सर्दियां बढ़ने के साथ ही, अफगानिस्तान में आए भूकंप के बाद बेघर हुए लोगों में निराशा घर कर रही है. राहत के कामों में जुटे लोगों को नहीं लगता कि तालिबान इस संकट से निपटने की काबिलियत रखता है.
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अफगानिस्तान में रात के वक्त ठंड बढ़ रही है. भूकंप के बाद तंबुओं वाला जो कैंप बनाया गया है, उसमें भीड़भाड़ की वजह से छूत की बीमारियां फैलने का जोखिम बढ़ता जा रहा है. इन कैंपों में लोग मानवीय सहायता की आस लगाए बैठे हैं.
मानवीय सहायता से जुड़े मामलों पर काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय का कहना है कि अक्टूबर की शुरुआत में आए भूकंपों की वजह से, हेरात इलाके में 1,54,000 से ज्यादा लोग प्रभावित हैं. स्थानीय मीडिया में छपी खबरें बताती हैं कि इस आपदा में 2,000 से ज्यादा लोग मारे गए और हजारों घायल हो गए.
हेरात विश्वविद्यालय की पूर्व लेक्चरर नीलोफर निक्सेयार, भूकंप के बाद से वॉलंटियर के तौर पर स्थानीय संस्थाओं की मदद करती हैं. नीलोफर ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "घायलों को, जिनमें बहुत सी महिलाएं और बच्चे हैं, उन्हें मेडिकल सहायता की जरूरत है."
नीलोफर ने बताया, "मैं तीन छोटे गांवों में गई थी, जहां बहुत सारे घर पूरी तरह तबाह हो गए थे. आटे और पानी जैसी चीजों की पहली सहायता सामग्री आखिरकार अब पहुंची है. महिलाओं को रोटी सेंकनी होती है और सीमित संसाधनों में परिवारों का पेट भरना है. यहां हर चीज की कमी है. खासकर बच्चों के खाने के लिए बेबी फॉर्मूला, कफ सिरप और सैनेटरी पैड की."
अफगानिस्तान के अभूतपूर्व भूकंप में कई गांव मिट्टी में मिल गए
अफगानिस्तान के भूकंप ने कई गांवों को जमींदोज कर दिया. बहुत से लोग मलबे के नीचे दब गए. पश्चिमी हेरात प्रांत के 13 गांवों के 1300 से ज्यादा घर मलबे में बदल गए. कम से कम 2000 लोगों की मौत हुई.
तस्वीर: Mashal/dpa/XinHua/picture alliance
मलबे में बदल गई बस्तियां
रिक्टर पैमाने पर 6.3 की तीव्रता वाले भूकंप और फिर 8 आफ्टरशॉक ने धूल भरे पठारी इलाके को झकझोर कर रख दिया. भूकंप के बाद अब तो जिधर नजर दौड़ाइए सिर्फ मलबा ही नजर आता है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 11 गांवों में तो एक भी घर सलामत नहीं बचा. सैकड़ों लोग अब भी मलबे के नीचे दबे हैं.
तस्वीर: Omid Haqjoo/AP/dpa/picture alliance
राहत और बचाव
भूकंप के बाद पीड़ितों को बचाने के लिए राहत अभियान शुरू किए गए हैं. युद्ध की मार से बेहाल देश का बुनियादी ढांचा पहले से ही गरीबी और बदहाली की चपेट में है. बड़ी संख्या में लोग घायल हैं उनके इलाज में खासी दिक्कतें पेश आ रही हैं. सत्ता में तालिबान की वापसी के बाद अंतरराष्ट्रीय मदद में भी काफी कमी आई है.
राहतकर्मियों की दर्जन भर टीमें मलबे से जिंदा लोगों की तलाश कर रही हैं. संयुक्त राष्ट्र ने डॉक्टर सहित चार एंबुलेंस भी मुहैया कराए हैं जो घायलों को मदद पहुंचा रही हैं. क्षेत्रीय अस्पतालों में संयुक्त राष्ट्र की तरफ से काउंसलर और दूसरे लोग भी मदद के लिए भेजे गए हैं.
तस्वीर: Muhammad Balabuluki/Middle East Images/AFP/Getty Images
अंतरराष्ट्रीय मदद
संकट की इस घड़ी में अंतरराष्ट्रीय मदद भी पहुंच रही है. खाना, पानी, टेंट और मृत लोगों के लिए ताबूत भेजे गए हैं. अंतरराष्ट्रीय अलगाव झेल रहे अफगानिस्तान तक मदद पहुंचने में देर लगी, शुरुआत में कई घंटों तक यहां मदद के लिए कोई नहीं था. फिर चीन और पाकिस्तान से मदद आई. मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से गुहार लगाई गई है.
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बिखरी जिंदगी
जहां कभी घर थे वहां अब मलबा है. लोग मलबे से जो कुछ सामान सही सलामत बचा है उसे बाहर निकाल रहे हैं. कहीं बर्तन और बैकपैक दिख रहे हैं तो कहीं गैस चूल्हे टूथब्रश जैसी छोटी मोटी चीजें. इन सब के बीच बच्चे इधर उधर घूम रहे हैं.
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अंतिम संस्कार की दिक्कत
एक झटके में 2000 लोगों की मौत की वजह से उनके अंतिम संस्कार में भी काफी दिक्कत आ रही है क्योंकि पूरा गांव ही ढह गया है. कई जगह तो लोग हाथों से गड्ढे खोद कर मृतकों को दफना रहे हैं.
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घायलों के इलाज की मुश्किल
अफगानिस्तान में अस्पतालों की हालत भी अच्छी नहीं है, ऐसे में घायलों के इलाज में भी काफी दिक्कत आ रही है. इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी ने चेतावनी दी है कि अगर जरूरी उपाय नहीं किए गए तो घायलों को संभालना मुश्किल हो जाएगा और मरने वालों की तादाद काफी ज्यादा बढ़ जाएगी.
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बेघर लोगों की परेशानी
पूरे के पूरे गांव ढह गए हैं ऐसे में जिंदा बचे लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या आवास की है. इसके अलावा जिन लोगों के घर बचे हैं वो उनमें डर की वजह से सोना नहीं चाहते. ऐसे में पार्कों, मैदानों और यहां तक कि सड़कों पर लोग खुले में सोने को मजबूर हैं. यहां इन दिनों रात में तापमान गिर कर 10 डिग्री तक चला जाता है.
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भूकंप का केंद्र
भूकंप का केंद्र पश्चिमी हेरात के उत्तर पश्चिम में करीब 40 किलोमीटर दूर था. भूकंप के बाद आफ्टरशॉक की तीव्रता भी रिक्टर पैमाने पर 6.3, 5.9 और 5.5 तक मापी गई है.
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अफगानिस्तान में भूकंप
अफगानिस्तान में बीते साल जून में भी भूकंप आया था और तब इसकी चपेट में पहाड़ी इलाके थे. उस दौरान करीब 1000 लोगों की मौत हुई थी. इस बार का भूकंप बीते कई दशकों में सबसे भयानक है.
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हालात बिगड़ने की चेतावनी
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के शुरुआती मूल्यांकन में पता चला कि इस आपदा में 40 से ज्यादा स्वास्थ्य केंद्र ध्वस्तहो गए और बाकियों के ढहने का संकट लगातार बना हुआ है, जिससे मरीजों की देखभाल मुश्किल है. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अफगानिस्तान के 1,14,000 लोगों को तुरंत मेडिकल सहायता की जरूरत है. इसमें से 7,500 गर्भवती महिलाएं हैं. इनमें से कईं औरतों के परिवार वाले हादसे में मारे गए.
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महिलाओं की मदद कर रही एक शिक्षिका और राहतकर्मी लीना हैदरी ने कहा, "भूकंप के वक्त बहुत सारी महिलाएं घर पर थीं, जबकि पुरुष खेतों में या जानवरों की देखभाल के लिए बाहर गए थे." संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, भूकंप के प्रभावितों में 90 फीसदी महिलाएं और बच्चे हैं. हैदरी कहती हैं कि जो घायल हैं, वे गहरे सदमे में भी हैं और अब भी उनके भीतर डर है.
यूनिसेफ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने चेतावनी दी है कि हालात बिगड़ रहे हैं. खासकर सर्दियां आने के साथ. अफगानिस्तान में यूनिसेफ की प्रतिनिधि फ्रान इक्विजा ने पिछले हफ्ते जारी एक बयान में कहा, "हम पश्चिमी अफगानिस्तान में प्रभावित 96,000 बच्चों की मदद के लिए अतिरिक्त फंडिंग की अपील कर रहे हैं." यूनिसेफ ने अब तक 80 टन से ज्यादा की सहायता सामग्री काबुल के प्रभावित इलाकों में बांटी है.
क्या तालिबान कर सकता है संकट का सामना?
तालिबान के सदस्य और प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने डीडब्ल्यू से बातचीत में बताया कि तालिबान ने सहायता देने के लिए एक कमिशन गठित किया है, ताकि सभी को बराबरी से मदद दी जा सके. इस कमिशन की जिम्मेदारी है कि मदद बांटने में भ्रष्टाचार न हो और हर जरूरतमंद तक सहायता पहुंचे.
हालांकि, अफगानिस्तान के भीतर और बाहर मदद में लगे कार्यकर्ताओं को शक है कि इस्लामिक कट्टरपंथी गुट तालिबान इस संकट का सामनाकरने में सक्षम है. देश से बाहर रहने वाले अफगान नागरिक अपने संबंधियों और दोस्तों की मदद करना चाहते हैं, लेकिन सहायता पहुंचाने के सही रास्ते पता लगाना बेहद मुश्किल है.
लंदन में रहने वाली अफगानी पत्रकार जाहरा जोया ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "यह जरूरी है कि हम जमीनी तौर पर लोगों की मदद के रास्ते ढूंढें." जाहरा, रुखशाना मीडिया की फाउंडर और एडिटर इन चीफ हैं, जो अफगानिस्तानी महिलाओं और बच्चों की जिंदगी पर रिपोर्ट करने वाली एजेंसी है.
जाहरा कहती हैं, "महिलाएं और बच्चों को खासतौर पर हमारी मदद की जरूरत है. हम उनके लिए सपोर्ट ग्रुप बनाने और उन्हें सहायता दिलाने की कोशिश में लगे हैं."वह बताती हैं कि पैसे सीधे ट्रांसफर करना मुमकिन नहीं है. अगस्त 2021 में जब से तालिबान ने सत्ता अपने हाथ में ली है, आर्थिक स्थिति बुरी तरह बिगड़ी है. तालिबान के राज में मानवाधिकार हनन के चलते न सिर्फ अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, बल्कि देश को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन की व्यवस्था, स्विफ्ट से भी बाहर कर दिया गया है.
पहले लोगों के लिए संभव था कि वह करेंसी एक्सचेंज करने वाली सेवाओं का इस्तेमाल करके नकदी जमा कर देते और अफगानिस्तान में उनके बिजनेस पार्टनर नकद पैसे चुका देते. यह एक अनौपचारिक व्यवस्था थी, जिसमें केवल एक फोन कनेक्शन और आपसी भरोसे पर काम चलता था. लेकिन अब यह नहीं हो सकता. एक सूत्र के मुताबिक, "अफगानिस्तान में नकदी की कमी है." लोगों के पास तालिबान की मदद पर निर्भर रहने के अलावा अब कोई और विकल्प नजर भी नहीं आता.
गर्भवती अफगान महिलाओं की उम्मीदें टिकी हैं इन दाइयों पर
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अफगानिस्तान में हर दो घंटों में प्रसूति के दौरान एक महिला की मौत हो जाती है. ऐसे में दाइयों के प्रशिक्षण के लिए शुरू किया एक पायलट प्रोजेक्ट अफगान महिलाओं को उम्मीद दे रहा है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
प्रसूति वार्ड को देखना, समझना
बामियान के एक अस्पताल में प्रशिक्षु दाइयां विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में प्रसूति के समय गर्भवती महिलाओं का और नवजात बच्चों का ध्यान रखना सीख रही हैं. इस कार्यक्रम की शुरुआत शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने स्थानीय संगठन वतन सोशल एंड टेक्निकल सर्विसेज एसोसिएशन के साथ मिल की है.
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प्रसव का इंतजार
2021 में सत्ता फिर से हासिल करने के बाद तालिबान ने महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से दूर कर दिया है. स्वास्थ्य क्षेत्र एकमात्र अपवाद है. बामियान के इस अस्पताल में जिन 40 महिलाओं को इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत प्रशिक्षण दिया जा रहा है वो बाद में अपने अपने गांवों में गर्भवती महिलाओं का ध्यान रखेंगी.
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महिलाएं ही शिक्षक, महिलाएं ही छात्र
सभी प्रशिक्षु महिलाएं हर सबक को एकाग्रता और प्रेरणा के साथ सीख रही हैं. एक 23 वर्षीय छात्रा कहती हैं, "मैं सीखना और फिर अपने गांव के लोगों की मदद करना चाहती हूं." इस मदद की जरूरत भी है: अफगानिस्तान में करीब छह प्रतिशत नवजात बच्चों की पांच साल की उम्र तक पहुंचने से पहले ही मौत हो जाती है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
तजुर्बा भी जरूरी है
रोज के प्रशिक्षण का एक हिस्सा है गर्भवती महिलाओं का रक्तचाप मापना. प्रशिक्षुओं में से कुछ महिलाएं खुद मां हैं और गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं के बारे में जानती हैं. उनमें से एक ने बताया, "शुरू में तो मैं नर्स या दाई नहीं बनना चाहती थी." लेकिन उन्होंने बताया कि खुद गर्भवती होने के समय उन्हें जो अनुभव हुए उनकी वजह से उनकी राय बदल गई.
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एक बार शीशे में देख लेना
20 साल की एक प्रशिक्षु शिफ्ट शुरू होने से पहले आईने में देख कर अपना हिजाब और मास्क ठीक कर रही हैं. प्रशिक्षण के लिए वो इतनी प्रतिबद्ध हैं कि वो अस्पताल पहुंचने के लिए दो घंटे पैदल चल कर आती हैं.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
जहां मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है
प्रशिक्षण के बाद ये दाइयां दूर दराज के गांवों में महिलाओं की मदद करेंगी. ऐसे स्थानों पर अक्सर लोगों को स्वास्थ्य सेवायें नहीं मिल पाती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अफगानिस्तान की मातृत्व मृत्यु दर दुनिया की सबसे ऊंची दरों में से है. वहां करीब तीन प्रतिशत महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान या उसकी वजह से मौत हो जाती है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
बेटे की मौत का दुख
स्वास्थ्य सेवाओं की कमी की वजह से 35 साल की अजीजा रहीमी ने अपना बेटा खो दिया. उन्होंने बताया, "करीब दो घंटों तक मेरा खून बहता रहा और मेरे पति को एम्बुलेंस नहीं मिली." उन्हें अपने बेटे को अपने घर पर बिना किसी मदद के जन्म देना पड़ा लेकिन उसकी जन्म के थोड़ी देर बाद ही मौत हो गई. वो कहती हैं, "मैंने अपने बच्चे को अपने पेट में नौ महीनों तक रखा और फिर उसे खो दिया, ये बेहद दुखदाई है."
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
अफगान महिलाओं के लिए जानकारी की कमी
बामियान के अस्पताल में इलाज का इंतजार कर रहीं कई महिलाओं के पास गर्भावस्था, प्रसव या परिवार नियोजन के बार में कोई जानकारी नहीं है. यहां जन्म दर भी प्रांत के औसत से ज्यादा है. आंकड़े कहते हैं कि यहां एक महिला औसत 4.64 बच्चों को जन्म देती है. पड़ोसी देश ईरान में यह दर 1.69 है. (फिलिप बोल)