झारखंड में बढ़ी सियासी गर्मी, हेमंत सोरेन की सदस्यता पर सवाल
२६ अगस्त २०२२चुनाव आयोग द्वारा राज्यपाल रमेश बैस को भेजे गए एक पत्र के बाद गुरुवार से झारखंड में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गईं. आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश राज्यपाल से की है. निर्वाचन आयोग ने यह अनुशंसा बीजेपी द्वारा राज्यपाल से की गई उस शिकायत के संदर्भ में की है, जिसमें मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए उन पर लाभ लेने (ऑफिस ऑफ प्रॉफिट) का आरोप लगाया गया था. आयोग ने उन्हें जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा-9ए के उल्लंघन का दोषी पाया है.
सूत्रों के अनुसार, आयोग ने अपने पत्र में हेमंत सोरेन की बरहेट विधानसभा क्षेत्र से उनकी सदस्यता रद करने की अनुशंसा की है. हालांकि, उनके लिए राहत की बात यह है कि उन्हें चुनाव लड़ने से अयोग्य करने का कोई जिक्र पत्र में नहीं किया गया है. अब राज्यपाल लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 2005 की धारा 192 (1) के तहत प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता रद्द करने का निर्णय ले सकते हैं.
राज्यपाल पर नजरें टिकी
शुक्रवार को ही इस संबंध में राजभवन से अधिसूचना जारी की जा सकती है. हालांकि, राज्यपाल के दिल्ली से लौटने के बाद भी इस संबंध में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है. बताया जा रहा है कि इस संबंध में राज्यपाल ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से इस मामले में राय ली है.
फिलहाल, यह साफ नहीं है कि आयोग ने हेमंत को लंबी अवधि तक चुनाव लड़ने से रोकने को लेकर कोई अनुशंसा की है अथवा नहीं. वैसे राज्यपाल के निर्णय के आधार पर हो सकता है सरकार का मुखिया बदल जाए, लेकिन सत्ता के अंकगणित के अनुसार महागठबंधन की सरकार पर इसका कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है. इस मौके पर झारखंड में वक्त-बेवक्त होने वाली ऑपरेशन लोटस की चर्चा भी काफी तेज हो गई है.
हेमंत की इस सरकार में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के 30, कांग्रेस के 18, सीपीआई (एमएल) के एक तथा एनसीपी के एक यानी कुल 50 विधायक है. 81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 42 है. वहीं, विपक्ष में बीजेपी के 26, आजसू के दो तथा दो निर्दलीय विधायक हैं. झारखंड विधानसभा में जेएमएम सबसे बड़ा दल है.
जाहिर है, सियासी पारा चढ़ने के बाद सभी पार्टियां अपनी रणनीति तय करने में जुट गईं हैं. दावों-प्रति दावों का दौर जारी है. शुक्रवार को महागठबंधन के विधायकों की करीब डेढ़ घंटे चली बैठक के बाद ऑल इज वेल होने का दावा किया गया है. मंत्री आलमगीर आलम ने तंज कसते हुए कहा, ‘‘कोई विधायक छत्तीसगढ़ नहीं जा रहा. राज्यपाल का निर्देश आने के बाद उसके अनुसार निर्णय लिया जाएगा. हमें अभी कोई नोटिस नहीं मिली है.'' शाम सात बजे के बाद फिर महागठबंधन के विधायकों की बैठक बुलाई गई है.
फसाद की जड़ खनन की लीज
दरअसल, यह पूरा मामला रांची के अनगढ़ा प्रखंड में 88 डिसमिल के पत्थर खदान के खनन की लीज (पट्टे) से जुड़ा हुआ है. बीते 10 फरवरी को झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर पद के दुरुपयोग का आरोप लगाया. 11 फरवरी को भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास व सांसद दीपक प्रकाश ने राज्यपाल से मिलकर जनप्रतिनिधि कानून,1952 की धारा-9ए के तहत मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द करने की मांग की.
आरोप लगाया गया कि सोरेन ने मुख्यमंत्री व खनन मंत्री के पद पर रहते हुए अनगढ़ा में खनन का पट्टा लिया है. जबकि, हेमंत सोरेन का कहना था कि यह लीज उन्हें करीब 14 साल पहले 2008 में दस साल के लिए मिली थी. 2018 में इसका रिन्युअल (नवीनीकरण) नहीं हो सका. लीज का रिन्युअल 2021 में हुआ. किंतु, बीते 4 फरवरी तक जब खनन की अनुमति नहीं मिली तो उन्हें इसे सरेंडर कर दिया. न तो उनके पास कोई लीज है और न ही उन्हें खनन किया है.
राज्यपाल ने शिकायत मिलने के बाद इसे निर्वाचन आयोग को भेज दिया. आयोग ने मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर संबंधित दस्तावेज पेश करने को कहा. आयोग ने हेमंत सोरेन को भी नोटिस दी तथा कई तारीखों पर मामले की विस्तार से सुनवाई की. चर्चा है कि दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद अब आयोग ने अपना मंतव्य राज्यपाल को भेज दिया है. अब फैसला राज्यपाल को करना है.
क्या विकल्प हैं हेमंत के पास
कानून के जानकारों के अनुसार राज्यपाल के निर्णय के अनुसार तीन परिस्थितियां बन सकती हैं. उन्हें लाभ के पद के कारण विधानसभा की सदस्यता छोड़नी पड़ सकती है. इस स्थिति में वे इस्तीफा देकर फिर से पार्टी द्वारा सदन का नेता चुने जाने के बाद मुख्यमंत्री बन सकते हैं. हालांकि, उन्हें छह माह के अंदर फिर से विधानसभा का चुनाव जीतना होगा. अगर लंबी अवधि तक उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाएगी तो जाहिर है, सत्ता की चाबी जेएमएम अपने हाथ में ही रखना चाहेगी. इसके लिए पार्टी लालू मॉडल को अपना सकती है. लालू ने जैसे अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया था, उसी तरह हेमंत अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपने का निर्णय ले सकते हैं.
वैसे, जोबा मांझी तथा चंपई सोरेन को भी यह जिम्मेदारी सौंपे जाने की चर्चा है. दोनों ही सोरेन परिवार के काफी भरोसेमंद हैं. सूत्र बताते हैं कि कल्पना सोरेन ही पार्टी की पहली पसंद होंगी. तीसरा विकल्प कोर्ट जाने का बनता है. राज्यपाल के फैसले को वे अदालत में चुनौती दे सकते हैं. लेकिन, इसमें काफी समय लग सकता है. सूत्रों के अनुसार पार्टी इस बिंदु पर विचार भी नहीं कर रही है.
कानून के जानकारों के मुताबिक भ्रष्टाचार तथा दल-बदल जैसे मामलों में छह वर्ष का प्रतिबंध लगाया जा सकता है. ऑफिस ऑफ प्रॉफिट जैसे मामले में तीन साल का प्रतिबंध काफी है. पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता एमएन तिवारी कहते हैं, ‘‘आयोग ऐसे मामले में सदस्यता रद्द कर सकता है, लेकिन वे भी इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैैं. आर्टिकल 32 के मामले में वे सीधे सुप्रीम कोर्ट की शरण में भी जा सकते हैं.''
बोले हेमंत, जनसमर्थन कैसे खरीद पाओगे
मीडिया में चल रही रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि भाजपा नेता, सांसद तथा कठपुतली पत्रकारों ने यह रिपोर्ट तैयार की है. अन्यथा यह लीक कैसे होती. वहीं, आयोग की अनुशंसा के संबंध में उन्होंने कहा कि संवैधानिक संस्थाओं और एजेंसियों को भाजपा ने टेकओवर कर लिया है. भारतीय लोकतंत्र में ऐसा कभी नहीं देखा गया. इसके बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि "संवैधानिक संस्थाओं को तो खरीद लोगे, जन समर्थन कैसे खरीद पाओगे. हैं तैयार हम, जय झारखंड."
पत्रकार सुधीर के. सिंह कहते हैं, ‘‘कुछ अजूबा नहीं हुआ है. ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में सोनिया गांधी, शिबू सोरेन तथा जया बच्चन के खिलाफ पहले भी कार्रवाई हो चुकी है. रही बात उत्तराधिकारी की तो राबड़ी देवी का मुख्यमंत्री बनना आप भूल गए क्या. शायद अब यही स्वस्थ लोकतंत्र की परंपरा बन गई है.''
विधायकों की निगहबानी में पार्टियां
जाहिर है, यदि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता जाती है तो बीजेपी इसे अपनी जीत के रूप में प्रचारित करते हुए सरकार से इस्तीफे की मांग करेगी. और हमलावर होते हुए पार्टी की मांग होगी कि मध्यावधि चुनाव कराया जाए और हेमंत सोरेन जनता का सामना करें. हालांकि, ऐसा संभव होता नहीं दिख रहा.
बीजेपी की नजर कांग्रेस के दस तथा शराब नीति की वजह से जेएमएम के असंतुष्ट तीन विधायकों पर भी है. इस वजह से जेएमएम से लेकर कांग्रेस तक में कई विधायकों के असंतुष्ट होने के कारण महागठबंधन सहज स्थिति में नहीं है. हालांकि, सभी विधायक रांची में ही कैंप कर रहे हैं और अंदरखाने में उन्हें एकजुट रखने के सभी प्रयास चल रहे हैं.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने पार्टी की बैठक के बाद सभी विधायकों को रांची में ही रूकने का निर्देश दिया है. वैसे यह भी सच है कि राष्ट्रपति चुनाव के दौरान सत्ता पक्ष के कई विधायकों द्वारा की गई क्रॉस वोटिंग और फिर पश्चिम बंगाल में भारी मात्रा में नकदी के साथ पकड़े गए तीन विधायकों के कारण महागठबंधन की परेशानी जरूर बढ़ गई है. क्या होगा फेर-बदल, इसे लेकर सबकी निगाहें अब राजभवन की ओर हैं.