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आपदाअफगानिस्तान

भूकंप के बाद अफगानिस्तान में औरतें और बच्चे बेहाल

३० अक्टूबर २०२३

सर्दियां बढ़ने के साथ ही, अफगानिस्तान में आए भूकंप के बाद बेघर हुए लोगों में निराशा घर कर रही है. राहत के कामों में जुटे लोगों को नहीं लगता कि तालिबान इस संकट से निपटने की काबिलियत रखता है.

अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में तंबुओं वाला कैंप
सर्दी बढ़ने के साथ ही तंबुओं वाले कैंपों में छूत की बीमारियों के फैलने का डर सताने लगा हैतस्वीर: Mohsen Karimi/AFP

अफगानिस्तान में रात के वक्त ठंड बढ़ रही है. भूकंप के बाद तंबुओं वाला जो कैंप बनाया गया है, उसमें भीड़भाड़ की वजह से छूत की बीमारियां फैलने का जोखिम बढ़ता जा रहा है. इन कैंपों में लोग मानवीय सहायता की आस लगाए बैठे हैं.

मानवीय सहायता से जुड़े मामलों पर काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय का कहना है कि अक्टूबर की शुरुआत में आए भूकंपों की वजह से, हेरात इलाके में 1,54,000 से ज्यादा लोग प्रभावित हैं. स्थानीय मीडिया में छपी खबरें बताती हैं कि इस आपदा में 2,000 से ज्यादा लोग मारे गए और हजारों घायल हो गए.

हेरात विश्वविद्यालय की पूर्व लेक्चरर नीलोफर निक्सेयार, भूकंप के बाद से वॉलंटियर के तौर पर स्थानीय संस्थाओं की मदद करती हैं. नीलोफर ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "घायलों को, जिनमें बहुत सी महिलाएं और बच्चे हैं, उन्हें मेडिकल सहायता की जरूरत है."

नीलोफर ने बताया, "मैं तीन छोटे गांवों में गई थी, जहां बहुत सारे घर पूरी तरह तबाह हो गए थे. आटे और पानी जैसी चीजों की पहली सहायता सामग्री आखिरकार अब पहुंची है. महिलाओं को रोटी सेंकनी होती है और सीमित संसाधनों में परिवारों का पेट भरना है. यहां हर चीज की कमी है. खासकर बच्चों के खाने के लिए बेबी फॉर्मूला, कफ सिरप और सैनेटरी पैड की."

हालात बिगड़ने की चेतावनी

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के शुरुआती मूल्यांकन में पता चला कि इस आपदा में 40 से ज्यादा स्वास्थ्य केंद्र ध्वस्तहो गए और बाकियों के ढहने का संकट लगातार बना हुआ है, जिससे मरीजों की देखभाल मुश्किल है. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अफगानिस्तान के 1,14,000 लोगों को तुरंत मेडिकल सहायता की जरूरत है. इसमें से 7,500 गर्भवती महिलाएं हैं. इनमें से कईं औरतों के परिवार वाले हादसे में मारे गए.

महिलाओं की मदद कर रही एक शिक्षिका और राहतकर्मी लीना हैदरी ने कहा, "भूकंप के वक्त बहुत सारी महिलाएं घर पर थीं, जबकि पुरुष खेतों में या जानवरों की देखभाल के लिए बाहर गए थे." संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, भूकंप के प्रभावितों में 90 फीसदी महिलाएं और बच्चे हैं. हैदरी कहती हैं कि जो घायल हैं, वे गहरे सदमे में भी हैं और अब भी उनके भीतर डर है.

यूनिसेफ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने चेतावनी दी है कि हालात बिगड़ रहे हैं. खासकर सर्दियां आने के साथ. अफगानिस्तान में यूनिसेफ की प्रतिनिधि फ्रान इक्विजा ने पिछले हफ्ते जारी एक बयान में कहा, "हम पश्चिमी अफगानिस्तान में प्रभावित 96,000 बच्चों की मदद के लिए अतिरिक्त फंडिंग की अपील कर रहे हैं." यूनिसेफ ने अब तक 80 टन से ज्यादा की सहायता सामग्री काबुल के प्रभावित इलाकों में बांटी है.

पश्चिमी अफगानिस्तान में जब भूकंप से प्रभावित होने वालों में 90 फीसदी महिलाएं हैंतस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP/picture alliance

क्या तालिबान कर सकता है संकट का सामना?

तालिबान के सदस्य और प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने डीडब्ल्यू से बातचीत में बताया कि तालिबान ने सहायता देने के लिए एक कमिशन गठित किया है, ताकि सभी को बराबरी से मदद दी जा सके. इस कमिशन की जिम्मेदारी है कि मदद बांटने में भ्रष्टाचार न हो और हर जरूरतमंद तक सहायता पहुंचे.

हालांकि, अफगानिस्तान के भीतर और बाहर मदद में लगे कार्यकर्ताओं को शक है कि इस्लामिक कट्टरपंथी गुट तालिबान इस संकट का सामनाकरने में सक्षम है. देश से बाहर रहने वाले अफगान नागरिक अपने संबंधियों और दोस्तों की मदद करना चाहते हैं, लेकिन सहायता पहुंचाने के सही रास्ते पता लगाना बेहद मुश्किल है.

लंदन में रहने वाली अफगानी पत्रकार जाहरा जोया ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "यह जरूरी है कि हम जमीनी तौर पर लोगों की मदद के रास्ते ढूंढें." जाहरा, रुखशाना मीडिया की फाउंडर और एडिटर इन चीफ हैं, जो अफगानिस्तानी महिलाओं और बच्चों की जिंदगी पर रिपोर्ट करने वाली एजेंसी है.

जाहरा कहती हैं, "महिलाएं और बच्चों को खासतौर पर हमारी मदद की जरूरत है. हम उनके लिए सपोर्ट ग्रुप बनाने और उन्हें सहायता दिलाने की कोशिश में लगे हैं." वह बताती हैं कि पैसे सीधे ट्रांसफर करना मुमकिन नहीं है. अगस्त 2021 में जब से तालिबान ने सत्ता अपने हाथ में ली है, आर्थिक स्थिति बुरी तरह बिगड़ी है. तालिबान के राज में मानवाधिकार हनन के चलते न सिर्फ अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, बल्कि देश को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन की व्यवस्था, स्विफ्ट से भी बाहर कर दिया गया है.

पहले लोगों के लिए संभव था कि वह करेंसी एक्सचेंज करने वाली सेवाओं का इस्तेमाल करके नकदी जमा कर देते और अफगानिस्तान में उनके बिजनेस पार्टनर नकद पैसे चुका देते. यह एक अनौपचारिक व्यवस्था थी, जिसमें केवल एक फोन कनेक्शन और आपसी भरोसे पर काम चलता था. लेकिन अब यह नहीं हो सकता. एक सूत्र के मुताबिक, "अफगानिस्तान में नकदी की कमी है." लोगों के पास तालिबान की मदद पर निर्भर रहने के अलावा अब कोई और विकल्प नजर भी नहीं आता.

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