ई-बुक को बाजार में आए दशकों हो चुके हैं और तब से छपी हुई किताबों के मर्सिये पढ़े जा रहे हैं, लेकिन आज भी छपी हुई किताबें ज्यादा बिकती हैं. ऐसा क्यों?
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दिल्ली में रहने वाले 34 साल के संकेत शर्मा बताते हैं कि वह महीने की चार-पांच किताबें तो खरीद ही लेते हैं. ए़डवर्टाइजिंग प्रोफेशनल शर्मा ने डीडब्ल्यू से कहा कि कोविड महामारी के दौरान उन्होंने काफी किताबें खरीदीं और महामारी के बाद भी इस संख्या में कमी नहीं आई है. 34 साल के संकेत उस पीढ़ी के पाठक हैं जिन्होंने किंडल पर ई-बुक पढ़ना शुरू किया. लेकिनई-बुकऔर उसके बाद ऑडियो बुक्स आने के बावजूद किताबों का खरीदना कम से कम उनके लिए तो कम नहीं हुआ.
स्टैटिस्टा मार्केट इनसाइट के आंकड़े बताते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक किताबें यानी ई-बुक आज भी छपी हुई किताबों से जीत नहीं पाई हैं. अधिकतर देशों में आज भी छपी हुई किताबों की बिक्री ई-बुक से ज्यादा है. उदाहरण के लिए अमेरिका में पिछले साल लगभग 20 फीसदी आबादी ने कम से कम एक ई-बुक खरीदी. हालांकि छपी हुई किताब खरीदने वालों की संख्या 30 फीसदी रही.
इलेक्ट्रॉनिक किताबों की अवधारणा 1970 के दशक से ही मौजूद रही है, लेकिन 1990 और 2000 के दशक में इनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी. जो ई-बुक रीडर सबसे पहले बाजार में आए थे, उनमें 1992 में आया सोनी डेटा डिस्कमैन शामिल है. हालांकि इसे बहुत ज्यादा लोकप्रियता नहीं मिली. ई-बुक की लोकप्रियता का नया दौर 2007 में शुरू हुआ जब एमेजॉन ने किंडल बाजार में उतारा.
छपी हुईं किताबें ज्यादा बिकीं
चीन ही एक ऐसा देश है जहां ई-बुक, छपी हुई किताबों से ज्यादा बिक रही हैं. स्टैटिस्टा के मुताबिक वहां पिछले साल 24 फीसदी लोगों ने छपी हुई किताब खरीदी जबकि 27 फीसदी लोगों ने ई-बुक खरीदी.
दुनिया के सबसे सुन्दर पुस्तकालय
पुस्तकालयों का इतिहास 4,000 सालों से भी पुराना है. बॉलरूम की तरह दिखने वाले हों या यूएफओ की तरह, दुनिया में तरह तरह के पुस्तकालय हैं. लेकिन ये कैसे भी दिखाई देते हों, किताबों के लिए प्रेम इन्हें एक सूत्र में बांधता है.
तस्वीर: Jan Woitas/ZB/picture alliance
समुदाय के लिए
फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी की सेंट्रल लाइब्रेरी ऊडी डिजाइन पुस्तक प्रेमियों के लिए एक सपने जैसी है. इस चार मंजिला इमारत की शिल्प कला में फिनलैंड की प्राकृतिक दुनिया को रेखांकित किया गया है. बाहरी दीवारों को लकड़ी जैसा रूप दिया गया और इमारत का आकार लहरनुमा बर्फ से ढकी जमीन के जैसा बनाया गया है. इसके अंदर किताबें ही नहीं, सिनेमाघर और सॉना भी है.
तस्वीर: Tuomas Uusheimo
राख से फिर जन्म लेना
जर्मनी के वाइमार की डचेस ऐना अमालिया लाइब्रेरी को 300 सालों से "हरत्सोगलिश बिबलियोथेक" ("द ड्यूकल लाइब्रेरी") कहा जाता था. बाद में एक भीषण आग में इमारत आंशिक रूप से जल गई थी. 1991 में इसे अपना मौजूदा नाम मिला. 24 अक्टूबर, 2007 में इसे फिर से खोल दिया गया. यह तस्वीर उसके मशहूर रोकोको हॉल की है.
तस्वीर: Jan Woitas/ZB/picture alliance
लाइब्रेरी या फुटबॉल का मैदान?
अगर आपके पास स्टूडेंट कार्ड नहीं है तो भी आपको द नीदरलैंड्स के डेल्फ्ट की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के पुस्तकालय जा कर अफसोस नहीं होगा. घास के मैदान जैसी दिखाई देने वाली इसकी ढलान वाली छत इसका सबसे आकर्षक हिस्सा है. इमारत के बीच में से निकलता 42 मीटर ऊंचा एक कोन आपको दूर से ही नजर आ जाएगा. इसमें किताबों से भरी चार मंजिलें हैं.
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ट्यूलिप की लकड़ी और एबनी
पुर्तगाल के कोइम्ब्रा स्थित बिब्लिओतेका जोआनीना में सभी अलमारियां ट्यूलिप की लकड़ी और एबनी से बनी हुई हैं. पुर्तगाल के राजा जॉन पंचम ने इसे बनवाया था, इसलिए इसका नाम उन्हीं के नाम पर है. 2013 में ब्रिटेन के अखबार "द डेली टेलीग्राफ" ने इस लाइब्रेरी को दुनिया के सबसे सुंदर पुस्तकालयों की सूची में शामिल किया किया था.
सिकंदरिया की लाइब्रेरी कभी दुनिया की सबसे मशहूर लाइब्रेरी हुआ करती थी, लेकिन करीब 2,000 साल पहले वो एक आग में नष्ट हो गई. कहा जाता है कि वहां पेपिरस के करीब 4,90,000 रोलों में उस समय की दुनिया का सारा ज्ञान था. उसी परंपरा को जारी रखते हुए 2002 में नया पुस्तकालय खोला गया था. इसे बनाने में 22 करोड़ डॉलर की लागत आई.
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मिस्र के ममियों के बीच
स्विट्जरलैंड के सेंट गॉलेन स्थित सेंट गॉल की ऐबी लाइब्रेरी में रखी चीजों में से कुछ तो 1,300 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं. यहां आने वाले लोग यहां यूरोप का सबसे पुराना बिल्डिंग प्लान और मिस्र की एक ममी भी देख सकते हैं. यह तस्वीर "बुकरसाल" (द बुक हॉल) की है जो 1983 से यूनेस्को की वैश्विक धरोहर सूची में है.
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एक राष्ट्रपति द्वारा बचाया गया पुस्तकालय
जब भी आप वाशिंगटन डीसी में हो तो कांग्रेस की लाइब्रेरी जरूर जाइएगा. इसकी स्थापना सन 1800 में की गई थी लेकिन सिर्फ 14 सालों बाद ही अंग्रेजों ने इसे जला दिया था. बाद में इसके जीर्णोद्धार के लिए अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन ने अपने निजी संग्रहण से करीब 6,500 किताबें बेच कर 24,000 डॉलर की कुल लागत की पूरी रकम जुटाई. तस्वीर मुख्य कक्ष की है जिसे नव-रेनेसां शैली में बनाया गया था.
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डबलिन का लॉन्ग रूम
आयरलैंड की राजधानी डब्लिन की ट्रिनिटी कॉलेज लाइब्रेरी का तीन मंजिला "लॉन्ग रूम" 64 मीटर लंबा और 12 मीटर चौड़ा है. लेकिन यह हमेशा से इतना प्रभावशाली नहीं था. 1858 में इसकी सपाट, प्लास्टर की छत को हटा कर शाहबलूत या ओक के पेड़ की लकड़ी की नई छत बनाई गई.
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एक फिल्मी सितारा
न्यू यॉर्क पब्लिक लाइब्रेरी को तो कई फिल्मों में दिखाया गया है, जिनमें 1933 की "फॉर्टीसेकंड स्ट्रीट" म्यूजिकल, 1961 की "ब्रेकफास्ट ऐट टिफनीज", 1984 की "घोस्टबस्टर्स", 2008 की "सेक्स एंड द सिटी" और 2002 की "स्पाइडर-मैन" शामिल हैं. इसके मुख्य कक्ष को 1911 में खोला गया था और बाद में इसका विस्तार किया गया.
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चीन में हर चीज ही विशाल है
चीन की नेशनल लाइब्रेरी दुनिया के सात सबसे बड़े पुस्तकालयों में से एक है. इसमें तीन करोड़ से ज्यादा किताबें और मीडिया सामग्री है. इसका निर्माण "कैपिटल लाइब्रेरी" के रूप में 1809 में करवाया गया था. 1928 में चीनी गणराज्य की स्थापना के बाद इसे "बीजिंग लाइब्रेरी" नाम दे दिया गया. इसका मौजूदा नाम इसे 1998 में मिला.
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अपनी रिपोर्ट में स्टैटिस्टा ने लिखा है, "पूरी दुनिया में किताबों के बाजार के विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि भले ही ई-बुक्स की लोकप्रियता बढ़ी है लेकिन वे छपी हुई किताबों को खत्म नहीं कर पाएंगी बल्कि उनके पूरक के रूप में मौजूद रहेंगी, जिससे प्रकाशन उद्योग को लाभ पहुंचेगा.”
छपी हुई किताबें खरीदने के मामले में ब्रिटेन के लोग बाकी दुनिया में आगे हैं. वहां लगभग 50 फीसदी आबादी ने पिछले साल कोई ना कोई किताब खरीदी है. इसके मुकाबले ई-बुक खरीदने वालों की संख्या 15 फीसदी रही. स्पेन और जापान में भी 40 फीसदी से ज्यादा लोगों ने छपी हुई किताब खरीदी जबकि ई-बुक खरीदने वालों की संख्या 20 फीसदी से कम रही.
भारत में किताबों का हाल
भारत में छपी हुई किताबें खरीदने वालों की संख्या 25 फीसदी से कुछ ही ज्यादा रही जबकि 10 फीसदी से कम लोगों ने ई-बुक खरीदी. जानकार कहते हैं कि भारत में पढ़ने की आदत दूसरे समाजों के मुकाबले कम है इसलिए बिक्री बहुत ज्यादा नहीं है.
जनता के लिए घर को बना डाला लाइब्रेरी
फिलीपींस के हर्नांडो गुआनलाओ ने अपने घर के दरवाजे जनता के लिए खोल दिए हैं. कोई भी उनके घर पर आ सकता है और हजारों किताबों में से एक चुन सकता है.
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यहां आसानी से मिलती हैं किताबें
हर्नांडो गुआनलाओ के दो मंजिला घर के बाहर एक बोर्ड लगा है, जिसपर लिखा है, "अच्छी किताबें आसानी से मिल जाती हैं." हर्नांडो का घर किताबों को समर्पित है. इस घर में हर तरफ किताबें बिखरी हैं.
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घर भी, लाइब्रेरी भी
हर्नांडो के घर में मौजूद इस लाइब्रेरी का नाम "रीडिंग क्लब 2000" है. आज से 20 साल पहले उन्होंने 50 किताबों के साथ इस लाइब्रेरी की शुरुआत की थी.
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पढ़ाई है जरूरी
हर्नांडो चाहते हैं कि उनकी यह लाइब्रेरी ऐसे छात्रों और जिज्ञासु युवाओं को पढ़ने में मदद करे, जिनके अंदर पढ़ने की क्षमता कम बनी हुई है.
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हजारों किताब
72 साल के हर्नांडो के घर में हजारों किताबें हैं. यहां से एलिमेंट्री बुक्स से लेकर उपन्यास तक, कोई भी किताब मुफ्त में ले जा सकते हैं.
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हजारों किताबों का क्या है रहस्य
हर्नांडो किताबों को बेचते नहीं हैं और न ही वे इसका किराया लेते हैं. कभी उनके पास 50 किताबें हुआ करती थीं, लेकिन अब हजारों हैं. इसके जवाब में वह कहते हैं, "सभी किताबें लोगों से दान के रूप में मिली हैं, उनमें से कुछ ने खुद आकर किताबें पहुंचाईं और कई लोगों ने अपनी पहचान छिपाकर हजारों रुपये की किताबें भेजीं."
तस्वीर: Eloisa Lopez/REUTERS
साहित्य के माध्यम से शिक्षा
फिलीपींस में छात्रों का पढ़ने के प्रति रुझान चिंताजनक रूप से कम हो रहा है. प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट्स असेसमेंट (पीआईएसए) की रिपोर्ट के मुताबिक गणित, विज्ञान और साक्षरता में फिलीपींस के छात्रों का स्कोर दुनिया में सबसे खराब है. हर्नांडो कहते हैं, "मेरा उद्देश्य पुरानी और दान की गई पुस्तकों को मुफ्त में बांटना और साहित्य के माध्यम से शिक्षा के विकास में योगदान देना है." आमिर अंसारी (रॉयटर्स)
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जाने-माने लेखक सुंधाशु गुप्त कहते हैं, "लोग छपी हुई किताबें खरीदते हैं या ई बुक्स, इससे पहले ये सवाल भी जरूरी है कि क्या लोग किताबें खरीदते हैं, और किस समाज में, किस उम्र के लोग?" डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा कि भारत में आज भी शिक्षित लोगों की संख्या बहुत कम है, बावजूद इसके किताबें तो बिकती ही हैं. प्रकाशकों की प्रगति और पुस्तक मेलों में आने वाली भीड़ उनकी इस बात की गवाह है.
गुप्त का कहना है कि जब हम पूरी तरह से शिक्षित समाज की बात करेंगे, जहां लोग (और खासकर युवा) ई बुक्स का सही अर्थ और उपयोग जानते हैं, वे निश्चित रूप से ई बुक्स के प्रति अधिक आकर्षित होंगे. उन्होंने यह भी कहा, "भारतीय समाज में जहां किताबों के प्रति ही आकर्षण खत्म हो रहा है, वहां ई बुक्स यदि कोई खरीद भी रहा है तो वह युवा पीढ़ी ही है. अधेड़ या वृद्ध आज भी छपी हुई किताब के प्रति ही झुकाव रखते हैं. ई बुक्स और छपी हुई किताबों के बीच की दूरी कम करने का कहीं भी कोई जरिया दिखाई नहीं देता."
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पढ़ने का वैज्ञानिक आधार
2023 में एल. एल्टामुरा, सी. वर्गास और एल सैल्मेरोन ने एक शोध पत्र प्रकाशित किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि छपी हुई किताब से किसी बात को समझने की दर ई-बुक के मुकाबले छह से आठ फीसदी ज्यादा होती है. हालांकि बहुत से लोगों ने कहा कि वे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर ज्यादा तेजी से पढ़ पाते हैं लेकिन उन्होंने यह भी माना कि इस तरह पढ़ते हुए सोशल मीडिया, विज्ञापन, नोटिफिकेशन जैसी चीजों के कारण ध्यान ज्यादा बंटता है.
इस अध्ययन में कहा गया कि छपी हुई किताब को पढ़ना डूब जाने वाला अनुभव होता है जिसके कारण पाठकों को सामग्री ज्यादा समझ आती है और वे ज्यादा प्रभावशाली रूप से उसे याद कर पाते हैं.
दिमाग में जो चल रहा है उसे पढ़ सके AI
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किताब उठाकर पढ़ने के फायदों पर पहले भी कई अध्ययन हो चुके हैं. एक शोध के मुताबिक किताब को पकड़ने, उसे पढ़ते वक्त बैठने और पढ़ते हुए सिर व आंखों की गति के रूप में शरीर और मस्तिष्क के लिए पढ़ना एक अलग अनुभव होता है.
2016 में प्रकाशित ‘द इवॉल्यूशन ऑफ रीडिंग' नाम के अपने शोधपत्र में ए. मैंगन और ए. वान डेर वील लिखते हैं, "छपी हुईं किताबें और कागज के कारण पठन सामग्री को एक तरह का ठोस भौतिक स्वरूप मिलता है. ई-बुक को अलग तरह से छुआ जाता है और उन्हें पकड़ने और उनके पन्ने पलटने का अनुभव अलग होता है. टच-स्क्रीन का असर कागज के असर से अलग होता है. न्यूरोसाइंस और मनोवैज्ञानिक शोध कहते हैं कि किसी भी चीज को छूने का अनुभव मस्तिष्क में उसकी छवि बनाने पर असर डालता है."