इटली की एक अदालत ने फैसला किया है कि 1943 में नाजी हिंसा में मारे गए लोगों के परिवारों को 13 मिलियन डॉलर यानी 1 करोड़ तीस लाख डॉलर का मुआवजा मिलेगा.
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अक्तबूर 1943 में नाजी सैनिकों ने इटली पर धावा बोला. सैन्य कार्रवाई के दौरान जर्मन सैनिकों ने इटली के फोरनेली में छह इतालवी नागरिकों को मार डाला. इसकी कथित वजह थी कि इतालवी नागरिकों ने खाने की तलाश में गए एक जर्मन सैनिक को मार डाला था.
अस्सी साल बाद, उन इतालवी लोगों के परिवारजनों को मुआवजे में लाखों रुपए अदा करने का फैसला आया है. कोर्ट ने कहा है कि यह फैसला उनके परिवारों को मिले दर्द की भरपाई है.
उस हत्याकांड में मरने वाले एक व्यक्ति डॉमिनिको लांचेलौटा के पर-पोते मौरा पेट्रार्चा ने कहा, "हम हर साल उस घटना को याद करते हैं. उसे भुलाया नहीं गया है. डॉमिनिको के परिवार में सिर्फ मौरा को छोड़कर कोई भी जिंदा नहीं बचा है."
जर्मनी नहीं इटली देगा पैसे
यह एक अहम बात है कि नाजी हिंसा के शिकार लोगों को पैसे देने की जिम्मेदारी जर्मनी के बजाए इटली की है. दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुई हिंसा और अपराधों के लिए मुआवजे की जिम्मेदारी जर्मनी की है या नहीं, इस मामले की सुनवाई इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में हुई थी.इटली यह केस हार गया था.
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इटली की यहूदी संस्थाओं का मानना है कि जर्मनी को अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी लेते हुए पैसे देने चाहिए. हालांकि एक विचार यह भी है कि इस तरह का फैसला इटली में मुआवजे की मांग करने वालों की बाढ़ ला देगा.
जर्मनीजर्मनी की सरकार ने 2016 में एक शोध प्रकाशित किया जिसमें यह बताया गया कि 22,000 इतालवी नागरिक नाजी हिंसा के शिकार हुए. इसमें वह 8,000 यहूदी भी शामिल हैं जिन्हें कॉन्सन्ट्रेशन कैंप भेजा गया. इसके अलावा इटली के हजारों नागरिकों को जर्मनी में मजदूरी करने के लिए जबरन लाया गया. यह सभी मुआवजे के हकदार हैं.
वो बहादुर लोग जिन्होंने हिटलर को रोकने की कोशिश की
जर्मनी के इतिहास में कुछ ऐसे लोगों के नाम भी दर्ज हैं जिन्होंने नाजियों से लड़ने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी. बर्लिन के जर्मन रेजिस्टेंस मेमोरियल सेंटर में ऐसे लोगों की यादों को संजो कर रखा गया है.
तस्वीर: Votava/brandstaetter/picture alliance
हिटलर की हत्या की कोशिश, जुलाई 20, 1944
75 साल पहले अडोल्फ हिटलर के मुख्यालय 'वूल्फ्स लेयर' में एक बम फटा. धमाका करने वालों का इरादा हिटलर की हत्या कर देने का था, लेकिन वो कोशिश नाकाम रही और हिटलर बच गया. उसके कुछ ही दिनों के अंदर उस हमले में शामिल रेजिस्टेंस लड़ाकों को ढूंढ लिया गया और खत्म कर दिया गया.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images
इस कोशिश के पीछे कौन था
क्लाउस ग्राफ शेंक फॉन श्टाउफेन्बर्ग ने इस कोशिश में अग्रणी भूमिका निभाई थी. वो हिटलर की सेना वेयरमाख्ट के ही अधिकारी थे जिन्हें 1942 में ही अहसास हो गया था कि जर्मनी द्वितीय विश्व युद्ध नहीं जीत पाएगा. जर्मनी की बर्बाद तय लग रही थी लेकिन ऐसा होने से रोकने के लिए श्टाउफेन्बर्ग और वेयरमाख्ट के अन्य अधिकारियों ने हिटलर का तख्तापलट करने की ठान ली.
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क्रेसाउ सर्कल
क्रेसाउ सर्कल का लक्ष्य था जर्मनी में मूलभूत राजनीतिक सुधार. हेल्मुट जेम्स ग्राफ फॉन मोल्टके और पीटर ग्राफ यॉर्क फॉन वारटेनबर्ग इस आंदोलन के पीछे के मुख्य चेहरे थे. सर्कल के कुछ सदस्य 1944 में 20 जुलाई की योजना में शामिल हो गए. हत्या की कोशिश विफल होने के बाद उन पर मुकदमा चलाया गया और मौत की सजा दी गई.
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हान्स और सोफी शोल
1942 से ही हान्स और सोफी शोल नामक भाई-बहन की जोड़ी के नेतृत्व में म्यूनिख के कुछ छात्रों ने नाजियों का विरोध करने की कोशिश की. खुद को 'द व्हाइट रोज' कहने वाले इस समूह ने नाजी शासन के अपराधों की निंदा करने वाले हजारों पर्चे बांटे. फरवरी 1943 में खुफिया नाजी पुलिस गेस्तापो ने उन्हें पकड़ लिया और मौत की सजा दे दी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
जॉर्ज एल्सर
1939 में बढ़ई जॉर्ज एल्सर ने म्यूनिख बुर्गरब्राऊ ब्रूअरी में हिटलर के भाषण-मंच के पीछे ही विस्फोटक लगा दिए थे. बम तय समय पर फटा जरूर लेकिन हिटलर बच गया, क्योंकि वह उम्मीद से छोटा भाषण दे कर हॉल से जा चुका था. धमाके में सात लोग मारे गए और 60 घायल हो गए. एल्सर को उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया और दखाऊ कंसंट्रेशन कैंप ले जाया गया. 1945 में उसकी वहीं मृत्यु हो गई.
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नेत्रहीन लोगों के लिए वर्कशॉप
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्लिन में रहने वाले व्यवसायी ऑटो वीट ने मुख्य रूप से दृष्टिहीन और बधिर यहूदियों को नौकरी पर रखा हुआ था. चूंकि उसके व्यवसाय को "महत्वपूर्ण डिफेंस व्यवसाय" माना जाता था, नाजी उसे बंद नहीं कर सकते थे. वीट ने पूरे युद्ध के दौरान अपने यहूदी कर्मचारियों का ख्याल रखा और उन्हें निर्वासन से भी बचाया.
तस्वीर: Gedenkstätte Deutscher Widerstand
कलाकारों और बुद्धिजीवियों की कोशिशें
कई कलाकार और बुद्धिजीवी तो 1933 में हिटलर के सत्ता में आते ही उसके शासन के खिलाफ हो गए थे. कई तो देश छोड़ कर चले गए लेकिन बर्लिन के एक कैबरे समूह 'काटाकॉम्बे' ने खुलेआम शासन की आलोचना की. 1935 में गेस्तापो ने समूह को बंद कर दिया और उसके संस्थापक वेर्नर फिंक को एस्टरवेगन कंसंट्रेशन कैंप में बंद कर दिया.
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'डाई स्विंग यूथ'
'द स्विंग यूथ' अमेरिकी-अंग्रेजी जीने के ढंग को कहा जाता था. स्विंग संगीत और डांस को इसका प्रतिनिधि माना जाता था, जो नाजी शासन और 'द हिटलर यूथ' के ठीक विपरीत था. अगस्त 1941 में स्विंग यूथ के कई लोगों को गिरफ्तार किया, विशेष रूप से हैम्बर्ग में. उनमें से कइयों को या तो हिरासत में ले लिया गया या युवाओं के लिए विशेष कंसंट्रेशन कैंपों में भेज दिया गया.
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रेड ऑर्केस्ट्रा रेजिस्टेंस समूह
'रोटे कपेल' नाम का रेजिस्टेंस समूह हारो शुल्ज-बॉयसन और आर्विड हारनैक के नेतृत्व में नाजियों के अपराधों को दर्ज करने में यहूदियों की मदद करना और पर्चे बांटने का काम करता था. 1942 में समूह के 120 से भी ज्यादा सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया. उनमें से 50 से भी ज्यादा को मौत की सजा दे दी गई.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images
जर्मन रेजिस्टेंस मेमोरियल केंद्र
19 जुलाई, 1953 को बर्लिन की बेंडलरब्लॉक बिल्डिंग में जर्मन रेजिस्टेंस मेमोरियल केंद्र का उद्घाटन किया गया. यह वही जगह थी जहां हिटलर की हत्या की योजना के असफल हो जाने के बाद श्टाउफेन्बर्ग को मौत की सजा दे दी गई थी. यह मेमोरियल उन सभी बहादुर पुरुषों और महिलाओं को श्रद्धांजलि देता है जिन्होंने हिटलर के शासन के आगे खड़े होने की हिम्मत दिखाई. (डीडब्ल्यू ट्रैवेल)
तस्वीर: picture-alliance/akg-images
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फोरनेली की घटना
सरकार ने हिंसा के शिकार हुए लोगों को मुआवजा देने के लिए जो नया फंड बनाया है, उसकी मदद सबसे पहले फोरनेली में जान गंवाने वाले छह कैथोलिक नागरिकों के परिवार वालों को मिलेगी. इस घटना को अंजाम देते वक्त जर्मन सैनिक ग्रामोफोन पर संगीत बजा रहे थे जिसे उन्होंने पड़ोस के घर से उठाया था.
1962 में जर्मनी ने इटली के साथ एक करार किया जिसका मकसद इटली में नाजी हिंसा की भरपाई के लिए पैसे चुकाना था. इसमें 40 मिलियन डॉयच मार्क यानी आज के करीब 1 अरब यूरो दिए गए. इटली ने राजनैतिक और जातीय हिंसा से पीड़ित लोगों के रिश्तेदारों को पेंशन दी लेकिन युद्ध अपराधों के लिए किसी तरह का मुआवजा देने का फैसला नहीं हुआ था.
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि 2015 में जब फोरनेली घटना वाला केस खुला तो इसमें जर्मनी और इटली दोनों की जिम्मेदारी बताई गई.
जर्मनी इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में पहले ही इससे हाथ खींच चुका था और इटली ने भी इसे दबाने की कोशिश की लेकिन एक के बाद एक कई मामले अदालतों में पहुंचने लगे तो सरकार को 2022 में एक फंड बनाना पड़ा ताकि मुआवजे की मांगों का निपटारा हो सके.
एसबी/सीके (एएफपी)
बेन फेरेंज: नाजी अपराधियों को सजा दिलाने वाला आखिरी वकील
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद न्यूरेमबर्ग ट्रायल में नाजी अपराधियों को सजा दिलाने वाले आखिरी अभियोजक बेन फेरेंज का निधन हो गया है. फेरेंज ने 10 लाख से भी ज्यादा लोगों की हत्या के दोषी 22 नाजी अधिकारियों को सजा दिलाई थी.
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103 साल की उम्र में निधन
बेन फेरेंज का सात अप्रैल 2023 को 103 साल की उम्र में अमेरिका के फ्लोरिडा में निधन हो गया. वो मशहूर न्यूरेमबर्ग ट्रायल के मुख्य अभियोजकों में से एक थे और उन मुकदमों से जुड़े आखिरी बचे अभियोजक थे.
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27 साल की उम्र में बड़ा काम
फेरेंज का जन्म यूरोप के ट्रांसिल्वेनिया में 1920 में एक ऑर्थोडॉक्स यहूदी परिवार में हुआ था. उनके बचपन में ही उनके माता-पिता उन्हें लेकर अमेरिका चले गए थे. वो न्यूयॉर्क में पले बढ़े और बाद में हॉरवर्ड लॉ स्कूल से वकालत की. जब उन्होंने नाजी युद्ध अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाया तब उनकी उम्र मात्र 27 साल की थी.
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न्यूरेमबर्ग मुकदमा
न्यूरेमबर्ग मुकदमा नवंबर 1945 में शुरू हुआ था. इनमें सजा पाने वाले अपराधियों में हिटलर के बाद नाजी जर्मनी के डिप्टी नेता रुडोल्फ हेस और नाजी जर्मनी की वायु सेना के प्रमुख हरमन गोरिंग शामिल थे. मुकदमा करीब एक साल चला और उसके तहत 12 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई.
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अतिरिक्त मुकदमे
अमेरिका के होलोकॉस्ट संग्रहालय ने फेरेंज को "जेनोसाइड और संबंधित अपराधों के पीड़ितों को न्याय दिलाने की कोशिशों में एक नेता" कहा है. 1946 से 1949 के बीच मुख्य मुकदमे के बाद 12 "सबसीक्वेंट न्यूरेमबर्ग ट्रायल्स" हुए. इनमें खूनी नाजी अर्धसैनिक दस्ते "एसएस" के कमांडरों के खिलाफ चलाए गए एक मुदमे के मुख्य अभियोजक फेरेंज थे.
तस्वीर: akg-images/picture alliance
22 नाजी अधिकारियों को दिलाई सजा
फेरेंज ने मानवता के खिलाफ अपराध और युद्ध अपराध के आरोपी जर्मनी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाया था. इनमें नाजी जर्मनी के खूनी अर्धसैनिक बल एसएस के चार कमांडर भी शामिल थे. ये कमांडर लगभग रोज ही नाजियों द्वारा कब्जा किए गए इलाकों में मासूम महिलाओं, बच्चों और पुरुषों को मारते थे.
इस मुकदमे में सुनवाई के बाद ऐसे 20 नाजी अधिकारियों को 10 लाख से भी ज्यादा लोगों की हत्या के लिए युद्ध अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध आदि आरोपों का दोषी पाया गया. इनमें से चार को मृत्युदंड दिया गया. इन 20 के अलावा दो और अधिकारियों को थोड़े और हल्के अपराधों के लिए सजा दी गई. (डीपीए/एएफपी)