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एक आइडिया ने बदल दिया ई-स्कूटर बाजार का खेल

२९ मार्च २०२२

कुछ साल पहले जब ई-स्कूटर बाजार में आए थे तो एक मुसीबत भी साथ लाए थे. फिर एक आइडिया आया और मुसीबत ही मौका बन गई. हालांकि अब नई चुनौतियां पैदा हो गई हैं.

यूरोप में तो खूब बढ़ रहा है ई-स्कूटर
यूरोप में तो खूब बढ़ रहा है ई-स्कूटर का प्रयोगतस्वीर: Wolfram Steinberg/picture alliance

कुछ साल पहले जब ई-स्कूटर और ई-बाइक बाजार में आए थे, तो साथ ही एक बड़ी मुसीबत भी आई थी. इन्हें किराये पर देने वाली टियर और डॉट जैसी बड़ी कंपनियों को हर शाम को इन स्कूटरों को ट्रक में भरकर वेयरहाउस ले जाना पड़ता था जहां इन्हें रातभर चार्ज किया जाता और फिर वापस भेजा जाता. यह अपने आप में इतनी बड़ी परेशानी थी कि बैट्री वाले स्कूटरों के जरिए हो रहा सारा फायदा धूल में मिल जाता था.

फिर एक आइडिया आया और ई-स्कूटर और ई-बाइक बाजार में क्रांतिकारी बदलाव हुआ. इन स्कूटरों में ऐसी बैट्री डाली जाने लगी जिसे बदला जा सकता है. यानी चार्ज करने के लिए पूरा स्कूटर उठाकर ले जाने की जरूरत नहीं है. सिर्फ बैट्री निकालकर उसकी जगह चार्ज हो चुकी बैट्री लगा दी जाती है. इससे खर्च और प्रदूषण दोनों घटे हैं.

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इसी आइडिया का नतीजा है कि माइक्रोमोबिलिटी यानी ई-स्कूटरों का बाजार जो कोविड से पहले 2019 में तीन अरब डॉलर यानी करीब पौने दो खरब का ही था, 2025 में उसके बढ़कर 10 अरब डॉलर को पार करने जाने की संभावना जताई जा रही है.

बर्लिन स्थित कंपनी टियर की वाइस प्रेजीडेंट टीनिया मोएलफेंजल कहती हैं, "बदली जा सकने वाली बैट्री ने तो पूरा खेल ही बदल दिया है. अब हमें चार्ज करने के लिए पूरा स्कूटर उठाकर इधर से उधर नहीं ले जाना पड़ता. हम वहीं गली में खड़े खड़े ही इसकी बैट्री बदल सकते हैं.”

कई फायदे हुए हैं

ई-स्कूटर उपलब्ध कराने वाली कंपनियां अब इस बात का भी ज्यादा ध्यान रख पा रही हैं कि वे पेट्रोल या डीजल जैसे जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल ना करें. इसलिए बैट्री बदलने के वास्ते उनके कर्मचारी खुद भी बैट्री से चलने वाली बाइक या वैन का ही प्रयोग कर रहे हैं. इससे सड़कों पर भीड़ बढ़ाने में उनकी भूमिका भी ना के बराबर रहती है.

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लंदन में काम करने वाली कंपनी डॉट के कर्मचारी इलेक्ट्रिक वैन में ही आते-जाते हैं. जेलयो कोलेव ऐसे ही एक कर्मचारी हैं जिनका जिम्मा शहर भर में स्कूटरों की जांच करना है. वह अपनी इलेक्ट्रिक मैक्सी वैन से हर जगह जाते हैं, स्कूटरों के टायरों की हवा जांचते हैं, ठीक होने की तसल्ली करते हैं और बैट्री बदल देते हैं. पूरे काम में उन्हें कुछ सेकंड्स ही लगते हैं.

यूरोप में तो माइक्रोमोबिलिटी के लिए बदली जा सकने वाली बैट्री इतनी अहम हो गई हैं कि कई शहर इनके भरोसे अपने यहां सेवाएं शुरू करना चाह रहे हैं क्योंकि प्रशासन को लगता है कि इससे भीड़ और प्रदूषण दोनों घट सकते हैं.

समस्याएं भी कम नहीं

बेशक, इन ई-स्कूटरों ने कई फायदे पहुंचाए हैं लेकिन अब भी माइक्रोमोबिलिटी की कई समस्याएं हैं. सबसे बड़ी समस्या है कि बदली जा सकने वाली बैट्री की यह तकनीक बहुत कम कंपनियों के पास है और ये कंपनियां अपनी इस खास तकनीक को दूसरी कंपनियों को नहीं देना चाहतीं. क्योंकि ऐसा होने पर आम लोग भी बैट्री बदल पाएंगे और इनका एकाधिकार जाता रहेगा. जबकि जरूरत इस चीज की है कि सभी के लिए ही तरह की बैट्री और चार्जिंग सिस्टम हों ताकि कोई भी बैट्री किसी भी स्कूटर में लग सके और कहीं भी चार्ज की जा सके.

इस तकनीक ने चीजों को बहुत आसान बना दिया है. बैट्री करीब पांच किलो की होती है जबकि इलेक्ट्रिक कार में बैट्री का वजन 500 किलोग्राम तक हो सकता है. टियर की मोएलफेंजल कहती हैं कि कंपनी भी चाहती है कि तकनीक आम हो जाए लेकिन वह इस बात से भी इनकार नहीं करतीं कि किसी भी कंपनी के लिए अपनी खास तकनीक को साझा करना आसान नहीं है और इस पूरी प्रक्रिया में अभी कुछ वक्त लगेगा. वह कहती हैं, "मामला काफी पेचीदा है क्योंकि सवाल ये है कि कहां से शुरू होगा और फिर इसका अंत कहां होगा.”

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ऑस्ट्रेलिया में डिलीवरी के लिए ई-बाइक उपलब्ध कराने वाली कंपनी जूमो की मीना नाडा कहती हैं कि नियमों में वृद्धि करने से सभी के लिए एक जैसी बैट्री बनाने की दिशा में प्रगति होगी, कम से कम चार्जिंग सिस्टम तो एक जैसे किए ही जा सकते हैं. नाडा कहती हैं, "सबके लिए एक ही मानक स्थापित करना तो शायद मुश्किल हो लेकिन मुझे लगता है कि आने वाले समय में स्थिति आज से तो बेहतर हो जाएगी.”

वीके/एए (रॉयटर्स)

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