भारत में चुनाव लड़ने की उम्र कम करने को लेकर जारी बहस के बीच चुनाव आयोग ने कहा है कि वह वोट डालने और चुनाव लड़ने की उम्र समान करने को लेकर सहमत नहीं है.
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भारतीय चुनाव आयोग इस बात पर सहमत नहीं है कि चुनाव लड़ने और वोट डालने की उम्र एक कर दी जाए. भारतीय मीडिया में आईं रिपोर्टों के मुताबिक चुनाव आयोग ने भारतीय संसद की एक समिति के आगे कहा है कि वह लोक सभा, राज्य सभा, विधान सभाओं और विधान परिषदों के चुनाव लड़ने के लिए आयु सीमा घटाकर 18 साल करने पर सहमत नहीं है. भारत में वोट डालने की मौजूदा उम्र 18 वर्ष है.
चुनाव आयोग की टीम ने कानून और न्याय मामलों की स्थायी समिति के समक्ष यह बात कही है. स्थायी समिति जानना चाहती थी कि लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव लड़ने के लिए आयु सीमा को 25 से घटाकर 21 किया जा सकता है या नहीं. ऊपरी सदनों के चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 30 वर्ष है, जिसे घटाकर 25 करने पर चर्चा हो रही है.
स्थायी समिति के समक्ष चुनाव आयोग ने कहा कि यह महसूस किया गया कि राजनीति और कानून बनाने की बारीकियों को समझने के लिए किसी भी व्यक्ति में एक निश्चित परिपक्वता होनी चाहिए. यही सोचकर सांसदों के चुनाव लड़ने की उम्र 25 रखी गई है. इन अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं ऐसी याचिकाओं का भी जिक्र किया, जिनमें चुनाव लड़ने की आयु सीमा को घटाकर 18 करने का अनुरोध किया गया था.
नौ युवा ऐक्टिविस्ट जो लड़ रहे हैं दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं से
ग्रेटा थुनबर्ग से लेकर मलाला यूसुफजई तक, कई किशोरों ने जलवायु परिवर्तन और परमाणु युद्ध जैसे विषयों पर अपनी बात रखी है. यह अलग बात है कि दुनिया भर में सत्ता में बैठे वयस्क इनकी बातें सुनने को तैयार हैं या नहीं.
तस्वीर: Hanna Franzén/TT News/picture alliance
ग्रेटा थुनबर्ग
ग्रेटा शायद आज के पर्यावरण संबंधी एक्टिविज्म का सबसे मशहूर चेहरा हैं. 2018 में उन्होंने अपने देश स्वीडन की संसद के बाहर अकेले हर शुक्रवार प्रदर्शनों की शुरुआत की थी. लेकिन उनके अभियान ने एक वैश्विक आंदोलन को जन्म दे दिया जिसके तहत दुनिया भर में किशोरों ने शुक्रवार को स्कूल छोड़ कर अपनी अपनी सरकारों से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ निर्णायक कदमों की मांग की.
तस्वीर: Hanna Franzén/TT News/picture alliance
सेवर्न कल्लिस-सुजुकी
1992 में कनाडा में रहने वाली 12 साल की सेवर्न कल्लिस-सुजुकी को "दुनिया को पांच मिनट के लिए शांत कराने वाली लड़की" के रूप में जाना जाने लगा था. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की अर्थ समिट में वैश्विक नेताओं से अपने तरीके बदलने के लिए आग्रह किया था. वो कनाडा के पर्यावरणविद डेविड सुजुकी की बेटी हैं. उन्होंने मात्र नौ साल की उम्र में एनवायर्नमेंटल चिल्ड्रेन्स आर्गेनाईजेशन (ईसीओ) नाम के संगठन की शुरुआत की.
तस्वीर: UN
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज अमेरिका में एक जलवायु एक्टिविस्ट हैं और 'अर्थ गार्जियंस' नाम के संगठन के यूथ डायरेक्टर हैं. 15 साल की उम्र से पहले ही उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर तीन बार संयुक्त राष्ट्र को संबोधित कर लिया था. मार्तीनेज एक संगीतकार भी हैं और उन्होंने "स्पीक फॉर द ट्रीज" नामक एक हिप-हॉप गीत भी बनाया है. उनके गीत को 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का थीम सॉन्ग बनाया गया था.
तस्वीर: Lev Radin/Pacific Press/picture alliance
मेलाती और इसाबेल विसेन
इंडोनेशिया के बाली की रहनी वालीं मेलाती और इसाबेल विसेन ने स्कूल में मशहूर ऐक्टिविस्टों के बारे में पढ़ कर उनसे प्रेरित हो 2013 में "बाय बाय प्लास्टिक बैग्स" की स्थापना की. उनकी इस पहल का उद्देश्य है समुद्र तट, स्कूलों और समुदायों से एक बार इस्तेमाल कर फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक को बैन करवाना, ताकि 2022 के अंत तक बाली प्लास्टिक मुक्त हो जाए.
तस्वीर: Britta Pedersen/dpa/picture alliance
मलाला यूसुफजई
17 साल की उम्र में मलाला यूसुफजई मानवतावादी कोशिशों के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की विजेता बन गईं. उन्हें पाकिस्तान में महिलाओं के लिए शिक्षा के अधिकार की मांग करने के लिए तालिबान ने गोली मार दी थी, लेकिन वो बच गईं और अपना काम जारी रखा.
तस्वीर: WAEL HAMZEH/EPA/dpa/picture alliance
इकबाल मसीह
पाकिस्तान के इकबाल मसीह को पांच साल की उम्र में कालीन की एक फैक्ट्री में गुलाम बना दिया गया था. 10 साल की उम्र में आजाद होने के बाद उन्होंने दूसरे बाल गुलामों की भाग निकलने में मदद की और बाल श्रम के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक बन गए. लेकिन 12 साल की उम्र में उनकी हत्या कर दी गई. इस तस्वीर में उनकी मां और उनकी बहन उनके हत्यारे की गिरफ्तारी की मांग कर रही हैं.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
जाम्बियान थांडीवे चामा
जब जाम्बियान थांडीवे चामा आठ साल की थीं तब उनके स्कूल के कई शिक्षकों की एचआईवी/एड्स से मौत हो जाने की वजह से स्कूल को बंद करना पड़ा था. तब उन्होंने 60 और बच्चों को इकठ्ठा किया, उन्हें लेकर दूसरे स्कूल पहुंचीं और सबके शिक्षा की अधिकार की मांग करते हुए उन्हें वहां दाखिला देने की मांग की. वो अपनी किताब "द चिकन विद एड्स" की मदद से बच्चों में एचआईवी/एड्स को लेकर जागरूकता फैलाती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa
कोसी जॉनसन
जन्म से एचआईवी संक्रमित कोसी जॉनसन को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग के एक सरकारी स्कूल ने दाखिला देने से मना कर दिया था. 2000 में 11 साल की उम्र में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय एड्स सम्मेलन में कीनोट भाषण दिया और अपनी आपबीती को दुनिया के साथ साझा किया. अपनी पालक मां के साथ उन्होंने एचआईवी संक्रमित माओं और उनके बच्चों के लिए एक शरण स्थान की स्थापना की.
तस्वीर: picture alliance / AP Photo
बाना अल आबेद
24 सितंबर, 2016 को सिर्फ सात साल की बाना अल आबेद ने तीन शब्दों में अपना पहला ट्वीट लिखा था, "मुझे शांति चाहिए." उसके बाद उन्होंने युद्ध ग्रस्त सीरिया में उनके जीवन के बारे में पूरी दुनिया को बताया. तब से वो विश्व के नेताओं से सीरिया में शांति की स्थापना कराने की गुहार लगा रही हैं. आज ट्विटर पर उनके 2,78,000 फॉलोवर हैं.
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ऐसा विचार पहली बार नहीं आया है. 1998 में भी इस तरह की सिफारिशें की गई थीं. इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मुताबिक, चुनाव अधिकारियों ने बताया कि संविधान सभा के सामने भी यह प्रस्ताव आया था. उस समय डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इसके खिलाफ नई धारा सम्मिलित करने का प्रस्ताव पेश किया, जिसे अब संविधान की धारा 84 के रूप में जाना जाता है.
क्या कहती है धारा 84?
अनुच्छेद 84 भारतीय संविधान के शुरुआती ड्राफ्ट का हिस्सा नहीं था. इसे 18 मई, 1949 को संशोधन के रूप में जोड़ा गया. इसका प्रस्ताव डॉ. आंबेडकर ने पेश किया था. इसके तहत संसद की सदस्यता के लिए योग्यता निर्धारित की गई.
ग्रेटा थुनबर्ग के देश स्वीडन में 26 साल की आप्रवासी बनी पर्यावरण मंत्री
ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष ने कहा कि किसी भी मतदाता को चुनाव में खड़े होने के योग्य होने पर कुछ ‘उच्च' योग्यताएं पूरी करनी होंगी. एक सांसद को अपनी जिम्मेदारियों का उचित निर्वहन करने के लिए अनुभव और ज्ञान होना चाहिए. डॉ. आंबेडकर ने कहा कि इन योग्यताओं से संसद में बेहतर उम्मीदवार सुनिश्चित होंगे.
इसी दौरान लोक सभा के सदस्यों की आयु सीमा 35 से घटाकर 30 करने का एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव आया था. इस प्रस्ताव के लिए तर्क दिया कि ‘बुद्धि उम्र पर निर्भर नहीं है.' उनका मानना था कि शिक्षा के साथ युवाओं में बतौर नागरिक अधिक जागरूकता आई. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुने जाने वाले जवाहर लाल नेहरू का उदाहरण दिया और कहा कि कैसे कम उम्र में जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था.
डॉ. आंबेडकर का सुझाव था कि उच्च शिक्षा, कुछ विशेष ज्ञान और वैश्विक मामलों में व्यवहारिक अनुभव रखने वालों को ही विधायिका में पहुंचने का अधिकार मिलना चाहिए.
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दुनियाभर में युवाओं को तरजीह
1988 तक भारत में मतदान की उम्र भी 21 हुआ करती थी. संविधान के 21वें संशोधन के तहत इसे घटाकर 18 किया गया था. हाल के सालों में दुनियाभर में यह चलन लगातार बढ़ रहा है और युवाओं को और ज्यादा अधिकार देने पर बात हो रही है. कई देशों में चुनाव लड़ने की उम्र कम की गई है.
हाल ही में न्यूजीलैंड ने मतदान की उम्र 16 करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है. फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में 18 वर्ष तक के किशोरों को कुछ चुनावों में हिस्सा लेने की इजाजत है. इस्राएल में निचले सदन के लिए चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है. इंडोनेशिया में भी 21 वर्ष के युवा निचले सदन का चुनाव लड़ सकते हैं. ब्रिटेन में 2006 में ही चुनाव लड़ने की उम्र घटाई गई थी. ईरान में भी 21 साल के युवा देश के राष्ट्रपति बन सकते हैं.
भारत में चुनाव लड़ने की उम्र कम करने का एक तर्क यह दिया जा रहा है कि वहां की आबादी दुनिया की सबसे युवा आबादी है. सबसे युवा देश के रूप में चर्चित भारत के शहरों में हर तीसरा व्यक्ति युवा है. 2021 में देश के 46 करोड़ लोग युवा थे और 2026 तक यह स्थिति बनी रहेगी. तब के बाद ही देश की औसत आयु बढ़नी शुरू होगी.