूती लौट आई है, फिर से. अपनी लगातार धंसती कक्षा के चलते, दूरबीन 2024 में धरती के वायुमंडल में दाखिल होगी और भस्म हो जाएगी. लेकिन उसकी वारिस पहले से तैयार हैः नाम है जेम्स वेब. यहां एक थर्मल वैक्यूम चैंबर में उसकी टेस्टिंग चल रही है. उसे इसी साल लॉन्च किया जाएगा. धरती से करीब दस-साढ़े दस लाख किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में उसका ठिकाना होगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Nasa/Chris Gunn
अंतरिक्ष में उकेरी एक मुस्कान
ये भी हबल की नायाब नजर का कमाल है- स्पेस स्माइली! किसने उकेरी अंतरिक्ष में ये मुस्कान? सीधी सी बात है- तिरछे होते प्रकाश यानी अपवर्तन ने ये छटा उभारी है.